नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार अपनी स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetisation Scheme, GMS) में बदलाव की तैयारी कर रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव का जोखिम ग्राहकों भी साझा करें और यह केवल सरकार को ही वहन न करना पड़े. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि ग्राहकों को अपना बेकार सोना बैंकों में जमा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार मुद्रास्फीति-संरक्षित रिटर्न देने के लिए तैयार रहेगी, जहां जमा की मूल राशि को मुद्रास्फीति दर से जोड़ा जाएगा.
2015 में लॉन्च जीएसएम के तहत लोगों को अपना बेकार सोना आरबीआई के दायरे में आने वाले बैंकों में जमा करके उस पर ब्याज अर्जित करने की सुविधा मिली हुई है, यह किसी फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह काम करता है. जमाकर्ता चुनी गई अवधि के आधार पर 2.5 प्रतिशत तक ब्याज कमा सकते हैं.
स्वर्ण जमा पर अर्जित ब्याज पूंजीगत लाभ कर, संपत्ति कर और आयकर से मुक्त है. मैच्योरिटी पर शॉर्ट टर्म और मीडियम टर्म गोल्ड डिपॉजिट की वापसी सोने के रूप में की जा सकती है. लेकिन लॉन्ग टर्म डिपॉजिट में सोने के बराबर मूल्य को रुपये के रूप में लौटाया जाता है.
वित्त मंत्रालय अब आरबीआई और अन्य हितधारकों के साथ योजना की संरचना को लेकर समीक्षा कर रहा है, क्योंकि पुनर्भुगतान में योजना की मौजूदा लागत- मूलधन और ब्याज मिलाकर- उसके ट्रेजरी बिलों (टी-बिल) के माध्यम से उधार लेने की लागत से अधिक हो रही है, जिसे सरकार लागत की गणना के लिए एक बेंचमार्क के तौर पर इस्तेमाल करती है.
टी-बिल सरकार की तरफ से तीन अवधियों के लिए जारी किए जाने वाले अल्पकालिक ऋण साधन होते हैं और इन पर 4.5 से 6.0 प्रतिशत तक लाभ मिलता है.
अधिकारी ने कहा कि संशोधित योजना- जो अभी हितधारकों के बीच परामर्श के स्तर पर है- के मुताबिक, जमा अवधि पूरी होने के बाद जमाकर्ता के लिए सोने की कीमत वही रहेगी जो जमा के समय थी.
उदाहरण के तौर पर, मान लो कि किसी उपभोक्ता ने जीएमएस के तहत अपना बेकार सोना बैंक में 25,000 रुपये प्रति 10 ग्राम की दर से जमा किया है और पांच साल बाद जमा के मैच्योर होने के समय सोने की कीमत 35,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक बढ़ गई है. तब भी, जमा पर दिए गए ब्याज और मूल राशि के पुनर्भुगतान की गणना उसी कीमत पर की जाएगी जिस पर इसे जमा किया गया था—यानी 25,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के हिसाब से.
आरबीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, मौजूदा समय में मैच्योरिटी अवधि पूरी होने पर जीएमएस के तहत सोने की जमा राशि पर ब्याज की गणना प्रारंभिक मूल्य पर की जाती है, जबकि मूलधन की गणना उस मूल्य पर की जाती है जो स्वर्ण जमा वापस लेने के दिन होती है. यह सरकार को महंगा पड़ता है.
अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि योजना के प्रावधानों में संशोधन के साथ, ‘मूल्यों में उतार-चढ़ाव का जोखिम सरकार की बजाये ग्राहक की तरफ हस्तांतरित होगा.’
यही नहीं, अधिकारी ने कहा, भले ही जमा वापसी के समय सोने की कीमत जमा के समय की तुलना में कम हो, सरकार सोने पर ब्याज और मूल चुकाने की गणना उसी दिन की कीमत के आधार पर करेगी जिस दिन सोना जमा किया गया था.
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फिजिकल गोल्ड में निवेश घटाने की कोशिश
योजना में संशोधन का प्रस्ताव एक साल पहले की तुलना में 2021-22 में सोने के आयात में 33 प्रतिशत उछाल के बाद आया है. चालू वित्त वर्ष में उच्च मुद्रास्फीति के साथ मूल्य के संदर्भ में सोने के आयात की मात्रा और अधिक बढ़ने की संभावना है.
