लखनऊ: हर्षित श्रीवास्तव 17 अप्रैल को लखनऊ के लाल बाग इलाके में स्थित मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) कार्यालय के बाहर बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. तभी घर से आए फोन पर उन्हें सूचना मिली कि उनके 65 वर्षीय पिता विनय कुमार श्रीवास्तव का ऑक्सीजन स्तर गिरकर 50 पर पहुंच गया है, जो कि ‘सामान्य’ तौर पर 95 होना चाहिए और 88 के निशान पर पहुंचना ‘चिंताजनक’ माना जाता है.
बुजुर्ग पत्रकार विनय श्रीवास्तव को एक दिन पहले ही बेचैनी की शिकायत हुई थी और रात तक उनका ऑक्सीजन स्तर गिरना शुरू हो गया था. यह लक्षण कोविड की ओर इशारा कर रहे थे.
तीन अस्पतालों में अपने पिता के इलाज की कोई सुविधा नहीं मिल पाने के बाद हर्षित सीएमओ कार्यालय पहुंचे थे, जहां उनकी दिप्रिंट से मुलाकात हुई. कोविड मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के लिए अनिवार्य एक पत्र हासिल करने के लिए उन्होंने घंटों सीएमओ दफ्तर के बाहर इंतजार किया, और अंत में हताश-निराश होकर घर लौट गए. तब तक उनके पिता का ऑक्सीजन स्तर गिरकर 31 पर पहुंच चुका था. विनय ने कुछ चिकित्सा सुविधा न मिलने के बाद 17 अप्रैल की दोपहर 3.30 बजे दम तोड़ दिया.
बीमार पिता के इलाज की कोशिश के दौरान हुए भयावह अनुभव साझा करते हुए हर्षित ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम एक-जगह से दूसरी जगह भागते रहे लेकिन हमें उनके लिए एक ऑक्सीजन सिलेंडर तक नहीं मिल पाया. एक रिश्तेदार ने हमें अपना सिलेंडर दिया, मैं आधी रात को इसे रीफिल कराने पहुंचा, वहां भी लंबी कतार लगी थी, मुझे अपने पिता को बचाने के लिए दूसरों से लड़ना तक पड़ा.’
हर्षित ने बताया था, ‘उनका नमूना शनिवार सुबह लिया गया था, लेकिन बताया गया हमें रिपोर्ट (कोविड की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट) तीन दिन बाद ही मिलेगी. कोई भी अस्पताल कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट के बिना उन्हें भर्ती करने को तैयार नहीं है, जबकि उनमें बीमारी के सभी लक्षण हैं.’
सीएमओ कार्यालय में भी हर्षित को निराशा ही हाथ लगी. सीएमओ संजय भटनागर जब अपने कार्यालय पहुंचे तो हर्षित ने ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से अपील की कि उन्हें भीतर जाने दे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने मीडिया प्रतिनिधि के तौर पर मदद के लिए दिप्रिंट से भी गुहार लगाई.
कांपती अंगुलियों से वह इस आस में तमाम अस्पतालों के हेल्पलाइन नंबर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के फोन मिलाता रहा कि शायद कहीं से उसके पिता के लिए मदद मिल जाए.
बुजुर्ग पत्रकार हमेशा अपने आसपास के लोगों की मदद करने खड़े रहते थे, लेकिन जब उन्होंने अपने घर पर दम तोड़ा तो कोई परिवार को सांत्वना देने तक नहीं आया क्योंकि उन्हें कोविड की चपेट में आ जाने का डर था.
दिप्रिंट ने कई कोविड अस्पतालों का दौरा करके यह पाया कि दरअसल वे सीएमओ की तरफ से जारी पत्र के बिना किसी को भर्ती नहीं कर रहे, भले ही उनके पास कोविड पॉजिटिव होने की रिपोर्ट हो. यह नियम पिछले साल अप्रैल में जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) की तरफ से इस आशय का पत्र जारी होने के बाद से ही लागू है, जिसे दिप्रिंट ने हासिल किया है. श्रीवास्तव की मौत की खबर वायरल होने के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अस्पतालों को कोविड के संदिग्ध मरीजों को भर्ती करने का भी निर्देश दिया. लेकिन यह फैसला आने तक विनय के लिए बहुत देर हो चुकी थी.
