नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून को लेकर यूपी के फिरोजाबाद में 20 दिसंबर को एक विरोध प्रदर्शन हुआ. जिसकी तस्वीरें राष्ट्रीय अखबारों ने प्रमुखता से छापी और हिंसा के वीडियोज यूट्यूब पर वायरल हुए. लेकिन भीड़ और यूपी पुलिस के बीच हुए पथराव व लाठीचार्ज के इतर कुछ ऐसा भी हुआ कि कई परिवारों की जिंदगियां उजड़ गईं. दिल्ली का सफदरजंग अस्पताल इस वक्त इन परिवारों के उजड़ने का गवाह बना हुआ है.
ऐसा लगता है कि सारी बयानबाजी के बीच 20 तारीख को गोली से घायल हुए 16 वर्षीय मुकीम की अम्मी की सिसकियां ही गुम हो गई हैं. 23 दिसंबर की रात को साढ़े नौ बजे जब मुकीम की मौत हुई तब उनकी अम्मी बेहोश हो गई. अगले दिन ही उन्हें यहां से भेज दिया गया. मुकीम के चाचा को 72 घंटे से भी ज्यादा समय से लाश के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार है और मुकीम के घर उनके कम पढ़े लिखे पिता और छोटे भाई-बहनों को उनकी लाश का. मुकीम के चाचा दिप्रिंट को बताते हैं, ‘वो उस दिन मीठी सुपारी लेने बाहर निकला था. उसने जब देखा कि पुलिस और भीड़ के बीच गोलियां चल रही हैं तो घर की ओर भागा. इतनी ही देर में एक गोली उसके पेट को चीरते हुए निकल गई.’ यहां से मुकीम को आगरा के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से हालत गंभीर होने के बाद दिल्ली रेफर कर दिया गया.
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20 तारीख को हुई इस घटना के दिन नबी जान, राशिद और अरमान की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस बात की तस्दीक सफदरजंग के वार्ड नंबर (ए) में अपने पति शफीक की जिंदा लाश को देखती 32 वर्षीय रानी करती हैं. वो दिप्रिंट को बताती हैं, उस दिन के बाद से कोई मुसलमान सोया नहीं है. हम लोग घरों की छतों पर खड़े होकर देख रहे थे. पुलिस दनादन गोलियां बरसा रही थी. एक ठेले वाले को भी गोली लगी. वो वहीं पर धड़ाम से गिर गया. मेरे पति चार बजे के आसपास चूड़ी के कारखाने से काम करके लौट रहे थे. गली में मुड़ने ही वाले थे कि पीछे पुलिस की गोली सिर में आकर लगी, वो वहीं गिर गए और मैं छत पर बेहोश होकर गिर पड़ी.’
इस मामले में दिप्रिंट से बात करते हुए फिरोजाबाद के एसएसपी सचिंद्र पटेल कहते हैं, ‘पुलिस फायरिंग के आरोप बेबुनियाद हैं.’
वहीं, रानी अपनी 13 साल की बेटी की अपने पिता के साथ हंसती-खेलती तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं, ‘जो दंगा फसाद कर रहे थे, उन्हें तो पुलिस कुछ कहती नहीं है और जो आम लोग हैं, उन्हें बेरहमी से मार देती है. मेरे पति का तो किसी से झगड़ा तक नहीं था. फिर क्यों मारा पुलिस ने? डॉक्टर कह रहे हैं कि बचेंगे नहीं. तो अब मैं क्या करूं बताओ?’
रानी इनमें से कोई भी बात गुस्से में नहीं बोलती हैं, वो इतना धीरे बोलती हैं कि कान पास ले जाना पड़ता है. उनका गम इतना ठंढा है कि दिल्ली की इस कड़ाके की ठंड में भी देखनेवाले सिहर जा रहे हैं.
