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Sunday, 22 December, 2024
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दूध की बढ़ती कीमतों ने घरेलू बजट पर डाला असर, दिवाली तक राहत के आसार नहीं

नवंबर 2017- फरवरी 2020 के बीच दूध और इससे बने उत्पादों में मुद्रास्फीति सामान्य दर से 1-2% कम रही थी, लेकिन पिछले 3 महीनों में सामान्य मुद्रास्फीति की तुलना में यह कम से कम 2% अधिक हो गई है.

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नई दिल्ली: आपका सुबह का दूध का गिलास महंगा होता जा रहा है. पिछले हफ्ते, भारत की सबसे बड़ी दुग्ध सहकारी कंपनी अमूल ने दामों में प्रति लीटर तीन रुपये का इजाफा किया है, जिसके बाद मानक टोंड दूध की कीमत 54 रुपये प्रति लीटर हो गई.

एक अन्य प्रमुख डेयरी उत्पादक मदर डेयरी अपने दूध की कीमतों में पहले ही बढ़ोतरी कर चुका है. इसने दिसंबर में एक लीटर दूध पर दो रुपये बढ़ाए थे, जिससे इसके एक लीटर टोंड दूध की कीमत 53 रुपये पर पहुंच गई थी.

उपभोक्ता मामले विभाग की तरफ से रोज़ाना जारी किए जाने वाले आंकड़ों के मुताबिक, 7 फरवरी यानी मंगलवार तक एक लीटर दूध की कीमत औसतन 56 रुपये थी, जबकि पिछले साल इसी तारीख को दूध की कीमत 50.18 रुपये प्रति लीटर थी. औसत मूल्य उन सभी क्षेत्रों (340 बाज़ार केंद्रों) के औसत पर आधारित होता है जिसकी प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन समीक्षा करता है.

पिछले कुछ महीनों में मूल्य वृद्धि ने यह सुनिश्चित किया है कि अक्टूबर 2022 से भारत में दूध और दूध से बने उत्पादों की श्रेणी में मुद्रास्फीति सामान्य उत्पादों की श्रेणी की तुलना में अधिक रही है.

विशेषज्ञों का मानना है कि दामों में बढ़ोतरी मांग और आपूर्ति कारकों की परस्पर क्रिया के कारण हुई है. कोविड-19 महामारी के लंबे समय तक बने रहने वाले प्रभावों के साथ-साथ दूध उत्पादक पशुओं के लिए चारे की कीमतों में वृद्धि और दूध की आपूर्ति में कमी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं.


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कीमतों का बढ़ना

भारतीय डेयरी संघ के अध्यक्ष और अमूल के पूर्व प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी के मुताबिक, महामारी ने दूध की मांग पर खासा असर डाला था, खासतौर पर कमर्शियल सेक्टर में.

सोढ़ी ने बताया, ‘‘महामारी के दौरान दूध की मांग में भारी गिरावट आई थी. बड़े आयोजनों (सामूहिक समारोहों) जैसे विवाह और अन्य कार्यों की अनुमति नहीं थी (महामारी लॉकडाउन या प्रतिबंधों के कारण) और रेस्तरां भी काफी समय के लिए बंद थे. इस सबके चलते इन उद्योगों में दूध की मांग कम हो गई. नतीजतन, कोविड के महीनों के दौरान कीमतें नहीं बढ़ीं और किसानों को नुकसान हुआ.’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब दूध की मांग में काफी बढ़ोतरी नज़र आ रही है और ये मौजूदा आपूर्ति पर दबाव बढ़ा रहा है. इसलिए कीमतें बढ़ रही है.’’

उपभोक्ता मामलों के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार, 2020 में दूध की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर थीं. यह वही समय था जब भारत ने महामारी को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए थे. उस साल औसतन दूध के दाम सिर्फ 1.72 रुपए बढ़े थे.

इसके पिछले साल यानी 2019 में दूध के दाम औसतन 2.22 रुपये प्रति लीटर बढ़े थे. यह कोविड महामारी की शुरुआत से पहले का साल था.

हालांकि, 2021 में भी देश महामारी की चपेट में रहा था,लेकिन सरकार ने इस दौरान कुछ प्रतिबंधों में ढील देना शुरू कर दिया था. लोगों को वैक्सीन लगनी शुरू हो गई थी और लोगों ने बाहर आना-जाना शुरू कर दिया था. इस समय दूध के दाम औसतन तीन रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गए. 2022 में यह बढ़ोतरी औसतन 5 रुपये प्रति लीटर थी.

