कोटाः राजस्थान के कोटा शहर के लिए दिसंबर का महीना अशुभ साबित हुआ है. बीते एक माह में यहां कोचिंग कर रहे चार छात्रों ने आत्महत्या कर ली. कोटा शहर गत कई वर्षों से कोचिंग कर रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने से देशभर में चर्चा का विषय रहा है, लेकिन एक माह में ही चार छात्रों द्वारा जान देने की घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर यह आत्महत्या का अन्तहीन सिलसिला कहां जाकर रुकेगा.
पुलिस के अनुसार, कोटा में कोचिंग कर रहे विद्यार्थियों की आत्महत्या की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है. 2018 में 19 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं.
कोटा में पुलिस, प्रशासन, कोचिंग संस्थानों ने छात्र-छात्राओं में पढ़ाई का तनाव कम करने के बहुत से प्रयास किए, लेकिन घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं. इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में नामांकन कराने के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं की तैयार करने के लिए देशभर से हर साल करीब दो लाख छात्र कोटा आते हैं और यहां के विभिन्न निजी कोचिंग सेंटरों में दाखिला लेकर तैयारी में लगे रहते हैं.
लेकिन चिंता की बात यह है कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के दबाव में आकर पिछले कुछ वर्षों में काफी छात्रों ने आत्महत्या की है, जिसके लिए अत्यधिक मानसिक तनाव को कारण माना जा रहा है.
कोटा में कोचिंग ही सब कुछ, बना कोचिंग की मंडी
कोटा शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता के बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग ही सब कुछ है. ये हकीकत है कि कोटा में सफलता का स्ट्राइक 30 फीसदी से ऊपर रहता है और देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप टेन में से कम से पांच छात्र कोटा के ही रहते हैं, लेकिन कोटा का एक और सच भी है, जो बेहद भयावह है. एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है, जो असफल हो जाते हैं और उनमें से कुछ ऐसे होते हैं, जो अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते.
कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है. यहां शिक्षा के बजाय सपने बेचने का कारोबार हो रहा है, जो मौत में तब्दील हो रहा है. कोटा एक तरफ जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है, वहीं इन दिनों छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है.
कोटा पुलिस के अनुसार 2018 में 19 छात्र, 2017 में सात छात्र, 2016 में 18 और 2015 में 31 छात्रों ने मौत को गले लगाया। 2014 में कोटा में 45 छात्रों ने आत्महत्या की थी, जो 2013 की अपेक्षा लगभग 61.3 प्रतिशत ज्यादा थी.
राजस्थान का कोटा शहर आज की तारीख में देश का कोचिंग सुपर मार्केट है. एक अनुमान के हिसाब से कोटा कोचिंग सुपर मार्केट का सालाना टर्नओवर 1,800 करोड़ रुपये है. कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को अनुमानत: सालाना 100 करोड़ रुपये से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है. देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे-मोटे 200 कोचिंग संस्थान यहां चल रहे हैं, जो प्रवेश परीक्षा का प्रशिक्षण दे रहे हैं. आज की तारीख में यहां लगभग डेढ़ से दो लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं.
छात्रा ने सुसाइड नोट में कोचिंग संस्थान बंद करने की मांग की
शिक्षा नगरी के रूप में प्रसिद्ध कोटा में कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ आत्महत्याओं के ग्राफ में भी वृद्धि हो रही है. दो वर्ष पूर्व आत्महत्या करने वाली कोचिंग छात्रा कीर्ति त्रिपाठी के सुसाइड नोट में कुछ और बातें सामने आई थीं. अपने सुसाइड नोट में कीर्ति ने लिखा था कि भारत सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को जल्द से जल्द इन कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यहां बच्चों को तनाव मिल रहा है. उसने लिखा था कि मैंने कई लोगों को तनाव से बाहर आने में मदद की, लेकिन कितना हास्यास्पद है कि मैं खुद को इससे नहीं बचा पाई.
