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Saturday, 21 December, 2024
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कौन है वर्ल्ड बैंक के दिग्गज, NCAER प्रमुख और नीति आयोग के नए उपाध्यक्ष सुमन बेरी

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य बेरी एक मई को राजीव कुमार की जगह लेंगे.

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नई दिल्ली: मोदी सरकार के थिंक-टैंक नीति आयोग को नया वाइस चेयरमैन मिल गया है. अर्थशास्त्री सुमन के. बेरी एक मई से अपना पदभार संभालेंगे.

अगस्त 2017 में अरविंद पनगढ़िया की जगह लेने वाले कुमार ने शुक्रवार को अपने इस्तीफे की घोषणा की थी, जिसके बाद अब केंद्र की मोदी सरकार ने डॉ सुमन के. बेरी को उनकी जगह नियुक्त किया है.

डॉ सुमन बेरी ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मैग्डलीन कॉलेज से राजनीति, दर्शन और अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन की है. अपने करियर की शुरुआत में बेरी 1972 से लेकर 2000 तक यानी तकरीबन 28 सालों तक विश्व बैंक से जुड़े रहे. उन्होंने इसके पब्लिक फाइनेंस डिविजन में एक अर्थशास्त्री और लैटिन अमेरिका में विश्व बैंक के संचालन के लिए डिवीजन प्रमुख, आर्थिक सलाहकार और प्रमुख अर्थशास्त्री के रूप में काम किया है.

भारत में उदारीकरण के दौर में 1992-1994 तक बेरी ने विश्व बैंक से छुट्टी पर रहते हुए भारतीय रिजर्व बैंक, बॉम्बे के विशेष सलाहकार के रूप में काम किया.

2001 में भारत लौटने पर बेरी नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) में महानिदेशक के रूप में शामिल हो गए. यह नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थानों में से एक हैं. वह 2011 तक इस पद पर बने रहे थे.

अर्थशास्त्री इला पटनायक कहते हैं ‘वह एक बहुत अच्छे मैक्रोइकॉनॉमिस्ट हैं. हम वर्षों से एक-दूसरे के संपर्क में रहे हैं. न केवल एनसीएईआर में बल्कि कई अन्य चीजों पर भी साथ काम किया है.’

वह प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद, आरबीआई के तकनीकी सलाहकार समिति और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के सदस्य भी रहे हैं.

सुमन बेरी 2012 की शुरुआत से 2016 के मध्य तक बेरी द हेग, नीदरलैंड में स्थित शेल इंटरनेशनल के मुख्य अर्थशास्त्री थे. ब्रसेल्स में स्थित एक इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च  इंस्टीट्यूशन रेजिडेंट फेलो और मास्टर कार्ड सेंटर फॉर इंक्लूसिव के एक वरिष्ठ फेलो भी रहे हैं.

इंडिया टुडे ने शेल में उनके कार्यकाल के बारे में बताते हुए लिखा है, ‘डॉ बेरी ने ग्लोबल इकोनॉमिक और पॉलिटिकल डेवलपमेंट पर रॉयल डच शेल के बोर्ड और मैनेजमेंट को सलाह दी’ वो आगे लिखते हैं, ‘वह शेल के ग्लोबल सिनेरियो ग्रुप की सीनियर लीडरशिप का हिस्सा भी रहे हैं. शेल में रहते हुए उन्होंने भारत के ऊर्जा क्षेत्र में सिनेरियो मॉडलिंग को लागू करने के लिए भारतीय थिंक टैंक के साथ एक कॉलेबोरेटिव प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया था.’

वह 2003 से 2020 तक बिजनेस स्टैंडर्ड के लिए नियमित रूप से लिखते रहे थे. उन्होंने अपने कॉलम और लेखों के जरिए भारत और विश्व स्तर पर आर्थिक और मौद्रिक नीतियों के बारे में अपनी राय व्यक्त की थी.


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G20 की आलोचना

जिन मुद्दों पर डॉ. बेरी ने विस्तार से लिखा, उनमें से एक है -वैश्विक आर्थिक नीति को आकार देने में जी-20 की भूमिका. 2018 में उन्होंने ‘वैश्विक विकास को बनाए रखने’ के समग्र लक्ष्य के लिए ‘वैश्विक चुनौतियों पर भारत और चीन के बीच बढ़ी हुई बातचीत और सहयोग’ के लिए तर्क दिया था.

उन्होंने कॉलम में लिखा, ‘संसाधनों की खपत और आर्थिक प्रभाव के बीच बेहतर संतुलन बनाने के लिए G20 की अपनी प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता है.’

कुछ साल बाद अक्टूबर 2021 में उन्होंने कोविड -19 महामारी के प्रभाव पर G20 की आर्थिक प्रतिक्रिया और दुनिया के सबसे गरीब देशों की सहायता करने में विफलता के लिए उनकी आलोचना की थी.

उन्होंने ब्रूगल के लिए शोध विश्लेषक पॉलीन वेइल के साथ सह-लेखक के रूप में लिखा, ‘टीकों तक पहुंच बनाने के लिए आर्थिक सुधार होना बहुत जरूरी है’ उन्होंने आगे लिखा, ‘हालांकि जी 20 ने दुनियाभर में वैक्सीन की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रतिबद्धताओं पर जोर दिया है. इसमें अक्टूबर 2021 की कार्य योजना की समीक्षा भी शामिल है. लेकिन यह अब तक टीकाकरण दरों में बड़ी विसंगतियों से बचने में विफल रहा है. गरीब देशों में स्वास्थ्य संकट को दूर करने में लगातार कमियों को संबोधित करने के लिए जी20 सही मंच है. अगली जी20 बैठक इंडोनेशिया (2022) और भारत (2023) में होंगी. उन्हें न केवल जलवायु पर बल्कि वैश्विक एकजुटता से जुड़ी कूटनीति के साथ-साथ अन्य विषयों पर भी बात करनी चाहिए.’

बेरी ने निकट भविष्य में भारत की आर्थिक कूटनीति के महत्व और मल्टीलेटरिज्म द्वारा निभाई गई भूमिका पर भी लिखा है. बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने एक कॉलम में उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया, ‘विश्व बहुपक्षीय संस्थानों से आगे बढ़कर द्विपक्षीय बातचीत को महत्व देने लगा है. जैसा कि देखा गया है एक लंबे समय से भारत की इस मंच पर शीर्ष पर बना रहा है. जैसे-जैसे 2022 नजदीक आ रहा है, हमें यह तय करना होगा कि हमें क्या चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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