scorecardresearch
Wednesday, 8 October, 2025
होमदेश1997 में मिली थी उड़ान की मंज़ूरी, नवी मुंबई एयरपोर्ट दिसंबर से होगा ऑपरेशनल

1997 में मिली थी उड़ान की मंज़ूरी, नवी मुंबई एयरपोर्ट दिसंबर से होगा ऑपरेशनल

चार टर्मिनलों वाला यह एयरपोर्ट पूरी तरह चालू होने पर हर साल 9 करोड़ यात्रियों को संभाल सकेगा, जो लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट की क्षमता से थोड़ा ज़्यादा है.

Text Size:

मुंबई: फरवरी 2024 में जब भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी विजय सिंघल ने सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (सिडको) के प्रबंध निदेशक का पद संभाला, तो उन्होंने सबसे पहले नवी मुंबई एयरपोर्ट के निर्माण स्थल का दौरा किया.

सिंघल ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में बताया, उन्हें देखकर यह बिल्कुल नहीं लगा कि 27 साल से बन रहा यह एयरपोर्ट अब पूरा होने के करीब है. उस वक्त टर्मिनल का आधा हिस्सा ही रनवे से जुड़ा था, जबकि बाकी आधे हिस्से पर अभी भी एक पहाड़ी थी जिसे हटाया जाना बाकी था.

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवी मुंबई एयरपोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन करेंगे. इसके साथ ही एक लंबे, मुश्किल और राजनीतिक व पर्यावरणीय रूप से जटिल प्रोजेक्ट का एक बड़ा चरण पूरा होगा. इससे मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन—यानी मुंबई और उसके आसपास का इलाका—को दूसरा बड़ा एयरपोर्ट मिलेगा, जिससे व्यस्त सहार एयरपोर्ट पर दबाव कम होगा.

हालांकि, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की शुरुआत दिसंबर में ही होगी, क्योंकि इसके लिए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) की मंज़ूरी ज़रूरी है.

सिंघल ने बताया, “CISF पूरी सुरक्षा जांच करती है. इसका 45 दिन का प्रोसेस होता है. इसी के बाद हम इस एयरपोर्ट को कमर्शियल उड़ानों के लिए शुरू कर पाएंगे.”

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 18 महीनों में सिडको ने किस तरह काम की रफ्तार तेज़ की, ताकि एयरपोर्ट के पहले चरण में एकीकृत टर्मिनल (टी1) पूरी तरह तैयार हो सके. आगे कुल चार टर्मिनल बनाने की योजना है.

सिंघल ने कहा, “मैंने साइट पर 30 से ज़्यादा बार दौरा किया और कई मीटिंग्स कीं. बहुत सी मुश्किलें थीं…यह प्रोजेक्ट लंबी यात्रा का हिस्सा रहा है, और इसमें बहुत से लोगों का योगदान रहा है — किसान, वहां रहने वाले लोग, सिडको के पूर्व प्रबंध निदेशक, संयुक्त प्रबंध निदेशक और कई इंजीनियर। किसी का योगदान नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.”

यह एयरपोर्ट सिर्फ मुंबई की हवाई क्षमता बढ़ाने के लिए ही नहीं, बल्कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में विकास को भी गति देने वाले प्रोजेक्ट के तौर पर देखा जा रहा है.

मुंबई हार्बर की तरफ, पूर्वी तटीय इलाकों में जहां से नवी मुंबई एयरपोर्ट को जोड़ने वाला अटल सेतु बनाया गया है, पहले से ही प्रॉपर्टी की मांग बढ़ी है और कई कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है.

पश्चिमी उपनगरों से ट्रैफिक को तेज़ी से लाने के लिए बन रहा सेवरी-वर्ली कनेक्टर और प्रस्तावित वडाला से गेटवे ऑफ इंडिया तक जाने वाला भूमिगत मेट्रो कॉरिडोर (जो सेवरी को जोड़ेगा) इस गति को और बढ़ा सकता है.

मेनलैंड पर, सिडको ने 22 किमी लंबे सेवरी-नहावा शेवा अटल सेतु और नवी मुंबई एयरपोर्ट के आसपास कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की योजना बनाई है. इनमें उलवे कोस्टल रोड, दो एयरपोर्ट्स को जोड़ने वाली मेट्रो लाइन और एयरपोर्ट के प्रभाव क्षेत्र में एक नई नियोजित सिटी जैसे आवासीय और वाणिज्यिक प्रोजेक्ट शामिल हैं.