उनके साथ नईम (बदला हुआ नाम) फिरोजाबाद में 20 दिसंबर शुक्रवार की शाम हुई हिंसा के पीड़ितों के बारे में बता रहे हैं, ‘नेता माने या ना मानें, कानून आए या ना आए, पुलिस ने ही सबसे पहले हमें देशद्रोही मान लिया है. किस प्रोटेस्ट के खिलाफ आपने पुलिस को हेडशॉट लेते देखा है? हवाई फायरिंग होती है या सिर में गोली मारी जाती है? पुलिस का तरीका ऐसा है जैसे वो फिल्मों के किसी माफिया के गुर्गे हों. पहले प्रोटेस्ट की इजाजत नहीं देते. क्या इंसान अपने मुहल्ले में भी प्रोटेस्ट नहीं कर सकता? प्रोटेस्ट करने पर बैरिकेडिंग कर देते हैं. फिर बहस होती है, उसके बाद लाठीचार्ज कर देते हैं. तब कोई ना कोई लड़का पत्थर फेंक देता है. आप ऐसे रोकेंगे तो गुस्सा नहीं आएगा? इसके बाद पुलिस बिना किसी वार्निंग के गोलियां चला रही है, वो भी सिर में मार रही है.’
यह बताते हुए सफदरजंग अस्पताल में खड़े नईम की आंखें डबडबा जाती हैं. उनका क्षोभ इस बात का है कि यूपी में किस संविधान के तहत शासन हो रहा है, जिसमें बोलने की भी इजाजत नहीं है.
रानी के साथ उनके दो भाई फरहान और इमरान आए हुए हैं. वो दोनों भी कहते हैं, ‘हम समझ नहीं पा रहे हैं कि पुलिस में इतना गुस्सा क्यों है? जनता में संदेश गया है कि ये सरकार उन्हें देश से बाहर करना चाहती है. ये सही बात है कि कानूनी पेचीदगी को अनपढ़ और कम पढ़ी लिखी जनता नहीं समझ पाएगी, पर जनता ये तो समझ रही है ना जो वो अपने आस-पास के छुटभैये नेताओं से सुन रही है. मोदी जी ने तो सारा दोष कांग्रेस को दे दिया पर अपने छुटभैये नेताओं से पूछा क्या जो दिन रात जहर उगल रहे हैं?’
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पीड़ित परिवार से हो रही बातचीत के बीच सफदरजंग अस्पताल में मौजूद सिक्योरिटी गार्ड और पुलिसवाले बार-बार आकर चेक कर गए कि क्या बातें हो रही हैं. पुलिसवालों का नजरिया अस्पताल में पीड़ित परिवार और मेरे लिए भी अजीब-सा था. काफी देर तक समझाने के बाद उन्होंने मुझे शफीक की पत्नी से बात करने दी.
पुलिस का पक्ष, पथराव में घायल हुए 60 जवान
दिप्रिंट से बात करते हुए एसएसपी सचिंद्र पटेल कहते हैं, ‘पुलिस की तरफ से कोई फायरिंग नहीं हुई. एक भी गोली नहीं चलाई गई है. गोलियां प्रदर्शनकारियों की तरफ से ही चली है. 20 तारीख को हुई हिंसा में पुलिस के 60 जवान घायल हुए हैं. उस वक्त हमारे साथ मौजूद एक मजिस्ट्रेट को भी चोटें आई हैं. तीन पुलिस वाले आगरा में भर्ती हैं.’
लेकिन, उन्हीं के महकमे के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘हिंसात्मक भीड़ पर गोली नहीं चलाएंगे तो क्या करेंगे. ऐसे में कई आम लोग भी चपेट में आ जाते हैं.’ साथ ही वो दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती घायलों के नाम और ब्यौरा भी पूछते हैं.
एसएसपी सचिंद्र पटेल साफ कहते हैं, ‘हम उस हिंसा की तस्वीरों और वीडियोज का जायजा ले रहे हैं. हिंसक लोगों को चिह्नित किया जा रहा है. उन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी. साथ ही हम पीड़ितों की मदद भी कर रहे हैं.’
हालांकि, नईम का कहना है कि ये हिंदू-मुस्लिम का नहीं, पुलिस का दंगा हो गया है.