scorecardresearch
Thursday, 7 November, 2024
होमदेशअर्थजगतआखिर क्यों घट गई है निवेश की मांग, क्या इसका कारण विफलता नहीं सफलता है?

आखिर क्यों घट गई है निवेश की मांग, क्या इसका कारण विफलता नहीं सफलता है?

निवेश की मांग में निरंतर जो सुस्ती बनी हुई है उसके पीछे विफलता नहीं बल्कि सफलता का हाथ हो सकता है, जिसने सकल आर्थिक वृद्धि को भी प्रभावित किया है?

Text Size:

क्या ऐसा हो सकता है कि निवेश की मांग में निरंतर जो सुस्ती बनी हुई है उसके पीछे विफलता नहीं बल्कि सफलता का हाथ हो, जिसने सकल आर्थिक वृद्धि को भी प्रभावित किया है? मिसाल के लिए भारी ट्रकों की मांग को ही लें, जिसमें हाल के महीनों में 22 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह मुख्यतः पिछली जुलाई में घोषित किए गए नए नियमों के कारण हुआ है, क्योंकि इन नियमों के तहत ट्रकों को ज्यादा वजन ढोने की छूट मिल गई. यह कदम इस वजह से भी उठाया गया कि हाइवे अब पहले से बेहतर हो गए हैं. जो भी हो, वही ट्रक अब ज्यादा माल ढो सकते हैं और इसीलिए नए ट्रकों की मांग घट गई है. इस बीच, वाहनों के उत्पादनकर्ता अब भार ढोने की नई सीमा के अनुसार वाहनों के डिजाइन तैयार करने में जुट गए हैं.


यह भी पढ़ें: विदेशी कंपनियां भारतीय उद्यमियों की जगह ले रही है, जोकि धूल फांक रहे हैं


डीजल जेनेरटरों (डीजी सेटों) को ही ले लीजिए, जिनकी मांग आज उतनी नहीं है जितनी एक दशक पहले थी. 2010-11 और 2015-16 के बीच इनकी मांग में 40 प्रतिशत की गिरावट आई हालांकि इसके बाद इसमें थोड़ी बढ़ोतरी हुई है.

इसकी मुख्य वजह : टेलिकॉम टावरों की संख्या अपने चरम पर पहुंच गई. इसलिए इन टावरों की जरूरत पूरी करने वाले डीजी सेटों की मांग 70 प्रतिशत घट गई. वैसे, दूसरे सेक्टरों के कारण इनकी मांग बढ़ी है लेकिन देश के अधिकांश भागों में बिजली की कमी न होने के कारण ये सेट बस विकल्प के तौर पर रखे जा रहे हैं. अगर बिजली आपूर्ति को लेकर भरोसा बढ़ेगा तो विकल्प के तौर पर भी इन सेटों की मांग घट जाएगी.

देश में पर्याप्त से ज्यादा बिजली उत्पादन क्षमता का विकास इस कहानी को पूरा करता है. अक्षय ऊर्जा को छोड़कर बाकी बिजली उत्पादन की नई क्षमता के निर्माण में कोई कमी नहीं आई है. आंकड़े उल्लेखनीय हैं. 2013-14 में 17.8 गीगावाट की नई क्षमता का विकास हुआ. दो साल बाद यह आंकड़ा 23.9 गीगावाट हो गया. लेकिन चालू वर्ष के पहले 11 महीने में 2.3 गीगावाट (दसवां हिस्सा) की नई क्षमता ही जोड़ी गई. इसके बावजूद, वास्तविक उत्पादन उसी रफ्तार से न होने के कारण बेकार पड़ी क्षमता के रूप में संभावनाएं मौजूद हैं. पावर सेक्टर में भी बिजली ट्रांसमीशन और ट्रान्सफॉरमर के लिए नई क्षमता चरम पर पहुंचकर नीचे गिर गई है, हालांकि यह उतनी नाटकीय नहीं है जितनी उत्पादन क्षमता में गिरावट है.


यह भी पढें: राहुल की कांग्रेस का एक दिशाहीन एनजीओ में तब्दील होने का ख़तरा है


रेलवे जैसे दूसरे सेक्टरों में भी यही हालत हो सकती है. रेलवे में नई क्षमता निर्माण और आधुनिकीकरण पर अभूतपूर्व रकम लगाई गई है फिर भी अगर आप यात्रियों और माल ढुलाई के आंकड़े देखें तो लगभग शून्य वृद्धि दिखेगी. पिछले पाँच वर्षों में, माल ढुलाई का टन प्रति किलोमीटर का आंकड़ा मात्र 3.6 प्रतिशत ऊपर चढ़ा है, जबकि 2016-17 से पहले के तीन वर्षों में यात्री प्रति किलोमीटर के आंकड़े में 1 प्रतिशत से भी कम की बढ़त हुई.

भाड़े में वृद्धि के कारण कमाई जरूर बढ़ी, लेकिन इसके लिए आपको बड़े नए निवेश की जरूरत नहीं पड़ती. दो रैपिड फ्रेट कॉरीडोर के पूरे होने और मौजूदा सिस्टम में गति बढ़ने के बाद भाड़े में शायद वृद्धि होगी. तब रेलवे में निवेश भी चरम पर पहुंचने और फिर धीमा पड़ने की अपेक्षा की जा सकती है, जब रेलवे में ट्रैफिक में भी ख़ासी वृद्धि देखी जाएगी.
अंतिम उदाहरण टेलिकॉम का है. हाल के वर्षों में रिलायंस एवं दूसरी कंपनियों ने इस सेक्टर में अपने बुनियादी ढांचे पर भारी रकम लगाई है. रिलायंस को छोड़कर दूसरी कंपनियां कर्ज़ में डूब गई हैं और अब वे उसी गति से निवेश नहीं करने वाली हैं.

इस बीच रिलायंस की जुगत के कारण शुल्कों में भारी गिरावट के चलते मोबाइल फोन पर इतनी कम दरों पर डेटा ट्रैफिक में बड़ी तेजी आई है कि यह कहना मुश्किल है कि राष्ट्रीय लेखा इसका किस तरह हिसाब लगाएगा.

संक्षेप में, मामला यह है कि बुनियादी ढांचे के सेक्टरों में कार्यकुशलता में सुधार और अब तक उपेक्षित बाज़ारों के संतृप्त होने के कारण अब पहले की तरह पूंजी निवेश की जरूरत कम हुई है. इसका कुछ असर आर्थिक मंदी के रूप में दिखेगा. इस बीच, कारों की मांग में कमी के लिए ओला और उबर को कुछ हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है.

उड्डयन के क्षेत्र में, दो विमानों के उतरने और उड़ने के बीच के समय को घटाकर आधा किया जाए तो रनवे की कार्यकुशलता दोगुनी बढ़ जाएगी. ये सब उत्पादकता बढ़ने के उदाहरण हैं, जिनका हिसाब जीडीपी की गणना करते वक़्त राष्ट्रीय लेखा को रखना चाहिए. क्या वे ऐसा करते हैं?

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, यह लेख बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष व्यवस्था द्वारा प्राप्त किया गया है.)

share & View comments