नई दिल्ली: डोसा, इडली और वड़ा जैसे व्यंजनों में प्रमुख रूप से इस्तेमाल होने वाली उड़द या काली दाल के दामों में इसके दूसरे सबसे बड़े उत्पादक और सबसे बड़े निर्यातक म्यांमार से वस्तु आयात बाधित होने के बाद, खासी वृद्धि देखी गई है.
15 फरवरी और 15 मार्च के बीच मुंबई थोक बाजार में उड़द की कीमत 97 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 110 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. महाराष्ट्र की राजधानी में इस कमोडिटी की खुदरा कीमत भी इसी अवधि में 117 रुपये/किलोग्राम से बढ़कर 130 रुपये/किलोग्राम पर पहुंच गई.
उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के डाटा के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में उड़द का खुदरा मूल्य 100 रुपये किलो से 123 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है. वहीं लखनऊ में यह 113 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 145 रुपये प्रति किलो हो गया है.
यह भी पढ़ें: सेनाओं की वापसी के बाद भारत और चीन फिर वही दोस्ती-दुश्मनी के पुराने खेल में उलझे
म्यांमार फैक्टर
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, म्यांमार में फरवरी में सैन्य तख्तापलट के बाद जारी राजनीतिक अनिश्चितता के कारण आयात प्रभावित होने की वजह से इस कमोडिटी की कीमतों में और वृद्धि होने की संभावना है.
इसके अलावा, पिछले वर्ष अत्यधिक बारिश से फसल को पहुंची क्षति के कारण भारत और म्यांमार दोनों देशों में कैरीओवर स्टॉक भी कम ही है. म्यांमार और भारत में उड़द की फसल क्रमशः दिसंबर और सितंबर में बाजार में आती है. इसलिए अभी इसकी कमी थोड़े समय तक बने रहने के आसार हैं.
इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बिमल कोठारी ने कहा, ‘उड़द की कीमतें भारत में और बढ़ने के आसार हैं क्योंकि आयात वाली दोनों ही जगहों पूर्वी अफ्रीका और म्यांमार से इसकी आपूर्ति घटी है. म्यांमार में बैंक फरवरी से ही बंद हैं और वहां कस्टम भी काम नहीं कर रहा. इसके अलावा, कई अन्य शिपिंग कंपनियां भी किसी ऐसे देश में अपने कंटेनर नहीं भेज रही हैं जो अशांत स्थिति झेल रहा हो.
उन्होंने कहा, ‘केंद्र की तरफ से जारी 4 लाख मीट्रिक टन का आयात कोटा हमारी आपूर्ति और मांग की स्थिति के हिसाब से ठीक है लेकिन म्यांमार में राजनीतिक अशांति के कारण इस वर्ष आयात करना आसान नहीं होगा.’
अनुमानों के मुताबिक, दुनियाभर में कुल 58 फीसदी निर्यात के साथ म्यांमार इस काली फली का सबसे बड़ा निर्यातक है. भारत कुल उड़द के आयात का लगभग 84 प्रतिशत म्यांमार से खरीदता है. भारत में कुल उड़द आयात का करीब 78 प्रतिशत चेन्नई बंदरगाह से होता है और यह सब यंगून बंदरगाह से ही होता है.
वित्तीय वर्ष में 2020-21 में सरकार ने लगभग 4 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) का आयात कोटा जारी किया है जिसमें से अब तक 3.78 एलएमटी आयात किया जा चुका है. विशेषज्ञों के अनुसार, उड़द के आयात का शेष कोटा अधूरा रहने के ही आसार है क्योंकि सरकार ने न तो 31 मार्च की समयसीमा को बढ़ाया है और न ही म्यांमार से आयात जल्द शुरू होने के संकेत हैं.
कमोडिटी ब्रोकरेज फर्म जेएलवी एग्रो के ब्रोकर विवेक अग्रवाल के मुताबिक, इस वित्त वर्ष में लगभग 40,000-50,000 टन उड़द के आयात में देरी हुई है.
उन्होंने कहा, ‘इस महीने म्यांमार से संभवतः एक कंटेनर आने वाला है लेकिन उसके बावजूद इस वित्त वर्ष में आयात पूरा नहीं होगा. पिछले साल उड़द का कुल कोटा 4 एलएमटी था. जारी किया गया नया आयात कोटा भी 4 एलएमटी है. हालांकि, उड़द का उत्पादन प्रमुख रूप से केवल म्यांमार में ही होता है और व्यापार में आ रही बाधाओं के कारण आने वाले समय में इसकी कीमत कम से कम 5 से 10 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ सकती है.