राज्य की तरफ से जारी स्वास्थ्य बुलेटिन के मुताबिक, लखनऊ जिले में शनिवार को 5,913 नए मामले दर्ज किए गए हैं, जिसके साथ यूपी की राजधानी में कुल सक्रिय मामलों की संख्या 44,485 पहुंच गई है. इस दिन कोविड के कारण 36 लोगों की मौत हुई.
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मेडिकल ट्रॉमा
सीएमओ दफ्तर के बाहर इंतजार के दौरान दिप्रिंट से बातचीत में हर्षित ने एकदम रुआंसे होकर कहा, ‘मेरे पिता पिछले 30 वर्षों से पत्रकार हैं. उन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान हमेशा लोगों की मदद की. यहां तक कि महामारी के दौरान भी अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा जरूरतमंदों पर खर्च करते रहे. लेकिन आज जब वह मौत से जंग लड़ रहे हैं तो उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है.’
अपने पिता के लिए एक बेड की तलाश में जुटे हर्षित को शनिवार सुबह तीन अस्पतालों—बलरामपुर, जगरानी और रेजीडेंसी एरा से वापस लौटा दिया गया था.
हर्षित ने बताया, ‘बलरामपुर अस्पताल में तो सुरक्षा गार्डों ने भी मेरे साथ दुर्व्यवहार किया. उन्होंने कहा यहां से भाग जाओ, पहले जाकर सीएमओ से पत्र लेकर आओ. केवल कोविड-पॉजिटिव रोगियों को ही भर्ती किया जा सकता है. यहां कोई बेड खाली नहीं हैं.’
हर्षित ने अपने पिता को बचाने के लिए हर उस इंसान से मदद पाने की कोशिश की, जिससे उसे जरा भी उम्मीद थी, और ऐसी ही आशा की एक किरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी में नजर आई. हर्षित ने पत्रकार के ट्विटर हैंडल का उपयोग करते हुए अपने पिता की स्थिति के बारे में ट्वीट किया था, और इस पर त्रिपाठी ने जवाब में ब्योरा मांगा. बाद में इस रिपोर्टर ने भी श्रीवास्तव की मदद के लिए त्रिपाठी को टैग करते हुए ट्वीट किया, लेकिन विनय तक कोई मदद नहीं पहुंच सकी.
जब विनय की मौत की खबर सोशल मीडिया पर आई तो कुछ यूजर्स ने सवाल उठाया कि उन्होंने किस पार्टी के लिए वोट दिया है. हर्षित ने अपने पिता के हैंडल का उपयोग करते हुए ट्वीट किया: ‘मैंने देश के लिए वोट किया.’
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दुख की घड़ी में अकेला
दिप्रिंट जब लखनऊ के उस सेक्टर 12 में पहुंचा जहां श्रीवास्तव का घर है, तब तक कोविड मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वहां बैरीकेडिंग लगाई जा चुकी थी.
चादर से ढका विनय का शव उसी बिस्तर पर रखा हुआ था जहां उन्होंने आखिरी बार भोजन किया था. बिस्तर के बगल में शोकाकुल परिवार हर्षित, उसकी पत्नी निशु और मां अरुणा बैठी थीं.
कोविड का खौफ इस कदर कायम है कि कोई भी पड़ोसी उनके शोक संतप्त परिवार को सांत्वना देने तक नहीं आया था.
हर्षित ने बताया, ‘जब मैं घर लौटकर आया तो उन्होंने खाना मांगा. हम सबने दोपहर का भोजन एक साथ ही किया क्योंकि वह अपने परिवार के साथ भोजन करना चाहते थे. और फिर वह हमेशा के लिए चले गए.’ हर्षित के ताऊजी का घर भी बगल में है. वह बार-बार फोन करके अपने भाई के हालचाल के बारे में जानकारी तो लेते रहे थे लेकिन किसी मदद के लिए आगे नहीं आए.
