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Thursday, 19 December, 2024
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Blinkit के नए ‘पेआउट स्ट्रक्चर’ को लेकर Delhi-NCR में सैकड़ों डिलीवरी पार्टनर हड़ताल पर क्यों हैं

डिलीवरी पार्टनर्स को कम से कम मुआवजे में 15 रुपये प्रति ऑर्डर की कटौती का सामना करना पड़ रहा है. ब्लिंकिट का कहना है कि उसने 'नया पेआउट स्ट्रक्चर को लागू किया है जो डिलीवरी पार्टनर्स के काम के हिसाब से उन्हें मुआवजा देगा. 

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नई दिल्ली: एक महीने से, ज़ोमैटो के स्वामित्व वाली तत्काल डिलीवरी सेवा ब्लिंकिट द्वारा नियुक्त सैकड़ों डिलीवरी पार्टनर अपने वेतन ढांचे में बदलाव का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि बिना किसी पूर्व सूचना के वेतन ढांचे को संशोधित किया गया है.

हड़ताल कर रहे डिलीवरी पार्टनर्स का कहना है कि उन्हें दिए जाने वाले न्यूनतम मुआवजे को 25 रुपये प्रति ऑर्डर से घटाकर 15 रुपये कर दिया गया है. यह 2021 में 50 रुपये दिए जाने से काफी कम है. उन्होंने कहा कि पीक आवर्स के दौरान उन्हें 4 रुपये-प्रति-ऑर्डर प्रोत्साहन राशि भी मिलती थी, जिसे खत्म कर दिया गया है. यह 2021 में 7 रुपये था.

कंपनी के इस कदम को लेकर पूरे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में विरोध शुरू हो गया. इसके परिणामस्वरूप नोएडा, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद में डिलीवरी सेवाएं बाधित हुईं हैं.

ब्लिंकिट के दिल्ली-एनसीआर में लगभग 200 डार्क स्टोर या वेयरहाउस हैं, जहां से पार्टनर 1-2 किमी के दायरे में ग्राहकों को डिलीवर करने के लिए सामान उठाते हैं.

ऐप-आधारित गिग वर्कर्स के लिए दिल्ली स्थित एक यूनियन, ऐप कर्मचारी एकता यूनियन के मुताबिक हालांकि, दिल्ली भर में कई डार्क स्टोर्स ने अब 30-40 प्रतिशत क्षमता पर काम फिर से शुरू कर दिया है. न्यूनतम मुआवजे को 25 रुपये प्रति आर्डर पर वापस लाने की उनकी मांग को लेकर नोएडा और गुड़गांव में डिलीवरी पार्टनर्स ने दबाव बनाने का फैसला किया है.

कम से कम 600 डिलीवरी पार्टनर्स ने अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए पिछले सप्ताह गुरुग्राम में कंपनी के कार्यकारी से मुलाकात की थी, लेकिन इसके बावजूद यह मुद्दा अनसुलझा है.

19 अप्रैल को जारी एक बयान में, ब्लिंकिट ने कहा कि इसने ‘एक नई पेआउट संरचना लागू की है’ जो डिलीवरी पार्टनर्स को डिलीवरी करने में ‘उनके द्वारा किए गए प्रयास के अनुपात में’ मुआवजा देती है. बयान में कहा गया है, ‘यह एक स्वैच्छिक अभ्यास है, और हमारी टीमें पार्टनर्स के किसी भी प्रश्न का जबाव देने के लिए साइट पर हैं.

ब्लिंकिट ने इस बात से भी इंकार किया कि डिलीवरी पार्टनर्स की हड़ताल से परिचालन प्रभावित हुआ और कहा कि इससे राजस्व में मात्र एक प्रतिशत की कमी आई है. कंपनी ने यह भी घोषणा की कि वह दिल्ली और गुरुग्राम में अपने कई डार्क स्टोर्स को बंद करने की राह पर है.

द इकोनॉमिक टाइम्स की 25 अप्रैल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हड़ताल शुरू होने के बाद से दिल्ली-एनसीआर में एक हजार से अधिक ब्लिंकिट डिलीवरी पार्टनर दूसरी कंपनियों में शामिल हो गए हैं. इनमें से अधिकांश डिलीवरी पार्टनर अब क्विक कॉमर्स कंपनियों जैसे- Swiggy Instamart, Zepto और Big Basket सहित अन्य में शामिल हो गए हैं.

