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Friday, 22 November, 2024
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बजट 2020 में एमएसएमई को कर्ज देने को बैंकों की बुनियादी जिम्मेदारियों में शामिल किया जाना चाहिए

केंद्रीय बजट 2020 में एमएसएमई उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने को लेकर एक सुसंगत और व्यावहारिक नीतिगत ढांचा तैयार करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2020 वित्तीय वर्ष के लिए भारत की विकास दर के अनुमान को कम करते हुए इसके 4.8 प्रतिशत रहने की संभावना व्यक्त की है. कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था और विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती का सामना कर रहे भारत के लिए ये कोई अच्छी खबर नहीं है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट 2020 में ऐसे उपाय किए जाने चाहिए जोकि एमएसएमई सेक्टर में उत्साह का संचार कर सके.

वैसे तो एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) सेक्टर का श्रम बहुल रोजगार और निर्यात की दृष्टि से उल्लेखनीय योगदान रहा है, पर औपचारिक ऋण की सीमित उपलब्धता और उपयोग संबंधी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं. नरेंद्र मोदी सरकार 59-मिनट के भीतर कर्ज तथा प्रौद्योगिकी एवं नकदी की उपलब्धता संबंधी अन्य कार्यक्रमों के जरिए इस सेक्टर को समर्थन देने के प्रयास कर रही है. सरकार का उद्देश्य सांस्थानिक कर्ज की औपचारिक उपलब्धता को बढ़ावा देना भी है.

एमएसएमई सेक्टर के वित्तपोषण की समस्या

बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को इस सेक्टर के वित्तपोषण में कहीं अधिक भूमिका निभानी चाहिए. रिज़र्व बैंक के 2019 के आंकड़ों के अनुसार बैंकों द्वारा वितरित कुल ऋण में एमएसएमई सेक्टर का अंश बहुत ही छोटा है. सर्वाधिक 27.84 प्रतिशत ऋण बड़े उद्योगों के नाम था, जबकि सूक्ष्म और मध्यम उद्यमों के ऋण का अनुपात 4.34 प्रतिशत था. ऋण में सबसे कम 1.23 प्रतिशत हिस्सा मध्यम आकार के उद्यमों का था.

ट्रांसयूनियन सिबिल और सिडबी की नवीनतम एमएसएमई पल्स रिपोर्ट के अनुसार इस सेक्टर में ऋण वृद्धि दर में गिरावट देखी जा रही है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इस सेक्टर को दिए गए ऋण में एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) का अनुपात सितंबर 2018 के 11.7 प्रतिशत के मुकाबले सितंबर 2019 में बढ़कर 12.2 प्रतिशत हो गया था.


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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) से इस सेक्टर को सर्वाधिक ऋण प्राप्त होता है, और वे कुल ऋण का 60 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यमों को देते हैं. इस तरह के ऋण वितरण में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण (पीएसएल) के मानकों तथा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी सरकारी योजनाओं के कारण तेजी आई है.

पीएसएल दिशा-निर्देशों के अनुसार बैंकों को ऋण का एक हिस्सा प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को उपलब्ध कराना होता है, जिनमें से 7 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यमों के हिस्से में जाता है. लक्ष्यों का इस तरह निर्धारण अनम्य होता है क्योंकि इसमें बैंको के पास ऋण वितरण रणनीति में फेरबदल करने और ऋण देने से पहले पर्याप्त छानबीन करने की गुंजाइश नहीं रहती है. ऋण लक्ष्यों को पूरा करने का दायित्व त्वरित और अनियमित ऋण वितरण की समस्या को जन्म देती है, और इस वजह से ऋणों के एनपीए में तब्दील होने का खतरा बढ़ जाता है.

लक्ष्य केंद्रित इस तरीके में एनपीए बढ़ने की आशंका किसान क्रेडिट कार्ड योजना के समान ही है. उल्लेखनीय है कि कृषि क्षेत्र में लागू यह योजना भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा संचालित है जिसमें बिना किसी जमानत के कर्ज उपलब्ध कराया जाता है.

बजट 2020 में एमएसएमई

आर्थिक सर्वेक्षण 2019 में ‘बौने’ उद्यमों के चलन पर लगाम लगाए जाने की जरूरत को रेखांकित किया गया है, खास कर जब ये साफ है कि उद्यमों को छोटा (और अनौपचारिक) बने रहने के लिए प्रोत्साहन आर्थिक व्यवस्था में ही अंतर्निहित है.
आगामी बजट के संदर्भ में हम इस बात पर विचार करते हैं कि इस सेक्टर को अधिक औपचारिक रूप देने के लिए सरकार क्या कुछ कर सकती है, ताकि औपचारीकरण के फायदे इसकी लागत के मुकाबले कहीं अधिक हों.

