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Friday, 22 November, 2024
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किसानों की आत्महत्या को रोकने की महाराष्ट्र सरकार की नई पहल, खेतों में समय बिताएंगे सरकारी अधिकारी

सितंबर से शुरू करके अगले 3 महीनों तक कृषि और किसानों को प्रभावित करने वाली नीतियों को लागू करने में शामिल तमाम अधिकारी किसानों की कठिनाइयों को समझने के लिए हर महीने एक से तीन दिन का समय किसानों के साथ बिताएंगे.

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मुंबई: सितंबर से शुरू करके अगले 3 महीनों तक, कृषि और किसानों को प्रभावित करने वाली नीतियों को लागू करने में शामिल महाराष्ट्र सरकार के सभी अधिकारियों को प्रत्येक महीने एक दिन से लेकर तीन दिन तक का समय किसानों के साथ रहते हुए उनके खेतों में बिताना होगा.

महाराष्ट्र सरकार की इस अनूठी परियोजना का उद्देश्य कृषि संकट के असल कारणों को समझना है, विशेषकर इस बात को कि विदर्भ और मराठवाड़ा जिलों में किसान आत्महत्या करने के लिए क्यों मजबूर हो जाते हैं.

एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर किये गए एक सुचना के अधिकार (आरटीआई) वाले आवेदन के जवाब में पेश की गई राज्य के राजस्व विभाग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 और साल 2021 में महाराष्ट्र भर में 5,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की थी.

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के विधायक और राज्य के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने गुरुवार को महाराष्ट्र विधानसभा में कहा कि, ‘सभी स्तरों और भौगोलिक क्षेत्रों से जुड़े अधिकारी राज्य के विभिन्न हिस्सों के किसानों के साथ एक दिन का समय बिताएंगे. किसानों की दिनचर्या को समझते हुए वे सुबह से रात तक किसान के साथ ही रहेंगे. (इस दौरान) वे किसानों के सामने आने वाली दिन-प्रतिदिन की कठिनाइयों को समझने की कोशिश करेंगे.’

माझा एक दिवस मझ्या बलिराजा साठी (मेरे किसान के लिए मेरा एक दिन) नाम की यह पहल 1 सितंबर से शुरू होगी और अगले तीन महीने तक चलेगी. इस तीन महीने की अवधि के अंत में, कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ क्षेत्रीय अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को उनके सभी निष्कर्षों के आधार पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने में मदद करेंगे.

सत्तार ने कहा, ‘हम कृषि के क्षेत्र में विशेषज्ञों से भी उनके सुझाव और टिप्पणियां लेंगे. इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर, हम मुख्यमंत्री जी और उपमुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन में एक व्यापक कृषि नीति का मसौदा तैयार करेंगे.’

राज्य के कृषि विभाग द्वारा गुरुवार को जारी किये गए एक सर्कुलर (परिपत्र) के अनुसार, यह पहल कृषि, ग्रामीण विकास और राजस्व विभागों जैसे विभागों तक फैली होगी और इसके तहत कृषि विभाग के प्रमुख सचिव, कृषि आयुक्त, निदेशक, राज्य के कृषि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और विभागों के प्रमुख सहित संभागीय आयुक्त और जिला स्तर के अधिकारियों से लेकर तहसीलदार स्तर तक के अधिकारियों को राज्य में किसानों के साथ समय बिताने की जरुरत होगी.

इस सर्कुलर की एक प्रति दिप्रिंट के पास भी है.


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किसानों के साथ ज्यादा समय बिताएंगे कृषि विभाग के अधिकारी

इस सर्कुलर में कहा गया है कि राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को महीने में कम-से-कम तीन दिन किसानों के साथ बिताने होंगे, जबकि अन्य दो विभागों के कर्मियों से महीने में कम- से-कम एक दिन किसानों के साथ बिताने की उम्मीद की जाती है.

अधिकारियों को उन क्षेत्रों को चुनने के लिए कहा गया है जो अविकसित, बारिश की सिचाईं पर निर्भर (रेन फेड), पहाड़ी या दुर्गम हैं और उन्हें उन किसानों को भी चुनना होगा जो पूरी तरह से बारिश आधारित खेती पर निर्भर हैं. सर्कुलर में कहा गया है कि यात्रा के लिए चुना गया गांव संबंधित अधिकारी के मुख्यालय से दूर भी होना चाहिए.

अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे यात्रा पर जाने से पहले कुछ होमवर्क कर के निकलेंगें. सर्कुलर में कहा गया है कि उन्हें सभी सरकारी, गैर-सरकारी, अर्ध-सरकारी संगठनों, गांव के बैंकों, विभिन्न सहकारी समितियों और डेयरियों की एक सूची बनानी होगी और यह समझने के लिए उनका दौरा करना होगा कि वे गांव के किसानों की मदद कैसे करते हैं.

उन्हें किसानों से उनके सामने आने वाली बाधाओं, उनके उत्पादन स्तर, व्यय आदि को जानने, यह समझने के लिए कि क्या गांव में कोई फसल विविधीकरण किया जा रहा है और इस बारे में सुझाव देने के लिए ऑफ-द- रिकॉर्ड (आधिकारिक स्तर से परे जाकर) बात करने की आवश्यकता होगी. अधिकारियों को इस बात की भी पड़ताल करनी होगी कि किसान किस तरह की तकनीकों पर पर निर्भर हैं.

सर्कुलर के अनुसार, अधिकारियों को किसानों को उनके लिए उपलब्ध सरकार की सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं जैसे किफसल बीमा, दुर्घटना बीमा आदि के बारे में भी जानकारी देनी होगी और उनके ‘समग्र अर्थशास्त्र’ को भी समझना होगा.

कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालयों के अधिकारियों को गांवों में बैठकें भी आयोजित करने के लिए कहा गया है ताकि किसानों को अलग-अलग फसल के विशिष्ट आधुनिक तकनीकों के बारे में सूचित किया जा सके. साथ ही, उन्हें उन किसानों, कृषि उत्पादन कंपनियों और स्वयं सहायता समूहों का दौरा करने को कहा गया है जिनके पास अपनी सफलता की कहानियां हैं.

सर्कुलर में कहा गया है कि सभी अधिकारियों को अपनी-अपनी रिपोर्ट जिला कलेक्टर के पास जमा करनी होगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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