दिप्रिंट ने मुद्रास्फीति के आंकड़ों का विश्लेषण किया था, जिसमें पता चला कि दूध की कीमतों में अक्टूबर 2020 के बाद की वृद्धि दर्शाती है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) की ‘दूध और दूध उत्पादों’ श्रेणी में मुद्रास्फीति देश में समग्र मुद्रास्फीति दर से अधिक रही है.

यह दूध की कीमतों में पहले देखी गई मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति के विपरीत है, जहां दूध और दूध से बने उत्पादों की मुद्रास्फीति दर सामान्य उत्पादों की तुलना में कम होती थी.

Graphic: Manisha Yadav | ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

दूध की कीमतों में मुद्रास्फीति पर सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के मासिक सीपीआई डेटा द्वारा निगरानी की जाती है. यह जुलाई 2020 और सितंबर 2022 के बीच ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए सामान्य सीपीआई मुद्रास्फीति से कम थी.

नवंबर 2017 और फरवरी 2020 के बीच दूध से बने उत्पादों की मुद्रास्फीति दर सामान्य सीपीआई दर से औसतन 1-2 प्रतिशत अंक नीचे थी. मार्च 2020 और जून 2020 के बीच कोविड लॉकडाउन के दौरान यह सामान्य सीपीआई (1.5 प्रतिशत अंक) से थोड़ा अधिक हो गई, उसके बाद सितंबर 2022 तक दूध और दूध उत्पादों की मुद्रास्फीति दर सामान्य सीपीआई मुद्रास्फीति दरों से कम रही है.

हालांकि पिछले तीन महीनों में दूध मुद्रास्फीति की दर देश में सामान्य मुद्रास्फीति की दर से कम से कम 2 प्रतिशत अधिक रही है.


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चारे की कीमत और दूध के दामों का बढ़ना

सोढ़ी के अनुसार, किसान महामारी के शुरुआती दौर में मांग की तुलना में आपूर्ति ज्यादा होने के कारण घाटे का सामना कर रहे थे, उन्होंने अपनी गायों में निवेश नहीं किया. इस वजह से जब मांग फिर से बढ़ने लगी तो आपूर्ति कम हो गई. दूध की कीमतों में बढ़ोतरी के कारणों में से यह एक कारण यह भी है.

सोढ़ी ने कहा, ‘‘डेयरी किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, जिससे दूध की आपूर्ति बढ़ाने की उनकी क्षमता सीमित हो गई.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘दूध की आपूर्ति के लिए एक प्रमुख निर्धारक, इसके उत्पादन पर होने वाला खर्च भी है. इसमें 75 प्रतिशत हिस्सेदारी चारा/पशु चारा की होती है.’’

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की तरफ से हर महीने जारी होने वाले थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के अनुसार, अक्टूबर 2020 से चारा मूल्य मुद्रास्फीति 10 फीसदी से ऊपर रही है (अक्टूबर 2021 और जनवरी 2022 के बीच इसमें थोड़ी राहत बनी रही थी, जब यह गिरकर 5 प्रतिशत के औसत पर आ गई.)

पिछले साल मई से 20 फीसदी से अधिक की मुद्रास्फीति दर का सामना करते हुए, 2022 में चारे की कीमतें आसमान छू गईं. दिसंबर 2022 में यह अपने उच्चतम बिंदु (जनवरी 2014 से) 28.7 प्रतिशत पर पहुंच गई.

डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले वस्तुओं की कीमतों में आने वाले परिवर्तन को मापती है.

Graphic: Manisha Yadav | ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

सोढ़ी ने कहा, ‘‘दूध अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति काफी कड़ी है. आपूर्ति की तुलना में मांग तेज़ी से बढ़ी है और हमें बढ़ती इनपुट लागतों का भी हिसाब देना होगा. उपभोक्ता के नज़रिए से आप इसे मुद्रास्फीति कह सकते हैं, लेकिन निर्माता की ओर से देखें तो यह उनकी आय है और उन्हें असहज स्थिति का सामना भी नहीं करना चाहिए.’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह इस साल दिवाली तक राहत के आसार नहीं है. हम तब तक आपूर्ति के बढ़ जाने की उम्मीद कर रहे हैं और तब कीमतें स्थिर हो जाएंगी.’’

(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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