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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशमंगलवार को 'अनुचित' मीट बैन ने आस्था, आज़ादी, फाइनेंस को लेकर गुरुग्राम को बांटा

मंगलवार को ‘अनुचित’ मीट बैन ने आस्था, आज़ादी, फाइनेंस को लेकर गुरुग्राम को बांटा

गुड़गांव में मंगलवार को कच्चे मांस की बिक्री बंद कर दी गई है. इस निर्देश का मतलब किसी के कारोबार का नुकसान है, तो किसी की पसंद पर बंदिश. हालांकि बहुत से लोग हिंदू भावनाओं की खातिर उठाए गए इस कदम से खुश हैं.

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गुरुग्राम: अगर आपके रेफ्रिजरेटर में मीट नहीं रखा है या आप उसे ऑनलाइन नहीं मंगा रहे हैं, तो मंगलवार को गुरुग्राम के घरों को शाकाहारी मेन्यू का पालन करना होगा. इसकी वजह? मंगलवार के दिन कच्चे मांस की बिक्री पर, हाल ही में लगी पाबंदी. पाबंदी में मछली की बिक्री भी शामिल है, हालांकि अंडों को इससे बाहर रखा गया है.

18 मार्च को गुड़गांव नगर निगम (एमसीजी) ने शहर में मंगलवार के दिन कच्चे मांस की बिक्री पर पाबंदी लगा दी, जिसका कारण कथित रूप से ‘हिंदू भावनाओं’ का सम्मान बताया गया. एमसीजी आयुक्त विनय प्रताप सिंह के कथित ऐतराज़ के बावजूद, प्रस्ताव पारित कर दिया गया. सिंह ने कथित रूप से कहा था कि भोजन एक ‘निजी पसंद’ का मामला है.

पाबंदी से नाराज़ निवासियों का कहना है कि ये उनकी निजी पसंद में दख़लअंदाज़ी है कि सप्ताह के किसी भी दिन, वो क्या खाना चाहते हैं क्या नहीं. लेकिन मांस व्यापारियों के लिए ये कारोबार और आमदनी का ज़्यादा गंभीर मामला है. उनके मुताबिक ज़्यादा खराब बात ये है कि ये फैसला ‘नाजायज़’ और ‘नाइंसाफी भरा’ लगता है- कच्चा मांस अभी भी ऑनलाइन उपलब्ध है और रेस्त्रां को भी मांस परोसने से रोका नहीं गया है.

निगम के दिए गए इस कारण से कि रेस्त्रां और ऑनलाइन स्टोर्स, उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं, इस पाबंदी से प्रभावित दुकानदारों की परेशानी खत्म नहीं होती.

कच्चा मांस बेंचने वाले छोटे व्यवसायी तो, इस पाबंदी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं ही, डिपार्टमेंटल स्टोर्स और बड़े रिटेलर्स भी निगम के निर्देश के दायरे में आ गए हैं. कच्चे मांस की सभी लाइसेंस-शुदा दुकानें, गुड़गांव नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आती हैं. इनमें मॉडर्न बाज़ार, फूडहॉल और ले मार्शे जैसे प्रीमियम स्टोर्स भी शामिल हैं.

दिप्रिंट ने गुरुग्राम के गोल्फ कोर्स रोड स्थित, फूडहॉल आउटलेट के नुमाइंदों से, स्टोर के ऑनलाइन नंबर के ज़रिए संपर्क किया, लेकिन इस खबर के छपने तक, उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. फोन द्वारा संपर्क किए जाने पर, ले मार्शे के एक अधिकारी ने सिर्फ इतना कहा कि ‘वो इस मामले पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं’.

मॉडर्न बाज़ार ने ज़्यादा साफगोई से काम लिया और कहा कि बैन के लागू होने के बाद से मंगलवार के दिन वो अपने कच्चे मांस के काउंटर को नहीं चला रहे हैं.

मॉडर्न बाज़ार की दो दुकानों के मैनेजर, सुरेंद्र पाल सिंह ने कहा, ‘प्रीमियम स्टोर्स को भी सरकारी गाइडलाइन्स माननी होती हैं, और चूंकि कच्चे मांस को बेचने और काटने पर पूरी पाबंदी है, इसलिए हम निर्देशों का पालन कर रहे हैं. हमारे कच्चे मीट के काउंटर्स मंगलवार के दिन बंद रहते हैं. लेकिन फ्रोज़न मीट और अन्य नॉन-वेजिटेरियन आइटम्स, उस दिन भी बिक्री के लिए उपलब्ध रहते हैं’.

बैन के बारे में स्पष्टता लेने और उसके पीछे के तर्क को समझने के लिए दिप्रिंट ने एमसीजी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, आशीष शिंगला से फोन और व्हाट्सएप दोनों पर संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. एमसीजी आयुक्त से भी फोन तथा ईमेल पर संपर्क किया गया लेकिन इस खबर के छपने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.

