scorecardresearch
Monday, 29 April, 2024
होमदेश'PM मोदी तक बात पहुंचाने के लिए किया अनशन', लद्दाख के क्लाइमेट चेंज पर बोले वांगचुक- 6th शिड्यूल चाहिए

‘PM मोदी तक बात पहुंचाने के लिए किया अनशन’, लद्दाख के क्लाइमेट चेंज पर बोले वांगचुक- 6th शिड्यूल चाहिए

सोनम वांगचुक के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है लद्दाख के कल्चर और क्लाइमेट का संरक्षण. इसीलिए उन्होंने क्लाइमेट फास्ट रखा.

Text Size:

लेह सिटी से लगभग 16 किलोमीटर दूर मौजूद सोनम वांगचुक का घर बंजर पहाड़ों के बीचों-बीच हैं जहां वह अपनी पत्नी के साथ रहते हैं और उनके घर के आस-पास ही उनका दफ्तर है. उनके घर के बाहर एक तरफ से काले और सफेद रंग के बर्फीले पहाड़ दिखते हैं और दूसरी तरफ बंजर मिट्टी वाले भूरे रंग के पहाड़ मौजूद हैं.

घर के बाहर खाली पड़ी जमीन पर कहीं मिट्टी की ईटें बनाने का काम हो रहा है तो कहीं उनके इनोविटव प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में आइस स्तूप (Ice Stupa) मौजूद है. सोनम ने बीते दिनों लद्दाख की समस्याओं को उठाते हुए पांच दिन का क्लाइमेट फास्ट रखा और देशवासियों को लद्दाख की दिक्कतों से वाकिफ कराने का प्रयास किया.

सोनम वांगचुक बुधवार सुबह ही दुबई और असम की लंबी यात्रा करके लौटे लेकिन उनके चेहरे पर सफर की थकान नहीं बल्कि एक अलग तरह की शांति का भाव था. उन्होंने दिप्रिंट से शिड्यूल-6, स्टेटहुड से लेकर क्लाइमेट पर बात की.

सोनम वांगचुक के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है लद्दाख के कल्चर और क्लाइमेट का संरक्षण. इसीलिए उन्होंने क्लाइमेट फास्ट रखा. वांगचुक कहते हैं, “हम चिंतित थे कि अगर लद्दाख शोषण और उद्योग के लिए खुला मैदान बन जाएगा तो लद्दाख के लिए हानिकारक होगा लेकिन हमें मालूम था कि शिड्यूल-6 में हमें संरक्षण मिल सकता है. इसीलिए हम उसकी मांग कर रहे थे.”

साल 2019 में सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर लद्दाख को यूटी का दर्जा दे दिया था जिसके बाद से लैंड को लेकर मिलने वाले अधिकार भी लद्दाख से छिन गए थे.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

UT विदआउट लेजिस्लेचर की उम्मीद

“अनुच्छेद 370 हमें संरक्षण तो दे रहा था लेकिन हमें कश्मीर से भी बांधे रख रहा था जबकि लद्दाख कश्मीर से बेहद अलग है. हमें उम्मीद है कि हमें यूटी विदआउट लेजिस्लेचर मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ फिर सरकार ने हमसे शिड्यूल -6 का वादा किया लेकिन वो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है.”

सोनम वांगचुक का कहना है कि वो कुछ खास या अलग नहीं मांग रहे हैं बल्कि वही मांग रहे हैं जिसका अधिकार संविधान ने उन्हें दिया है और जिसका वादा बीजेपी भी उनसे कर चुकी है.

वह कहते हैं, “बीजेपी ने 2019 में संसद के चुनाव और 2020 में होने वाले हिल काउंसिल चुनावों में अपने घोषणापत्र में पहले नंबर पर शिड्यूल-6 देने का वादा किया था. हमारे नेता 3 साल से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं. मैंने सोचा कि यह सिर्फ नेताओं का काम नहीं पूरे लद्दाख के हित की बात है इसलिए मैंने इसके लिए आवाज उठाई.”

आगे उन्होंने कहा, “मैंने सांकेतिक तौर क्लाइमेट फास्ट किया ताकि प्रधानमंत्री मोदी तक हमारी आवाज पहुंचे. क्लाइमेट फास्ट के जरिए मैं सिर्फ सरकार से नहीं बल्कि आम जनता से भी गुजारिश करना चाहता था कि वे थोड़ा सरल लाइफस्टाइल अपनाएं. लोगों के धुएं और जीवनशैली के कारण हम लोग यहां बिना पानी के लिए पलायन करने को मौजूद हैं.”

वागंचुक सबसे ज्यादा लद्दाख के पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं उन्हें डर है कि भविष्य में यहां उद्योगपति आ सकते हैं जिससे लद्दाख के पर्यावरण का संतुलन बिगड़ सकता है.

