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Sunday, 16 June, 2024
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दिल्ली दंगों का ‘दंश और दर्द’ बयां करेगी फिल्म, किताब में शहर को जलाने की ‘व्यापक साजिश’ की पड़ताल

उत्तर पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी 2020 को दंगे भड़क उठे थे. दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 700 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की हैं और हिंसा में कथित भूमिका के लिए 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है.

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नई दिल्ली: दिल्ली दंगों की पहली बरसी यानी 23 फरवरी कई गतिविधियों की गवाह बनने के लिए तैयार है.

इस मौके पर दंगे और उसके बाद के हालात बयां करती एक डॉक्यूमेंट्री और सुप्रीम कोर्ट के एक वकील और एक पत्रकार द्वारा लिखी गई किताब जारी हो रही है.

दिल्ली रॉयट्स—ए टेल ऑफ बर्न एंड ब्लेम शीर्षक से बनी डॉक्यूमेंट्री 23 फरवरी को ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म वूट पर रिलीज हो रही है. इसका निर्देशन फिल्मकार कमलेश मिश्रा ने किया है.

दिल्ली स्थित यश प्रकाशन की तरफ से पब्लिश की गई किताब एनाटॉमी ऑफ ए प्लान्ड रॉयट्स का विमोचन आज ही दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया जाना है. इसके अलावा, क्लब में एक पब्लिक हियरिंग भी होगी जिसमें पीड़ित परिवारों के लोग अपने अनुभवों को साझा करेंगे.

संदीप महापात्रा और मनोज वर्मा की तरफ से लिखी गई यह किताब दंगों के पीछे की एक बड़ी साजिश का खुलासा करने का दावा करती है. महापात्रा जहां सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं, मनोज वर्मा एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और मौजूदा समय में लोकसभा टीवी के लिए काम कर रहे हैं.

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गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर जारी विरोध के बीच ही पिछले साल 23 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़क उठे थे, जिस दिन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक दिन की आधिकारिक यात्रा पर राष्ट्रीय राजधानी पहुंचे थे. हालिया वर्षों में हिंसा की सबसे घटनाओं में से एक माने जाने वाले इन दंगों के दौरान 53 लोग मारे गए और 500 से अधिक घायल हुए.

दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 700 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की हैं और हिंसा में कथित भूमिका के लिए 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है.


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‘डॉक्यूमेंट्री ने दर्द और दंश को दर्शाया’

फिल्म निर्माता कमलेश मिश्रा ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि उनकी डेढ़ घंटे की डॉक्यूमेंट्री में ‘दंगों’ के दौरान अपने परिजनों और रिश्तेदारों को खो दे वाले लोगों के दर्द और मुश्किलों को दर्शाया गया है.

उन्होंने कहा, ‘फरवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में दंगे भड़के थे. दंगे क्यों भड़के और इसके लिए किन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, इस पर खूब आरोप-प्रत्यारोप लगे. लेकिन इस सबके बीच उन लोगों के दर्द, पीड़ा और क्षति की एकदम अनदेखी कर दी गई जिन्होंने अपने परिजनों और रिश्तेदारों को खो दिया. यह फिल्म इसी दर्द और दंश को दर्शाने के साथ दंगों का मूल कारण पता लगाने की एक कोशिश करती है.’

दंगों की पहली बरसी को ध्यान में रखकर 20 फरवरी को सेंट्रल दिल्ली स्थित महादेव ऑडिटोरियम में मिश्रा की इस फिल्म की प्राइवेट स्क्रीनिंग का आयोजन किया गया था.

‘किताब में व्यापक साजिश की पड़ताल’

एनाटॉमी ऑफ ए प्लान्ड रॉयट्स दिल्ली दंगों पर आधारित नई किताब पुस्तक है. इसमें लेखकों ने दंगों और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बीच एक कड़ी होने का दावा किया है.

इस किताब, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है, में कहा गया है, ‘घोषित तथ्यों से हमने जो पाया….उसके मुताबिक सीएए विरोधी प्रदर्शन और दिल्ली दंगों का घटनाक्रम पूरी तौर पर एक-दूसरे से जुड़ा है. इसके मुताबिक, ‘दंगों और प्रदर्शनों में आगे नजर आने वाले चेहरे दरअसल शतरंज के मोहरों की तरह हैं जिन्हें नियंत्रित करने वाले राजा या वजीर सामान्य तौर पर पर्दे के पीछे ही रहते हैं.’

किताब में यह आरोप भी लगाया गया है कि दंगे एक ‘अंतरराष्ट्रीय इस्लामी साजिश’ का नतीजा है.

इसमें कहा गया है, ‘सावधानी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इंटरनेशनल इस्लामिक धीरे-धीरे भारतीय जमीन में अपनी राह बनाने की कोशिश कर रहे हैं.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘विभिन्न चरमपंथी इस्लामी संगठनों के ऐलान यह बताते हैं कि आने वाले समय में विलायत-ए-हिंद या गजवा-ए-हिंद की स्थापना का सपना काफी समय से देखा जा रहा है. कश्मीर में प्रदर्शन की शुरुआत से लेकर केरल में कट्टरता फैलाने तक और फिर पूरी मजबूती से सीएए विरोधी हिंसा को आर्थिक और वैचारिक समर्थन ने इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है कि खिलाफत स्थापित करने की पुरजोर कोशिशें जारी हैं. भारत के एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते क्या हम अभी भी यह नहीं समझ पा रहे कि भारत विरोधी इन ताकतों का असली मकसद क्या है? क्या हमें अब भी अपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति और अपने धर्म पर आसन्न खतरों के प्रति अनजान बने रहना चाहिए.’

दंगों के बारे में बताएंगे साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ

दिल्ली में कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में पुस्तक के विमोचन और पब्लिक हियरिंग के अलावा जाने-माने साइबर फोरेंसिक एक्सपर्ट नीरज अरोड़ा भी सीएए विरोधी प्रदर्शनों और कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बीच संबंध होने पर अपनी बात रखने वाले हैं.

अरोड़ा एक गैरसरकारी संगठन कॉल फॉर जस्टिस से जुड़े हैं, जिसने दिल्ली के दंगों पर अपनी तथ्यात्मक रिपोर्ट पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपी थी.

रिपोर्ट एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने तैयार की थी जिसकी अध्यक्षता बांबे हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज जस्टिस अंबादास जोशी ने की थी और इसके अन्य सदस्यों में शामिल थे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एम.एल. मीणा, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी विवेक दुबे, एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. टी.डी. डोगरा और सोशल इंटरप्रेन्योर नीरा मिश्रा. अरोड़ा समिति के सदस्य सचिव थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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