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Friday, 22 November, 2024
होमदेशअर्थजगतविश्व बैंक के बाद UNDP ने कहा- भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से उबारे गए, पर यह Covid से पहले की बात

विश्व बैंक के बाद UNDP ने कहा- भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से उबारे गए, पर यह Covid से पहले की बात

ग्लोबल मल्टी डाइमेंशनल पावर्टी इंडेक्स 2022 में 111 विकासशील देशों को शामिल किया गया है. यह दर्शाता है कि इस मामले में भारत की प्रगति दुनिया भर के देशों से आगे निकल गई है और इसने दक्षिण एशिया की समग्र गरीबी में गिरावट में भी योगदान दिया है.

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नई दिल्ली: एक और अंतरराष्ट्रीय संगठन ने कहा है कि कोविड की महामारी तक भारत में गरीबी लगातार कम हो रही थी. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम – यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि हमारे देश में 41.5 करोड़ लोगों को 2005-06 और 2019-20 के बीच गरीबी से बाहर निकाला गया था, जिनमें से 14 करोड़ लोग 2015-16 के बाद से इससे बाहर आये थे.

यह इस महीने की शुरुआत में जारी विश्व बैंक की उस रिपोर्ट के ठीक बाद आया है जिसमें कहा गया था कि भारत में गरीबी साल 2019-20 तक घटकर 10 प्रतिशत रह गई थी.

हालांकि, ये संगठन आंकड़ों की कमी के कारण भारत में गरीबी पर महामारी के प्रभाव का सटीक अनुमान लगाने में असमर्थ रहे हैं, जिसने उन नीति निर्माताओं के बीच किसी भी संभावित उत्साह को कम कर दिया है, जो अभी भी मंदी के बाद अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

वैश्विक मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक (ग्लोबल मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स-एमपीआई) 2022 रिपोर्ट को यूएनडीपी के ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट ऑफिस और ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) द्वारा संयुक्त रूप से पेश किया गया है और इसमें 111 विकासशील देशों को शामिल किया गया है. यह दर्शाता है कि इस मामले में भारत की प्रगति दुनिया भर के देशों से आगे निकल गई है और इसने दक्षिण एशिया की समग्र गरीबी में गिरावट में भी योगदान दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के वैल्यू में आई कमी हाल की दो समय अवधियों में काफी तेज थी.’ रिपोर्ट आगे कहती है कि ‘इस देश के लिए हाल ही में जारी 2019-2021 के जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आधार पर एमपीआई के अनुमान बताते हैं कि साल 2005-2006 और 2019/2021 के बीच 415 मिलियन (41.5 करोड़) लोग गरीबी की अवस्था से बाहर निकले- जिसमें से 2015-2016 के बाद से बाहर निकले लगभग 140 मिलियन (14 करोड़) लोग शामिल हैं- तथा देश की एमपीआई वैल्यू और गरीबी की घटनाएं आधी से भी ज्यादा कम हो गई थीं.‘


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मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक गरीबी को समग्र रूप से देखता है, न कि आय के स्तरों के एक साधारण परिणाम के रूप में. इस प्रकार एमपीआई तीन आयामों – स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर – में शामिल 10 संकेतकों के आधार पर किसी भी व्यक्ति की ग़रीबी और सुविधाओं के अभाव (डेप्रिवेशन) को मापता है. सभी वर्गों को समान रूप से वेटेज (अधिभार) दिया जाता है. स्वास्थ्य संबधी संकेतक पोषण और बाल मृत्यु दर को देखता है. शिक्षा संबधी संकेतक स्कूली शिक्षा और स्कूल में उपस्थिति के वर्षों को मापने का प्रयास करता है, जबकि जीवन स्तर संबधी संकेतक पीने के पानी, स्वच्छता, रसोई गैस, बिजली, आवास और संपत्ति तक लोगों की पहुंच को मापता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘साल 2019-2021 के आंकड़े बताते हैं कि भारत की लगभग 16.4 प्रतिशत आबादी गरीबी में रहती है, जिसकी औसत सघनता (मल्टीडाइमेंशनल गरीबी में रहने वाले लोगों के बीच औसत डेप्रिवेशन स्कोर) 42.0 प्रतिशत है.’

इसमें आगे कहा गया है: ‘लगभग 4.2 प्रतिशत आबादी घोर गरीबी में रहती है (जिसका अर्थ है कि उनका डेप्रिवेशन स्कोर 50 प्रतिशत या उससे अधिक है). लगभग 18.7 प्रतिशत लोग मोटे तौर पर 2015-2016 के अनुपात के समान ही गरीबी की चपेट में हैं क्योंकि उनका डेप्रिवेशन स्कोर 20 प्रतिशत से 33 प्रतिशत के बीच है.

रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पिछले 15 वर्षों में विभिन्न सरकारों ने कई स्तरों से गरीबी को कम करने में एक समान प्रदर्शन किया है. आंकड़ों से पता चलता है कि 2005-06 और 2015-16 के बीच लगभग 27.5 करोड़ लोग कई स्तरों की गरीबी से बाहर निकल गए थे, जो औसतन 2.75 करोड़ लोग प्रति वर्ष का औसत है. 2015-16 और 2019-20 के बीच, 14 करोड़ लोगों को मल्टीडाइमेंशनल गरीबी से बाहर निकाला गया, जो कि औसतन 2.8 करोड़ लोग प्रति वर्ष का औसत होता है.