दिप्रिंट ने ईमेल के माध्यम से ब्लिंकिट से इस मामले को लेकर जानकारी मांगी लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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‘ब्लॉक की गई आईडी, लिखित अंडरटेकिंग’

ऐप कर्मचारी एकता यूनियन के संयोजक ऋत्विक राज ने दिप्रिंट को बताया कि ब्लिंकिट ने हड़ताल में भाग लेने वाले कुछ डिलीवरी पार्टनर्स की ऐप-आधारित आईडी को कथित तौर पर ब्लॉक कर दिया. उन्होंने कहा कि उनके नाम कंपनी के डेटाबेस से हटा दिए गए थे और उन्हें लिखित रूप से देने के लिए कहा गया है कि वे हड़ताल में भाग नहीं लेंगे.

राज आगे कहते हैं कि वित्तीय बाधाओं के कारण काम पर लौटने से पहले हड़ताल में भाग लेने वाले अधिकांश डिलीवरी पार्टनर्स के लिए, कंपनी के कार्यों ने मामले को और भी बदतर बना दिया.

वे कहते हैं कि उन्हें अब आर्डर नहीं मिल रहे हैं और कंपनी डेटाबेस में उनकी पंजीकृत आईडी भी काम नहीं कर रहा है. उनका आरोप है कि दिल्ली में अधिकांश ब्लिंकिट डिलीवरी पार्टनर्स को काम फिर से शुरू करने के लिए मजबूर किया गया है. उन्होंने कहा कि दक्षिण दिल्ली के वसंत कुंज और उत्तर पूर्वी दिल्ली के बुराड़ी और प्रतापगढ़ में हड़ताल पर गए कई लोगों ने पाया कि उनकी आईडी ब्लॉक कर दी गई है.

जब ब्लिंकिट ग्रोफ़र्स हुआ करता था, उस समय को याद करते हुए राज कहते हैं कि उस वक्त डिलीवरी पार्टनर मासिक वेतन और कई तरह के लाभ के हकदार थे, जिसमें भविष्य निधि और कर्मचारी पेंशन योजनाओं भी शामिल था.

ग्रोफ़र्स को 2021 में ब्लिंकिट के रूप में रीब्रांड किया गया था और अगस्त 2022 में इसे 4,447 करोड़ रुपये में फूड डिलीवरी कंपनी ज़ोमैटो द्वारा अधिग्रहित किया गया था. इसके बाद से ही उसी वर्ष कंपनी ने 10 मिनट में किराने का सामान डिलीवरी शुरू किया. 

एक डिलीवरी पार्टनर, जो तीन साल से कंपनी के साथ काम कर रहे हैं, नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताते हैं, अधिग्रहण के बाद से डिलीवरी पार्टनर्स के वर्कलोड को काफी बढ़ा दिया गया है. जब कंपनी ग्रोफ़र्स के नाम से जानी जाती थी, तब डिलीवरी पार्टनर्स पर इस तरह का तनाव नहीं था. उन्होंने कहा कि उन्हें ब्लिंकिट मोबाइल ऐप के माध्यम से वेतन संरचना में बदलाव के बारे में पता चला.

उनके अनुसार, जब न्यूनतम मुआवजा 50 रुपये प्रति ऑर्डर था, तो डिलीवरी एजेंटों को 4 किमी से अधिक के हर ऑर्डर के लिए 8 रुपये का भुगतान किया जाता था.

वह कहते हैं, ’25 रुपये के रेट कार्ड के तहत, इसे 4 किमी से अधिक के लिए अतिरिक्त 2 रुपये में लाया गया. 15 रुपये के रेट कार्ड के तहत, हमें दूरी के आधार पर भुगतान किया जाता है, जिसमें कोई प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती है. इसलिए, अगर हम 1 किमी का ऑर्डर देते हैं, तो हमें अक्सर 10-12 रुपये ही दिए जाते हैं. 15 रुपये का रेट कार्ड सिर्फ नाम का है. ब्लिंकिट अब एक जीपीएस सिस्टम का उपयोग करता है जहां अगर हम शॉर्टकट भी लेते हैं, तो कंपनी लिए गए रूट के लिए भुगतान करेगी न कि मूल रूट के लिए मूल राशि का. इसके अलावा, पीक ऑवर्स के दौरान, सुबह 6-11 बजे तक, जब ग्राहक के ऑर्डर के लिए अधिक से अधिक डिलीवरी पार्टनर मौजूद होते हैं, तो ब्लिंकिट प्रति ऑर्डर भुगतान कम कर देता है.’

