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Tuesday, 17 December, 2024
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युद्ध की वजह से बढ़ा निकेिल का दाम, भारत के स्टील निर्माता इससे कैसे निपट रहे हैं

भारत में स्टेनलेस स्टील इंडस्ट्री सबसे ज़्यादा निकेल का आयात करती है. रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध की वजह से इसके दाम तेजी से बढ़े हैं. ऐसे में भारतीय निर्माताओं ने बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए कुछ हद तक तोड़ निकाल लिया है.

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नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक स्तर पर कच्चे माल के दामों में तेजी से उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. खासकर, निकिल के दाम में वैश्विक स्तर तेजी आई है. रूस, निकिल के बड़े उत्पादक देशों में शामिल है. यह कुल वैश्विक आपूर्ति का आठ फीसदी हिस्सा निर्यात करता है. हालांकि, भारत रूस से निकिल आयात नहीं करता है. इसके बावजूद, यहां निकिल की कमी देखने को मिल रही है. ऐसा इसलिए, क्योंकि हर जगह आपूर्ति प्रभावित हुई है और इसकी वजह से निकिल के दाम में तेजी आई है.

भारत में इसका सबसे ज़्यादा असर स्टेनलेस स्टील उद्योग पर देखने को मिल रहा है. ये उद्योग निकिल के मुख्य आयातकर्ता हैं.

सात मार्च को लंदन मेटल एक्सचेंज में निकिल की कीमत प्रति टन 100,000 डॉलर तक पहुंच गई. इसके बाद, एक्सचेंज ने इसकी खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी. हालांकि, बाद में निकिल के दाम में, बढ़ी हुई इस कीमत के मुकाबले काफी कमी आई है. इसके बावजूद, इसका असर स्टेनलेस स्टील के निर्माताओं पर बना हुआ है. स्टेनलेस स्टील के इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों पर भी इसका असर होगा. शुक्रवार को निकिल की कीमत 35,500 डॉलर प्रति टन थी.

निकिल के दाम बढ़ने से, छुरी-कांटे, सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट से लेकर ऑटोमोबाइल के पूर्जे जैसे स्टेनलेस स्टील के सामानों की कीमत बढ़ने की आशंका है. हालांकि, भारत के स्टील उद्योग अंतराष्ट्रीय बाजार में निकिल के दाम में हुई वृद्धि से निपटने के लिए अलग-अलग रणनीतियां अपना रहे हैं. दिप्रिंट, उन रणनीतियों को यहां पर समझा रहा है.

अलग-अलग ग्रेड के स्टील के इस्तेमाल को बढ़ावा

भारत में स्टेनलेस स्टील निर्माता अंतराष्ट्रीय बाजार में निकिल के दाम में उतार-चढ़ाव से बचने के लिए, यह पक्का कर रहे हैं कि उनके पास निकेल के पर्याप्त भंडार हो.

इंडियन स्टेनलेस स्टील डेवलपर एसोसिएशन (ISSDA) के प्रमुख केके पहुजा ने दिप्रिंट को बताया कि इस संकट से बचने का एकमात्र तरीका यही है कि उद्योग ऐसे ग्रेड के स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल करें, जिनमें ज़्यादा मात्रा में निकिल मिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है.

उन्होंने बताया कि भारतीय निर्माता आमतौर पर तीन तरह के स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल करते हैं. इनमें सबसे पहला है, 300 सीरीज़ या ऑस्टेनिटिक स्टेनलेस स्टील. इसमें, मिश्र धातु के तौर पर करीब 20 फीसदी निकिल का इस्तेमाल होता है.

दूसरा है, 200 सीरीज वाले स्टेनलेस स्टील, इसमें करीब चार से छह फीसदी निकेल का इस्तेमाल होता है और तीसरा फेराइट स्टेनलेस स्टील है, जिसमें निकिल मिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है.

पहुजा ने कहा, ‘ग्राहकों पर ज़्यादा असर न हो, इसलिए स्टेनलेस स्टील के ज़्यादातर मैन्युफैक्चरर दूसरी और तीसरी कैटेगरी के (स्टेनलेस स्टील) बनाना शुरू कर दिया है. लेकिन, फूड इंडस्ट्री के लिए 300 सीरीज का इस्तेमाल करना अनिवार्य है… उन्होंने इसी का इस्तेमाल जारी रखा है.’

