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Thursday, 19 December, 2024
होमदेश'हर दिन त्यौहार जैसा'- DDA कालकाजी हाई-राइज बिल्डिंग में पुनर्वासित झुग्गी परिवारों की एक नई शुरुआत

‘हर दिन त्यौहार जैसा’- DDA कालकाजी हाई-राइज बिल्डिंग में पुनर्वासित झुग्गी परिवारों की एक नई शुरुआत

1862 लाभार्थियों में से लगभग 1,100 पहले ही भूमिहीन कैंप की झुग्गियों को छोड़ यहां रहने के लिए आ चुके हैं. पीने के पानी जैसी शुरुआती समस्याओं से निपटने का जिम्मा डीडीए के 12 अधिकारियों को सौंपा गया है.

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नई दिल्ली: मार्च की तपती दोपहर है. 40 साल की सुशीला देवी अपनी सोसायटी के कॉम्पलेक्स में दोस्तों के साथ बैठ, इत्मीनान से गप्पे लड़ा रही हैं. उन्हें अपने बेटे के स्कूल से लौटने का इंतज़ार है. हल्के नारंगी रंग की जॉर्जेट की साड़ी पहने हुए सुशीला के चेहरे पर मौजूद खुशी को देखकर सहज रूप से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने नए घर से कितनी खुश है. उसका ये नया घर दिल्ली के कालकाजी की एक गगनचुंबी इमारत में है. वह अभी एक महीने पहले ही पास की स्लम कॉलोनी भूमिहीन कैंप से यहां के एक बीएचके फ्लैट में शिफ्ट हुई है.

सुशीला कुल 1,862 लाभार्थियों में से एक हैं, जिन्हें केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) के तहत दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की हाईराइज इमारतों में शिफ्ट कर दिया गया है. एक महीने पहले भूमिहीन कैंप में उसके घर को सील कर दिया गया था और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) परिवारों के लिए बने 25 वर्ग मीटर के कार्पेट एरिया वाले उनके नए फ्लैट में भेज दिया गया.

सुशीला ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन दिनों, मानों समय उड़ सा रहा है. हर दिन एक त्योहार जैसा लगता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे यहां आकर फिर से अपना जीवन शुरू करने पर फक्र है. घर में कदम रखने से पहले हमने पूजा की थी और उसमें अपने रिश्तेदारों को भी बुलाया था. मैं भूमिहीन कैंप में कभी ऐसा नहीं कर पाई थी. मैं अब बेहद खुश और संतुष्ट हूं.’

कालकाजी एक्सटेंशन में हाई-राइज कॉलोनी डीडीए द्वारा शुरू की गई तीन परियोजनाओं में से एक है. ऐसी दो अन्य परियोजनाएं जेलोरवाला बाग और कठपुतली कॉलोनी में हैं. यह सबसे पहले पूरा होने वाला प्रोजेक्ट है और अधिकारी बाकी की दो आगामी परियोजनाओं को मॉडल करने के लिए एक तरह से इसे केस स्टडी के रूप में देख रहे हैं.

1,862 आवंटियों में से ज्यादातर परिवार अपने नए घरों में चले आए हैं. अधिकांश फ्लैटों की बालकनियों में सूख रहे कपड़ों को देखकर इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है. उनके लिए ये एक नए जीवन की तरह है. वे कहते हैं कि यह बदलाव उनकी बेहतरी के लिए है.

सुशीला के लिए यह नया घर और कॉमप्लेक्स काफी मायने रखता है, क्योंकि अब उस झुग्गी बस्ती में होने वाले रोजाना के झगड़ों से छुटकारा मिल गया है. वह अपने परिवार के पांच सदस्यों के साथ यहां रहते हुए काफी खुश है. उन्होंने कहा, ‘यहां का माहौल काफी साफ-सुथरा है. टॉयलेट होने से काफी मुश्किलें कम हो गई हैं. भूमिहीन कैंप में तो हमें सार्वजनिक आम शौचालयों का इस्तेमाल करने के लिए बाहर जाना पड़ता था. रात में काफी दिक्कतें आती थीं. उस समय वो जगह बहुत सुरक्षित नहीं होती है.’

परियोजना के उद्घाटन के बाद से भवन में तैनात डीडीए के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि भूमिहीन कैंप से लोगों को पज़ेशन लैटर सौंपने और स्थानांतरित करने की प्रक्रिया जारी है. अधिकारी ने कहा, ‘इस योजना के लिए पहचाने गए कुल 1,862 लाभार्थियों में से लगभग 1,100 लोग पहले ही यहां शिफ्ट हो चुके हैं.’

वह लगभग 12 अधिकारियों में से एक हैं जिन्होंने कालकाजी परिसर को अपना ऑफिस बना लिया है. उनके काम में अब सोसायटी के मसलों को हल करना और नए मकान मालिकों की शिकायतें सुनना शामिल है. डीडीए के इन अधिकारियों के अनुसार, लगभग 400-500 लोगों ने उन झुग्गियों में अपने घरों को पूरी तरह से खाली कर दिया है. उन्हें अब सील कर दिया गया है.

