scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होमदेशअर्थजगतक्यों ‘भारतीय बाजार में 98% ऑक्सीमीटर मेड-इन-चाइना हैं’ लेकिन खरीदारों को इसकी परवाह नहीं

क्यों ‘भारतीय बाजार में 98% ऑक्सीमीटर मेड-इन-चाइना हैं’ लेकिन खरीदारों को इसकी परवाह नहीं

भारत में पिछले कुछ दिनों से रोजाना 3 लाख के करीब कोविड केस सामने आ रहे हैं, जिससे पल्स ऑक्सीमीटर जैसी चीजों की मांग काफी बढ़ गई है.

Text Size:

नई दिल्ली : आपके ऑक्सीजन लेवल पर नजर रखने में मददगार एक छोटी-सी डिवाइस पल्स ऑक्सीमीटर कोविड महामारी के बीच एक अहम उपकरण के तौर पर सामने आई है जो मरीजों को बताती है कि कब उन्हें चिकित्सकीय सहायता की जरूरत है. (94 से 98 के बीच रीडिंग को आमतौर पर सामान्य माना जाता है).

भारत में चीन आयातित पल्स ऑक्सीमीटर की बाजार में भरमार है, अनुमानित तौर पर 98 प्रतिशत उपकरण सीमा पार से आ रहे हैं. यद्यपि भारत-चीन के बीच लद्दाख में जारी गतिरोध के दौरान पिछले साल चीनी सामानों के बहिष्कार की भावना हावी हो गई थी लेकिन केमिस्टों का कहना है कि ऑक्सीमीटर के मामले में उन्हें ऐसी कोई चिंता नजर नहीं आ रही है.

केमिस्टों ने बताया कि कोविड के मामले बढ़ने के कारण ऑक्सीमीटर दुकानों से एकदम नदारद हो गए हैं, जिसके कारण कई शहरों में इसकी कमी हो गई है, और ऐसे में लोग जो भी ब्रांड मिल पा रहे हैं, उसे खरीदने में गुरेज नहीं कर रहे हैं.

भारत में ऑक्सीमीटर की कीमत 2,000 रुपये से 3,000 रुपये के बीच है, जिसमें चीनी ब्रांड भारत निर्मित उपकरणों की तुलना में सस्ता है. उद्योग प्रतिनिधियों के मुताबिक, देश में ऑनलाइन और ऑफलाइन उपलब्ध ‘मेड इन चाइना’ ऑक्सीमीटर ब्रांड में उनान, हेल्थसेंस, स्मार्ट सेवर, आईस्पेयर, योबकान, डॉ. वकू, च्वाइसएममेड, हीलएनहेल्दी, लैंडविंड, टी टॉपलाइन और लॉयनिक्स शामिल हैं.

देश में उपलब्ध अन्य ब्रांड में एक प्रमुख भारतीय नाम बीपीएल के अलावा जर्मन ब्रांड ब्रेउर और अमेरिका का डॉ. ट्रस्ट शामिल हैं.

यद्यपि भारत फार्मा क्षेत्र में एक दिग्गज खिलाड़ी है लेकिन जहां तक चिकित्सा उपकरणों का संबंध है, यह आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है.

आयात किए जाने वाले ऑक्सीमीटर का सही आंकड़ा दर्शाने के लिए केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की वेबसाइट पर कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन सरकारी आंकड़े यह जरूर बताते हैं कि चीन से आयात होने वाले सामान में एक बड़ा हिस्सा चिकित्सा उपकरणों का ही होता है.

2020-21 के पहले 10 महीनों में यानी जनवरी तक, भारत ने चीन से 269 मिलियन डॉलर मूल्य के चिकित्सा उपकरण आयात किए. यह इस अवधि में भारत के कुल चिकित्सा उपकरणों के आयात का लगभग एक चौथाई हिस्सा है.