यह योजना शुरू करने के पीछे उद्देश्य, अन्य बातों के अलावा, निवेशकों को फिजिकल गोल्ड की खरीद से दूर करना और पेपर गोल्ड में निवेश को बढ़ाना था. पेपर गोल्ड शब्द का इस्तेमाल सोने से संबंधित परिसंपत्तियों के लिए किया जाता है जो सोने की कीमत दर्शाती हैं लेकिन सोना नहीं होतीं. क्योंकि सोने के उच्च आयात के साथ चालू खाते के घाटे (सीएडी), वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात के बीच अंतर पर दबाव बढ़ जाता है.
उच्च कमोडिटी कीमतों और घरेलू मांग में सुधार के संकेतों के साथ बढ़ते व्यापार घाटे के कारण सीएडी 2021-22 की तीसरी तिमाही में तेजी से बिगड़कर 23 अरब डॉलर (जीडीपी का 2.7 फीसदी) हो गया था, जो दूसरी तिमाही में 9.9 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.3 फीसदी) रहा था.
विभिन्न विश्लेषकों का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहने के साथ सीएडी 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग तीन प्रतिशत तक पहुंच सकता है.
दिप्रिंट ने मार्च में ही रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि मोदी सरकार जीएमएस पर पुनर्विचार कर रही है क्योंकि उसका मानना है कि लाभ की तुलना में इसकी लागत अधिक आ रही है, और यह योजना उन उद्देश्यों को हासिल करने में नाकाम रही है जिसके लिए इसे शुरू किया गया था.
अधिकारी ने कहा कि योजना शुरू करते समय इससे अपेक्षित लाभ- सोने के आयात में कमी या देश में बेकार पड़े सोने की होल्डिंग्स जुटाने के मामले में- लगभग 25,000 टन अनुमानित था लेकिन पाया गया है कि यह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया है.
योजना की शुरुआत के बाद से सरकार सोने की कुल होल्डिंग में से केवल 25 टन सोना ही जुटा पाई है. एक टन 1,000 किलोग्राम के बराबर होता है.
सरकार के लिए जीएमएस को किफायती बनाना
सरकार ने आरबीआई से इस योजना की व्यापक और संरचनात्मक समीक्षा करने को कहा था ताकि सरकार के लिए इसे और अधिक किफायती बनाने के उद्देश्य से बदलावों का सुझाव दिया जा सके.
ऊपर उद्धृत सरकारी अधिकारी ने कहा कि आरबीआई को लगता है कि सरकार के लिए इस योजना को बंद करना संभव नहीं है, क्योंकि इस योजना के तहत रियायतें दी गई हैं जो सोने के जमाकर्ताओं को टैक्स डिडेक्शन का दावा करने की अनुमति देती हैं और योजना की शुरुआत के बाद से इसके तहत लगभग 25,000 किलोग्राम सोना पहले ही जुटाया जा चुका है.
अधिकारी ने कहा, ‘टैक्स छूट जैसे तमाम कारणों से मांग की वजह से इस योजना को बंद नहीं किया जा सकता है लेकिन सरकार निश्चित तौर पर इससे जुड़ी लागत घटाने की कोशिशें कर सकती है.’
कोई उपभोक्ता इस योजना के तहत तीन प्रकार के स्वर्ण जमा का लाभ उठा सकता है. ये एक से तीन साल की अवधि के साथ शॉर्ट टर्म गोल्ड डिपॉजिट, 5 से 7 साल की अवधि के साथ मीडियम टर्म गोल्ड डिपॉजिट और 12-15 साल की अवधि के लिए लॉन्ग टर्म गोल्ड डिपॉजिट के तौर पर उपलब्ध हैं.
यद्यपि शार्ट टर्म डिपॉजिट बैंकों की तरफ से ऑपरेट किए जाते हैं, मीडियम और लॉन्ग टर्म डिपॉजिट के स्वर्ण जमा पर ब्याज सरकार की तरफ से स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के तहत वहन किया जाता है.
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