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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशपूर्व सांसद ने पसमांदा मुसलमानों पर जारी की रिपोर्ट, कहा — बिहार में स्थिति बदतर

पूर्व सांसद ने पसमांदा मुसलमानों पर जारी की रिपोर्ट, कहा — बिहार में स्थिति बदतर

अली अनवर अंसारी ने कहा कि मोदी को समुदाय के लिए ‘घड़ियाली आंसू’ बहाना बंद करना चाहिए. जुलाई 2022 में पीएम के संकेत के बाद ही पसमांदा भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बन गया.

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नई दिल्ली: “अगर उन्होंने हमें नज़रंदाज़ किया तो हम भी उन्हें नज़रों से उतारना जानते हैं”, पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी, जो एक प्रसिद्ध पसमांदा आवाज हैं, इस बारे में स्पष्ट हैं कि चुनावी साल में राजनीतिक दलों द्वारा ‘वादे’ पूरे नहीं किए जाने पर मुस्लिम समुदाय का सबसे हाशिए पर रहने वाला वर्ग कैसे प्रतिक्रिया देगा.

और अनवर के पास इस दृष्टिकोण को रखने का एक मुद्दा है: समुदाय ने पिछले दो साल में खुद को लुभाने और बहुत सारे वादे किए जाने को देखा है. अधिक विशेष रूप से यह जुलाई 2022 में हैदराबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकेत के बाद था कि ‘पसमांदा’ भारतीय राजनीति में एक चर्चा का विषय बन गया है.

उदाहरण के लिए मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पसमांदाओं को कई प्रमुख भूमिकाएं बनाईं और 2023 के उत्तर प्रदेश शहरी निकाय चुनावों में 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा.

लेकिन, अनवर का आरोप है कि प्रधानमंत्री पसमांदाओं की चिंताओं को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और उनके लिए ‘घड़ियाली आंसू’ बहा रहे हैं. उन्होंने कहा, “एक मुस्लिम देश (संयुक्त अरब अमीरात) आपको मंदिरों के उद्घाटन के लिए आमंत्रित कर रहा है और आप अपने ही देश में मुसलमानों के साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं? पसमांदाओं को शारीरिक नुकसान हो रहा है.”

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (एआईपीएमएम) के संस्थापक ने बिहार जाति सर्वे पर आधारित एक रिपोर्ट के जरिए उपेक्षा के अपने आरोपों का समर्थन किया है, जो पिछले साल उनके गृह राज्य बिहार में किया गया था.

अनवर ने कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में दिप्रिंट को बताया, “(देश में) मॉब लिंचिंग और सरकारी बुलडोजर की घटनाओं के 95 प्रतिशत पीड़ित हाशिए पर रहने वाले समुदायों से हैं. हमारी मांग है कि इसके खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए.”

ऐसे मामलों के लिए पसमांदा संगठन की कुछ मांगों में उन जिलों में कलेक्टरों और एसपी को जवाबदेह बनाना, प्रभावित परिवारों को मुआवजा देना और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देना शामिल है.

बिहार जाति सर्वे के निष्कर्षों और इन मांगों को हिंदी में ‘जाति जनगणना 2023 और पसमांदा मुस्लिम’ शीर्षक से एक किताब में एक साथ रखा गया है. योजना इस किताब को सभी राजनीतिक दलों को वितरित करने और फिर मांग करने की है कि वे अपने लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में पसमांदा मुद्दों को संबोधित करें.

फारसी से लिया गया, ‘पसमांदा’ शब्द भारत में मुसलमानों के सबसे पिछड़े और उत्पीड़ित वर्ग को संदर्भित करता है. अनुमान है कि लगभग 85 प्रतिशत मुसलमान इस श्रेणी में आते हैं, जबकि शेष वर्ग में उच्च वर्ग के अशरफ मुसलमान शामिल हैं.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि रिपोर्ट के “निष्कर्ष” पसमांदाओं के बीच फूट पैदा करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं हैं. नेता ने कहा कि प्रगतिशील मुसलमान विकास के उस रास्ते पर चलना चाहते हैं जो मोदी सरकार उन्हें दे रही है.


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रिपोर्ट के निष्कर्ष

अनवर का दावा है कि इस रिपोर्ट से देश भर में पसमांदाओं की स्थिति का अंदाज़ा मिल सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में हाशिए पर रहने वाले मुसलमानों को सामान्य समुदाय और गैर-मुस्लिम पिछड़े वर्गों की तुलना में बदतर स्थिति का सामना करना पड़ता है, सरकारी नौकरियों में इनका न्यूनतम प्रतिनिधित्व (0.70%) है.