पल्स ऑक्सीमीटर बाजार में उद्योग के अंदरूनी सूत्रों ने कच्चे माल की अनुपलब्धता का हवाला देते हुए बताया कि इस वजह से भारत में अभी तक इनका निर्माण तेजी नहीं पकड़ पाया है. उनके मुताबिक, इन्हें आयात करना सस्ता भी पड़ता है.

दिप्रिंट ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने के लिए ई-मेल और व्हाट्सएप के जरिये फार्मास्यूटिकल विभाग के प्रवक्ता से संपर्क साधा लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं आया था.


यह भी पढ़ें: सूरत के इस सरकारी अस्पताल ने कैसे कोविड मरीज़ों की भर्ती के इंतज़ार को 5 घंटे से घटाकर 15 मिनट किया


‘किसी को परवाह नहीं ऑक्सीमीटर भारतीय है चीनी’

नवी मुंबई के एक केमिस्ट महेश कुमार बताते हैं कि शुरू से ही भारतीय बाजार में चीनी ऑक्सीमीटर हावी रहा है, लेकिन साथ ही जोड़ा कि इससे खरीदारों के प्रभावित होने का कोई कारण नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘बाजार में कुछ लोकल ब्रांड उपलब्ध हैं लेकिन आपूर्ति ज्यादा नहीं है. कोई भी इस बात की परवाह नहीं करता कि ऑक्सीमीटर भारत निर्मित है या चीन निर्मित. इसकी कमी को देखते हुए लोग सिर्फ यह सोचते हैं कि बस किसी तरह एक ऑक्सीमीटर मिल जाए.’

त्रिशूर में एक मेडिकल शॉप चलाने वाले के.के. नायर भी महेश कुमार की राय से सहमति जताते हैं. उन्होंने कहा, ‘मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है और बाजार में पर्याप्त ऑक्सीमीटर उपलब्ध नहीं हैं. लोग ऑक्सीमीटर खरीदना चाहते हैं और केवल उत्पाद की गुणवत्ता को लेकर चिंता करते हैं, इसकी नहीं कि यह चीनी है या नहीं.’

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के पास उपलब्ध व्यापार संबंधी आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि भारत अब भी अपनी चिकित्सा उपकरणों की जरूरत पूरी करने के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर है.

भारत में चीन से चिकित्सा उपकरणों और अन्य इंस्ट्रूमेंट का आयात, जिनमें टेस्ट किट भी शामिल हैं, जनवरी 2021 में पूरे हुए 10 महीनों में इतना ज्यादा था कि यह पूरे 2019-20 वित्तीय वर्ष के मुकाबले अधिक रहा है.

चिकित्सा उपकरणों की श्रेणी में चीनी आयात की हिस्सेदारी अमेरिका और जर्मनी जैसे अन्य देशों की तुलना में भी बढ़ी है. इस श्रेणी के तहत आयात में चीन की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत रही है, जबकि अमेरिका की 17 प्रतिशत और जर्मनी की 12 प्रतिशत रही.

ऑक्सीमीटर के लिए अलग से कोई एचएसएन कोड नहीं है— जो कि विभिन्न देशों के बीच आयात और निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के लिए यूनिवर्सल तौर पर स्वीकृत क्लासीफिकेशन कोड होता है. हालांकि, अन्य सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट और उपकरणों के लिए आठ अंकों का क्लासीफिकेशन कोड दर्शाता है कि जनवरी 2021 में पूरे हुए 10 महीनों की अवधि में इनका आयात मूल्य के आधार पर पूरे 2019-20 की तुलना में 50 प्रतिशत से अधिक रहा है.

मात्रा के लिहाज से आयात में वृद्धि 20,990 प्रतिशत अधिक रही है.

स्वदेशी ऑक्सीमीटर निर्माता मुंबई स्थित मिटकॉन बायोमेड के सीईओ जिनांग धामी ने कहा कि देश में ऑक्सीमीटर बाजार की स्थिति थोड़ी टेढ़ी है. उन्होंने बताया, ‘यहां बिकने वाले लगभग 98 प्रतिशत उत्पाद चीन से आयात होते हैं और केवल 2 प्रतिशत ही यहां पर असेंबल या निर्मित होते हैं.’

