नई दिल्ली: आपने इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन या ICSE के बारे में सुना होगा लेकिन क्या आपने इंडियन काउंसिल ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन, ICSE के बारे में भी सुना है? इसके अलावा ऑल इंडिया काउंसिल फॉर ओपन एजुकेशन या केंद्रीय उच्च शिक्षा बोर्ड (सीबीएचई) या उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड या इंदिरा गांधी हायर सेकेंडरी और ओपन एजुकेशन और भी न जाने कितने नाम है जिनके बारे में आप शायद ही कुछ जानते हों?
बहुत हद तक मिलते-जुलते नामों वाले ये ‘शिक्षा बोर्ड’ 100 से अधिक ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ स्कूल बोर्डों में से हैं, जिन पर अधिकारी नकेल कसने की कोशिशों में जुटे हैं.
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने अपनी वेबसाइट पर 116 ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ बोर्डों की एक सूची डाली है और कहा है कि जिन छात्रों ने इन बोर्डों के तहत अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की है, उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाएगा. इनमें से कई के नाम तो वास्तविक बोर्ड जैसे ही दिखते हैं जिनमें बड़ी चालाकी से एक शब्द की हेरा-फेरी कर बोर्ड के वास्तविक नाम के समान बना दिया गया है.
इन फर्जी 116 बोर्ड्स में से अधिकांश दिल्ली और उत्तर प्रदेश में स्थित हैं.
केंद्र सरकार विभिन्न बोर्डों को समानता देने के लिए एक एसओपी बनाने की दिशा में काम कर रही है. जिससे नकली और असली बोर्ड की पहचान करने में मदद मिलेगी. बोर्ड की ‘प्रामाणिकता’ का पता लगाने का काम एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) को सौंपा गया है.
दिप्रिंट ने अपने स्तर पर पड़ताल की कि ये गैर-मान्यता प्राप्त बोर्ड क्या हैं और वे कैसे काम करते हैं.
इन फर्जी बोर्डों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने अब तक क्या किया है, इस पर प्रतिक्रिया के लिए शिक्षा सचिव अनीता करवाल को एक विस्तृत ईमेल भेजा गया था. जवाब मिलने के बाद इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.
2013 के एक सार्वजनिक नोटिस में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय -अब शिक्षा मंत्रालय – ने स्पष्ट किया था कि शिक्षा बोर्ड ‘केंद्र /राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश सरकारों द्वारा स्थापित हैं.’
नोटिस में कहा गया कि यह या तो संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम या केंद्र या राज्य सरकार के कार्यकारी आदेश द्वारा स्थापित होता है.
इसमें आगे विस्तार से आगे बताया गया कि ‘दो राष्ट्रीय स्तर के स्कूल बोर्ड हैं. एक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और दूसरा मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के तहत राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान (एनआईओएस).’ नोटिस में मूल संस्थान को ‘किसी भी बोर्ड द्वारा जारी किए गए मान्यता पत्र’ की ‘प्रामाणिकता की पुष्टि’ मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ करने की सलाह दी.
यह भी पढ़ेंः बड़े स्तर पर छटनी, ऑफलाइन क्लास: स्कूल, कॉलेज के फिर से खुलने पर एडटेक कंपनियों के सामने क्या हैं चुनौतियां
‘छोटे शहरों और गांवों’ में फैल रहे फर्जी बोर्ड
आप एक असली स्कूल बोर्ड को नकली बोर्ड से कैसे अलग करोगे? एसओपी बनाने की जानकारी रखने वाले एक शिक्षा अधिकारी के अनुसार, यह कार्य जितना लगता है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है.
शिक्षा मंत्रालय ने पिछले साल एआईयू को एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार करने के लिए कहा था जिसके द्वारा कॉलेज में प्रवेश और नौकरियों के लिए विभिन्न बोर्डों के अंकों को समान माना जा सके.
इस प्रक्रिया के दौरान एआईयू उन बोर्ड की एक सूची के साथ सामने आएगा जिन्हें समकक्ष माना गया होगा. इससे उच्च शिक्षा संस्थानों को असली बोर्ड की पहचान करने में मदद मिल सकती है.
