नई दिल्ली: भारत के बार काउंसिल (BCI) ने संशोधित नियमों की अधिसूचना जारी की है, जिससे विदेशी वकीलों के लिए भारतीय क़ानूनी बाज़ार के रास्ते खुल गए हैं, हालांकि इसमें कई शर्तें भी शामिल हैं.
“विदेशी वकीलों और विदेशी लॉ फर्म्स के भारत में पंजीकरण और विनियमन के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियम, 2022” में संशोधन के बाद अब विदेशी वकीलों को भारत में विदेशी क़ानून और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी मामलों का अभ्यास करने की अनुमति दी गई है. लेकिन उन्हें भारत की अदालतों, न्यायाधिकरणों या किसी अन्य वैधानिक प्राधिकरण के समक्ष पेश होने या मुक़दमेबाज़ी करने की अनुमति नहीं होगी.
इसलिए, भारतीय क़ानून का अभ्यास करना केवल भारतीय अधिवक्ताओं के अधिकार क्षेत्र में ही रहेगा, जो कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत पंजीकृत हैं.
शुरुआत में बीसीआई ने भारत में किसी भी रूप में विदेशी वकीलों और लॉ फर्म्स के प्रवेश का विरोध किया था. लेकिन 2007 से 2014 के बीच, सभी राज्य बार काउंसिलों के पदाधिकारियों के साथ आयोजित संयुक्त परामर्श सम्मेलनों के दौरान, बीसीआई को इस मुद्दे पर विधि और न्याय मंत्रालय और वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के साथ-साथ विदेशी देशों की लॉ काउंसिलों और सोसाइटियों से बातचीत करने का अधिकार दिया गया.
14 मई 2025 की तारीख़ वाली बीसीआई की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इन नियमों को लागू करने का “मुख्य उद्देश्य भारतीय अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए भारत में विदेशी क़ानून और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अभ्यास को विनियमित करना है.”
2022 के ये नियम मार्च 2023 में अधिसूचित किए गए थे, लेकिन अब इन्हें औपचारिक रूप से लागू किया गया है.
ख़ैतान एंड कंपनी के सीनियर पार्टनर हैगरिव ख़ैतान ने इसे एक “सकारात्मक कदम” बताया जिससे “ज्ञान साझा करने, नवाचार और वैश्विक श्रेष्ठ प्रथाओं को जल्दी अपनाने” में मदद मिलेगी.
हालांकि, ख़ैतान ने यह भी कहा कि इसके साथ-साथ भारतीय लॉ फर्म्स के लिए उपयुक्त नियामक सुधार भी ज़रूरी हैं, ताकि वे वैश्विक स्तर पर सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा कर सकें और घरेलू विकास को बढ़ावा दे सकें.
दिप्रिंट एक्सप्लेन कर रहा है कि ये नियम क्या कहते हैं और भारत में प्रवेश कर रहे विदेशी वकीलों और लॉ फर्म्स पर ये कौन-कौन सी शर्तें लगाते हैं?
नियम क्या कहते हैं?
नियमों के तहत, विदेशी वकील भारत में गैर-मुकदमेबाज़ी वाले क़ानूनी काम कर सकते हैं, जैसे क़ानूनी सलाह देना, दस्तावेज़ तैयार करना, मध्यस्थता में प्रतिनिधित्व करना और विदेशी क़ानून समेत अंतरराष्ट्रीय क़ानून से जुड़ी अन्य गैर-मुकदमेबाज़ी गतिविधियां.
क़ानूनी फर्म ‘पनाग एंड बाबू’ के पार्टनर आकाश करमाकर ने बताया कि यह नियम सिंगापुर जैसा है, जहां विदेशी फर्में विदेशी क़ानून का अभ्यास कर सकती हैं. “उन्हें भारतीय क़ानून से जुड़ी बातों में समर्थन के लिए एक भारतीय साझेदार की ज़रूरत होगी और अदालत में पेश होने के लिए भी, लेकिन विदेशी क़ानून से जुड़े लेन-देन के मामलों में अंतरराष्ट्रीय फर्म्स के लिए यह ठीक रहेगा,” उन्होंने दिप्रिंट को बताया.
