बहराइच/लखनऊ: उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में ग्रामीणों पर भेड़ियों के लगातार हमले जारी हैं, जबकि राज्य सरकार का ‘ऑपरेशन भेड़िया’ एक महीने से चल रहा है. अब तक महसी तहसील में जंगली भेड़ियों के हमले में 10 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें नौ बच्चे हैं और करीब तीन दर्जन लोग घायल हुए हैं.
इसके अलावा, आदमखोर भेड़ियों की सही संख्या जैसे कुछ अहम सवालों के जवाब अभी भी नहीं मिल पाए हैं. वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, विभाग और बहराइच प्रशासन की मौके पर की गई जांच में चूक की वजह से ऐसा हुआ है.
वन विभाग ने अधिकारियों द्वारा पकड़े गए भेड़ियों के मल का डीएनए परीक्षण नहीं कराया, क्योंकि एक की पकड़े जाने के तुरंत बाद ही मौत हो गई और तीन अन्य फिलहाल लखनऊ और गोरखपुर चिड़ियाघर में हैं. परीक्षण से यह पता लगाने में मदद मिल सकती थी कि उनमें से किसने मानव मांस खाया था. जानवरों को उल्टी भी नहीं कराई गई.
वाई.वी. वरिष्ठ वन्यजीव वैज्ञानिक और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के पूर्व डीन झाला ने दिप्रिंट को बताया कि जानवर ने क्या खाया है, यह जांचने के ये दो तरीके हैं.
वरिष्ठ वन विभाग के अधिकारियों ने पुष्टि की कि जानवरों को बिना किसी परीक्षण के ही दोनों चिड़ियाघरों में भेज दिया गया. अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक रेणु सिंह ने कहा कि अब तक पकड़े गए चार भेड़ियों में से किसी पर भी परीक्षण नहीं किया गया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “परीक्षण नहीं किए गए. हम भविष्य में पकड़े जाने पर शेष भेड़ियों पर परीक्षण करेंगे.”
दुधवा टाइगर रिजर्व के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) संजय पाठक, जो ऑपरेशन भेड़िया की देखरेख के लिए बहराइच भेजे गए दस वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों में से एक हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि इस तरह के परीक्षण जानवर द्वारा मानव मांस खाने के 48 घंटों के भीतर किए जाने की ज़रूरत होती है.
उन्होंने कहा, “समस्या यह है कि वो सभी अब चिड़ियाघर जा चुके हैं, इसलिए परीक्षण का समय समाप्त हो गया है. जानवर के पकड़े जाने के तुरंत बाद डीएनए परीक्षण के लिए नमूना एकत्र किया जाना चाहिए. अगर जानवर को मानव मांस खाने के संभावित 48 घंटों के बाद पकड़ा जाता है, तो परीक्षण से कुछ भी पता नहीं चलेगा. मानव मांस खाने के 48 घंटों के भीतर स्कैट (पशु मल) का नमूना लिया जा सकता है.”
बहराइच भेजे गए वरिष्ठ अधिकारियों को लगता है कि शुरुआती चरणों में ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाले वन विभाग के अधिकारियों की ओर से कई चूक हुईं. उन्होंने कहा, “वैज्ञानिक दृष्टिकोण का इस्तेमाल नहीं किया गया. भेड़ियों को पकड़ने के बाद अधिकारियों को सबसे पहले उन्हें उल्टी करवानी चाहिए थी या उनके मल का नमूना लेना चाहिए था. ऐसा कुछ भी नहीं किया गया.”
एक अन्य वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इसके अलावा, जानवरों के हमलों की कई घटनाओं को बिना किसी सबूत के भेड़ियों के कारण बताया गया है.
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अन्य जानवरों के हमलों के लिए भी भेड़िये दोषी?
शुक्रवार को बहराइच जिले के यादवपुर गांव के लोधनपुरवा टोले में 60-वर्षीय एक व्यक्ति और उनके चार वर्षीय पोते पर एक जानवर ने हमला कर दिया, जबकि व्यक्ति और अन्य ग्रामीणों ने सोचा कि जानवर भेड़िया है और उसे पीट-पीटकर मार डाला और वन विभाग के अधिकारियों ने बाद में निष्कर्ष निकाला कि वो एक जंगली कुत्ता था जिसने बुजुर्ग व्यक्ति और बच्चे के पैरों पर काटा था.