जिसका नाम सूची में नहीं होगा, उन्हें असली नहीं माना जाना जाएगा.
अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे द्वारा दी गई बोर्ड की सूची के अलावा बाकी सब को गैर-मान्यता प्राप्त माना जाएगा.’
अधिकारी ने बताया, ‘हालांकि अब तक यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि कौन सा बोर्ड फर्जी है और कौन सा असली, जब तक कि शिक्षा मंत्रालय कोई अधिसूचना या सार्वजनिक नोटिस जारी नहीं करता है.’
ये फर्जी बोर्ड स्कूल, कम पैसे में प्रमाण पत्र देने की बात करते हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘छोटे शहरों और गांवों में मौजूद बोर्ड 10,000 रुपये या उससे अधिक में 10वीं कक्षा का प्रमाण पत्र देने का वादा करते हैं … ये वही फर्जी बोर्ड हैं. वे आमतौर पर स्कूलों से जुड़े नहीं होते हैं, लेकिन ओपन स्कूल विकल्पों की तलाश करने वाले लोगों के लिए स्वतंत्र स्कूल बोर्ड के रूप में चलते हैं.’
एआईयू के अगले महीने तक अपनी एसओपी जारी करने की उम्मीद है. लेकिन अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि सरकार गैर-मान्यता प्राप्त बोर्डों के खिलाफ कोई कार्रवाई तय करने की योजना बना रही है या नहीं.
10वीं या 12वीं में फेल होने के बाद स्कूल छोड़ चुके बच्चे इनके निशाने पर
फर्जी बोर्ड के तौर-तरीकों को समझने के लिए दिप्रिंट ने कुछ कर्मचारियों से संपर्क किया. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर अपनी बातें हमारे साथ साझा की. कुछ ने तो ये भी कहा कि उन्होंने खुले तौर पर कोई झूठे दावे नहीं किए.
एक गैर-मान्यता प्राप्त बोर्ड के एक कर्मचारी ने कहा, ‘हम कभी भी किसी स्कूल से जुड़े होने का दावा नहीं करते हैं. हम एक स्वतंत्र संस्थान के रूप में सूचीबद्ध हैं और हम यही बताते हुए अपना प्रमाण पत्र जारी करते हैं. हम अपने साथ उम्मीदवारों को पंजीकृत कर, किसी भी अन्य ओपन बोर्ड के रूप में परीक्षा आयोजित करते हैं. और उन्हें सफलतापूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण करने पर एक प्रमाण पत्र दिया जाता हैं.’
एक अन्य कर्मचारी ने कहा कि बोर्ड ने उन ड्रॉपआउट बच्चों की मुश्किलों को दूर किया है, जिन्हें नौकरी पाने के लिए मैट्रिक प्रमाण पत्र की जरूरत होती है.
कर्मचारी ने समझाया, ‘हमारे पास आने वाले अधिकांश लोगों को नौकरी के लिए 10वीं क्लास के सर्टिफिकेट की जरूरत होती है. दरअसल ये वो लोग होते हैं जिन्होंने किसी कारणवश अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अब उनके पास वापस स्कूल में दाखिला मिलने की संभावना नहीं है.’
दिप्रिंट ने उन कई बोर्ड की ‘आधिकारिक वेबसाइटों’ और सोशल मीडिया पेजों को देखा, जिन्हें शिक्षा मंत्रालय ने ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ घोषित किया हुआ है. इनमें से अधिकांश ने अपनी किसी शिक्षा संस्थान से सम्बद्ध होने की जानकारी को हटा दिया है. लेकिन 10वीं और 12वीं के सर्टिफिकेट या स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट देने का अभी भी वादा कर रहे हैं.
उदाहरण के तौर पर ऑल इंडिया काउंसिल फॉर ओपन एजुकेशन के फेस फेसबुक पेज को ही ले लें. यहां 10वीं और 12वीं के उन छात्रों के लिए एक गारंटी से पास होने का वादा किया गया है, जो पहले अनुत्तीर्ण हो चुके हैं.
