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Thursday, 25 April, 2024
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मद्रास हाई कोर्ट ने SPICEJET के खिलाफ समापन याचिका को बरकरार रखा, अपील के लिए दिया समय

मद्रास हाई कोर्ट स्पाइसजेट द्वारा एकल-न्यायाधीश के इस आदेश को रद्द करने की अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसमें इस कंपनी को बंद करने और एक प्रोविशनल लिक्विडेटर की नियुक्ति का निर्देश दिया गया था.

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नई दिल्ली: मद्रास हाई कोर्ट की एक बेंच ने मंगलवार को इसी अदालत के एक एकल जज द्वारा दिसंबर में दिए गए उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें स्पाइसजेट एयरलाइंस को 24 मिलियन डॉलर से अधिक का कर्ज चुकाने में विफल रहने के बाद अपनी कंपनी बंद करने का निर्देश दिया गया था.

अदालत इस मामले में कंपनी को बंद करने और एक प्रोविशनल लिक्विडेटर की नियुक्ति के एकल-न्यायाधीश के आदेश को रद्द करने के लिए इस एयरलाइन द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा थी.

यह मामला एक दशक से अधिक समय तक एसआर टेक्निक्स नाम की एक फर्म द्वारा एयरलाइन को दी जाने वाली इंजन रखरखाव सेवाओं के बदले में स्विस वित्तीय सेवा कंपनी, क्रेडिट सुइस, द्वारा किए गए भुगतान के रूप में $24 मिलियन से अधिक के ऋण से संबंधित है.

जस्टिस परेश उपाध्याय और जस्टिस साथी के.एस. कुरूप ने यह कहते हुए इस अपील को खारिज कर दिया कि कंपनी को बंद करने के आदेश में इसके द्वारा हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है.

इसने स्पाइसजेट द्वारा प्रस्तुत दो आपत्तियों को भी खारिज कर दिया.

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इसका पहला तर्क यह था कि लेनदार द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर मुहर नहीं लगी हुई थी और इसलिए ये भारत के मामले में अस्वीकार्य हैं और इसृ वजह से अदालत क्रेडिट सुइस द्वारा प्रस्तुत किसी भी दस्तावेज को रिकॉर्ड में नहीं ले सकती है.

दूसरे तर्क के रूप में, स्पाइसजेट का कहना था कि एसआर टेक्निक्स के बारे में बकाया राशि के दावे को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इस कंपनी के पास ऐसे इंजनों का रखरखाब करने के लिए भारत के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से अपेक्षित लाइसेंस या अनुमोदन नहीं है.

अदालत ने स्पाइसजेट एयरलाइन द्वारा अपने बचाव में उद्धृत कई मामलों को भी यह कहते ख़ारिज कर दिया कि वे वर्तमान कार्यवाही के संबंध कोई मायने नहीं रखते.

अदालत ने कहा, ‘उक्त प्राधिकरणों में से कोई भी अपीलकर्ता की मदद नहीं करेगा. इसके अलावा, उक्त प्राधिकरणों में से कोई भी कंपनी को खत्म करने और प्रोविशनल लिक्विडेटर के रूप में आधिकारिक लिक्विडेटर की नियुक्ति के लिए दिए गए अदालत के आदेश को अवहनीय नहीं ठहरा पाएगा. उन अधिकारियों को इससे परे किसी तरह की चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है. इन अपीलों को खारिज करने की जरूरत है.’

हालांकि, इसने एयरलाइन को प्रदान किए गए स्टे ऑर्डर की अवधि को 28 जनवरी तक बढ़ा दिया जिससे उसे मौजूदा आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का समय मिल गया है.

साल 2015 में, क्रेडिट सुइस ने स्पाइसजेट को ऊपर वर्णित ऋण के संबंध में कंपनी अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत आवश्यक नोटिस भेजा था. इसका कोई जवाब नहीं मिलने के बाद क्रेडिट सुइस ने मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. क्रेडिट सुइस ने इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कंपनी को बंद करने की मांग की थी.

इसके बाद पिछले साल 6 दिसंबर को जस्टिस आर. सुब्रमण्यम ने इस एयरलाइन को बंद करने का आदेश दिया था. उन्होंने इसके वित्तय मामलों को संभालने के लिए एक लिक्विडेटर (कंपनी बंद होने से पहले कंपनी की संपत्ति बेचने के लिए और उसकी ओर से कार्य करने के लिए कानूनी अधिकार वाला व्यक्ति) भी नियुक्त किया था. प्रत्येक हाई कोर्ट में कंपनी अदालत (कानून) से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली एकल-न्यायाधीश वाली पीठ होती है.

