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Monday, 23 December, 2024
होमखेलताने सहे, फेंके गए कांच के टुकड़े; झारखंड की लड़की ने माड़-भात खाकर फीफा अंडर-17 विश्व कप में बनाई जगह

ताने सहे, फेंके गए कांच के टुकड़े; झारखंड की लड़की ने माड़-भात खाकर फीफा अंडर-17 विश्व कप में बनाई जगह

बेहद गरीब परिवार से संबंध रखने वाली अनीता के लिए फीफा अंडर -17 विश्व कप से पहले कैंप में चयन तक का सफर आसान नहीं था. भारत अक्टूबर में होने वाले इस विश्व कप की मेजबानी करेगा.

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नई दिल्ली: झारखंड फुटबॉलर और भारत अंडर -17 महिला विश्व कप की संभावित खिलाड़ी अनीता कुमारी के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. उसे खेल में अपना करियर न बनाने की सलाह दी जाती थी, ताने मारे जाते और यहां तक कि ट्रेनिंग सेशन के दौरान उन पर कांच के टुकड़े भी फेंके गए. लेकिन अनीता के बढ़ते कदमों को कोई नहीं रोक सका. एक समाचार वेबसाइट TheFollowUp में अनीता का परिवार उसके इस संघर्ष की कहानी को बयां करता नजर आया है.

उनके परिवार के साथ की गई बातचीत का एक वीडियो शनिवार देर रात TheFollowUp वेबसाइट पर साझा किया गया. उसमें बताया गया कि झारखंड की सात फुटबॉल खिलाड़ी – गोलकीपर अंजली मुंडा, डिफेंडर सेलिना कुमारी, सुधा अनीता तिर्की, अष्टम उरांव, पूर्णिमा कुमारी, मिडफील्डर नीतू लिंडा और विंगर अनीता कुमारी को अक्टूबर में भारत में होने वाले फीफा अंडर-17 महिला विश्व कप के इंडिया कैंप के लिए चुन लिया गया है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक जमशेदपुर में चल रहे कैंप में फिलहाल 30 से ज्यादा लड़कियों को ट्रेनिंग दी जा रही है.

2022 फीफा अंडर -17 महिला विश्व कप में 16 देशों की टीमें शामिल होंगी और यह 11 से 30 अक्टूबर के बीच भारत में- भुवनेश्वर के कलिंग स्टेडियम, मडगांव के नेहरू स्टेडियम और नवी मुंबई के डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में खेला जाएगा.

फिलहाल यह देखना बाकी है कि रांची जिले के ओरमांझी गांव की रहने वाली अनीता क्या मुख्य टूर्नामेंट के लिए अंतिम 23-सदस्यीय टीम में जगह बना पाती है या नहीं. पर फिलहाल इंडिया कैंप के लिए चुना जाना भी उनके लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है. वह जिन आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को पार करते हुए यहां तक पहुंची है, उनके करियर के लिए ये मील का पत्थर साबित हो सकता है.


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‘सबको लगता था कि वह फुटबॉल क्यों खेल रही है’

अनीता की मां आशा एक मजदूर है. उन्होंने वेबसाइट को बताया कि कैसे गांव वाले बार-बार उनके परिवार को उसे अपने फुटबॉल सपनों को पूरा न करने और पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा करते थे.

आशा वेबसाइट के साथ हुई बातचीत में बताती हैं, ‘अनीता पिछले 8 साल से खेल रही है… पूरे गांव को हैरानी होती कि वह इतना फुटबॉल क्यों खेल रही है. वे कहते थे कि उसे खेलने के बजाय पढ़ाई करनी चाहिए. लेकिन उसके लिए घर में रहने और सिर्फ घर का काम करने की तुलना में बाहर जाना और फुटबॉल खेलना बेहतर था.’

अनीता की छोटी बहन विनीता भी एक फुटबॉल खिलाड़ी है. वह याद करते हुए बताती हैं कि कैसे दोनों बहनों के फुटबॉल के प्रति जुनून को लेकर गांव वाले अक्सर उन पर गलत टिप्पणियां करते रहते थे.

विनिता ने कहा, ‘ वे (ग्रामीण) हमसे पूछते थे कि हम लड़कों की तरह ‘हाफ-पैंट’ (शॉर्ट्स) क्यों पहन रहे हैं, हम फुटबॉल क्यों खेलते रहते हैं. और जब हम प्रैक्टिस के लिए जाते तो वे वहां कांच के टुकड़े या फिर जो भी कुछ मिलता हमारे ऊपर फेंक देते थे.’

उनके परिवार ने यह भी बताया कि अनीता ज्यादातर समय ‘माड़ भात’- खमीर उठा हुए चावल का पानी-  खाकर ही ट्रेनिंग लेती रही हैं. और अगर वह विश्व कप टीम में जगह बना लेती है तो उसके खेल को देखने के लिए परिवार के पास टेलीविजन या मोबाइल फोन तक नहीं है.

राज्य फुटबॉल संघ के एक कोच एस. प्रधान के हवाले से कहा गया कि शिविर के लिए चुनी गई झारखंड की सभी सात लड़कियां बहुत ही साधारण परिवार से हैं. इनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूरों या छोटे किसानों की बेटियां हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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