नई दिल्ली: महिलाओं के सिंदूर से लेकर कोल्हापुरी चप्पलों तक, जिसने दशकों से महाराष्ट्र के इस विख्यात ज़िले को देश के फैशन मैप पर बनाये रखा है.
बच्चों की किताबें जिन्हें बच्चे बिस्तर पर जाने के समय पढ़ते हैं. आज रात के खाने में आपको जो पापड़ दिया जाना हैं., यहां तक कि दक्षिण भारत की कलमकारी ड़िज़ाइन वाले कपड़े हों या बिहार का लोकप्रिय मधुबनी पैटर्न तक सबकुछ आपको आज सस्ते में ऑनलाइन मौजूद है.
मेकअप और ज्वेलरी से लेकर, विग, गुड़िया, बच्चों की किताबें, और प्लास्टिक फर्नीचर से लेकर आप के घर के आस-पास इस्तेमाल होने वाली एक एक वस्तु का नाम लेते हैं – यह सब ‘मेड इन चाइना’ होती है.
चीनी सामान भारतीय घरों में भरे परे हैं और यहां तक कि सबसे बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं. यहां तक की वो घरेलू क्षेत्र जहां भारत की छाप थी वहां भी चीन घुस आया है. कांथा कढ़ाई शिल्प से, लुंगी, धोती और ज़री साड़ी तक सभी में चीन की दखल बढ़ चुकी है.
चाहे स्टेशनरी हो या प्रसाधन का सामान, चीनी माल सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में किराने की दुकानों में तेज़ी से फ़ैल रहे हैं.
हालांकि, ये उत्पाद चीन से भारत के समग्र आयात के हिस्से में एक छोटा सा भाग है. लेकिन वे सस्ते चीनी आयात पर देश की बढ़ती निर्भरता का संकेत देते हैं, जो छोटे घरेलू व्यापारियों के बाज़ार में हिस्सेदारी को खा रहे हैं.
भारत चीन से 8,000 से अधिक तरह की वस्तुओं का आयात करता है, जो आठ अंकों के एचएसएन कोड के द्वारा होता है. यह व्यापारिक वस्तुओं को वर्गीकृत करने के लिए उपयोग किया जाता है.
जनवरी 2019 तक ख़त्म होने वाले 10 महीनों में भारत का कुल आयात 32 लाख करोड़ रुपये से अधिक था, जबकि वर्ष 2017-2018 पूरे वित्त वर्ष में यह 30 लाख करोड़ रुपये था. जनवरी 2018-19 के 10 महीनों में चीन से आयात 4.2 लाख करोड़ रुपये था और 2017-18 में 4.9 लाख करोड़ रुपये था.
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कुल भारतीय आयात में चीन की हिस्सेदारी लगभग 16 प्रतिशत रही है.
टी.एस. विश्वनाथ एपीजे-एसएलजी लॉ कार्यालय में एक प्रमुख सलाहकार हैं, जो व्यापार के मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि चीन ने सस्ती कीमत पर बड़े पैमाने पर उपभोग की वस्तुओं के निर्माण में उत्कृष्टता हासिल की है.
उन्होंने यह भी कहा, ‘चीन दो कारणों से भारतीय बाज़ारों को पूरी तरह से अपने कब्ज़े में ले चुका है. वो बाज़ार से पूरी तरह से यह पता लगाने के लिए शोध करते हैं कि मांग किन वस्तुओ की हैं और फिर लागत को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर उनका उत्पादन करने में सक्षम हैं.
विश्वनाथ ने कहा, ‘इसके विपरीत भारत में इन वस्तुओं का उत्पादन छोटे और सूक्ष्म उद्यमों द्वारा किया जाता है, जो कम कीमत पर इन वस्तुओं का उत्पादन करने की क्षमता नहीं रखते हैं या बाज़ार में प्रवेश नहीं कर सकते हैं’.
उन्होंने कहा कि ये वस्तुएं उन लोगों को बेची जाती हैं, जो मूल्य को लेकर संवेदनशील होते हैं, और चीन के माल के बहिष्कार की मांग का उनपर कोई असर नहीं होता. द्विपक्षयीय संबंधों में आते जाते तनाव के समय चीनी उत्पादों के बहिष्कार को लेकर हमेशा बाते होती रहती हैं.
विश्वनाथ ने कहा, ‘वे लोग जो (मूल्य को लेकर संवेदनशील होते हैं ) वो इतने राष्ट्रवादी कभी नहीं होंगे कि वे केवल स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करेंगे.’
भारत के एसएमई (लघु और मध्यम उद्योग) चैंबर के अध्यक्ष चंद्रकांत सालुंखे के अनुसार चीनी आयात और स्वदेशी वस्तुओं के बीच मूल्य का अंतर कम से कम 25 प्रतिशत है और यह कम लागत वाली छोटी वस्तु के लिए भी सही है.
रैकेट और फोन
जब से चीन विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ है, विश्व व्यापार संगठन राष्ट्रों के बीच व्यापार को नियंत्रित करता है. 2001 में चीन से भारत का आयात तेज़ी से बढ़ रहा है. वर्ष 2002-03 में 0.13 लाख करोड़ रुपये से 2007-08 में 1.09 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ गया और 2017-18 में 4.9 लाख करोड़ रुपये हो गया. 2002-03 में कुल भारतीय आयात में चीन की हिस्सेदारी भी 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 2007-08 में 10.7 प्रतिशत हो गई और 2017-18 में 16 प्रतिशत हो गई है.
2017-18 में भारत के चीनी आयात का 96 प्रतिशत से अधिक निर्मित माल था. एक ऐसा उद्योग जहां चीन ने भारत के ज़्यादातर लोगों पर कब्ज़ा कर लिया है.
प्रमुख आयात में इंजीनियरिंग सामान, मोबाइल फोन के उपकरण जैसे इलेक्ट्रॉनिक आइटम और रासायनिक उत्पाद शामिल हैं. 2017-18 में भारत के 83 प्रतिशत से अधिक सामान चीन से आयात किया.
पिछले पांच वर्षों में दूरसंचार उपकरणों का आयात भी दोगुना हो गया है, जो भारत में मोबाइल फ़ोन की इकाइयाें को स्थापित करने वाले चीनी मोबाइल फोन निर्माताओं की बढ़ती संख्या को दर्शाता हैं. कपड़ा और धातु भी कुछ अन्य प्रमुख वस्तुए है जिनका चीन से आयात होता हैं.
मुख्य रूप से आयात किए जाने वाले खेल के सामान और उपकरणों में शतरंज सेट, कैरम बोर्ड, बैडमिंटन रैकेट और शटलकॉक शामिल हैं.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स ऑर्गनाइज़ेशन के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय ने कहा कि जब चीन बेहतर उत्पादकता के साथ श्रम मज़दूरी के बढ़े खर्च की भरपाई करने में सक्षम था लेकिन भारत नहीं था.
उन्होंने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘चीन उत्पादकता बढ़ा कर कीमत कम रखने में सक्षम है, जिसे भारत दोहराने में सक्षम नहीं था’.
उन्होंने यह भी कहा ‘हमें भी ऐसा करने की ज़रूरत है … यह समय की मांग है. हमें घरेलू निर्माण और आयात दोनों के लिए मानक विकसित करने की भी आवश्यकता है, ताकि भारत में खराब क्वालिटी का माल डंप न किया जाए.’
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