कंपनी के बंद करने की प्रक्रिया लिक्विडेटर को इसके शेयरों को बेचने, लेनदारों को भुगतान करने, भागीदारों और शेयरधारकों के बीच शेष संपत्ति वितरित करने की अनुमति देती है.


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पेश किए गए तर्क

अपनी अपील में स्पाइसजेट ने इस ऋण से इनकार करते हुए दावा किया था कि उक्त भुगतान के संबंध में ‘कोई बोनाफाइड विवाद नहीं’ है और इसलिए कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कंपनी को बंद नहीं किया जा सकता है.

इस बीच, इस मामले में क्रेडिट सुइस का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील राहुल बालाजी ने कहा कि लिक्विडेटर की नियुक्ति और समापन प्रक्रिया शुरू करने का आदेश किसी भी तरह से गलत नहीं है. उन्होंने अदालत से निवेदन किया कि उसे बंद करने की कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जैसा कि बेंच के आदेश में उल्लेख किया गया है.

बालाजी ने यह भी कहा कि दिसंबर 2021 में उन्होंने हाई कोर्ट की एकल-न्यायाधीश बेंच के सामने कई दस्तावेज दायर किए थे जो स्पाइसजेट को स्विस कॉरपोरेशन द्वारा दिए गए ऋण के सुबूत मुहैया करते हैं. उन्होंने आगे निवेदित किया कि क्रेडिट सुइस स्पाइसजेट से इस पैसे को वसूल करने की हकदार है और इसलिए इसका दावा प्रामाणिक है.


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अपीलकर्ता अपनी सुविधानुसार नरम-गरम रुख अपनाता है   

बेंच ने माना कि स्पाइसजेट एयरलाइंस को बंद करने के लिए एकल-न्यायाधीश पीठ द्वारा दिसंबर में दिए गए आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है. ‘बिना मुहर वाले’ दस्तावेजों के संबंध में उठाई गई आपत्ति को खारिज करते हुए अदालत ने माना कि इस स्तर पर इसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है. बॉम्बे और मद्रास हाई कोर्ट के पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए इसने माना कि दस्तावेजों पर मुहर लगी है या नहीं, यह कोई मुद्दा नहीं है.’

अदालत ने कहा, ‘सत्यापित किए जाने लायक एकमात्र बिंदु यह है कि क्या यह ऋण प्रामाणिक रूप से विवादित है और क्या इसके खिलाफ किया जा रहा बचाव पर्याप्त है. इस परीक्षण को लागू करते हुए और इस संबंध में उस बाध्यकारी निर्णय को ध्यान में रखते हुए जिसे कंपनी अदालत द्वारा प्रतिवादित आदेश में संदर्भित किया गया है. ऐसे बचाव को एक प्रामाणिक बचाव नहीं कहा जा सकता है और याचिका पर सुनवाई के इस चरण में  इसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए.’

बेंच ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि डीजीसीए से इंजन के रखरखाव के लिए लाइसेंस का न होने इस कर्ज से मुक्त करता है.

लाइसेंस के बारे में जानकारी न होने के स्पाइसजेट के तर्क को एक ‘दिखावा’ करार देते हुए बेंच ने अतीत के ऐसे कई उदाहरणों का जिक्र किया जहां एयरलाइन को इन लाइसेंसों के न होने के बारे में पूरी तरह से पता था. इसने इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन प्रोसीडिंग्स का जिक्र किया जहां स्पाइसजेट ने सेवा प्रदाता (एसआर टेक्निक्स) के पास लाइसेंस के न होने की बात को स्वीकार किया था.

इसके अलावा अदालत ने डीजीसीए से 2020 में किए गए एक संवाद को नोट करते हुए कहा, ‘रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता कंपनी (स्पाइसजेट) अपनी सुविधा के अनुरूप एक साथ नरम-गरम रुख अख्तियार करती है,’

(एनएलयू, दिल्ली में कानून के प्रथम वर्ष के छात्र अक्षत जैन दिप्रिंट के साथ इंटर्न के रूप में जुड़े हैं.)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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