नई दिल्ली: बिहार के निषेध क़ानून से जुड़े मामलों के बोझ से अदालतों का काम रुक जाने के कारण, न्यायपालिका के टहोका मारने के बाद, नीतीश कुमार सरकार ने क़ानून प्रणाली पर बोझ कम करने के लिए, राज्य के शराब-विरोधी क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया है.
सुझाए गए बदलावों में पहली बार के अपराधियों को जेल भेजने की बजाय, उनपर जुर्माना लगाने की बात कही गई है. प्रमुख संशोधन में कार्यकारी मजिस्ट्रेट को- जो कम से कम डिप्टी कलेक्टर रैंक का अधिकारी होगा- अधिकार दिए गए हैं कि वो शराब के सेवन से जुड़े मामलों की सुनवाई करके, उनका तुरंत निपटारा करेगा.
बिहार के आबकारी आयुक्त बी कार्तिकेय धनजी ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर किसी व्यक्ति को पहली बार क़ानून तोड़ते हुए पकड़ा जाएगा, तो कार्यकारी मजिस्ट्रेट उसके मामले की तुरंत सुनवाई करेगा, अपराधी का पक्ष सुनेगा और उसपर जुर्माना लगाएगा. जुर्माने की रक़म कितनी होगी, ये राज्य सरकार तय करेगी’.
उन्होंने कहा कि जुर्मान न भरने की सूरत में, एक महीने के साधारण कारावास की सज़ा हो सकती है.
मौजूदा क़ानून के तहत, जो 2016 में प्रभाव में आया था, पहली बार के अपराधी 50,000 रुपए अदा करके पुलिस से ज़मानत ले सकते हैं, लेकिन उन्हें फिर भी अदालत में मुक़दमे का सामना करना होता है. चूंकि ज़्यादातर लोग जुर्माना अदा नहीं कर पाते, इसलिए पुलिस और न्यायपालिका के सूत्रों के अनुसार, वो भी आख़िर में जेल पहुंच जाते हैं, और उन्हें निचली अदालत या हाईकोर्ट में, नियमित ज़मानत के लिए आवेदन करना पड़ता है.
दोबारा के अपराधियों को सीधा जेल भेज दिया जाता है, और दोषी पाए जाने पर उन्हें 10 साल तक की सज़ा हो सकती है.
धनजी ने कहा कि प्रस्तावित संशोधनों के बाद न्यायपालिका में पहुंचने वाले मामलों की संख्या में कमी आएगी. उन्होंने कहा, ‘इससे अदालतों का बोझ हल्का होगा, और उन्हें आसानी के साथ दूसरे न्यायिक मामले निपटाने का समय मिल जाएगा’. उन्होंने आगे कहा कि निषेध क़ानून के अंतर्गत वो प्रावधान भी ख़त्म कर दिया जाएगा, जिसके तहत उस वाहन को ज़ब्त कर लिया जाता है जिससे शराब बरामद होती है. जुर्मान वसूल किए जाने के बाद अब वाहन को छोड़ दिया जाएगा.
प्रस्तावों को फरवरी में बिहार विधान सभा के आगामी सत्र में, सदन के समक्ष रखे जाने की संभावना है.
ये क़दम तब उठाया गया है जब न्यायपालिका मद्यनिषेध मामलों की बढ़ती संख्या से, न्याय वितरण प्रणाली पर बढ़ रहे मुक़दमों के बोझ को लेकर, बार बार चिंता जता रही थी. इस समस्या ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना का ध्यान भी आकर्षित किया था.
दिसंबर 2021 में विजयवाड़ा में हुए एक सेमिनार में, रमना ने शराब-विरोधी क़ानून को नीतीश कुमार सरकार का एक अदूरदर्शी निर्णय क़रार दिया था. सीजेआई ने कहा था कि इन मामलों ने प्रदेश हाईकोर्ट का काम रोक दिया था, और साधारण ज़मानत याचिकाओं पर फैसला होने में एक साल लग जाता है.
इसी महीने सीजेआई ने बिहार सरकार की एक अपील को ठुकरा दिया, जिसमें शराब से जुड़े 40 मामलों में पटना हाईकोर्ट द्वारा दिए गए ज़मानत आदेशों को चुनौती दी गई थी. सीजेआई ने तब एचसी में काम रुक जाने का मुद्दा उठाया था, और कहा था कि ‘14 से 15 जज’ इन्हीं मामलों की सुनवाई में लगे हुए थे.
हालांकि निषेध क़ानून राज्य में 2016 से मौजूद हैं, लेकिन पिछले साल नवंबर से ही उन्हें कड़ाई से लागू किया गया है, जब अक्तूबर और नवंबर महीनों में हूच त्रासदियों में क़रीब 40 लोगों की मौत हो गई थी. 16 नवंबर को सीएम नीतीश कुमार ने सात घंटे की एक समीक्षा बैठक की थी, और ऐलान किया था कि निषेध क़ानूनों को सख़्ती के साथ लागू किया जाएगा.
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25% लंबित ज़मानत याचिकाओं का संबंध निषेध मामलों से
सीजेआई की ओर से दिसंबर और इस महीने की आलोचना, पहला मौक़ा नहीं है जब न्यायपालिका ने बिहार की अदालतों के, शराब क़ानून के मामलों के भारी बोझ तले दबे होने का मुद्दा उठाया है. 2019 में पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के साथ इस मुद्दे को उठाया था, और कहा था कि बिहार की अदालतों में, शराब-विरोधी क़ानून के उल्लंघन से जुड़े, 2 लाख से अधिक मामले लंबित पड़े हैं. उसने सरकार से पूछा था कि उसके पास इनका निपटारा करने की क्या योजना है.