कोई भी विदेशी वकील या क़ानूनी फर्म जो भारत में अभ्यास करना चाहती है, उसे बीसीआई में पंजीकरण कराना होगा और भारत में क़ानून के अभ्यास से जुड़े सभी लागू नियमों का पालन करना होगा. यह नियम उन भारतीय अधिवक्ताओं और क़ानूनी फर्म्स पर भी लागू होता है जो विदेशी वकीलों या विदेशी क़ानूनी फर्म्स के रूप में पंजीकरण कराना चाहते हैं.
ये नियम भारतीय वकीलों को ‘प्रतिस्पर्यता’ (रेसीप्रोसिटी) के सिद्धांत पर विदेशी क़ानूनी बाज़ारों तक पहुंच की अनुमति देते हैं. इसका मतलब है कि भारतीय अधिवक्ता और क़ानूनी फर्में भी विदेशी वकील या विदेशी क़ानूनी फर्म के रूप में पंजीकरण करा सकते हैं, जिससे वे विदेशी क़ानून और अंतरराष्ट्रीय क़ानून की सलाह देने का अभ्यास कर सकते हैं, बिना भारतीय अदालतों में अपने अधिकार छोड़े.
बीसीआई की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “यह दोहरा पंजीकरण भारतीय वकीलों को अपने पेशेवर दायरे को बढ़ाने का अवसर देता है, साथ ही वे भारतीय क़ानून के तहत अधिवक्ता बने रहते हैं.”
वास्तव में, इन नियमों में यह भी कहा गया है कि बीसीआई की ज़िम्मेदारी है कि वह विदेशों में भारतीय वकीलों और क़ानूनी फर्म्स के साथ ‘प्रतिस्पर्यता’ के आधार पर समान व्यवहार सुनिश्चित करे.
“काउंसिल को किसी भी समय किसी भी विदेशी वकील या क़ानूनी फर्म का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार है, यदि किसी स्रोत से यह जानकारी मिलती है कि संबंधित विदेशी देश में भारतीय वकीलों या क़ानूनी फर्म्स के साथ किसी भी तरह से भेदभाव हो रहा है,” यह कहा गया है. इसलिए, प्रतिस्पर्यता के नियमों के तहत विदेशी वकीलों या क़ानूनी फर्म्स को भारत में समान व्यवहार पाने के लिए अपने देश में भारतीय वकीलों या फर्म्स को भी समान व्यवहार देना होगा.
फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट
अगर कोई विदेशी वकील या विदेशी कानून फर्म “फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट” यानी कुछ समय के लिए भारत आकर कानूनी सलाह देते हैं, तो उन्हें रजिस्ट्रेशन करवाने की जरूरत नहीं होती.
यह “फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट” आधार केवल भारत में ग्राहकों को विदेशी क़ानून या विभिन्न अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी मुद्दों पर क़ानूनी सलाह देने तक सीमित है. ऐसे वकील या विदेशी क़ानूनी फर्म को भारत में किसी कार्यालय, ढांचे या नियमित उपस्थिति स्थापित करने, संचालित करने या बनाए रखने की अनुमति नहीं है.
हालांकि, इस तरह के फ्लाई-इन फ्लाई-आउट अभ्यास के लिए एक स्पष्ट घोषणा देना ज़रूरी है, जिसमें काम की प्रकृति, शामिल क़ानूनी क्षेत्र, ग्राहक की जानकारी और क्षेत्राधिकार को स्पष्ट रूप से बताया जाए. साथ ही, इस सुविधा का उपयोग करने वाले विदेशी वकीलों को एक वर्ष में अधिकतम 60 दिनों तक ही भारत में रहने की अनुमति होगी, और उन्हें सख्त नियमों का पालन करना होगा.