यह पूछे जाने पर कि इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों पर दाम बढ़ने का क्या असर होगा, पहुजा ने कहा कि मूल्य एक संवेदनशील मामला है और इसको लेकर प्रतियोगिता बनी रहती है, ऐसे में कंपनी यह खुलासा नहीं करती हैं कि वे किस मूल्य पर स्टेनलेस स्टील बेचेंगी. सामान के मूल्य में वृद्धि का अनुमान लगा पाना मुश्किल है.

रीयल टाइम में कीमत अपडेट करना और कबाड़ का फिर से इस्तेमाल

जोखिम से बचने के लिए ज़्यादातर स्टेनलेस स्टील निर्माता अलग-अलग तरह की रणनीतियों को अपना रहे हैं, ताकि ग्राहकों पर निकेल के बढ़े दाम का बोझ न पड़े

उदाहरण के लिए, भारत के शीर्ष स्टेनलेस स्टील निर्माताओं में एक जिंदल स्टेनलेस, जो कुछ बेचता है और जो कच्चे माल खरीदता है उसका रीयल-टाइम में तालमेल बिठाता है.

V2 भारत के शीर्ष स्टेनलेस स्टील निर्माताओं में एक जिंदल स्टेनलेस स्टील मांग के हिसाब से ही स्टील की खरीदारी कर रहा है.

इससे, कंपनी को निकिल की कीमत में हो रहे उतार-चढ़ाव से बचने में मदद मिलती है.

जिंदल स्टेनलेस स्टील लिमिटेड (जेएसएल) के मैनेजिंग डायरेक्टर अभ्युदय जिंदल ने कहा, ‘कंपनी को ज़्यादातर ऑर्डर लंबे समय तक आपूर्ति के लिए अनुबंध किए गए हमारे ग्राहकों से मिलते हैं. हमारे पास डाइवर्सिफाइड मिक्स ऑफ पोर्टफोलियो हैं जिनमें ज़्यादा निकेल के साथ ही कम और बिना निकेल वाले प्रोडक्ट की रेंज हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे उत्पादन का तरीका, बाजार की मांग और कच्चे माल की उपलब्धता के हिसाब से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बड़े पैमाने पर बनाने में सक्षम है.’

कंपनी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि कच्चे माल के आयात के लिए रूस पर जेएसल की निर्भरता बहुत कम है. कंपनी अपनी ज़्यादातर ज़रूरत, स्क्रैप और निकेल पिग आयरन से पूरी करती हैं, जिन्हें भारत, इंडोनेशिया जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों और थोड़ी मात्रा में यूरोप से मंगवाया जाता है.

मार्केट के विशेषज्ञों का मानना है कि स्टेनलेस निर्माताओं को उतनी चुनौती नहीं मिली है, क्योंकि वे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग को पूरा करने में सक्षम हैं.

एस एंड पी ग्लोबल के लिए काम करने वाली अशिमा त्यागी, भारतीय और एशिया के स्टील बाजारों पर नजर रखती हैं. उन्होंने कहा कि भारत के स्टेनलेस स्टील के कारखाने, वैश्विक स्तर पर निकिल के बढ़े दामों के असर से निपटने में सक्षम हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि वे स्टेनलेस स्टील के स्क्रैप का इस्तेमाल कच्चे माल के तौर पर करते हैं, जिसमें निकेल पहले से मौजूद होता है. ऐसे में उन्हें शुद्ध निकेल आयात करने की कम ज़रूरत पड़ती है.

उन्होंने कहा, ‘घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे माल खरीदने के लिए अलग-अलग स्रोतों पर निर्भरता की रणनीति के साथ घरेलू प्रोजेक्ट और निर्यात सहित ऑर्डर बुक की मजबूत स्थिति की वजह से उन्हें मौजूदा अनिश्चितताओं पर काबू पाने में मदद मिली है.’

इस्पात मंत्रालय द्वारा प्रकाशित संयुक्त संयंत्र समिति के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2021-फरवरी 2022 के दौरान, भारत ने इटली (128,000 मीट्रिक टन), रूस (68,400 मीट्रिक टन), , इंडोनेशिया (56,900 मीट्रिक टन), और बेल्जियम (45,500 मीट्रिक टन) सहित दूसरे देशों को करीब एक मिलियन मीट्रिक टन (एमटी) मिश्र धातु या स्टेनलेस स्टील का निर्यात किया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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