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “पिछले हमले में हमने तुरंत स्वैब लिया और निष्कर्ष निकाला कि हमलावर भेड़िया नहीं बल्कि एक जंगली कुत्ता था. कई ग्रामीणों ने बताया कि हमलावर भेड़िया था और उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों से इसे भेड़िया ही बताने का आग्रह किा, लेकिन यह एक जंगली कुत्ता निकला.”
इस घटना ने बहराइच के वरिष्ठ वन अधिकारियों को हैरान कर दिया है.
ऑपरेशन भेड़िया की निगरानी कर रहे एक अन्य वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “भारतीय भेड़िया सबसे आदिम प्रजाति है. अगर इस तरह के हमले बढ़ते रहे, तो लोग भेड़ियों को मार देंगे. हमारे देश में केवल 3,000 भेड़िये बचे हैं और यह जानवर पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे महत्वपूर्ण शिकारी है. पारिस्थितिकी तंत्र के पनपने के लिए इसकी उपस्थिति ज़रूरी है.”
उन्होंने कहा, “एक उदाहरण यह है कि कैसे भेड़ियों को लाने से अमेरिका में येलोस्टोन नेशनल पार्क के पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाने में मदद मिली. पूरे ऑपरेशन को शुरू से ही गलत तरीके से संभाला गया है और कुछ लोग निहित स्वार्थों के कारण अन्य जानवरों के हमलों को भेड़ियों के हमले के रूप में पेश करने का काम कर रहे हैं.”
भेड़ियों द्वारा ‘बदला’ हमला?
इस साल मार्च में भेड़ियों के एक जोड़े — एक मादा और एक नर — को वन विभाग के अधिकारियों ने पकड़ा और चकिया वन रेंज में छोड़ दिया, जब अलग-अलग गांवों में दो अलग-अलग घटनाओं में भेड़ियों द्वारा दो बच्चों को मार दिया गया था.
कतरनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी ज्ञान प्रकाश सिंह, जो वर्तमान में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के कानूनी सलाहकार, ने दिप्रिंट को बताया कि दो भेड़ियों ने अपने बच्चों की मौत के बाद इंसानी बच्चों पर हमला करना शुरू किया, जिन्हें कथित तौर पर ट्रैक्टर द्वारा कुचल दिया गया. उन्होंने कहा, “यह संभव है कि वही भेड़िये वापस आ गए हों.”
डब्ल्यूटीआई के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, हालांकि, जुलाई में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी और इसके तुरंत बाद बच्चों पर भेड़ियों के हमलों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया.
फील्ड समाजशास्त्री श्रुति चौहान ने कहा कि डब्ल्यूटीआई को जुलाई में सूचना मिली थी कि महासी में एक ट्रैक्टर द्वारा तीन-चार छोटे बच्चों, संभवतः भेड़ियों या कुत्तों के बच्चों को मार दिया गया था.
उन्होंने कहा, “जब हमारी टीम मौके पर पहुंची, तो हमने ग्रामीणों से बात की, जिन्होंने पुष्टि की कि कुछ बच्चे जो भेड़ियों या सियार या कुत्ते जैसे जीव की संतान की तरह दिखते थे, मारे गए थे. वो प्रजाति के बारे में निश्चित नहीं थे, लेकिन चूंकि इस क्षेत्र में भेड़ियों की मांद है और यह जानवरों का प्राकृतिक आवास है, इसलिए संभावना है कि बच्चे किसी भेड़िया जोड़े के थे.”
चौहान ने कहा, घटना की सूचना मिलने के तुरंत बाद, महसी के गांवों में मानव बच्चों पर भेड़ियों के हमलों की बाढ़ आ गई.