तख्तापलट के बाद प्रमुख शिपिंग कंपनी मर्सक ने म्यांमार में अपना परिचालन अस्थायी तौर पर निलंबित करने की घोषणा की है.
यह भी पढ़ें: आत्मबोधानंद और सरकार दोनों चाहते हैं कि बहती रहे गंगा, फिर क्यों जान दे रहे हैं संत
भारत के उत्पादन में गिरावट
देश में उड़द के उत्पादन में भी गिरावट आई है, जिसकी वजह से इस साल कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. वैसे भी भारत में पहले से ही कुल वार्षिक खपत की तुलना में दालों की उत्पादन कम ही रहता है.
देश में कमोडिटी का उत्पादन 2017-18 में 34 एलएमटी से घटकर 2019-20 में 20 एलएमटी रह गया है.
घरेलू उत्पादन में गिरावट की स्थिति को म्यांमार में उड़द की फसल को बदले जाने ने और भी बिगाड़ दिया है, जहां चीन की थोक खरीद को देखते हुए किसानों ने मूंग की फसल उगाने की ओर रुख कर लिया है.
कमोडिटी मार्केट रिसर्च फर्म आईग्रेन इंडिया के रिसर्चर राहुल चौहान ने कहा, ‘म्यांमार के किसान अरहर और उड़द की जगह मूंग की फसल की ओर रुख कर रहे हैं, जिसे मुख्यत: चीन आयात करता है. अरहर और उड़द का आयात सबसे ज्यादा भारत ही करता है. लेकिन भारत का बाजार उतार-चढ़ाव वाला रहता है क्योंकि वह अपने बाजार में आयात पर प्रतिबंध लागू करता रहता है.’
उन्होंने कहा, ‘इसकी कमी लंबे समय तक रहने वाली है— कम से कम जून-जुलाई तक तो रहेगी ही.’
उन्होंने आगे कहा, ‘चीन की मांग बढ़ने के साथ म्यांमार में मूंग का उत्पादन इस साल 3 एलएमटी से बढ़कर 6 एलएमटी पहुंच गया है. वहीं 2017 में जहां तुअर और उड़द का उत्पादन क्रमश: 3 एलएमटी और 6 एलएमटी था. 2018 में यह घटकर क्रमशः 2.5 एलएमटी और 5 एलएमटी हो गया, यही नहीं 2020 में घटकर 1.75 एलएमटी और 4.5 एलएमटी ही रह गया है.’
‘अड़चन अस्थायी रहने की उम्मीद’
भारत में हाल में कटाई के मौसम के बावजूद उड़द की कीमतें 6,000 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से ऊपर पहुंच गई हैं. प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मंडी में कमोडिटी का थोक मूल्य 7,600 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि आयातित उड़द तमिलनाडु के बाजारों में लगभग 7,300 से 7,450 रुपये प्रति क्विंटल है.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि यह सारी अड़चनें अस्थायी हो सकती हैं और जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.
मुंबई में दलाल एसोसिएशन के सेक्रेटरी और एक अंतरराष्ट्रीय एग्रो-कमोडिटी ब्रोकर सतीश उपाध्याय ने कहा, ‘दालों के आयात में इस्तेमाल होने वाले तमाम कार्गो शिप की बड़ी रकम वहां अटक गई है और इनमें से अधिकांश शिपर म्यांमार में अपना स्टॉक क्लियर कर रहे हैं ताकि उनका फंड रिलीज होने में मदद मिल सके. इसके बाद उनकी अपने मूल स्थानों पर लौटने की योजना है क्योंकि वहां जारी गृह युद्ध की स्थिति बिगड़ रही है. जब तक हालात सामान्य नहीं होते वे लौटना नहीं चाहेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘मोटे तौर पर, 35,000 टन वजन से लदे 1,500 से अधिक कंटेनर (म्यांमार) बंदरगाह में फंसे हुए हैं, जिनमें से 200-300 को क्लियर कर दिया गया है. हमारे पास इस साल 4 एलएमटी उड़द के आयात के लिए जारी एक अलग कोटा है जो मार्च 2022 तक मान्य होगा. इसलिए, लंबे समय तक कोई बाधा नहीं आने वाली है. म्यांमार की नई फसल जनवरी 2022 में आएगी और हमारी फसल अक्टूबर में ही आ जाएगी.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: सिर्फ असम जीतना भाजपा के लिए जश्न की बात नहीं होगी, ममता बनर्जी से सत्ता छीनना असल चुनौती