28 साल की इंतज़ार भरी कहानी

नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट की शुरुआत नवंबर 1997 में हुई थी, जब केंद्र सरकार ने मुंबई में दूसरा एयरपोर्ट बनाने की ज़रूरत को पहचाना. नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इसकी व्यवहार्यता (feasibility) जांचने के लिए एक कमेटी बनाई, लेकिन प्रोजेक्ट को मंत्रालय से अंतिम मंज़ूरी मिलने में ही 10 साल लग गए. इसके बाद निर्माण शुरू होने में और एक दशक निकल गया.

इस बीच प्रोजेक्ट को कई रुकावटों का सामना करना पड़ा, एयरपोर्ट की जगह को लेकर असहमति, पर्यावरणीय मंज़ूरी हासिल करना और ज़मीन अधिग्रहण जैसे मसले लगातार अटके रहे.

साल 2000 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय की रिपोर्ट में रायगढ़ ज़िले के रेवास-मांडवा को एयरपोर्ट के लिए सबसे उपयुक्त जगह बताया गया था.

लेकिन उस समय कांग्रेस और अविभाजित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार ने कनेक्टिविटी और मुंबई के नज़दीक होने के कारण नवी मुंबई को बेहतर विकल्प माना.

आखिरकार 2007 में केंद्र सरकार की कैबिनेट ने नवी मुंबई में एयरपोर्ट निर्माण को सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी. हालांकि, पर्यावरण और वाइल्डलाइफ क्लियरेंस की प्रक्रिया के दौरान इस जगह को लेकर बहस जारी रही.

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और पर्यावरण कार्यकर्ता इस जगह का विरोध कर रहे थे और उन्होंने रेवास-मांडवा, कल्याण और वाडा जैसी वैकल्पिक जगहों की जांच की मांग की. वहीं, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और महाराष्ट्र सरकार का कहना था कि इन सभी वैकल्पिक जगहों में तकनीकी और भौगोलिक कमियां हैं.

टकराव

पर्यावरणीय मंज़ूरी की प्रक्रिया ने उस समय के केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल (एनसीपी) और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश (कांग्रेस) के बीच राजनीतिक टकराव खड़ा कर दिया.

पटेल ने आरोप लगाया कि रमेश जानबूझकर प्रोजेक्ट में देरी कर रहे हैं. वहीं, रमेश ने पहाड़ी काटने, नदियों को मोड़ने और मैंग्रोव (दलदली झाड़ियों) को साफ करने से जुड़ी कई पर्यावरणीय आपत्तियां उठाईं.

मार्च 2008 में रमेश के मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया. मंत्रालय ने महाराष्ट्र में मैंग्रोव जंगलों को नष्ट करने पर 2005 के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जिसमें इन जंगलों को काटने पर रोक लगाई गई थी और 50 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर पाबंदी थी.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य सरकार से कहा कि वह बॉम्बे हाईकोर्ट से अनुमति ले. चिंता जताई गई कि बड़े पैमाने पर मैंग्रोव नष्ट होंगे, एक पहाड़ी समतल करनी पड़ेगी और दो नदियों का रास्ता बदला जाएगा.

आखिरकार लंबे विवाद और बातचीत के बाद, नवंबर 2010 में केंद्र के MoEF&CC ने कुछ शर्तों के साथ नवी मुंबई एयरपोर्ट प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दे दी. महाराष्ट्र कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट अथॉरिटी (MCZMA) की नवंबर की बैठक के मिनट्स के मुताबिक, सिडको ने इन बदलावों को “एयरपोर्ट की प्रस्तावित क्षमता और कार्यक्षमता पर बिना असर डाले” स्वीकार कर लिया.

MCZMA को सिडको के एक अधिकारी ने बताया कि बदलावों के बाद मैंग्रोव से प्रभावित कुल क्षेत्रफल 161 हेक्टेयर से घटकर 98 हेक्टेयर रह गया है. इन बदलावों के तहत सिडको ने एयरपोर्ट की नॉन-एरोनॉटिकल और कमर्शियल गतिविधियों को कोस्टल रेग्युलेशन ज़ोन (CRZ) से बाहर शिफ्ट करने पर सहमति दी.

जहां पहले की योजना में गाधी और उलवे — दोनों नदियों का रास्ता बदलना था, वहीं संशोधित योजना में सिडको ने गाधी नदी को उसके प्राकृतिक रास्ते पर रहने देने का फैसला किया और गाधी और उलवे के संगम पर 75 मीटर चौड़ा चैनल बनाने पर सहमति दी, ताकि एयरपोर्ट से पानी का बहाव ठीक से हो और बाढ़ की स्थिति न बने. संशोधित प्रस्ताव में सिडको ने दोनों ओर कुल 615 हेक्टेयर में मैंग्रोव पार्क विकसित करने और दोनों रनवे के बीच की दूरी घटाने की भी बात मानी.