इसके अतिरिक्त, निजी और असंगठित दोनों क्षेत्रों में उनकी स्थिति गंभीर है, जिनमें श्रम और मैला ढोने के व्यवसायों में महत्वपूर्ण भागीदारी है. ईबीसी मुस्लिम समुदायों (0.06%) और ओबीसी (0.07%) में न्यूनतम प्रतिनिधित्व के साथ भीख मांगने के मामले उनकी कमजोर स्थिति को भी उजागर करते हैं.

स्व-रोज़गार के मामले में पसमांदा लिस्ट में सबसे नीचे हैं क्योंकि रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि मुसलमानों, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले लोगों की भागीदारी अन्य सभी सामाजिक समूहों की तुलना में सबसे कम है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है, “इससे यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि सबसे अधिक भूमिहीन समूह हाशिए पर रहने वाले समुदाय से है.”

जब दलित मुसलमानों के रोज़गार की बात आती है तो यही परिदृश्य दोहराया जाता है. एआईपीएमएम के अनुमान के मुताबिक, अनुसूचित जाति (1.13%), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (1%) और पिछड़ा वर्ग (1.75%) की तुलना में केवल 0.65% दलित मुसलमान सरकारी नौकरियों में हैं.

दिसंबर में संसद की सुरक्षा उल्लंघन का ज़िक्र करते हुए अनवर ने दावा किया कि तीन घुसपैठियों ने बेरोज़गारी के बढ़ते मुद्दे के बारे में सरकार को “सतर्क” किया था. उन्होंने कहा, “सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेने और हल करने की ज़रूरत है. अन्यथा, युवा दंगाई या नक्सली बन सकते हैं.”

इस बीच, रिपोर्ट में कहा गया है कि 29 कांग्रेस मुस्लिम सांसदों में से 22 (75.86%) अशरफ हैं और 7 (24.13%) हाशिए पर रहने वाले वर्ग से हैं. इसी तरह, जद (यू) के 11 मुस्लिम सांसदों में से 9 अशरफ हैं, बाकी दलित मुस्लिम हैं. राजद के 9 मुस्लिम सांसदों में से छह (66.66%) अशरफ हैं, जबकि 3 (33.33%) हाशिए पर हैं. इसमें कहा गया है कि बीजेपी और एलजेपी के सभी मुस्लिम सांसद अशरफ हैं.

पसमांदा समूह का दावा है कि बिहार की जाति-आधारित जनगणना में संपत्ति के स्वामित्व और प्रमुख आय स्रोतों सहित महत्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक डेटा का अभाव है, जो सटीक विश्लेषण और नीति-निर्माण के लिए चुनौतियां पेश करता है.

अनवर ने कहा, “भेदभाव से परेशान होकर कुछ लोग ऊंची जातियों से जुड़े सरनेम अपना लेते हैं. बिहार सर्वे के दौरान उन्हें भी ऊंची जातियों में गिना गया होगा.”

उनका संगठन हाशिए पर मौजूद समुदायों के बीच एकता, प्रगति, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की वकालत करता है और महज़ वोट बैंक से परे उनकी अभिन्न भूमिका पर जोर देता है. यह पार्टियों से सामाजिक और आर्थिक न्याय को प्राथमिकता देने और समाज के किसी भी वर्ग को हल्के में न लेने का आग्रह करता है.

इसकी वकालत करते हुए विपक्षी दलों को भाजपा के आरोपों से डरे बिना हाशिए पर मौजूद समूहों के मुद्दों को साहसपूर्वक संबोधित करना चाहिए. इसके अलावा उन्हें भाजपा के “प्रतीकवाद” से हटकर, हाशिए पर मौजूद हिंदू-मुस्लिम समुदायों और कारीगरों के लिए वास्तविक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए.

संगठन राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना और दलित मुसलमानों और ईसाइयों को एससी का दर्जा देने की भी मांग करता है.

‘विश्वास की कमी’

इस बीच, उपरोक्त भाजपा नेता ने पसमांदा मुसलमानों पर रिपोर्ट जारी करने के समय पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “जब अन्य सरकारें थीं तो उन्होंने कोई रिपोर्ट क्यों नहीं प्रकाशित की? वे समाज को बांटना चाहते हैं?”

भाजपा के केंद्रीय नेता ने अनवर को “अप्रासंगिक” बताते हुए कहा कि वे उत्तराखंड के हलद्वानी में भड़की हिंसा पर नहीं बोलेंगे.

लेकिन एआईपीएमएम के संस्थापक-अध्यक्ष ने भाजपा के बारे में पसमांदा समुदाय के बीच महत्वपूर्ण “विश्वास की कमी” पर प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया कि पीएम मोदी को पहले उनका विश्वास अर्जित करने की दिशा में काम करना चाहिए.

अनवर का कहना है कि संगठन हर तरह की सांप्रदायिक राजनीति के सख्त खिलाफ है, चाहे वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की हो या असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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