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Sunday, 3 November, 2024
होमदेशआदिवासी ग्राम विकास योजना पर हाउस पैनल ने केंद्र सरकार से कहा— समाधान खोजें, समयसीमा तय करें

आदिवासी ग्राम विकास योजना पर हाउस पैनल ने केंद्र सरकार से कहा— समाधान खोजें, समयसीमा तय करें

पैनल प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना में हो रही प्रगति का आकलन कर रहा था. इसमें पाया गया कि पहले दो सालों में चयनित 16,500 से अधिक गांवों में से केवल 52% में ही विकास योजनाओं को मंजूरी दी गई है.

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नई दिल्ली: एक संसदीय पैनल ने केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय से नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (पीएमएजीवाई) के कार्यान्वयन के लिए एक समयसीमा निर्धारित करने को कहा है. पैनल ने पाया कि पिछले दो सालों में परियोजना के तहत पहचाने गए 36,428 आदिवासी गांवों में से केवल 24 प्रतिशत के लिए विकास योजनाओं को मंजूरी दी गई है.

पीएमएएजीवाई का उद्देश्य 36,000 से अधिक चिन्हित आदिवासी गांवों में बुनियादी सुविधाएं और पर्याप्त बुनियादी ढांचा प्रदान करना है, जिनमें कम से कम 50 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) आबादी और 500 एसटी व्यक्ति हैं. 2022 में मोदी सरकार ने ‘जनजातीय उप-योजना के लिए विशेष केंद्रीय सहायता’ (SCA से TSS) को PMAAGY में बदल दिया.

गुरुवार को संसद में पेश की गई अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण पर संसदीय पैनल, जिसने जनजातीय मामलों के मंत्रालय के लिए अनुदान की मांग (2023-24) का आकलन किया, ने योजना के कार्यान्वयन की धीमी गति के संबंध में मंत्रालय के स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं किया.

चिंता व्यक्त करते हुए, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद रमा देवी की अध्यक्षता वाले पैनल ने कहा कि मंत्रालय ने समस्याओं के समाधान के लिए “ठोस कदम” नहीं उठाए हैं, और इसे “व्यवहार्य समाधान” खोजने और कार्यान्वयन के लिए समयसीमा निर्धारित करने के लिए कहा है.

मार्च 2022 से मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, ग्राम विकास योजनाओं (वीडीपी) की तैयारी योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. वीडीपी में सड़क कनेक्टिविटी, स्कूल, दूरसंचार कनेक्टिविटी और स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे बुनियादी ढांचे शामिल हैं. पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित इस योजना के तहत प्रत्येक गांव को विकास के लिए 20.38 लाख रुपये दिए जाते हैं.

इसमें गांवों को चरणबद्ध तरीके से लिया जाना है – दिशानिर्देशों के अनुसार, कुल गांवों का लगभग पांचवां हिस्सा पांच वर्षों के लिए सालाना चुना जाना है. पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, 36,428 चिन्हित गांवों में से 16,554 का चयन पहले दो वर्षों में किया गया था. इनमें से इस साल की शुरुआत तक 8,707 गांवों (52 प्रतिशत) के लिए वीडीपी को मंजूरी दे दी गई थी.

पैनल ने कहा, “समिति ग्राम विकास योजना की प्रगति से आश्वस्त नहीं है क्योंकि एकीकृत विकास योजना के तहत पहचाने गए केवल 24 प्रतिशत गांवों को दो साल की अवधि में परियोजना मूल्यांकन समिति द्वारा मंजूरी दी जा सकी है.”

अनुदान की मांग पर इस साल मार्च में संसद में पेश की गई मूल रिपोर्ट में की गई अपनी सिफारिशों को दोहराते हुए समिति ने कहा: “वीडीपी के मूल्यांकन में लगने वाले समय को कम करने की जरूरत है और समयसीमा भी तय की जानी चाहिए.” प्रत्येक चरण के लिए ताकि कोई देरी न हो और 36,428 गांवों के एकीकृत विकास का काम पूरा हो सके.


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कई राज्यों ने अभी तक विकास योजनाएं प्रस्तुत नहीं की हैं

पहले दो सालों में चुने गए 16,554 गांव 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हुए हैं. रिपोर्ट से पता चलता है कि इनमें से 16 राज्यों, जिनमें उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और मेघालय शामिल हैं, ने कोई वीडीपी जमा नहीं किया है.

योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, वित्तीय सालों के लिए गांवों का चयन करने के बाद राज्यों को 50 प्रतिशत धनराशि जारी की जानी है. हालांकि, यह प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के अधीन है, जैसे राज्य के खजाने से धन के ट्रांसफर के लिए एकल नोडल खाता (एसएनए) बनाना और राज्यों द्वारा उपयोग प्रमाणपत्र (यूसी) जमा करना.

उपयोगिता प्रमाणपत्र यह प्रमाणित करने के लिए एक दस्तावेज़ है कि किसी विशेष ऋण या अनुदान का उपयोग उसके इच्छित उद्देश्य के लिए किया गया है. एकल नोडल खाता एक विशेष प्रयोजन खाता है जो केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के तहत राज्यों को जारी किए गए धन के उपयोग की निगरानी के लिए बनाया गया है.

समिति को अपने जवाब में, मंत्रालय ने कहा कि यूपी, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सहित 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने 2021-22 में यूसी जमा नहीं किया या एसएनए नहीं बनाया, जबकि 2022-23 में, बिहार सहित आठ राज्यों ने, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड – इन प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते थे.

इसमें यह भी कहा गया है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड और गुजरात जैसे राज्य, जहां योजना के तहत पहचाने गए आदिवासी गांवों की एक बड़ी संख्या है, पहले दो सालों में लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाए हैं.

उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में पहचाने गए 7,307 आदिवासी गांवों में से, राज्य ने पहले दो सालों में 2,867 गांवों का चयन किया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन यह सिर्फ 1,195 के लिए योजना तैयार कर सका.

इसी तरह, राजस्थान (कुल 4302 गांव) ने पहले दो सालों में चयनित 1,688 गांवों में से केवल 860 के लिए योजनाएं तैयार की हैं.

पैनल ने कहा, “समिति ने कार्रवाई के जवाब से पाया कि उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा न करने, एकल नोडल खाते (एसएनए) का अनुपालन न करने आदि की बारहमासी समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.”

अपनी पिछली सिफ़ारिशों को दोहराते हुए, समिति ने आगे कहा कि यदि जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा कोई व्यवहार्य समाधान नहीं निकाला गया, तो परियोजना को नुकसान हो सकता है क्योंकि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के साथ केवल समन्वय/अनुनय से पहले भी कभी वांछित परिणाम नहीं मिले हैं.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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