पहाड़ी को समतल करने पर उठी आपत्तियों के जवाब में, रमेश ने मंज़ूरी देते समय कहा, “रनवे तक आसानी से पहुंच के लिए 90 मीटर ऊंची इस पहाड़ी को हटाना ज़रूरी है. यहां पहले से ही खनन हो चुका है, इसलिए इस पहाड़ी का पर्यावरणीय मूल्य लगभग शून्य है.”

एयरपोर्ट का साकार सपना

यह एयरपोर्ट 1,160 हेक्टेयर ज़मीन पर बनाया जा रहा है, जिसमें 12 गांवों की ज़मीन शामिल है. यहां की करीब 3,500 परिवारों को प्री-डेवलपमेंट काम के तहत पुनर्वासित करना पड़ा. यह प्रक्रिया लंबी चली क्योंकि ज़्यादातर ग्रामीण अपनी ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं थे.

आखिरकार 2013 में सिडको ने ज़मीन मालिकों के साथ एक अनोखा मुआवज़ा मॉडल बनाकर 671 हेक्टेयर निजी ज़मीन का अधिग्रहण किया. यह मॉडल अब महाराष्ट्र के कई बड़े प्रोजेक्ट्स में उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल होता है. इसके तहत प्रभावित लोगों को 22.5% ज़मीन अतिरिक्त फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) के साथ वापस दी गई, नई कंपनी में 2% इक्विटी शेयर दिए गए, वर्तमान घर के तीन गुना क्षेत्रफल की वैकल्पिक ज़मीन और उनके बच्चों को नौकरी की गारंटी दी गई.

बाकी प्री-डेवलपमेंट काम — पहाड़ी समतल करना, दलदली ज़मीन साफ करना, उलवे नदी को मोड़ना और ज़मीन को 8.5 मीटर ऊंचा उठाना — 2017 में शुरू हुआ, जब ज़्यादातर पुनर्वास का काम पूरा हो चुका था. इसमें भी काफी समय लगा.

2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एयरपोर्ट की आधारशिला रखी, ठीक एक महीने बाद जब सिडको ने लंबे टेंडर प्रोसेस के बाद जीवीके ग्रुप के साथ कंसेशन एग्रीमेंट साइन किया. उस समय के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 2019 में प्रोजेक्ट पूरा करने की उम्मीद जताई थी, जबकि अधिकारियों ने 2021 को ज़्यादा वास्तविक समय सीमा माना था.

ऐसा लगने लगा था कि अब नवी मुंबई एयरपोर्ट प्रोजेक्ट की सारी अड़चनें दूर हो गई हैं, लेकिन मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं.

कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने प्रोजेक्ट को और पीछे धकेल दिया. इसके अलावा, मूल कंसेशनधारी जीवीके ग्रुप की आर्थिक स्थिति बिगड़ने के कारण 2020 में मैनेजमेंट में बदलाव हुआ और अदाणी ग्रुप ने प्रोजेक्ट संभाल लिया.

इस पूरे सफर के दौरान लागत कई गुना बढ़ गई. सिडको द्वारा 2010 में MoEF&CC को दी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, एयरपोर्ट के चारों चरणों की लागत (2008-09 की कीमतों पर) 8,722 करोड़ रुपये आंकी गई थी.

विजय सिंघल के अनुसार, अब केवल पहले चरण की लागत ही 19,647 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है. सभी चार टर्मिनल पूरे होने पर कुल लागत एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी. पहले चरण में एयरपोर्ट की सालाना यात्री क्षमता 2 करोड़ और कार्गो क्षमता 0.8 मिलियन मीट्रिक टन होगी.

एयरपोर्ट के तीन और चरण अभी बाकी हैं — दूसरा टर्मिनल 2029 तक, तीसरा 2032 तक और चौथा 2035-36 तक तैयार होने की योजना है. सभी चार टर्मिनल बन जाने के बाद एयरपोर्ट की कुल क्षमता 9 करोड़ यात्रियों प्रति वर्ष होगी, जो 2024 में लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट की मौजूदा क्षमता (8.39 करोड़ यात्री) से थोड़ी ज़्यादा है.

नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट और सहार स्थित मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट जिसने वित्त वर्ष 2024-25 में 5.51 करोड़ यात्रियों को संभाला — दोनों की संयुक्त क्षमता करीब 14.5 करोड़ यात्रियों प्रति वर्ष होगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारत-अमेरिका के व्यापार मामलों में अब सिर्फ गुप्त कूटनीति ही काम कर सकती है


 

share & View comments