काफी अरसे से एमएसएमई उद्यमों की गणना का काम नहीं हुआ है. एमएसएमई पर विशेषज्ञों की एक समिति ने जून 2019 में इस बात को रेखांकित किया था कि 2006-2007 की चतुर्थ एमएसएमई गणना के बाद से ये कार्य नहीं हुआ है. आगामी बजट में इस गणना की पहल किए जाने की दरकार है क्योंकि इस समय इस सेक्टर से संबंधित आंकड़े उद्योग आधार प्रपत्र, एमएसएमई डेटाबैंक और जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे हुए हैं. इनमें से पहले दो में जहां असत्यापित और स्वेच्छा से दी गई सूचनाएं होती हैं, वहीं जीएसटीएन में 40 लाख रुपये या उससे अधिक के कारोबार वाली कंपनियों का ही रिकॉर्ड रखा जाता है. ये जरूरी है कि इन उद्यमों से संबंधित नवीनतम और विश्वसनीय जानकारियों को नीतिगत उपायों का आधार बनाया जाए.

मोदी सरकार को मुद्रा योजना के तहत वितरित ऋण के एनपीए में तब्दील होने की समस्या – पिछले साल भर में ही ऐसे एनपीए की मात्रा दोगुना हो गई है – के निदान के लिए समयपूर्व कार्रवाई करने की जरूरत है. इस योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने में सरकार को लक्ष्य केंद्रित रवैया अपनाने से बचना चाहिए. बैंकों को ग्राहकों की वित्तीय सूचनाओं तथा नकदी प्रवाह के अतीत के आंकड़ों और भावी संभावनाओं के आधार पर जोखिम का आकलन करने देना चाहिए. ऋण वसूली की व्यवहार्यता का भी आकलन किया जाना चाहिए. एमएसएमई ऋण सुविधा को बैंकिंग की बुनियादी गतिविधियों में शामिल किए जाने की आवश्यकता है. इस समय बैंकों के बकाया कर्जों का बड़ा भाग बड़ी कंपनियों के पास है, जिन्हें आदर्शत: बॉन्ड मार्केट से पूंजी जुटानी चाहिए, नकि बैंकों से.

वित्तीय प्लेटफॉर्मों की पस्पर संबद्धता

भुगतान में देरी एमएसएमई उद्यमों के लिए एक बड़ी समस्या है. बड़ी खरीदार कंपनियों के छोटे उद्यमों को समय पर भुगतान नहीं करने के कारण उन्हें व्यवसाय के संचालन में धनाभाव का सामना करना पड़ता है. निश्चय ही ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस) प्लेटफार्म विभिन्न ऋणदाता कंपनियों से त्वरित ऋण दिलाने में सहायक है, पर इसका अधिक इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. सरकार को इस तरह की सुविधाओं की उपलब्धता और फायदों को लेकर जागरुकता अभियान चलाना चाहिए.

साथ ही, टीआरईडीएस और जीएसटीएन को परस्पर जोड़े जाने की घोषणा बजट 2018 में ही किए जाने के बावजूद अभी तक इसे कार्यान्वित नहीं किया जा सका है. इस तरह की संबद्धता ऋणदाताओं के फर्जी बिल संबंधी डर को कम कर सकेगी और इससे ऋण संबंधी अनुशासन भी बढ़ सकेगा. उद्यमों को टीआरईडीएस के जरिए उपलब्ध छूट को हासिल करने के लिए जीएसटी की अर्हता को पूरा करना पड़ेगा. इस तरह निर्मित नकदी प्रवाह संबंधी डेटाबेस छोटे उद्यमों को ऋण के बारे में त्वरित फैसले में बैंकों के भी काम आ सकेगा. इन सारे फायदों के मद्देनज़र आगामी बजट में टीआरईडीएस और जीएसटीएन को परस्पर जोड़े जाने की प्रक्रिया को तेज करने की पहल की जानी चाहिए.

फिनटेक ऋणदाताओं की भूमिका

आखिर में, सरकार को बाजार में अधिक संख्या में फिनटेक (प्रौद्योगिकी आधारित वित्तीय कंपनी) ऋणदाताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करनी चहिए. उल्लेखनीय है कि डिजिटल ऋणदाता कंपनियां जमानतरहित ऋण उत्पाद उपलब्ध कराती हैं और ज्यादा जोखिम उठाने के लिए तैयार रहती है. वे ग्राहकों के साख मूल्यांकन के लिए अत्याधुनिक साधनों का उपयोग करती हैं जिनमें न सिर्फ अतीत के नकदी प्रवाह और सामन्य वित्तीय सूचनाओं का आकलन किया जाता है, बल्कि भविष्य में व्यवसाय और उत्पादकता के विस्तार का भी अनुमान लगाया जाता है. यह सुझाव भी दिया जाता रहा है कि पीएसबी जैसे पारंपरिक ऋणदाताओं को भी फिनटेक कंपनियों के साथ साझेदारी करते हुए अपने ग्राहकों के ऋण धारण क्षमता के आकलन में नवीनतम परिष्कृत तरीकों का उपयोग करना चाहिए.


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केंद्रीय बजट 2020 में एमएसएमई उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने को लेकर एक सुसंगत और व्यावहारिक नीतिगत ढांचा तैयार करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. विभिन्न वित्तीय प्लेटफॉर्मों की परस्पर संबद्धता में आड़े आने वाले नीतिगत अवरोधों को तत्काल दूर किया जाना चाहिए. एमएसएमई सेक्टर की ऋण संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए फिनटेक ऋणदाताओं की विशेषज्ञता के उपयोग को सक्रिय बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

(राधिका पांडेय और अमृता पिल्लई नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस में क्रमश: फेलो और रिसर्च फेलो हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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