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Thursday, 21 November, 2024
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82% युवा सिख रेगुलर करते हैं प्रार्थना, दूसरों की तुलना में ज्यादा धार्मिक : CSDS-Lokniti यूथ सर्वे

80 प्रतिशत से अधिक सिख उत्तरदाताओं ने धार्मिक नेताओं पर कॉमेडी फिल्में बनाने के साथ-साथ धर्म को लेकर स्टैंड-अप कॉमेडी पर प्रतिबंध लगाने का भी समर्थन किया.

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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते जारी एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि सिख युवाओं का एक बड़ा हिस्सा अत्यधिक धार्मिक है, इतना अधिक कि उनमें से सिर्फ 1 प्रतिशत ने ही कभी प्रार्थना नहीं की है.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने इस साल जुलाई-अगस्त में अपने शोध प्रोग्राम ‘लोकनीति’ के तहत जर्मन थिंक टैंक ‘कोनराड एडेनॉयर स्टिफटंग’ (केएएस) के साथ मिलकर ‘इंडियन यूथ: एस्पिरेशन्स एंड विजन फॉर द फ्यूचर’ नाम से एक सर्वेक्षण किया था.

सर्वेक्षण में 18 राज्यों के 18 से 34 वर्ष की आयु वर्ग कुल 6,277 उत्तरदाताओं ने हिस्सा लिया.

आंकड़ों से पता चलता है कि अन्य समुदायों की तुलना में सिख युवाओं के प्रार्थना या पूजा स्थल पर जाने की सबसे अधिक संभावना थी, भले ही कोई त्योहार हो या नहीं. हालांकि, अधिकांश सिख इस मामले में हिंदुओं या मुसलमानों की तरह नियमित तौर पर पूजा स्थल जाने वाले नहीं हैं.

‘कभी पूजा न करने’ या ‘पूजा स्थल पर कभी नहीं जाने’ के सवाल पर इनकार करने वालों में सबसे ज्यादा सिखों की थी.
7 फीसदी ईसाई, 8 फीसदी मुस्लिम और 9 फीसदी हिंदुओं की तुलना में केवल 1 फीसदी सिख युवाओं ने कहा कि उन्होंने कभी प्रार्थना नहीं की. अगर केवल त्योहारों के मौकों को छोड़कर कभी-कभी पूजा करने वालों की संख्या साथ जोड़ दी जाए तो धार्मिक गतिविधियों में शामिल रहने वाले सिखों की संख्या 80 प्रतिशत तक हो जाती है.

80 प्रतिशत से अधिक सिख उत्तरदाताओं ने धार्मिक मामलों से संबंधित कॉमेडी पर प्रतिबंध का समर्थन किया—जो सर्वेक्षण में शामिल सभी प्रमुख धार्मिक समूहों में सबसे अधिक थे.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि औसत भारतीय युवा धार्मिक नेताओं पर कॉमेडी फिल्में बनाए जाने और किसी भी धर्म को लेकर स्टैंड-अप कॉमेडी दोनों पर प्रतिबंध का समर्थन करते हैं.

सर्वे रिपोर्ट कहती है, ‘धर्म और धार्मिक नेताओं पर कॉमेडी के प्रति बढ़ती असहिष्णुता के संदर्भ में हमने इस पर युवा भारतीयों की राय जानने की कोशिश की, खासकर यह देखते हुए कि हाल के दिनों में ‘आपत्तिजनक’ सामग्री के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों में युवाओं की हिस्सेदारी ज्यादा होती है.’

इसमें आगे कहा गया, ‘जवाब काफी कुछ खुलासा करने वाले रहे. इनमें से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर में सभी युवा उत्तरदाताओं में से लगभग आधे ने हां में जवाब दिया, यानी कि उन्होंने धर्म को लेकर हंसी-मजाक वाली सामग्री पर प्रतिबंध का समर्थन किया.’

सिखों में धार्मिकता सबसे ज्यादा

करीब 82 प्रतिशत सिख युवा नियमित रूप से या कभी-कभी कोई त्योहार न होने पर भी प्रार्थना करने के लिए जाते हैं. ईसाइयों में यह आंकड़ा 74 प्रतिशत, मुसलमानों में 72 प्रतिशत, हिंदुओं में 69 प्रतिशत और अन्य में 46 प्रतिशत था.

चित्रण : रमनदीप कौर। दिप्रिंट

कोई त्योहार नहीं होने पर भी सिखों के धार्मिक स्थल पर जाने की सबसे अधिक संभावना है. 57 प्रतिशत हिंदुओं और ईसाइयों और 56 प्रतिशत मुसलमानों की तुलना में लगभग 86 प्रतिशत सिख युवा तब भी पूजा स्थल (गुरुद्वारा) गए, जब कोई त्योहार नहीं था.

चित्रण : रमनदीप कौर। दिप्रिंट

धार्मिक कार्यक्रम दिखाने वाले टीवी चैनलों को पसंद करने वाले सिख युवाओं का हिस्सा पिछले सर्वेक्षण की तुलना में बढ़ गया है, जो अन्य सभी समुदायों में नजर आई प्रवृत्ति के विपरीत है. 2016 में 73 फीसदी सिखों ने टीवी पर धार्मिक शो देखने की बात कही थी, जो इस बार बढ़कर 82 फीसदी हो गई है.