बच्चे अब भी सबसे अधिक गरीबी में हैं

पिछले कई वर्षों के दौरान गरीबी में कमी के बावजूद, इस रिपोर्ट ने भारत में गरीबी से संबंधित कुछ चिंताजनक पहलुओं की तरफ भी इशारा किया. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इनमें से (गरीबी की चपेट में आने वाले) दो-तिहाई लोग ऐसे घर में रहते हैं जिसमें कम-से-कम एक व्यक्ति पोषण से वंचित है और यह एक चिंताजनक आंकड़ा है. भारत के मामले में साल 2020 के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर, यहां दुनिया भर में सबसे अधिक गरीब लोग (228.9 मिलियन) हैं, इसके बाद नाइजीरिया (साल 2020 में अनुमानित 96.7 मिलियन) का स्थान है.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चे अभी भी सबसे गरीब आयु वर्ग वाले हैं, और हर पांच में से एक (21.8 प्रतिशत) बच्चा गरीब है, जो कि हर एक सात वयस्कों में से एक (13.9 प्रतिशत) करीब है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका अर्थ 9.7 करोड़ बच्चों का गरीब हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में गरीबी पर कोविड -19 महामारी के प्रभाव का पूरी तरह से आकलन नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस देश के 2019-2021 के जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 71 प्रतिशत आंकड़े महामारी से पहले एकत्र किए गए थे.

हालांकि, इस रिपोर्ट में इस बात पर जरूर ध्यान दिया गया है कि ‘प्रगति के बावजूद, भारत की आबादी कोविड-19 महामारी के बढ़ते प्रभावों और खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के प्रति संवेदनशील बनी हुई है.’ साथ ही, इसका कहना है कि वर्तमान में चल रहे पोषण और ऊर्जा संकटों से निपटने के लिए एकीकृत नीतियां हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.

ग्रामीण-शहरी विभेद

रिपोर्ट के अनुसार, मल्टीडाइमेंशनल गरीबी की घटनाओं में ग्रामीण-शहरी स्तर पर काफी असमानता भी है, जो सरकार के लिए नीतिगत प्राथमिकताओं को ओर इशारा करती है.

रिपोर्ट कहती है, ‘शहरी इलाकों में व्याप्त 5.5 फीसदी गरीबी की तुलना में ग्रामीण इलाकों में गरीब लोगों का प्रतिशत 21.2 फीसदी है. लगभग 90 प्रतिशत गरीब लोग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं: लगभग 229 मिलियन (22.9 करोड़) गरीब लोगों में से 205 मिलियन (20.5 करोड़) ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं – जो उन्हें स्पष्ट रूप से प्राथमिकता देने के लायक बनाती है. केवल 23 देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब लोगों का अनुपात भारत से अधिक है.’

विशेष रूप से, और सरकार की कई प्रमुख योजनाओं जैसे कि पीएम उज्ज्वला योजना (एलपीजी कनेक्शन के लिए), पीएम आवास योजना (किफायती आवास के लिए), पोषण अभियान (समग्र पोषण के लिए) और स्वच्छ भारत मिशन (स्वच्छता) के संकेतक रूप में, इस रिपोर्ट में पाया गया कि गरीब लोगों के बीच सबसे आम रूप से पाया जाने वाला अभाव खाना पकाने के ईंधन, आवास, पोषण और स्वच्छता के क्षेत्र में था.

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि पूरे दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में महिला प्रधान परिवारों में गरीबी अधिक है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘महिला प्रधान परिवारों में रहने वाले लगभग 19.7 प्रतिशत लोग गरीबी में रहते हैं, जबकि पुरुष प्रधान परिवारों में 15.9 प्रतिशत गरीब लोग रहते हैं. देश के हर एक सात घरों में से एक घर महिला प्रधान घर है, इसलिए लगभग 39 मिलियन (3.9 करोड़) गरीब लोग एक महिला के नेतृत्व वाले घर में रहते हैं.’

अधिक गहराई में जाते हुए इस रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत के सबसे गरीब राज्यों की स्थिति में हालांकि सुधार तो हुआ है, लेकिन देश के बाकी हिस्सों की तुलना में वे वहीं के वहीं बने हुए हैं.

रिपोर्ट बताती है, ‘सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच (गरीबी में) सबसे तेजी से कमी गोवा में हुई, इसके बाद जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का स्थान रहा. तुलनात्मक रूप से देश के सबसे गरीब राज्यों ने अभी भी बाकियों की बराबरी नहीं की है. 2015-2016 में 10 सबसे गरीब राज्यों में से केवल एक (पश्चिम बंगाल) 2019/2021 में भी 10 सबसे गरीब राज्यों की सूची में नहीं था. बाकी सभी – बिहार, झारखंड, मेघालय, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान – अभी भी 10 सबसे गरीब राज्यों में शामिल हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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