नई दिल्ली: डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (दीपम) के सचिव तुहिन कांता पांडे का कहना है कि मोदी सरकार को सरकारी बैंकों के निजीकरण के बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है कि इसका उद्देश्य नौकरियों को छीनना नहीं है, बल्कि रोजगार के और अवसर पैदा करना है.
दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में पांडे ने कहा कि यदि बैंकों का निजीकरण नहीं किया जाता है, तो एक बड़ी समस्या उठ खड़ी होगी है, क्योंकि संगठनों में पर्याप्त तेज़ी से बदलाव नहीं होगा या फिर अपने व्यवसाय को जारी रखने के लिए उनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं होगी.
पांडे के कहा, ‘हमें इस बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है कि (राज्य के स्वामित्व वाले ) बैंकों का निजीकरण नौकरियों को छीनने के लिए नहीं है. दरअसल, निजीकरण नौकरियों, वो भी स्थाई नौकरियों, को बढ़ाने के लिए किया जाता है. यदि संगठन पर्याप्त तेजी से नहीं बदल पाते हैं, तो वे प्रचलन से बाहर हो सकते हैं.’
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की राह आसान बनाने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में कुछ क़ानूनी बदलाव किये जाने की उम्मीद थी. मगर, बैंक कर्मचारी संघों की देशव्यापी हड़ताल के बाद इस कदम को फ़िलहाल रोक दिया गया है.
दिप्रिंट ने दिसंबर में इस बारे में विशेष रूप से खबर प्रकाशित की थी कि मोदी सरकार अब इन कानूनी परिवर्तनों को मार्च में समाप्त होने वाले पांच राज्यों के चुनावों के बाद पेश कर सकती है क्योंकि विवादास्पद कृषि सुधार कानून के अपने अनुभव से सीख लेने के बाद वह नहीं चाहती थी कि बैंक यूनियनों द्वारा किया जाने वाला हो-हल्ला इन चुनाव के परिणाम को प्रभावित करे.
बता दें कि वित्त मंत्री ने अपने 2021-22 के बजट में ही राज्य के स्वामित्व वाले दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी.
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बीपीसीएल का निजीकरण भी अटका पड़ा है
भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के निजीकरण के बारे में पांडे ने बताया कि इस कंपनी में सरकार की सम्पूर्ण हिस्सेदारी के लिए बोली लगाने वालों को अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत है क्योंकि इस सौदे का आकार काफी बड़ा है.
इसके तहत ईंधन की इस सरकारी खुदरा विक्रेता कंपनी में सरकार की 52.98 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री प्रस्तावित है, जिसके लिए अरबपति व्यापारी अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांत समूह द्वारा लगाई गई बोली सहित कई प्रारंभिक बोलियां (इनिशियल बिड्स) पहले ही प्राप्त हो चुकी हैं.
पांडे ने कहा कि सरकार अभी तक इन बोली लगाने वालों को वित्तीय बोली (फाइनेंसियल बिड्स) लगाने के लिए राजी नहीं कर पाई है.
उन्होंने कहा, ‘हम उन्हें अभी तक वित्तीय बोली लगाने के लिए राजी करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं. हमें उनसे और इस सौदे के लिए हमारे सलाहकारों से, इस (बोलियों) बारे में एक बेहतर अंदाजा मिलेगा, और फिर हम आगे की कार्रवाई करेंगे.’
नतीजतन, बीपीसीएल के निजीकरण का कार्य अब 2022-23 तक आगे बढ़ा दिया जाएगा. इससे सरकार को 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त होने की उम्मीद है.
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पहले 5 वर्षों में एलआईसी का केवल 25% विनिवेश होगा
पांडे ने कहा, ‘जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) के लिए ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस अगले सप्ताह शेयर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सिक्योरिटीज एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया-सेबी) के पास दर्ज कराया जाएगा.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह आईपीओ अब मार्च में जारी किया जायेगा.
उन्होंने कहा कि सरकार एलआईसी के शेयर बाजार में सूचीबद्ध किये जाने (लिस्टिंग) के माध्यम से पहले पांच वर्षों में अपनी लगभग 25 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचने का इरादा रखती है.
उन्होंने कहा, ’एलआईसी क़ानूनी रूप से सरकारी नियंत्रण में ही रहेगी, क्योंकि हम हमेशा अपनी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी बरकरार रखेंगे. और पहले 5 वर्षों के भीतर, हमारे द्वारा केवल 25 प्रतिशत का ही विनिवेश होगा.’
एलआईसी का आईपीओ सरकार के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, जैसा कि बजट 2022-23 में अनुमानित किया गया है, यह वित्त वर्ष 2021-22 में 78,000 करोड़ रुपये के विनिवेश के संशोधित लक्ष्य में मौजूदा कमी को पूरा करने में मदद करेगा .
सरकार अभी तक सरकारी कंपनियों में अपनी अल्पांश वाली हिस्सेदारी (माइनॉरिटी स्टॉक) के विनिवेश और एयर इंडिया के निजीकरण से केवल 12,029 करोड़ रुपये जुटाने में सफल रही है. शेष राशि एलआईसी की लिस्टिंग से आने की संभावना है.
सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए विनिवेश से 65,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है, जो चालू वित्त वर्ष के बजट में अनुमानित 1.75 लाख करोड़ रुपये से बहुत कम है.
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