कोचिंग का टाइम निश्चित नहीं, बिगड़ती है दिनचर्या
कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कह रहे हों, लेकिन कोटा के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें ऐसा संभव नहीं. कोचिंग में प्रतिदिन डेढ़-डेढ़ घंटे की तीन क्लास लगती हैं. पांच घंटे कोचिंग में ही चले जाते हैं. कभी-कभी तो सुबह 5 बजे कोचिंग पहुंचना होता है तो कभी कोचिंग वाले अपनी सुविधानुसार दोपहर या शाम को क्लास के लिए बुलाते हैं. एक तय समय नहीं होता, जिस कारण एक छात्र के लिए अपनी दिनचर्या के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है.
वह अपने लिए पढ़ाई और मनोरंजन की गतिविधियों के लिए एक निश्चित समय निर्धारित ही नहीं कर पाता, जिससे उस पर तनाव हावी होता है. ऊपर से 500-600 बच्चों का एक बैच होता है, जिसमें शिक्षक और छात्र का तो इंटरैक्शन हो ही नहीं पाता. अगर एक छात्र को कुछ समझ न भी आए तो वह इतनी भीड़ में पूछने में भी संकोच करता है. विषय को लेकर उसकी जिज्ञासाएं शांत नहीं हो पातीं और धीरे-धीरे उस पर दबाव बढ़ता जाता है. ऐसे ही अधिकांश छात्र आत्महत्या करते हैं.
पूर्व में कलेक्टर ने अभिभावकों को पत्र लिखकर की थी अपील
पूर्व में कोटा में कार्य कर चुके एक जिला कलेक्टर ने शहर के कोचिंग संस्थानों को एक पत्र भेजा था, जिसे हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनूदित कर छात्रों के माता-पिता को भेजा गया था. युवा छात्रों की खुदकुशी की घटनाओं का हवाला देते हुए उस पत्र में कलेक्टर ने लिखा कि उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए डराने-धमकाने के बजाय आपके सांत्वना के बोल और नतीजों को भूलकर बेहतर करने के लिए प्रेरित करना, उनकी कीमती जानें बचा सकता है.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक मोबाइल पोर्टल और ऐप लाने का इरादा जताया है, ताकि इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए कोचिंग की मजबूरी खत्म की जा सके. चूंकि इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, आयु, अवसर और परीक्षा का ढांचा कुछ ऐसा है कि विद्यार्थियों के सामने कम अवधि में कामयाब होने की कोशिश एक बाध्यता होती है, इसलिए वे सीधे-सीधे कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं. अगर मोबाइल पोर्टल और ऐप की सुविधा उपलब्ध होती है, तो इससे इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी के लिए विद्यार्थियों के सामने कोचिंग के मुकाबले बेहतर विकल्प खुलेंगे.
कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं. आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढ़ने वाले छात्र बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोड़कर यहां कोचिंग संस्थाओं में पढ़ाने आ रहे हैं, क्योंकि यहां तनख्वाह कहीं ज्यादा है. अकेले कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी स्टूडेंट छात्रों को पढ़ा रहे हैं. कोटा के एलन कोचिंग का नाम तो लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में है. इसमें अकेले एक लाख छात्र पढ़ते हैं. इतने छात्र तो किसी यूनिवर्सिटी में भी नहीं पढ़ते.
कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था कोचिंग पर टिकी
कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था कोचिंग पर ही टिकी है. इस शहर की एक तिहाई आबादी कोचिंग से जुड़ी हैं. ऐसे में कोचिंग सिटी के सुसाइड सिटी में बदलने से यहां के लोगों में घबराहट है कि कहीं छात्र कोटा से मुंह न मोड़ लें. इसे देखते हुए प्रशासन, कोचिंग संस्थाएं और आम शहरी इस कोशिश में लग गए हैं कि आखिर छात्रों की आत्महत्याओं को कैसे रोका जाए. अगर शीघ्र ही कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं पर रोक नहीं लग पाई तो यहां का एक बार फिर वही हाल होगा, जो कुछ साल पहले यहां के कल-कारखानों में तालाबन्दी होने के चलते व्याप्त हुए आर्थिक संकट के कारण हुआ था.