डीडीए हाउसिंग कमिश्नर वी.एस. यादव के मुताबिक, पांच साल में अगली बड़ी चुनौती लाभार्थियों को अपने इलाके के रखरखाव के लिए लगभग 500 रुपये मासिक रखरखाव शुल्क का भुगतान करने के लिए कहना है. इसके जरिए सोसायटी की सफाई, कचरा संग्रह और लिफ्टों का रखरखाव आदि किया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘दरअसल वे इस तरह के जीवन के आदि ‘नहीं हैं’. यह थोड़ा मुश्किल होगा.’

यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह देखना होगा कि आने वाले समय में इन ईडब्ल्यूएस फ्लैटों का कैसे रखरखाव किया जाता है, क्योंकि अगले पांच सालों के लिए मेंटेनेंस चार्ज (30,000 रुपये) पहले ही घरों के भुगतान के साथ ले लिया गया है.’ लाभार्थियों को हर फ्लैट के लिए 1.24 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ा है. बाकी की लागत डीडीए ने वहन की है.

उन्होंने कहा, ‘हम नहीं जानते कि हर कोई रखरखाव का भुगतान करने के लिए तैयार होगा भी या नहीं. कुछ शिकायत कर सकते हैं. इसलिए, यह मॉडल ऐसी परियोजनाओं की सफलता को समझने के लिए एक प्रयोग के रूप में भी काम करेगा.’

यादव ने यहां रहने वाले लोगों में विश्वास जताते हुए कहा कि शुरुआती अनिच्छा के बावजूद वे इसके लिए तैयार हो सकते हैं, जब वे देखेंगे कि यह बदलाव उन्हें और अगली पीढ़ी को किस तरह से फायदा पहुंचा रहा है.


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अच्छा भी और बुरा भी..

सुशीला की सहेली बिमलेश भी एक महीने पहले कालकाजी एक्सटेंशन डीडीए फ्लैट में शिफ्ट हुई थीं. उन्होंने दिप्रिंट से बात की और बताया कि परिसर के भीतर सभी के साथ रंगों से खेलने, नाचने, गाने और होली मनाने में कितना मजा आया था.

बिमलेश ने कहा, ‘होली के दौरान, शरीफ (इज्जतदार) परिवारों के लोग कभी बाहर नहीं निकलते थे क्योंकि आम तौर पर मलिन बस्तियों में पुरुष हंगामा करते हैं. लेकिन इस बार ऐसा नहीं था. साथ ही खुले नाले से आने वाली बदबू की समस्या भी दूर हो गई है. इससे हमारा जीवन बेहतर हो गया है.’

The flats | Photo: Sukriti Vats | ThePrint
फ्लैट्स | फोटो: सुकृति वत्स | दिप्रिंट

एक सरसरी नजर डालने पर ये इमारत और सोसायटी काफी साफ-सुथरी नजर आ रहा थी. यहां रहने वाले लोगों के मुताबिक एमसीडी की एक वैन रोजाना कूड़ा उठाने आती है. सोसायटी में बिजली की सुविधा है और रात में सुरक्षा के लिहाज से हर समय स्ट्रीट लाइट्स जलती रहती हैं.

हालांकि, दिप्रिंट से बात करने वाले कई लोगों ने पीने के पानी की कमी के बारे में शिकायत की. यहां तक कि पानी की बोतलें बेचने वाले एक शख्स ने सोसायटी में अपनी एक दुकान भी खोल ली है.

राजकुमार लोहिया एक दिहाड़ी मजदूर हैं और घरों को पेंट करने का काम करते हैं. वह यहां आकर काफी खुश हैं, लेकिन मानते हैं कि पानी की सप्लाई अभी भी एक समस्या बनी हुई है. उन्होंने बताया कि यहां का पानी नहाने, बर्तन और कपड़े धोने के लिए तो ठीक है, लेकिन पीने के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं है.

राजकुमार ने कहा, ‘हम में से ज्यादातर लोग पैकेज्ड पानी की बोतलें खरीदने के लिए हर महीने कम से कम 900 रुपये खर्च कर रहे हैं. हालांकि खारा पानी काफी है, जितना चाहें उतना इस्तेमाल कर सकते हैं. हम उम्मीद कर रहे हैं कि एक बार सभी के शिफ्ट हो जाने के बाद साफ पीने के पानी की सप्लाई भी होने लगेगी.’

पहले उद्धृत डीडीए अधिकारी बताया कि साइट पर अपशिष्ट जल के उपचार के लिए पहले से ही एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) मौजूद है. उन्होंने आश्वासन देते हुए कहा कि सप्लाई किया गया पानी पीने योग्य है. ‘गंदा या बीमार करने वाला’ नहीं है. निवासी अगर बाहर से पानी खरीद रहे हैं तो वो ऐसा करने के स्वतंत्र है. हां अगर वे चाहें तो अपने खर्च पर एक फिल्ट्रेशन सिस्टम (आरओ की तरह) भी लगा सकते हैं.

