नई दिल्ली: मानव संसाधन मंत्रालय ने सभी राज्यों से कहा है कि छात्र की कक्षा के अनुसार स्कूल के बस्ते का वज़न निर्धारित किया जाए. ये कदम मद्रास उच्च न्यायालय के उस आर्डर के अनुरूप है जिसमें अदालत ने भारी बस्तों से बच्चों को निजात दिलाने की कोशिश की, जो उन्हें स्कूल में उठाने पड़ते हैं.
मंत्रालय ने स्कूलों को कहा कि वो पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को कोई गृह कार्य न दें.
कुछ समय पहले मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था, ‘बच्चे न तो भारोतोलक है न ही स्कूल बैग माल ढोने के डब्बे. हंसी, खुशी, बहलाना, लोटना, किक करना, भागना, लड़ना और खेलना बच्चों के स्वाभाविक गुण होते हैं. ’
अदालत ने ये बातें अपने एक अंतरिम आदेश में मई में, केंद्रीय उच्चतर माध्यमिक बोर्ड के अंतर्गत आने वाले स्कूलों की याचिका में कहीं थी. इसमे केवल एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम की किताबें ही खरीदीं जाने पर निर्देश मांगे गए थे.
न्यायमूर्ति एन किरूबाकरन ने साथ ही केंद्र को निर्देश दिया कि पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों को भाषा और गणित के अलावा कोई भी विषय न पढ़ाया जाए. और तीसरी-चौथी कक्षा में भाषा, गणित, एंवायरमेंटल साईंस, जो एनसीईआरटी ने निर्धारित किया है, ही पढ़ाया जाए.
मंत्रालय की चिट्ठी क्या कहती है?
मंत्रालय की गाइडलाइन कहती है कि स्कूल एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित पुस्तकों के अलावा कोई और पाठ्य पुस्तक न दें ताकि स्कूल के बस्तों का वज़न नियंत्रित रहे.
पहली दूसरी कक्षा के बस्ते का वज़न देड़ किलो, तीसरी से पांचवी के बस्ते का वज़न 3 किलो, छठी से सातवी का 4 किलो, आठवी से नौवी का 4.5 किलो और 10वी क्लास के बस्ते का वज़न 5 किलो तक हो.
मंत्रालय के दिशानिर्देश के अनुसार स्कूलों को बच्चों से एक्सट्रा किताबें लाने या पढ़ने की सामग्री लाने को नहीं कहना चाहिए.
एक वरिष्ठ एनसीईआरटी अधिकारी ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया ‘मंत्रालय के दिशानिर्देश मद्रास उच्चन्यायालय के बैग के वज़न के आदेश का पालन करते हैं.’
उस अधिकारी ने कहा, ‘पहले स्कूल बहुत सारी पाठ्य पुस्तकें प्रिस्क्राइब कर देते थे जिससे बस्ते का वज़न बढ़ जाता था. अब नए दिशानिर्देश के अनुसार स्कूलों से कहा गया है कि केवल एनसीईआरटी का सिलेबस ही लागू करें.’
उस अधिकारी ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मंत्रालय ने मामले पर विचार के लिए एक कमेटी का गठन किया था. एनसीईआरटी भी पहली और दूसरी क्लास का पाठ्यक्रम कम करने की कोशिश में लगी हुई है. विषय जिनका अब कोई औचित्य नहीं या जो अब पुराने हो चुके है, उन्हें पाठ्याक्रम से हटा दिया जाएगा.
जून में सर्वोच्च न्यायालय में भी एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसकी मांग थी कि स्कूल के बस्तों का वज़न बच्चों की सेहत पर हो रहे इसके बुरे असर के मद्देनज़र कम किया जाए.
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