परिवार के फोन बजते रहे, लेकिन तमाम लोग विनय को बचाने में कोई मदद न कर पाने पर असमर्थता जताते रहे. ऐसी ही एक निजी लैब, जिसने उनके पिता का ब्लड सैंपल लिया था, से आई फोन कॉल का जवाब देते हुए हर्षित ने कहा, ‘क्या करेंगे अब आपकी हीमोग्लोबिन रिपोर्ट का? मर गए मेरे पिताजी.’
दिप्रिंट ने शनिवार को जब आखिरी बार इस परिवार से बात की थी तब तक विनय की आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई थी. और परिवार के अन्य सदस्यों का तब तक कोई टेस्ट नहीं हुआ था.
अरुणा श्रीवास्तव से जब उनके टेस्ट के बारे में पूछा गया तो उनका गुस्सा फूट पड़ा और बोली, ‘हम सब मर जाएंगे.’ उन्होंने तीखे स्वर में कहा, ‘वे (मेरे पति) कहा करते थे कि वह एक पत्रकार हैं, और इसलिए बुढ़ापा आने के बाद भी दूसरों की मदद करते रहे थे. लेकिन अब सब कहां है? एंबुलेंस कहां है? अस्पताल कहां हैं?’
दिप्रिंट के वहां से रवाना होने से पहले दूर का कोई एक रिश्तेदार ही विनय के अंतिम संस्कार के समय परिवार की मदद करने के लिए पहुंचने वाला एकमात्र व्यक्ति था.
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सीएमओ का पत्र
दिप्रिंट ने शनिवार को जिन भी अस्पतालों का जायजा लिया, उनमें से कोई भी सीएमओ के पत्र के बिना पॉजिटिव सर्टिफिकेट वाले मरीजों को भी भर्ती नहीं कर रहा था. इनमें सेंट जोसेफ, सहारा, विवेकानंद, मेयो, चंदन और बलरामपुर अस्पताल शामिल हैं.
अस्पताल के अधिकारियों का कहना था कि वे प्रशासनिक आदेशों का पालन कर रहे हैं. इस संबंध में मेयो अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम पिछले साल से ही इस आदेश का पालन कर रहे हैं. संबंधित अधिसूचना पिछले साल जारी हुई थी. हम सीएमओ की अनुमति के बिना किसी पॉजिटिव मरीज को भर्ती नहीं कर सकते.’
दिप्रिंट द्वारा हासिल किए गए इस नोटिस में कहा गया है, ‘कोविड-19 मरीजों की मेडिकल इमरजेंसी के संबंध में कोई भी फैसला मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संजय भटनागर की तरफ से लिया जाएगा और यही अंतिम निर्णय होगा.’
दिप्रिंट ने फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये भटनागर से संपर्क साधा और उनसे मिलने के लिए दफ्तर के बाहर घंटों इंतजार भी किया, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह निर्णय कोविड प्रबंधन को विनियमित करने और उस पर नजर रखने के लिए लिया गया था. वर्ना वो मनमानी करने लगते हैं और डाटा भी ठीक से ट्रेस नहीं हो पाता है.’
विनय श्रीवास्तव का मामला ट्विटर पर वायरल होने के बाद योगी सरकार ने सभी निजी और सरकारी अस्पतालों को निर्देश दिया कि वे सभी संदिग्ध कोविड मरीजों को भर्ती करें—भले ही आरटी-पीसीआर टेस्ट निगेटिव हो लेकिन उन्हें एक्स-रे, सीटी स्कैन और ब्लड रिपोर्ट के आधार पर कोविड संदिग्ध माना जा रहा हो. यह इस वजह से भी किया गया है क्योंकि ऐसे मामलों की संख्या काफी बढ़ी है जिनमें कोविड के लक्षणों वाले मरीजों की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आ रही है.
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