गुरुग्राम में मीट की 129 लाइसेंस शुदा दुकानें हैं, जिनमें से 120 पिछले मंगलवार को बंद थीं. जिन्होंने अपनी दुकानें खोलीं, उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया.


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छोटी दुकानों पर निशाना

गुरुग्राम के सेक्टर 14 में सोनू चिकन कॉर्नर के नाम से, छोटी सी दुकान चलाने वाले 38 वर्षीय प्रमोद कुमार ने अफसोस करते हुए कहा, ‘ये किस तरह का कानून है? ये सिर्फ छोटे दुकानदारों को चोट पहुंचाता है, जबकि बड़े ऑनलाइन स्टोर्स हमारा धंधा खा रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए. अगर कच्चा मांस बेचने वाली दुकानें मंगलवार को बंद रहती हैं, तो ऑनलाइन स्टोर्स को भी डिलीवर की अनुमति नहीं होनी चाहिए और रेस्त्रां को भी भोजन नहीं परोसने देना चाहिए’. अधिकार क्षेत्र के तहत पाबंदियों के तर्क का उन्हें कोई मतलब नज़र नहीं आता.

ऐसा पहली बार नहीं है कि गुरुग्राम में निगम ने मीट विक्रेताओं के साथ अनुचित व्यवहार किया है. एमसीजी ने 2017 में कच्चा मांस बेचने वाली दुकानों के लिए लाइसेंस जारी करना शुरू किया था. लेकिन दुकानदारों की शिकायत है कि उसके बाद से कारोबार को सुगम बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया है.

कच्चे मांस की एक दुकान के मालिक ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘वो हमें ऐसा अहसास कराते हैं, जैसे हम कोई गंदा काम कर रहे हों, जिसे चोरी-छिपे किया जाना चाहिए’. उन्होंने आगे कहा, ‘ज़रा सोचिए, गुरुग्राम के पास अपना कोई बूचड़ख़ाना भी नहीं है. हर रोज़ सुबह सवेरे मीट दिल्ली से खरीदकर लाना पड़ता है’.

निगम के खिलाफ अपनी बड़बड़ाहट को जारी रखते हुए दुकानदार ने आरोप लगाया, ‘एमसीजी भ्रष्ट है. 2017 के बाद से उन्होंने सिर्फ हमें परेशान करने का काम किया है और हमसे बेतुके पैसे वसूले हैं. लाइसेंस फीस दोगुनी कर दी गई है (विडंबना ये कि उसी रोज़, जब मंगलवार के लिए बिक्री बंद की गई) 5,000 से बढ़ाकर 10,000 रुपए. मुंबई में भी इतनी अधिक फीस नहीं है’.

बैन का मतलब है कि दुकानदारों के लिए हर महीने चार दिन के कारोबार का नुकसान लेकिन किराया, मज़दूरी की लागत और संचालन के दूसरे खर्चे वही रहते हैं. गुरुग्राम के अर्जुन मार्केट में, डेविड एंड कंपनी मीट शॉप के 34 वर्षीय मालिक, डेविड नवेद वाथरकर का कहना था कि एमसीजी की समस्याओं की कोई सुनवाई नहीं होती क्योंकि शहर में मीट विक्रेताओं की कोई एसोसिएशन नहीं है, जो उनके मुद्दों को उठा सके.

‘डीएलएफ फेज़-1 में अपनी दुकान के लिए, मैं हर महीने 2 लाख रुपए किराया देता हूं. लेकिन बैन का मतलब है कि हर महीने मुझे चार दिन की आमदनी का नुकसान होता है’.

इसके अलावा ग्राहकों को रोके रखने का भी मसला है, जो बहुत से व्यापारियों के लिए, आगे चलकर समस्याएं खड़ी कर सकता है. उन्होंने ये भी कहा, ‘पिछले कुछ दिनों में, मेरी दुकान पहले होली पर बंद रही और फिर पाबंदी की वजह से मंगलवार को भी बंद हो गई. हमारे सबसे नियमित ग्राहकों को भी, ऑनलाइन स्टोर्स से ऑर्डर करना पड़ा है. हम अपने ग्राहक बिग बास्केट और लीशियस जैसी बड़ी कंपनियों के हाथों गंवा रहे हैं’.

वाथरकर का कहना है कि कम से कम निजी स्तर पर, दुकान मालिकों के लिए इस कानून के ख़िलाफ खड़े होना मुश्किल है क्योंकि ‘अपने लाइसेंस का नवीनीकरण कराते समय, हमें लिखकर देना होता है कि कब अपनी दुकानें खोल सकते हैं कब नहीं खोल सकते, इस बारे में हम एमसीजी के फैसलों का पालन करेंगे’.


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मीट खाएं या न खाएं

इस बीच, रेस्त्रां में मांसाहारी व्यंजन अभी भी उपलब्ध हैं. मंगलवार को कच्चे मांस पर पाबंदी का मतलब केवल इतना है कि छोटे बड़े सभी भोजन विक्रेताओं को अब सोमवार को ही मीट खरीदकर रखना होता है.