यह बोर्ड एक शिक्षा फ्रेंचाइजी होने का भी दावा करता है जो परामर्श और प्रवेश सेवाएं मुहैया कराता है. उसने अपने फेसबुक पोस्ट में विभिन्न एजेंटों के नंबर भी अपनी लिस्ट में डाले हुए हैं.
जब दिप्रिंट ने इनकी लिस्ट में मौजूद नंबरों में से एक पर कॉल किया, तो फोन पर जानकारी मिली कि संगठन पश्चिम बंगाल से बाहर का है. सुदीप्तो कुमार, जिनका नंबर लिस्ट में मौजूद था, ने कहा कि वह तो बस एक कर्मचारी हैं. उन्होंने सलाह दी की बोर्ड को एक ईमेल भेजकर जानकारी ली जा सकती हैं. दिप्रिंट ने ऐसा ही किया. लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक वहां से कोई जवाब नहीं मिला है.
यह भी पढ़ेंः क्या आप अपने बच्चे को ‘मेधावी’ कह सकते हैं? देखिये क्या कहते हैं AICTE के मानदंड
मान्यता और ‘वैधता’ के भ्रामक दावे
इग्नू ने जिन 116 बोर्ड के लिस्ट में नाम दिए हैं, उनमें से अधिकांश दिल्ली और उत्तर प्रदेश में स्थित हैं.
सेंट्रल बोर्ड ऑफ हायर एजुकेशन, पश्चिम दिल्ली में स्थित एक गैर-मान्यता प्राप्त बोर्ड है. यह कई विश्वविद्यालयों के साथ ‘समय-समय पर’ संबद्ध होने का दावा करता है. वेबसाइट के मिशन स्टेटमेंट में लिखा है, ‘आधुनिक शिक्षा का प्रसार और संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषाओं के जरिए प्राचीन संस्कृति को पुनर्जीवित करना’
हालांकि, वेबसाइट पर अपलोड किए गए विविध दस्तावेज भ्रमित करने वाली तस्वीर पेश करते हैं. मसलन, ‘मान्यता और वैधता’ वाला लेबल, एक ट्रैवल कंपनी से जुड़े मामले से संबंधित है. साइट पर मान्यता प्रमाण पत्र को आसानी से नहीं पढ़ा जा सकता है. वेबसाइट पर दिया गया फोन नंबर भी काम नहीं कर रहा है.
इंदिरा गांधी उच्चतर माध्यमिक और मुक्त शिक्षा (IGHSOE) शिक्षा मंत्रालय द्वारा पंजीकृत होने का दावा करती है. इसकी वेबसाइट पर लिखा है: ‘इसके द्वारा सूचित किया जाता है कि IGHSOE द्वारा आयोजित परीक्षा के बारे में अनुमोदन और मान्यता के सभी मामलों को भारत संघ द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली के सचिव के माध्यम से अनुमोदित किया गया है और मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी विचाराधीन है’
बोर्ड को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला है.
दिल्ली स्थित उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के लिए सूचीबद्ध नंबरों पर भी कॉल का जवाब नहीं दिया गया.
हालांकि, वेबसाइट प्रमाणन और आधिकारिक दस्तावेजों से भरी हुई है. इसमें 2012 के एक आरटीआई का लिंक भी शामिल है जो दावा करता है कि ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय शिक्षा बोर्डों की स्थापना को विनियमित नहीं करता है. भारत संघ भारत में शिक्षा बोर्ड/परिषद स्थापित करने के लिए किसी वैधानिक निकाय का गठन नहीं करता है.’
बोर्ड अपनी साइट में यह भी कहता है, ‘हमने कभी दावा नहीं किया या घोषित नहीं किया कि हमारा बोर्ड भारत सरकार बोर्ड यूपी शिक्षा अधिनियम, 1921 द्वारा संचालित एमएचआरडी से मान्यता प्राप्त है. दिप्रिंट ने इस बोर्ड से भी अपनी स्थिति पर प्रतिक्रिया मांगने के लिए एक ईमेल भेजा था, फिलहाल जवाब का इंतजार है.
(इस खबर को अग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कोर्स के लिए सरकार ने तय की न्यूनतम और अधिकतम सालाना फीस स्लैब