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Sunday, 22 December, 2024
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मोदी सरकार में भारत की आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में छवि धूमिल हो रही है: मनमोहन सिंह

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा कि सामाजिक अशांति, आर्थिक तबाही और कोरोनोवायरस का प्रकोप आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में भारत के वैश्विक छवि को कमतर कर सकता है.

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नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार पर भारत की आर्थिक और लोकतांत्रिक छवि को लेकर हमला बोला है. उन्होंने मोदी सरकार को नाकाम बताते हुए उसे हालत से उबरने के लिए कई तरह के सुझाव दिए हैं. सिंह ने तीन अहम बिंदुओं- कोरोनावायरस, सामाजिक तनाव और गिरती अर्थव्यवस्था से निपटने के उपाय बताए हैं.

एक अखबार में लेख के जरिए मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत सामाजिक तनाव, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य महामारी के तिहरे खतरे का सामना कर रहा है. सामाजिक उथल-पुथल और आर्थिक तबाही खुद से पैदा की गई समस्या है जबकि स्वास्थ्य संबंधी कोरोनावायरस एक संक्रमण है, यह एक बाहरी झटका है.

मनमोहन सिंह कहते हैं कि वह इसे ‘बहुत भारी मन से लिख रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे गहरी चिंता है कि ये शक्तिशाली जोखिम मिलकर न केवल भारत की आत्मा को तोड़ सकतें हैं, बल्कि विश्व में आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी वैश्विक स्थिति को कमतर कर सकते हैं.’

सिंह लिखते हैं, ‘पिछले कुछ हफ्तों में दिल्ली में हिंसा की हदें पार हो गईं. हमने बेवजह अपने लगभग 50 भारतीय साथियों को गंवा दिया है. कई सौ लोगों को चोटें आई हैं.’

वह आरोप लगाते हैं कि राजनीतिक वर्ग सहित हमारे समाज के अनियंत्रित वर्गों ने सांप्रदायिक तनाव पैदा कर धार्मिक असहिष्णुता बढ़ाई है. विश्वविद्यालय के परिसर, सार्वजनिक स्थान और घर भारत के इतिहास में काले समय की याद दिलाते हुए हिंसा के सांप्रदायिक प्रकोपों ​​का खामियाजा भुगत रहे हैं. कानून और व्यवस्था की संस्थाओं ने नागरिकों की रक्षा के लिए अपने धर्म (जिम्मेदारी) को छोड़ दिया है. न्याय के संस्थान और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ, मीडिया, ने भी हमें विफल किया है.

राष्ट्र की आत्मा के लिए कलंक

बिना किसी रोक-टोक के सामाजिक तनाव की आग तेजी से पूरे देश में फैल रही है और हमारे देश की आत्मा के लिए कलंक साबित हो रही है.

सांप्रदायिक हिंसा का जिक्र करते हुए सिंह लिखते हैं कि देश में वर्तमान हिंसा को सही ठहराने के लिए भारत के इतिहास में इस तरह की हिंसा के पिछले उदाहरणों को इंगित करना निरर्थक और अपरिपक्व दोनों है. सांप्रदायिक हिंसा का हर कार्य महात्मा गांधी के भारत पर धब्बा है. कुछ ही वर्षों में, भारत उदार लोकतांत्रिक तरीकों के माध्यम से आर्थिक उदारीकरण के विकास के मामले में कलह से भरे आर्थिक निराशा के एक बहुमत वाले शासन की तरफ फिसला है. ऐसे समय में जब हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, तो सामाजिक अशांति का असर केवल आर्थिक मंदी को बढ़ाएगा.

वह अर्थव्यवस्था के संकट पर लिखते हैं कि अब यह अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था का संकट वर्तमान में निजी क्षेत्र द्वारा नए निवेश की कमी की वजह से बढ़ा है. निवेशक, उद्योगपति और उद्यमी नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए तैयार नहीं हैं और अपनी जोखिम लेने की भूख खो चुके हैं. सामाजिक व्यवधान और सांप्रदायिक तनाव केवल उनके डर और जोखिम को समेटते हैं. सामाजिक समरसता, आर्थिक विकास का आधार, अब संकट में है.

वह हाल के टैक्स सुधारों को नाकाफी बताते हुए लिखते हैं कि कर दरों में बदलाव, कॉर्पोरेट प्रोत्साहन की बौछार भारतीय या विदेशी व्यवसायों को निवेश के लिए प्रेरित करने जैसी चीजें, जब किसी के पड़ोस में बड़े पैमाने पर अचानक हिंसा भड़कने का खतरा बड़ा हो तो कुछ काम नहीं आएगा. निवेश में कमी का मतलब है, नौकरियों और आय में कमी, जो अर्थव्यवस्था में खपत और मांग की कमी में बदलता है. मांग की कमी केवल निजी निवेश को और नीचे करेगी. यह वह दुष्चक्र है, जिसमें हमारी अर्थव्यवस्था फंस गई है.

कोरोनावायरस को आर्थिक तबाही में नया खतरा बताते हुए वह लिखते हैं कि खुद से पैदा की गई परेशानी में कोरोनावायरस की महामारी का वास्तविक खतरा भी जुड़ता है जिसकी उत्पत्ति चीन में हुई है. यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि यह वैश्विक स्वास्थ्य खतरा दुनिया में कितना फैलेगा और प्रभावित करेगा. लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि हमें इसका मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार होना चाहिए. यह जरूरी है कि हम सभी इस खतरे का सामना करने के लिए सामूहिक रूप से तैयार हों. हमने हाल में सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का उस पैमाने पर सामना नहीं किया है, जिस तरह का मौजूदा संकट सामने है. इसलिए इस खतरे का तुरंत मुकाबला करने के लिए एक पूर्ण-स्तरीय, मिशन-मोड ऑपरेशन शुरू करना महत्वपूर्ण है.

