चंडीगढ़: चुनाव का समय आ गया है और चंडीगढ़ से करीब 200 किलोमीटर उत्तर में ब्यास नदी के किनारे स्थित राधा स्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) डेरा मुख्यालय में डेरा प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों का आशीर्वाद लेने के लिए एक बार फिर से हाई-प्रोफाइल आगंतुकों की भीड़ उमड़ पड़ी है.
कांग्रेस के चरणजीत सिंह चन्नी और मनीष तिवारी से लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हंस राज हंस और रवनीत बिट्टू, शिरोमणि अकाली दल (SAD) के विरसा सिंह वल्टोहा और आम आदमी पार्टी (AAP) के लालजीत भुल्लर तक – पिछले कुछ हफ्तों में RSSB मुख्यालय में लोकसभा उम्मीदवारों की कतार लगी हुई है.
हालांकि, रविवार को पंजाब में 1 जून को होने वाले चुनावों से दो सप्ताह से भी कम समय पहले ढिल्लों ने मुख्यालय में एक सत्संग (प्रार्थना सभा) को संबोधित करते हुए अपने डेरे को “गैर-राजनीतिक” घोषित किया.
ढिल्लों ने घोषणा की कि उनके लिए सभी उम्मीदवार और राजनीतिक दल समान हैं, आरएसएसबी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया.
उन्होंने कहा, “सभी उम्मीदवार हमारे प्रिय हैं और हम सभी को मतदान प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए.”
सूत्रों ने बताया कि ढिल्लों ने आगे बताया कि उन्हें किसी भी पार्टी से कोई विशेष लगाव नहीं है, न ही उनका किसी के प्रति कोई झुकाव है और उन्होंने कहा कि डेरा ब्यास के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं.
गुरमीत राम रहीम सिंह की अध्यक्षता वाले सिरसा के डेरा सच्चा सौदा, जिसके पास चुनावों के दौरान किसे वोट देना है, इस बारे में अनुयायियों को मार्गदर्शन देने के लिए एक राजनीतिक समिति है, उसके विपरीत ब्यास डेरा ने हमेशा गैर-राजनीतिक होने का दावा किया है.
पंजाब के डेरों में आरएसएसबी सबसे प्रमुख है. पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में इसके पास काफी ज़मीन है और इसका दावा है कि इसके लाखों अनुयायी हैं. इनमें हिंदू और सिख दोनों शामिल हैं, और ज़्यादातर दलित हैं, जो अपने-अपने धर्मों से पहचान के साथ-साथ डेरे से आध्यात्मिक मार्गदर्शन लेते हैं.
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राजनेताओं की भीड़
चुनाव के समय राजनेता आमतौर पर आरएसएसबी में आते हैं, और इसके गैर-राजनीतिक दृष्टिकोण ने इस बार चुनाव मैदान में उतरे प्रमुख उम्मीदवारों को ढिल्लों से मिलने और उनके साथ एक तस्वीर खिंचवाने से नहीं रोका, ताकि वे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकें.
पिछले महीने डेरे में आने वाले राजनेताओं में कई कांग्रेस उम्मीदवार शामिल हैं, जैसे- पूर्व सीएम चन्नी (जालंधर से चुनाव लड़ रहे हैं), पार्टी के राज्य प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग (लुधियाना), गुरजीत सिंह औजला (अमृतसर), मनीष तिवारी (चंडीगढ़) और कुलबीर सिंह जीरा (खडूर साहिब).
भाजपा की ओर से हंस राज हंस (फरीदकोट), बिट्टू (लुधियाना) और सुशील रिंकू (जालंधर) आए हैं, जबकि शिअद के वल्टोहा (खडूर साहिब) भी आए हैं.
आप के जिन उम्मीदवारों ने डेरा का दौरा किया है, उनमें पंजाब के कैबिनेट मंत्री भुल्लर (खडूर साहिब), राज कुमार चब्बेवाल (होशियारपुर) और अशोक पाराशर पप्पी (लुधियाना) शामिल हैं.
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेरा का दौरा किया था. ढिल्लों ने फरवरी 2022 में दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. उस साल गृहमंत्री अमित शाह भी डेरा आए थे.
डेरा की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके अनुयायियों में कई प्रमुख व्यक्ति शामिल हैं. इनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना भी शामिल हैं, जिनके पिता केएल खन्ना एक समय डेरा के सचिव थे.
पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव ईश्वर पुरी और राजन कश्यप तथा पंजाब के 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी और पूर्व रॉ प्रमुख सामंत गोयल भी उनके अनुयायी हैं.
बाबा चरण सिंह (ढिल्लों के मामा और पूर्व डेरा प्रमुख) के विपरीत, जो शायद ही कभी राजनेताओं के साथ देखे जाते थे, ढिल्लों ज्यादा मिलनसार हैं.