उन्होंने कहा, “जब सरकार से लद्दाख को यूटी का दर्जा मिला तो कई उद्योगपतियों ने कहा कि वो लद्दाख को एक्सप्लोर करना चाहते हैं, अभी यहां कोई बड़े बिजनसमैन या प्रोजेक्ट नहीं आए हैं लेकिन हम उसका इंतजार नहीं कर सकते. हम आग लगने से पहले ही पानी के लिए कुआं खोद रहे हैं. आग लगने का इंतजार नहीं कर सकते.”

“यहां के युवा परेशान हैं कि नौकरियां नहीं है. सरकार ने 12 हजार नौकरी देने का वादा किया था लेकिन मुश्किल से 400-500 नौकरी मिली हैं वो भी निचले स्तर पर. यहां के युवा भी पर्यावरण के लिए चिंतित हैं और वो भी इसलिए शिड्यूल-6 की मांग कर रहे हैं.”

वांगुचक चिंता जाहिर करते हैं कि अगर ज्यादा लोग यहां आकर रहने लगेंगे तो लद्दाख के लोगों को ही अपना घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

5 लीटर पानी में करते हैं गुजारा

उन्होंने कहा, “फिलहाल तो स्थिति ये है कि यहां आप कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट ला सकते हैं और उसके लिए 1 लाख लोग भी यहां लाए जा सकते हैं, जबकि लद्दाख के बेहद सीमित संसाधनों के साथ गुजारा करते हैं. ये देश के बाकी हिस्सों की तरह नहीं है कि आप यहां आकर रह सकें, यहां लोग 5 लीटर पानी के साथ एक दिन गुजारते हैं. बाहर से आने वाले लोगों को 250-300 लीटर पानी चाहिए. ऐसे में तो हमें ही अपनी जगह छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.”

“टूरिज्म से भी काफी संतुलन बिगड़ रहा है. ग्लेशियर लगातार पीछे जा रहे है.”

“कोई ऐसा काम नहीं होना चाहिए जो हमें आज की खुशी दे लेकिन भविष्य में नुकसान उठाना पड़े. चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात जैसी स्थिति नहीं होनी चाहिए. यहां भी जोशीमठ जैसा नहीं होना चाहिए.”

लद्दाख से उठ रही समस्याओं को एड्रेस करने के लिए सरकार ने एक कमेटी बनाई है लेकिन लद्दाख के नेता उससे खुश नहीं है और वांगचुक बताते हैं ऐसा क्यों है-

“गृह मंत्रालय ने कमेटी बनाई है लेकिन लद्दाख के नेताओं से पूछकर इसके ऐजेंडे नहीं डिसाइड किए गए. साल 2020 में जब लद्दाख के नेताओं ने हिल काउंसिल के चुनाव का बहिष्कार करना शुरू किया था तो सरकार ने प्राइवेट प्लेन भेजकर उन्हें दिल्ली बुलाया और बातचीत की लेकिन शिड्यूल-6 पर कोई बात नहीं हुई. वो इस पर चर्चा ही नहीं करते. इसके बाद बात करने में डेढ़ साल लग गया. यहीं कारण है कि लद्दाख के नेता इस कमेटी से खुश नहीं है.”

“यह वेलकम स्टेप है कि गृह मंत्रालय ने उन नेताओं को बुलाया लेकिन इस बारे में नेताओं से इस बारे में चर्चा नहीं की.”

वर्तमान स्थिति में जिस तरह से लद्दाख में प्रशासन काम कर रहा है उससे वांगचुक खुश दिखाई नहीं देते हैं.

अलग ग्रह की तरह है लद्दाख

“लद्दाख में तो यह कहूंगा कि एक अलग ग्रह की तरह है मार्स और मून की तरह है. यहां की धरती देखिए, वातावरण देखिए. ऐसी जगह को कोई बाहर वाला आकर नहीं चला सकता है. ऐसी जगह को वहीं के लोग समझेंगे न कि कैसा विकास हो? कोई बाहर से यहां आता है तीन साल तो उसे यह जगह समझने में लग जाती है और इतने में उसके जाने का समय हो जाता है और फिर कोई और नासमझ आ जाता है और ऐसे कदम उठाते हैं जो यहां के लिए गलत हो.”

“यूटी एडमिनिस्ट्रेशन को यह भी नहीं समझ आ रहा है कि केंद्र सरकार से आने वाला फंड खर्च कहां करें. कितना सारा फंड तो वापिस चला जाता है.”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः ‘अब और उधार नहीं’— अल्पसंख्यकों की स्कॉलरशिप खत्म करने से कैसे ड्रॉपआउट बढ़ने की आशंका गहराई


 

share & View comments