हालांकि, इन नियमों में फ्लाई-इन और फ्लाई-आउट वकीलों से जुड़ी भाषा कुछ चिंताएं भी उठाती है. उदाहरण के लिए, नियम 3 कहता है कि “यह निषेध फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट आधार पर किए गए क़ानूनी अभ्यास पर लागू नहीं होगा.” लेकिन इसके बाद नियम में यह भी कहा गया है कि “ऐसा अभ्यास (फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट आधार पर)…भारतीय क़ानून के तहत परिभाषित ‘प्रैक्टिस’ नहीं होना चाहिए.”
करमाकर कहते हैं कि ऐसा लगता है कि “फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट” की अनुमति है, जब तक कि वह “प्रैक्टिस” न मानी जाए.
“‘प्रैक्टिस’ क्या है, यह अस्पष्ट है… फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट की परिभाषा बहुत अस्पष्ट है,” वे बताते हैं. वे कहते हैं कि फ्लाई-इन, फ्लाई-आउट अभ्यास को इन नियमों से बाहर ही रखना चाहिए था और इसे “जरूरत से ज़्यादा और भारी-भरकम नियंत्रण” बताते हैं.
“प्रक्रिया की जटिलताओं के कारण व्यापक रूप से इन नियमों का पालन नहीं होगा, और यह केवल कागज़ों पर लिखे गए ऐसे नियम बन सकते हैं जिनका पालन नहीं होता या और भी बुरा, जिनका चयनात्मक तरीके से पालन कराया जाता है.”
लाल फीताशाही
कोई भी पंजीकृत विदेशी वकील या विदेशी कानून फर्म भारत में अपना दफ्तर खोल सकती है ताकि वह यहां अपने कानूनी काम को अंजाम दे सके.
भारतीय वकील या कानून फर्म विदेशी वकीलों या फर्म्स के साथ साझेदारी कर सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब वो विदेशी वकील या फर्म इन नियमों के तहत पंजीकृत हों. हालांकि, भारतीय वकील या फर्म विदेशी वकीलों या फर्म्स से रेफ़रल के जरिए काम ले सकते हैं, इसके लिए उन्हें इन नियमों के तहत रजिस्ट्रेशन की ज़रूरत नहीं होगी.
इन नियमों के तहत दिया गया पंजीकरण 5 साल के लिए वैध होगा.
बीसीआई (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) रजिस्ट्रेशन और रिन्यूअल के लिए आवेदन को मंज़ूरी देगा. लेकिन नियम में यह भी कहा गया है कि बीसीआई किसी विशेष मामले में अगर ज़रूरी समझे, तो भारत सरकार से—कानून और न्याय मंत्रालय या किसी अन्य मंत्रालय के ज़रिए—सलाह-मशविरा कर सकता है ताकि यह तय किया जा सके कि आवेदक ने सभी ज़रूरी शर्तें पूरी की हैं या नहीं.
करमाकर का कहना है कि इसका मतलब यह है कि बीसीआई को फैसले लेने की पूरी आज़ादी नहीं दी गई है. कुछ हद तक फैसला लेने का अधिकार भारत सरकार और कानून मंत्रालय के पास रहेगा.
नियमों के अनुसार सरकार को यह अधिकार भी है कि वह किसी भी पंजीकरण या उसके नवीनीकरण को कभी भी रद्द करने की सिफारिश कर सकती है—अगर वह मानती है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा या देशहित के खिलाफ है, या फिर किसी अन्य वैध कारण से.
विदेशी वकील या फर्म जिन क्षेत्रों में काम कर सकते हैं, उनमें कॉरपोरेट कानूनी मामले जैसे—जॉइंट वेंचर, मर्जर और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा के मुद्दे, कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्ट करना और अन्य ऐसे लेन-देन से जुड़े काम शामिल हैं. वे भारत में होने वाले अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मामलों में भी अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं.
करमाकर का कहना है कि इन नियमों से ज़्यादा लालफीताशाही बढ़ गई है.
उन्होंने कहा, “इन नियमों का उद्देश्य विदेशी फर्म्स के भारत में प्रवेश को नियमित और आसान बनाना था. लेकिन अगर कोई विदेशी फर्म नियमों का पालन करते हुए भारत में थोड़े समय के लिए भी काम करना चाहती है, तो इन नियमों के चलते उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.”
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