“जब मानव बच्चों पर हमले शुरू हुए, तो बच्चों की मौत की खबर दब गई. भेड़ियों में बहुत मजबूत पारिवारिक भावना होती है, इंसानों से भी ज्यादा मजबूत. वो अपने पुराने सदस्यों को पीछे नहीं छोड़ते. वो इसी तरह काम करते हैं. हम अनुमान लगा रहे हैं कि मनुष्यों पर हमले बच्चों के वध के कारण हो सकते हैं, लेकिन हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते क्योंकि जानवर के बच्चों के मारे जाने का रिकॉर्ड नहीं है.”
हालांकि, चौहान के अनुसार, बदला लेने के लिए हमला करना भेड़ियों का असामान्य व्यवहार है. “भेड़ियों के लिए बदला लेने की भावना सामान्य नहीं है. यह भी संभव है कि उनके प्राकृतिक आवास में गड़बड़ी और शिकार जानवरों की कमी के कारण भेड़िये भोजन की कमी के कारण बच्चों पर हमला कर रहे हों.”
WII के भेड़ियों के विशेषज्ञ शहीर खान, जो हमलों का अध्ययन करने के लिए बहराइच में हैं, ने बताया कि वैज्ञानिक रूप से यह साबित करना असंभव है कि भेड़ियों में अपने बच्चों पर हमलों का बदला लेने की प्रवृत्ति होती है. उन्होंने कहा, “ऐसी रिपोर्टें मिली हैं कि लोगों ने उस समय भेड़ियों की मांद को नुकसान पहुंचाया था और उस पर कुछ पत्थर रखे थे, लेकिन वैज्ञानिक रूप से यह कभी साबित नहीं किया जा सकता है कि भेड़ियों में अपने बच्चों पर हमलों का बदला लेने की प्रवृत्ति होती है.”
खान ने समझाया, “भेड़ियों द्वारा बच्चों पर हमला करने का कारण यह प्रतीत होता है कि बहुत से बच्चे सुबह-सुबह खुले में शौच करते हैं. छह भेड़ियों के झुंड में से एक या दो ने शायद मानव बच्चे को खरगोश या हिरण की प्रजाति समझ लिया हो. जब कोई जानवर किसी इंसान को सफलतापूर्वक मार देता है, तो उसे अंततः लगता है कि इंसान को मारना बहुत आसान है. जब ऐसे बच्चे खुले में शौच करते हैं, तो भेड़िये आसानी से उन पर हमला कर सकते हैं. उन्हें धीरे-धीरे एहसास होता है कि बच्चों पर हमला करना सबसे आसान है.”
चबाई हुई हड्डी को इंसान की हड्डी बता दिया गया?
इस बीच, पकड़े गए और मारे गए भेड़ियों में से एक के पोस्टमार्टम में मिली चबाई हुई हड्डी को कुछ वन विभाग के अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन के लोगों ने इंसान की हड्डी मान लिया.
बहराइच के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संजय शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “तीन अगस्त को पकड़ा गया भेड़िया आदमखोर था, जैसा कि वन विभाग ने निष्कर्ष निकाला था. भेड़िये की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शव के अंदर एक हड्डी दिखाई दी थी, जिसके बारे में निष्कर्ष निकाला गया कि वह इंसान की हड्डी है.”
हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा कि हड्डी की खोज यह साबित करने के लिए अपर्याप्त थी कि हड्डी वास्तव में इंसान की थी और यह किसी अन्य जानवर की भी हो सकती है.
खान ने कहा, “मुझे पता चला कि मृतक भेड़िये की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके शरीर में चबाई हुई हड्डी की मौजूदगी का पता चला था. यह किसी जानवर की हड्डी भी हो सकती है. डीएनए टेस्ट होने तक यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि यह इंसान की हड्डी थी.”
झाला ने भी इस बात पर जोर दिया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह हड्डी किसी इंसान की है, न कि किसी दूसरे जानवर की. “केवल डीएनए टेस्ट ही यह साबित कर सकता है. पहली चूक पकड़े गए जानवरों के मल की जांच या उनकी उल्टी की जांच न करवाना था. इससे आदमखोर जानवरों की पहचान करने में मदद मिल सकती थी.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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