गोल्फ कोर्स मार्ग पर एक शराब की भट्टी के मैनेजर, शांतनु मंडल ने कहा कि बैन लागू होने के बाद पिछले दो मंगलवार से, वो अपने ग्राहकों को नॉन-वेजिटेरियन सर्व करते रहे हैं. ‘हमारे पास पूरे गुरुग्राम में सात भट्टियां हैं. मंगलवार के लिए हम सोमवार शाम को ही मीट खरीदकर, उसे फ्रीज़ कर लेते हैं. मीट को मैरिनेट होने में भी कुछ समय लगता है’.

कुछ अन्य ब्रूअरीज़ और रेस्त्रां, जैसे मैनहटन बार एक्सचेंज और रीसेट बाई प्लान बी ने कहा कि वो वैसे भी अपने लिए दिल्ली से मीट मंगाते हैं और उन्हें तो बैन का पता भी नहीं था. लेकिन बहुत से गुरुग्राम वासी, घर पर ताज़ा मीट खरीदने और पकाने का विकल्प न होने से नाराज़ हैं और इसे अपनी निजता और आज़ादी में निगम का अनावश्यक दखल समझते हैं.

एक रियल एस्टेट डेवलपर, 52 वर्षीय निश्चल सिंह ने कहा, ‘हमें देश में ऐसा ध्रुवीकरण नहीं चाहिए. मैं एक सिख हूं. मुझे किसी हिंदू देवता की खातिर मंगलवार को मीट क्यों छोड़ना चाहिए? ये कानून मनमानी और मूर्खता है, खासकर ऐसे में जब कोविड स्थिति के कारण कारोबार पहले से ही प्रभावित हैं’.

पूर्व विश्व बैंक कर्मचारी दीपक आहलूवालिया, सप्ताह के किसी भी एक दिन मीट की दुकानें बंद रखने के तर्क पर ही सवाल उठाते हैं. उन्होंने पूछा, ‘एक दिन के लिए दुकान बंद करने में, क्या लोगों की भावनाओं का ख्याल रखा गया है. क्या बाकी दिन मांस बेचना सही है?’ उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे कोई कारण नज़र नहीं आता कि अगर ज़रूरत है तो भी मुझे मंगलवार को मीट नहीं मिलना चाहिए. क्या अभी तक सब सही नहीं चल रहा था?’

अगर बैन से कुछ हुआ है तो वो ये कि इसने आम लोगों के बीच भी दरार पैदा कर दी है जिन्होंने अभी तक इस विषय पर कोई ध्यान नहीं दिया था. सिंह के बिल्कुल उलट संजय गुप्ता के विचार हैं, जिनकी गुरुग्राम में एक मिठाई की दुकान है. उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार में ये एक ज़बर्दस्त फैसला है. ये पहले ही लिया जाना चाहिए था. लोग एक दिन के लिए मांस खाना क्यों नहीं बंद कर सकते? वो हिंदुओं का आदर क्यों नहीं कर सकते? शराब की दुकानें भी मंगलवार को बंद होनी चाहिए’.

एक एडवर्टाइज़िंग प्रोफेशनल भी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, इससे सहमत थे, ‘अगर देश की 80 प्रतिशत आबादी मंगलवार को एक पवित्र दिन समझती है, तो मीट विक्रेताओं को इसे बस एक छुट्टी समझ लेना चाहिए. मेरी समझ में नहीं आता कि लोगों ने इस बात का इतना बतंगड़ क्यों बना दिया है. हमारे पास चर्चा करने के लिए और बहुत से मुद्दे हैं. बहुत सी दुकानें सोमवार को बंद रहती हैं, कुछ बुधवार को बंद होती हैं, कुछ शनिवार को होती हैं…’

लेकिन कुछ मीट विक्रेता इस कदम को ऊंची हिंदू जातियों की आस्थाओं को दूसरों पर थोपे जाने के रूप में देखते हैं- मीट की दुकानें आमतौर पर मुसलमानों या अनुसूचित जातियों की होती हैं.

एक विक्रेता ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘सेठ लोग ये कारोबार क्यों करेंगे?’ उसने आगे कहा, ‘मैं वाल्मीकि समाज से हूं, दूसरे अधिकांश दुकानदार भी निचली जातियों से हैं या मुसलमान धर्म से हैं. हमें इस देश में सम्मान कब मिला है?’

एक और दुकानदार, जो मुसलमान है, का कहना है कि बैन लागू होने से पहले भी वो मंगलवार को अपनी दुकान बंद ही रखते थे. ‘हम जिस देश में रहते हैं, उसके धर्म का सम्मान करना चाहिए’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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2 टिप्पणी

  1. बहुत ही अच्छा निर्णय लिया गया है गुरुग्राम mcg द्वारा सराहना की जानी चाहिए पहल की शुरुआत हो अच्छा होगा आगे भी

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