डेरा में सोनिया गांधी, लाल कृष्ण आडवाणी, राहुल गांधी, नितिन गडकरी, पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जैसे राजनेता आ चुके हैं. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी डेरा का दौरा कर चुके हैं.
पंजाब के पूर्व राजस्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया (सुखबीर सिंह के साले) की पत्नी गनीव ग्रेवाल ढिल्लों की करीबी रिश्तेदार हैं.
डेरा का इतिहास
डेरा की विरासत राधा स्वामी आध्यात्मिक परंपरा से आती है, जिसकी शुरुआत बाबा शिव दयाल सिंह ने 1861 में आगरा में की थी. उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने 1891 में ब्यास डेरा शुरू किया, यही वजह है कि इसे डेरा बाबा जयमल सिंह के नाम से भी जाना जाता है. सिरसा में डेरा सच्चा सौदा राधा स्वामी परंपरा से अलग हुआ गुट है.
ढिल्लों ने 1990 में अपने मामा बाबा चरण सिंह से डेरे के प्रमुख का पद संभाला, जो 1951 से 1990 तक इसके प्रमुख थे.
जब ढिल्लों को उत्तराधिकारी घोषित किया गया, तब वे स्पेन में थे और डेरा की बागडोर संभालने के लिए भारत लौट आए. 2013 में ढिल्लों को पता चला कि उन्हें कैंसर है, लेकिन वे बच गए.
2020 में ढिल्लों को रैनबैक्सी के पूर्व मालिकों शिविंदर सिंह और मालविंदर सिंह से जुड़े हाई-प्रोफाइल धोखाधड़ी मामले में उलझना पड़ा. उनकी मां निम्मी सिंह बाबा चरण सिंह की बेटी थीं. एक समय ऐसा भी था, जब ढिल्लों कैंसर से जूझ रहे थे, तब शिविंदर को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था.
हालांकि, मालविंदर द्वारा ढिल्लों और उनके परिवार को रैनबैक्सी मामले में घसीटे जाने के बाद दोनों भाइयों और ढिल्लों के बीच संबंध खराब हो गए. उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि ढिल्लों पर उनकी कंपनियों का करोड़ों रुपये बकाया है.
RSSB की वेबसाइट के अनुसार, डेरा की भारत में लगभग 5,000 और विदेशों में 90 शाखाएं हैं. ब्यास में इसका मुख्यालय 3,000 एकड़ में फैला हुआ है और यह अपने आप में एक छोटा सा शहर है, जिसमें एक विशाल सत्संग परिसर, आवासीय क्षेत्र, एक स्कूल और एक अस्पताल है.
सत्संग परिसर में 5 लाख लोगों तक की भीड़ जमा हो सकती है और लंगर (सामुदायिक भोजन) हॉल में एक बार में 50,000 लोग भोजन कर सकते हैं. आध्यात्मिक समागमों और विशाल लंगरों के आयोजन के अलावा, डेरा के अनुयायी सामुदायिक और सामाजिक कार्यों में भी शामिल होते हैं.
डेरा ब्यास स्थित रेलवे स्टेशन, जिसका रखरखाव डेरा के स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है, को 2017 में भारत का सबसे स्वच्छ रेलवे स्टेशन घोषित किया गया था. 2016 में, तत्कालीन पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल ने डेरा में दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल-रूफ-टॉप सोलर सुविधा का उद्घाटन किया था.
हालांकि डेरा अपने अनुयायियों को किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए प्रोत्साहित करता है, लेकिन 2012 में यह एक बड़े विवाद में फंस गया था, जब यह आरोप लगाया गया था कि इसके अनुयायियों ने एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा को ध्वस्त कर दिया था. डेरा द्वारा माफ़ी मांगने और गुरुद्वारे के पुनर्निर्माण की पेशकश के बाद मामला सुलझ गया था.
सितंबर 2022 के पहले सप्ताह में, निहंग सिखों (सिख योद्धाओं का एक समूह) ने डेरा के अनुयायियों के साथ झड़प की, जिसमें एक दर्जन लोग घायल हो गए. निहंग सिखों ने अपने मवेशियों को डेरा की ज़मीन पर चरने के लिए छोड़ दिया था, जिसके कारण झड़प हुई.
सितंबर 2022 के पहले हफ़्ते में निहंग सिखों (सिख योद्धाओं का एक समूह) और डेरा के अनुयायियों के बीच झड़प हुई, जिसमें एक दर्जन लोग घायल हो गए. निहंग सिखों ने अपने मवेशियों को डेरा की ज़मीन पर चरने के लिए छोड़ दिया था, जिसके कारण झड़प हो गई.
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