टीवी पर धार्मिक कार्यक्रमों को पसंद करने वाले युवाओं की हिस्सेदारी हिंदुओं में 3 फीसदी (63 की तुलना में 60), मुसलमानों में 13 फीसदी (62 से घटकर 49) और ईसाइयों में 1 फीसदी (52 से घटकर 51) की गिरावट आई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान पंजाब में सबद-कीर्तन गुरबानी चैनलों (धार्मिक टीवी चैनलों) का काफी बढ़ जाना भी सिखों में टीवी पर धार्मिक कार्यक्रम देखने की अपेक्षाकृत अधिक प्रवृत्ति का कारण हो सकता है, हालांकि टीवी पर धार्मिक कार्यक्रम दिखाने और विशेष तौर पर धर्म केंद्रित चैनल लॉन्च किए जाने की प्रवृत्ति केवल पंजाब तक सीमित नहीं हैं.’

50% किसी भी धर्म पर स्टैंड-अप कॉमेडी पर पाबंदी के पक्ष में

सर्वे के आंकड़ों से पता चला है कि कुल उत्तरदाताओं में से लगभग 50 प्रतिशत ने किसी भी धर्म पर स्टैंड-अप कॉमेडी पर प्रतिबंध का समर्थन किया, जबकि केवल एक-तिहाई (32 प्रतिशत) इसके पक्ष में नहीं थे और 18 प्रतिशत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

करीब 48 फीसदी युवाओं का कहना था कि वे धर्मगुरुओं पर कॉमेडी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने के पक्षधर हैं.

धर्म के बारे में स्टैंड-अप कॉमेडी पर प्रतिबंध का समर्थन करने वाले सिख समुदाय के युवाओं की हिस्सेदारी 86 प्रतिशत से अधिक थी, जबकि केवल 13 प्रतिशत ने इसका विरोध किया और 2 प्रतिशत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

ईसाई उत्तरदाताओं में 62 प्रतिशत चाहते थे कि धार्मिक मामलों से संबंधित कॉमेडी पर प्रतिबंध लगना चाहिए.
आधे से अधिक (51 प्रतिशत) हिंदू उत्तरदाताओं ने किसी भी धर्म पर स्टैंड-अप कॉमेडी पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में अपनी राय दी.

मुसलमानों में इस तरह के स्टैंड-अप कॉमेडी शो पर प्रतिबंध का विरोध करने वालों (39 प्रतिशत) की तुलना में थोड़ा अधिक युवाओं (38 प्रतिशत) ने ही इसका समर्थन किया, जबकि 23 प्रतिशत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

धार्मिक नेताओं पर बनी कॉमेडी फिल्मों पर 85 प्रतिशत सिखों ने प्रतिबंध का समर्थन किया, इसके बाद इस पर पाबंदी चाहने वालों में ईसाई 65 प्रतिशत, हिंदू 49 प्रतिशत और मुस्लिम 36 प्रतिशत रहे. इस मामले में भी ऐसे प्रतिबंध का समर्थन करने वालों से ज्यादा मुसलमान युवाओं (46 फीसदी) ने इसका विरोध किया.

चित्रण : रमनदीप कौर। दिप्रिंट

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धर्म गंभीर मामला क्यों है? 

धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने को लेकर कॉमेडियन अक्सर सिखों के निशाने पर आ जाते हैं. 2016 में द कपिल शर्मा शो में आने वाले एक लोकप्रिय कॉमेडियन कीकू शारदा को डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की नकल करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

सीएसडीएस के शोध कार्यक्रम लोकनीति के सह-निदेशक और प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं, ‘जब धर्म की बात आती है, तो लोग व्यंग्य को बहुत हल्के में नहीं लेते हैं.’

संजय कुमार ने कहा, ‘हालांकि, कम संख्या में ही लोग अपने धर्म की रक्षा की इच्छा दर्शाते हैं. वे अधिक धार्मिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं और और जब वे अपनी आस्था पर किसी तरह का हमला देखते हैं, तो वे आक्रामकता की हद तक रक्षात्मक हो जाते हैं. हमने अमृतसर मामले (कथित बेअदबी और लिंचिंग) में जो देखा वो इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है.’

हालांकि हाल ही में पंजाबी सिनेमा में रिलीज हुई अधिकांश फिल्में कॉमेडी ही हैं, लेकिन धर्म एक ऐसा विषय है जिससे उनमें दूरी बनाए रखी जाती है.

जसमीत सिंह भाटिया, जसप्रीत सिंह और अंगद सिंह रान्याल जैसे सिख स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं, जिन्होंने अपने यूट्यूब स्टैंड-अप कॉमेडी शो पर लाखों व्यूज बटोरे हैं, लेकिन वे भी धर्म के मामले में कोई मजाक नहीं करते हैं.

पंजाब के एक नाटककार और सांस्कृतिक मामलों के विशेषज्ञ पाली भूपिंदर सिंह कहते हैं, ‘आमतौर पर ऐसा इसलिए है क्योंकि सिखों में धर्म और धार्मिक मामलों के प्रति सम्मान की भावना बहुत गहरी है—यह उनकी सांस्कृतिक विरासत है. वे अपने गुरुओं को अपना आदर्श मानते हैं क्योंकि उन्हें बड़े-बड़े बलिदान किए हैं और इसी वजह से उनकी किसी भी बेअदबी का कड़ा विरोध किया जाता है.’

पाली ने आगे कहा, ‘और यह सम्मान सिर्फ गुरुओं के लिए नहीं है. हम पीर-दरगाह में भी आस्था रखते हैं. बड़ी संख्या में पंजाबी माता वैष्णोदेवी के मंदिर जाते हैं, और उन सभी के लिए उनके मन में बहुत आस्था होती है. इस आस्था की वजह से ही बातचीत के दौरान धर्म पर ज्यादा कुछ नहीं क्योंकि वे जानते हैं कि इस विषय पर किसी भी विवाद से अवांछित नतीजे सामने आ सकते हैं. ऐसे में पंजाब में अधिकांश कलाकारों का किसी भी धर्म या धार्मिक नेता का मजाक नहीं उड़ाना स्वाभाविक है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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