वितरकों का कहना है कि भारत निर्मित ऑक्सीमीटर बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं होने की एक बड़ी वजह यह है कि उन्हें बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल देश में आसानी से उपलब्ध नहीं है. साथ ही जोड़ते हैं कि चीनी उत्पाद सस्ते पड़ते हैं.

धामी ने कहा कि उनकी कंपनी द्वारा निर्मित ऑक्सीमीटर टेस्टिंग और सिमुलेशन के तीन चरणों से गुजरते हैं, साथ ही उन्होंने दावा किया कि भारत निर्मित अन्य सभी ऑक्सीमीटर ‘व्हाइट लेवल’ वाले हैं.

उन्होंने आगे बताया, ‘इसका मतलब है कि उन्हें चीन से आयात किया जाता है और ‘मेड इन इंडिया’ का लेबल लगा दिया जाता है. इसके अलावा, सरकारी नियमों के अभाव ने उत्पादों को अविश्वसनीय बना दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘अन्य चिकित्सा उपकरणों को रेग्युलेट किया जाता है और उनके साइड-इफेक्ट या किसी अन्य तरह की खराबी को मॉनिटर किया जाता है और नियमित तौर पर इनके बारे में संबंधित अधिकारियों को जानकारी दी जाती है. हमें ऑक्सीमीटर उद्योग में इस तरह के विनियमन का अभी इंतजार है.’

‘ऑक्सीमीटर की जबर्दस्त कमी’

केमिस्ट और मैन्युफैक्चरर का कहना है कि मौजूदा कोविड-19 संकट से देशभर में ऑक्सीमीटर की भारी कमी हो गई है, इससे उपभोक्ताओं के लिए शायद ही कोई विकल्प बचा हो.

दिल्ली रिटेलर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप नांगिया ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में ऑक्सीमीटर की मांग दोगुनी हो गई है.

उन्होंने कहा, ‘2020 में जब महामारी ने देश में दस्तक दी तो चीन से बड़ी संख्या में ऑक्सीमीटर आयात किए गए थे. पीक पर पहुंचने के बाद कुछ महीनों में ऑक्सीमीटर की मांग घट गई और थोक में आयात करने वाले लोगों को ये उत्पाद सस्ते दाम पर बेचने पड़े. काफी ज्यादा नुकसान उठाने के बाद फार्मासिस्टों ने ऑक्सीमीटर का आयात नहीं करने का फैसला किया.’

उन्होंने आगे कहा कि मांग में उछाल फिर से आयात बढ़ने की वजह बन रही है.

उन्होंने कहा कि हालांकि, कुछ छोटी कंपनियां स्वदेशी ऑक्सीमीटर का उत्पादन कर रही हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता को बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है.’

इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि ऑक्सीमीटर के अधिकांश जाने-माने ब्रांड ज्यादातर ई-कॉमर्स वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है, यही हाल देशभर में केमिस्ट शॉप का भी है.

धामी ने कहा, ‘यदि आप अमेजन या फ्लिपकार्ट खोले तो देखेंगे कि जो पहले ऑक्सीमीटर पर छूट दे रहे थे, वो अब इसे एमआरपी पर बेच रहे हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘अभी हमारे पास भी स्टॉक खत्म हो चुका है और फिलहाल उत्पादन की कोई गुंजाइश भी नहीं है क्योंकि हम जो उपकरण बनाते हैं उसके लिए कुछ सामान चीन या ताइवान से आयात किए जाने की जरूरत है. यहां तक कि वहां के कच्चे माल वितरक भी बुक हो चुके हैं और उनके पास निर्यात की कोई गुंजाइश नहीं बची है. कच्चा माल आना शुरू होने के एक या दो सप्ताह बाद ही इसकी आपूर्ति शुरू हो पाएगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : सूरत का यह मुस्लिम ट्रस्ट Covid मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध करा ‘सांस लेना’ आसान बना रहा है


 

share & View comments