इसके जवाब में सरकार ने शराब से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए, 74 समर्पित अदालतों का गठन किया था. लेकिन इस क़दम से न्यायपालिका को कोई राहत नहीं मिल पाई, क्योंकि पटना हाईकोर्ट में वकालत कर रहे सरकारी अधिवक्ता अरविंद उज्ज्वल ने बताया, कि इन अदालतों में ज़मानत याचिकाओं के ख़ारिज किए जाने से, वो याचिकाएं ऊंची अदालतों में जाने लगीं.
राज्य आबकारी विभाग के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, कि 2016 में मद्यनिषेध क़ानून लागू किए जाने के बाद से, बिहार में 3.5 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, और क़ानून के तहत 4 लाख से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
पिछले हफ्ते पटना उच्च न्यायालय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक हलफनामे में- जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है- एचसी ने ख़ुलासा किया कि लंबित ज़मानत याचिकाओं में, क़रीब 25 प्रतिशत शराब निषेध के मामलों से जुड़ी हैं.
ये हलफनामा शीर्ष अदालत के दिसंबर 2021 के एक आदेश के जवाब में दायर किया गया था, जिसमें एचसी से ज़मानत याचिकाओं के निपटारे में हो रही देरी के, कारण बताने के लिए कहा गया था.
पटना एचसी के हलफनामे के अनुसार, फिलहाल 39,622 ज़मानत याचिकाएं- 21,681 अग्रिम और 17,951 नियमित- निपटान के लिए उन बेंचों के समक्ष लंबित हैं, जिनके पास ऐसे मामलों की सुनवाई का ज़िम्मा है. 36,416 और ज़मानत याचिकाएं हैं- 20,498 अग्रिम और 15,918 नियमित- जिन्हें अभी देखा जाना है.
‘राज्य मुक़दमे को SC तक ले जाता है’
पटना हाईकोर्ट के वकील तुहिन शंकर ने कहा, ‘पटना हाईकोर्ट पर शराब-विरोधी क़ानून तोड़ने से जुड़ीं ज़मानत याचिकाओं का भारी बोझ है. इनमें से अधिकतर मामले इतने मामूली हैं जैसे शराब पीते हुए पकड़े जाना, बाहर से क़ानूनी रूप से ख़रीदी गई शराब राज्य के अंदर लाना, शराब की ख़ाली बोतलें रखना, और उस संपत्ति की ज़ब्ती, जहां से शराब बरामद हुई है. पटना हाईकोर्ट को दूसरे ज़्यादा अहम मामलों की क़ीमत पर, इन मुक़दमों को सुनना पड़ता है’.
उज्ज्वल ने भी ऐसी ही चिंता ज़ाहिर की. उन्होंने कहा, ‘किसी भी दिन, हाईकोर्ट में शराब-विरोधी मामलों से जुड़ी क़रीब 25,000 ज़मानत याचिकाएं लंबित रहती हैं. राज्य (सरकार) मुक़दमों को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाती है’.
पिछले साल नवंबर में, राज्य पुलिस ने उस समय भारी नाराज़गी फैला दी, जब उसने शराब के लिए 50 से अधिक विवाह स्थलों पर छापा मारा, और कथित रूप से दुल्हनों के कमरों में भी घुस गई.
पुलिस भी ऐसे कड़े उपायों को लेकर शर्मिंदा नज़र आई. आईजी रैंक के एक पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘चूंकि असेम्बली ने क़ानून बना दिया है, और इसकी अधिसूचना जारी हो गई है, इसलिए हम इसे लागू कराने के लिए मजबूर हैं. पुलिस सूचना मिलने पर छापेमारी करती है. कई बार, हमें दी गई जानकारी झूठी भी साबित होती है’.
राजनीतिक निहितार्थ
निषेध क़ानून को हल्का करने का ये क़दम, सूबे की राजनीतिक पार्टियों की आलोचना के बीच उठाया गया है.
सीएम नीतीश कुमार मद्यनिषेध के मामले में, विरोधियों के इन दावों को ख़ारिज कर रहे हैं, कि इस क़ानून की वजह से बिहार वित्तीय नुक़सान झेल रहा है, और ये बहुत ‘कठोर’ है. लेकिन उनके सहयोगियों की राय इससे अलग है. हिंदुस्तान अवामी मोर्चा (हम) और बीजेपी दोनों ने क़ानून में संशोधन की मांग की है.
बिहार सरकार के प्रस्ताव को क़ानून को हल्का करने की दिशा में, पहले क़दम के तौर पर देखा जा रहा है.
बिहार विधान सभा में विपक्षी आरजेडी के मुख्य सचेतक भाई वीरेंद्र यादव ने कहा, ‘पहले सरकार को संशोधन लाने दीजिए, उसके बाद हम दूसरे विवादास्पद उपनियमों को हटाने की मांग करेंगे. ये क़दम इस बात का इक़रार है कि शराब क़ानून फेल हो गए हैं, और केवल दबे कुचले लोगों ने ही कष्ट सहे हैं’.
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