नई दिल्ली: भारत निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि बिहार स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया के तहत दावे और आपत्तियां दाखिल करने की समयसीमा 1 सितंबर के बाद बढ़ाई गई तो “मतदाता सूची के अंतिम रूप देने के पूरे कार्यक्रम में बाधा आएगी.”
हालांकि, आयोग ने स्पष्ट किया कि 1 अगस्त को सार्वजनिक किए गए प्रारूपिक मतदाता सूची से जुड़े दावे और आपत्तियां 1 सितंबर की समयसीमा के बाद भी दाखिल की जा सकती हैं, लेकिन इन्हें मतदाता सूची अंतिम होने के बाद ही माना जाएगा.
आयोग ने कोर्ट को नोट में कहा, “01.09.2025 से 25.09.2025 के बीच दावों और आपत्तियों पर विचार करने की अवधि तय है और इसमें संदिग्ध मामलों में नोटिस जारी करना और जवाब लेना भी शामिल है. इसलिए किसी भी समयसीमा के विस्तार से प्रक्रिया और मतदाता सूची के अंतिम रूप देने में बाधा आएगी.”
आयोग ने यह भी बताया कि दावों और आपत्तियों पर विचार की प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तिथि तक जारी रहती है और सभी सम्मिलन और बहिष्कार को अंतिम मतदाता सूची में जोड़ा जाता है.
सुप्रीम कोर्ट सोमवार को राजनीतिक दलों की उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें मतदाताओं को दावे और आपत्तियां दाखिल करने की समयसीमा बढ़ाने की मांग की गई थी.
इस बीच, कोर्ट ने बिहार स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी से निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है ताकि पैरालिगल स्वयंसेवक तैनात या अधिसूचित किए जाएं, जो मतदाताओं और राजनीतिक दलों को ऑनलाइन दावे, आपत्तियां या सुधार जमा कराने में मदद कर सकें.
आयोग ने कोर्ट को नोट में बताया कि राज्य की प्रारूपिक मतदाता सूची में कुल 7.24 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 99.5% मतदाताओं ने पहले ही अपनी पात्रता के दस्तावेज जमा कर दिए हैं.
आयोग ने यह भी बताया कि प्रारूपिक सूची से हटाए गए 65 लाख नामों में से केवल 33,351 दावों को मतदाता सूची में शामिल करने के लिए दाखिल किया गया. आयोग ने कहा कि 22 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केवल 22,723 दावे ऑनलाइन माध्यम से और आयोग द्वारा सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों या आधार कार्ड के साथ दाखिल किए गए.
चुनाव आयोग ने कहा कि इसके विपरीत, मतदाता सूची से मतदाताओं को हटाने के लिए 1,34,738 आपत्तियां दाखिल की गई हैं.
‘गलत और भ्रामक’
चुनाव आयोग ने अपने नोट में बताया कि जहां तक राष्ट्रीय जनता दल द्वारा दाखिल हस्तक्षेप याचिका का सवाल है, पार्टी का यह दावा कि उसने अपने बूथ स्तर एजेंटों के माध्यम से 36 दावे दाखिल किए हैं, “गलत और भ्रामक” है.
नोट में कहा गया, “रिकॉर्ड के अनुसार सही स्थिति यह है कि केवल 10 दावे ही आरजेडी द्वारा अपने वैध रूप से नियुक्त बीएलए के माध्यम से दाखिल किए गए हैं. हालांकि, जैसा कि हस्तक्षेप याचिका में स्वीकार किया गया है, सभी 36 दावों को बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा स्वीकार किया गया है और प्रक्रिया में हैं.”
इसमें यह भी कहा गया कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का दावा कि उसने 351 दावे और आपत्तियां दाखिल कीं और चुनाव आयोग की वेबसाइट पर केवल 79 दावे दिखाई दे रहे हैं, वह भी “गलत और भ्रामक” है. आयोग ने बताया कि 31 अगस्त 2025 तक सीपीआई-एमएल ने 15 दावे सम्मिलन के लिए और 103 आपत्तियां बहिष्करण के लिए दाखिल की हैं.
सुनवाई के दौरान, चुनाव आयोह के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इसे “अत्यंत अजीब” बताया कि राजनीतिक दल प्रारूपिक सूची से मतदाताओं को हटाने के लिए दावों की तुलना में अधिक आपत्तियां दाखिल कर रहे हैं.
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