कोरोनावायरस से निपटना

दुनिया के देशों की तरह भारत को भी इस पर कदम उठाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री लिखते हैं कि इस महामारी के प्रभाव को रोकने के लिए दुनिया भर के राष्ट्र कार्रवाई में जुट गए हैं. चीन प्रमुख शहरों और सार्वजनिक स्थानों को बंद कर रहा है. इटली स्कूलों को बंद कर रहा है. अमेरिका ने लोगों को बचाने के लिए आक्रामक अनुसंधान के साथ-साथ तेजी से किए गए शोध प्रयासों को अपनाया है. कई अन्य राष्ट्रों ने इस मुद्दे को हल करने के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा की है. भारत को भी तेजी से काम करना चाहिए और मिशन मोड वाली टीम बनानी चाहिए. कुछ सबसे अच्छी प्रैक्टिस जिन्हें हम अन्य देशों से अपना सकते हैं.

वह चीन के नीचे जाने से फायदा उठाने की बात करते हुए लिखते हैं कि अब यह स्पष्ट है कि कोरोनावायरस का आर्थिक प्रभाव बहुत बड़ा होगा. विश्व बैंक और आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों ने पहले ही वैश्विक आर्थिक विकास में तेज मंदी की बात की है. ऐसी रिपोर्टे हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था भी अनुबंधित हो सकती है, यदि ऐसा होता है, तो यह 1970 के दशक की सांस्कृतिक क्रांति के बाद पहली बार होगा. चीन आज वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग पांचवां हिस्सा और भारत के बाहरी व्यापार का दसवां. विश्व अर्थव्यवस्था के लिए पूर्वानुमान काफी गंभीर है. इससे भारत की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ना तय है. ऐसी एकीकृत वैश्विक अर्थव्यवस्था में, कोरोनावायरस का संकट भारत की जीडीपी वृद्धि को आधे से एक प्रतिशत अंक तक धीमा कर सकता है. भारत की आर्थिक वृद्धि पहले से ही कमजोर थी और यह बाहरी स्वास्थ्य झटका चीजों को बहुत खराब करेगा.

कदम उठाने के सुझाव

सिंह वर्तमान हालत से निपटने का सुझाव देते हैं, ‘यह मेरा विश्वास है कि सरकार को तीन विंदुओं वाली योजना पर जल्दी अमल करना चाहिए. सबसे पहले, सारी ताकत कोरोनावायरस के खतरे से निपटने पर लगानी चाहिए. दो, नागरिकता अधिनियम में संशोधन करना चाहिए या इसे वापस लेना चाहिए, जहरीले सामाजिक माहौल को खत्म करना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ाना. तीन, खपत की मांग को बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए एक विस्तृत और राजकोषीय प्रोत्साहन योजना के साथ जोड़ा जाना चाहिए.’

वह मोदी पर टिप्पणी करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्र को केवल शब्दों के माध्यम से नहीं, बल्कि कर्मों के माध्यम से यह विश्वास दिलाना चाहिए कि वह उन खतरों से परिचित हैं जिनसे हम एक राष्ट्र के तौर पर महसूस कर रहे हैं. उन्हें तुरंत कोरोनावायरस के खतरे को लेकर आकस्मिक योजना का विवरण रखना होगा.

गहरे संकट का क्षण भी महान अवसर का क्षण हो सकता है. मुझे याद है कि 1991 में, भारत और दुनिया को एक समान गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जिसमें भारत में भुगतान संकट का संतुलन और खाड़ी युद्ध के कारण तेल की बढ़ती कीमतों से वैश्विक मंदी पैदा हुई थी. लेकिन हम इसे व्यापक सुधारों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करने के एक अवसर में सफलतापूर्वक बदलने में सक्षम हुए. इसी तरह, वायरस के संक्रमण और चीन के नीचे जाने से संभावित रूप से भारत के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बड़ा खिलाड़ी बनने और दूसरे लाखों भारतीयों के लिए समृद्धि के स्तर को सुधारने के लिए दूसरे स्तर के सुधारों को शुरू करने का अवसर खुल सकता है. इसे प्राप्त करने के लिए, हमें पहले विभाजनकारी विचारधारा, क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठना और संस्थाओं का सम्मान करना होगा.

वह लिखते हैं कि यह पेशकश करने का मेरा कतई मतलब नहीं कि भारत को लाइलाज बीमारी हो गई है या भय को अतिरंजित करने की मेरी इच्छा है. लेकिन मेरा मानना ​​है कि भारत के लोगों के लिए सच बोलना हमारा एकमात्र फर्ज है. सच तो यह है कि वर्तमान स्थिति बहुत विकट और उदासी भरी है. जिस भारत को हम जानते हैं और संजोते हैं, वह तेजी से दूर जा रहा है. सांप्रदायिक तनाव, घोर आर्थिक कुप्रबंधन और बाहरी स्वास्थ्य के झटके ने भारत की प्रगति को पटरी से उतरने का खतरा पैदा कर दिया है. यह एक राष्ट्र के रूप में हमारे द्वारा सामना किए जाने वाले गंभीर जोखिमों की कठोर वास्तविकता का सामना करने और उन पर चौतरफा और पर्याप्त रूप से ध्यान देने का समय है.

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