वह बताते हैं कि ब्लिंकिट अपने डिलीवरी पार्टनर्स को दो श्रेणियों – डायमंड और सिल्वर में रखता है. वह कहते हैं कि छुट्टी लेने वालो को सिल्वर वाली श्रेणी में रखा जाता है जिससे उसे कम पैसे मिलते हैं. वह आगे कहते हैं कि कंपनी के पास एक अटेंडेंस ऐप है जिसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि डिलीवरी पार्टनर प्रत्येक दिन नौ घंटे ड्यूटी पर हों, लेकिन नौ घंटे की निश्चित शिफ्ट समाप्त होने के बाद ऑर्डर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा असाइन किया जाता है.

उनके अनुसार, डिलीवरी पार्टनर के लिए कोई शिकायत निवारण तंत्र नहीं है और उनकी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए उपलब्ध एकमात्र एक स्वचालित हेल्पलाइन नंबर है जिसे डायल करने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती है.

‘कंपनियां उन्हें कर्मचारी नहीं मान रही’

गिग वर्कर्स, या ऐसे व्यक्ति जो विशिष्ट नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के बाहर आजीविका कमाते हैं, को मोटे तौर पर प्लेटफॉर्म-आधारित या गैर-प्लेटफॉर्म-आधारित के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.

प्लेटफ़ॉर्म-आधारित गिग कर्मचारी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की मदद से काम करते हैं, जबकि गैर-प्लेटफ़ॉर्म-आधारित कर्मचारी आमतौर पर अंशकालिक रूप से कार्यरत होते हैं या पारंपरिक उद्योगों में स्व-नियोजित होते हैं.

2022 में ‘इंडियाज बूमिंग गिग एंड प्लेटफॉर्म इकोनॉमी’ शीर्षक से प्रकाशित नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 2021-21 में 77 लाख गिग वर्कर्स थे.

ऑल इंडिया गिग वर्कर्स यूनियन की समन्वयक रिक्ता कृष्णस्वामी ने दिप्रिंट को बताया कि ऐप-आधारित कंपनियां प्रति ऑर्डर मुआवजे को कंट्रोल करती हैं जिसके कारण गिग वर्कर्स की कुल कमाई में गिरावट देखी गई है.

वह कहती हैं, ‘अक्सर, काम के आधार पर लागत में कटौती की जाती है और फिर भी श्रमिकों को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता है. उन्हें श्रमिकों के रूप में भी वर्गीकृत नहीं किया गया है. दिल्ली दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम (1954) के किसी भी मानदंड का पालन भी नहीं किया जाता है.’

वह आगे कहती हैं, ‘न तो श्रमिकों को मासिक न्यूनतम वेतन 16,250 रुपये मिल रहा है, न ही उन्हें बीमार या किसी भी प्रकार का अवकाश दिया जाता है. काम के घंटे भी तय नहीं हैं.’

विशेष रूप से, दिल्ली दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम में एक प्रावधान है जिसके तहत छुट्टी श्रमिकों का एक गारंटीकृत अधिकार है.

कृष्णास्वामी कहती हैं, ‘वे (डिलीवरी पार्टनर) 12 घंटे काम कर रहे हैं, बिना किसी प्रोत्साहन के, न्यूनतम वेतन भी नहीं, और आप अभी भी उन्हें कर्मचारी नहीं मान रहे हैं. अपने रिश्तों को परिभाषित करने और लचीला दिखने के लिए, कंपनियां श्रमिकों के साथ अपने वास्तविक संबंधों को अस्पष्ट करती हैं और उन्हें बुनियादी अधिकारों से भी वंचित करती हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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