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Friday, 3 May, 2024
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कर्ज को लेकर निष्पक्षता, पारदर्शिता, जवाबदेही बढ़ाने की कोशिश, RBI ने जारी की गाइडलाइंस

आरबीआई का यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए है कि उधारकर्ताओं के साथ उचित व्यवहार हो और दंडात्मक शुल्क लगाने में अलग-अलग प्रैक्टिसेज से पैदा होने वाली शिकायतों का समाधान हो. 

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नई दिल्ली : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने वित्तीय संस्थानों की ऋण प्रैक्टिसेज में निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए ऋण खातों में दंडात्मक शुल्क के संबंध में व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं.

यह दिशा-निर्देश सभी कॉमर्शियल बैंकों पर लागू होंगे, जिसमें स्माल फाइनेंस बैंक्स, लोकल एरिया बैंक्स, और रीजनल रूरल बैंक्स, साथ ही प्राइमरी (शहरी) कोऑपरेटिव बैंक्स, नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनीज (एनबीएफसी), और ऑल इंडिया फाइनेंसियल इन्स्टीट्यूशंस इसमें शामिल हैं.

आरबीआई का यह कदम यह सुनिश्चित करने के तौर पर आया है कि उधारकर्ताओं के साथ उचित व्यवहार किया जाए और दंडात्मक शुल्क लगाने में अलग-अलग प्रैक्टिसेज से पैदा होने वाली ग्राहकों की शिकायतों का समाधान हो.

नये दिशा-निर्देश के तहत, वित्तीय संस्थानों को प्रमुख सिद्धांतों का पालन करना जरूरी है.

दिशा-निर्देश इस बात पर जोर देता है कि ऋण अनुबंध के नियमों और शर्तों का अनुपालन न करने पर लगाया गया कोई जुर्माना, ‘दंडात्मक ब्याज’ के बजाय ‘दंडात्मक चार्ज’ माना जाएगा.

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इसका मतलब यह है कि एडवांसेज पर लगने वाले ब्याज की दर में दंडात्मक शुल्क नहीं जोड़ा जाना चाहिए, और ऐसे शुल्कों पर कोई और ब्याज नहीं लगाया जाना चाहिए.

दंडात्मक चार्ज उचित और गैर-अनुपालन के स्तर के अनुरूप होने चाहिए. इन शुल्कों को ग्राहकों को ऋण समझौते के नियम और शर्तों और मुख्य फैक्ट विवरण (केएफएस) में स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए.

इसके अतिरिक्त, उन्हें वित्तीय संस्थान की वेबसाइट पर ब्याज दरों और सेवा शुल्कों से संबंधित अनुभाग के तहत प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए.

वित्तीय संस्थानों को दंडात्मक शुल्क या ऋण पर इसी तरह के शुल्क पर बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति तैयार करने की जरूरत है.

इस नीति में शुल्कों के औचित्य, उनकी मात्रा निर्धारित करने के मानदंड और विभिन्न ऋण/उत्पाद श्रेणियों में उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया जाना चाहिए.

यह दिशानिर्देश व्यक्तिगत उधारकर्ताओं (व्यवसाय के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए) को स्वीकृत ऋणों के लिए दंडात्मक शुल्क लगाने को लेकर निष्पक्षता सुनिश्चित करे कि यह समान गैर-अनुपालन का सामना करने वाले गैर-व्यक्तिगत उधारकर्ताओं पर लागू होने वाली दरों से अधिक न हों.

जब भी महत्वपूर्ण नियमों और शर्तों का अनुपालन न करने के लिए रिमाइंडर भेजे जाएं तो वित्तीय संस्थानों को उधारकर्ताओं के लिए लागू दंडात्मक शुल्क के बारे में स्पष्ट रूप से बताएं.

इसके अलावा, दंडात्मक शुल्क लगाने के किसी भी उदाहरण और उनके लगाए जाने के कारणों को भी सूचित किया जाना चाहिए.

ये निर्देश 1 जनवरी 2024 से लागू होंगे. वित्तीय संस्थानों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने नीति ढांचे को उसी के मुताबिक संशोधित करें और प्रभावी तिथि से लिए गए या नवीनीकृत सभी नए ऋणों के लिए नए दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करें.

मौजूदा ऋण, अगली समीक्षा या नवीनीकरण तिथि पर, या इन निर्देशों की प्रभावी तिथि के 6 महीने के भीतर, जो भी पहले हो, नई दंडात्मक शुल्क व्यवस्था में परिवर्तित हो जाएंगे.

इन दिशानिर्देशों के पीछे आरबीआई का उद्देश्य वित्तीय संस्थानों की प्रैक्टिसेज को ग्राहक-केंद्रित सिद्धांतों के अनुरूप करना, पारदर्शिता बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि दंडात्मक चार्ज राजस्व वृद्धि उपकरण के रूप में कार्य करने के बजाय क्रेडिट अनुशासन पैदा करने की अपने मकसद को पूरा करें.


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