जो पीछे छूट गए

जब भूमिहीन कैंप में पहली बार 2021 में सर्वेक्षण किया गया था, तो लगभग 2,891 परिवारों को पुनर्वास के लिए चिन्हित किया गया था, जिससे काफी लोगों की उम्मीदें जगी थीं. हालांकि, इसके तुरंत बाद लगभग 1,029 परिवारों को पुनर्वास के लिए अपात्र पाए जाने के बाद लाभार्थियों की संख्या कम हो गई क्योंकि उनके पास दस्तावेजों की कमी थी.

ऐसे कई मामले सामने आए जहां माता-पिता और उनके विवाहित बच्चे भूमिहीन कैंप के भीतर अलग-अलग घरों में रहते हैं. अलग-अलग मंजिलों पर या घरों को एक साथ जोड़कर एक ही मंजिल पर रहते हैं. लेकिन उनके पहचान पत्रों पर एक ही पता था. कुछ परिवारों के पास सभी सदस्यों के लिए एक ही राशन कार्ड भी था. ऐसे मामलों में, उन्हें अलग घरों के योग्य नहीं माना गया.

बिमलेश और उनका परिवार ऐसा ही एक मामला है. उनके बेटे, उनकी पत्नी और तीन बच्चों को सर्वे के दौरान एक अलग घर के रूप में गिना गया था. लेकिन बाद में उनसे कहा गया कि अगर उन्हें अलग-अलग फ्लैट चाहिए तो इसके लिए उन्हें अलग पता देना होगा. बिमलेश के पति की मौत उनके फ्लैट आवंटित होने के कुछ समय बाद ही हो गई थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें तो एक फ्लैट मिल गया है लेकिन उनके बेटे के परिवार को घर नहीं मिल पाया है.

एक अलग पते को साबित करने के लिए उनके दस्तावेजों को पर्याप्त नहीं समझा गया. उन्होंने कहा, यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि छह लोगों के परिवार को अब एक बीएचके में गुजारा करना पड़ रहा है.

इसी तरह की समस्या का सामना बिट्टू सिंह और गौरी देवी भी कर रहे हैं. दो विवाहित बेटों के साथ उनका सात लोगों का परिवार हैं. एक बेटा और बहू उनके साथ भूमिहीन कैंप में रहते थे, जबकि उनका दूसरा बेटा, उसका एक बच्चा और गर्भवती पत्नी साथ के जुड़े घर में रहता था. हालांकि उनके घर का एक अलग ‘सीरियल नंबर’ था लेकिन राशन कार्ड बेटों की शादी से पहले बने था, जिस वजह से पूरे परिवार का एक ही कार्ड था.

बिट्टू ने कहा, ‘मैं मानता हूं कि सरकार की मंशा अच्छी है, लेकिन हम सभी से एक बीएचके फ्लैट में रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. कालकाजी को भूल जाइए, मेरे दोनों बेटे पूरी दिल्ली में, यहां तक कि उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में भी सस्ते फ्लैट नहीं खरीद सकते. कोई भी जगह 12 लाख रुपये से कम नहीं होगी. हम एक बेटे को पाल सकते हैं लेकिन दूसरे को कहीं और किराए पर रहना होगा. अगर हमें टू-बीएचके स्पेस दिया जाता, तो भी ठीक रहता. हम कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा हो जाए.’

डीडीए का आधिकारिक रुख यह है कि जिन लोगों को पुनर्वास के लिए अपात्र घोषित किया गया है, वे जिला और सत्र न्यायाधीश के अधीन प्राधिकरण द्वारा गठित अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील दायर कर सकते हैं. पात्र पाए जाने पर ही उन्हें घर आवंटित करने पर विचार किया जाएगा. इसकी जानकारी दावेदारों को दी जा चुकी है.

डीडीए के अधिकारियों के मुताबिक, उनके सामने ऐसे मामले आए हैं, जहां कपल्स दो फ्लैट क्लेम करने के लिए तलाक ले रहे थे, या फिर सर्वे के दौरान इस तरह के जवाब दिए गए, ताकि उन्हें जरूरत से ज्यादा फ्लैट मिल जाएं.

आयुक्त यादव ने कहा, ‘जिस भूमि पर ये झुग्गी निवासी रह रहे थे, उसे पुनः प्राप्त करना होगा ताकि ऐसी और पुनर्वास परियोजनाएं आ सकें और डीडीए की भूमि पर मौजूद 376 झुग्गी समूहों के अधिक से अधिक निवासियों का पुनर्वास हो सके. अगर वे अपात्र पाए गए हैं, तो उन्हें रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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