नई दिल्ली : रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने शुक्रवार को बैंकिंग रिफॉर्म से संबधित एक लेख जारी करते हुए कहा,’ कर्ज़ माफी और सरकार द्वारा बैंको को दिए गए क्रेडिट टार्गेट एक सुस्त सरकार के लक्षण हैं और इसे हर हालत में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.’
राजन की यह टिप्पणी उन रिपोर्ट्स के बाद आयी, जिसमें कहा गया कि मोदी सरकार अगले साल होने वाले आम चुनाव के पहले 4 लाख करोड़ के कर्ज़ माफी की घोषणा कर सकती है.
किसानों में फैली निराशा को शांत करने के लिए कर्ज़ माफी केंद्र सरकारों के लिए एक लोकप्रिय झुनझुना रहा है. जबकि कई विशेषज्ञ इसके दूरदर्शी परिणाम पर सवाल उठा चुके हैं.
सरकार द्वारा बैंकों पर विभिन्न सेक्टरों को आसानी से क्रेडिट बांट देने के दवाब से स्थिति और विकट बन जाती है.
राजन की यह टिप्पणी नई दिल्ली में होने वाली अर्थशास्त्रियों के बैठक के ठीक पहले शिकागो यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई है. जिसमें वह खुद सम्मलित होने जा रहे हैं.
एनपीए को लेकर माहौल
रघुराम राजन लिखते हैं, ‘सरकार लंबे समय से पीएसबी के ऊपर बोझ थोपे जा चुके हैं. यह एक सुस्त सरकार है और अगर कोई भी ढंग का काम है तो इस पर बजट के पैसों से खर्च किया जाना चाहिए. यह फैसला पीएसबी के छोटे शेयरधारकों के लिए भी हितकारी नहीं है. इन सब गतिविधियों में किसी भी तरह से प्राइवेट सेक्टर शामिल नहीं होता है.’
उन्होंने आगे यह भी लिखा है कि ऐसे समय में जब बैंको से मिलने वाली सुविधाएं घटती जा रही है. सरकार को इस प्रक्रिया में सभी बैंको को शामिल करना चाहिए न कि केवल कुछ पर ही इस फैसले को थोपा जाना चाहिए. राजन ने इससे जुड़े कुछ रिस्क को लेकर भी चेताया है.
‘सरकार द्वारा थोपे गए क्रेडिट टार्गेट हमेशा ढुलमुल तरीका अपनाते हुए जैसे-तैसे पूरे किए जाते हैं, जोकि एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) के पक्ष में माहौल बनाते है. और आरबीआई ने बार-बार चेताया है कि कर्ज़ माफी क्रेडिट कलचर को नुकसान पहुंचाते हैं और बजट को लेकर संबंधित राज्य और केंद्र सरकार पर अतिरिक्त दवाब बनाते हैं. इनका लक्ष्य ठीक से निर्धारित नहीं हो पाता है और अंत में क्रेडिट फ्लो को घटा देता है.’
उन्होंने आगे यह भी लिखा कि कृषि को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, लेकिन कर्ज़ माफी के सहारे नहीं. राजन के विचार में, ‘इस मुद्दे पर सभी पार्टियों की राय देश हित में कारगार होगी.’
सरकारी बैंकों की पूंजीबनाए रखें
रघुराम राजन ने अभिजीत बैनर्जी, गीता गोपीनाथ, नीलकंठ मिश्रा, कार्तिक मुरलीधरन, ईशवर प्रसाद और साजिद चिनॉय जैसे अर्थशास्त्रियों के साथ मिलकर भारत के लिए पंचवर्षीय आर्थिक योजना का खाका तैयार किया है जो कि पूरी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ, शिक्षा, बैंकों का आधारभूत ढ़ाचा जैसे अहम मुद्दों को कवर करेगा.
भारत के पूर्व प्रमुख बैंकर, राजन ने अपने लेख में पुंजीकृत सरकारी बैंकों को बढ़ावा देने और अधिक से अधिक प्रोफेशनल बोर्ड का गठन करने, जोकि अपने सीईओ को नियुक्त कर सकें, की बात पर भी जोर दिया है.
उन्होंने यह भी लिखा, ‘ अभी भी पब्लिक सेक्टर बैंकों के बोर्ड ढंग से प्रोफेशनल नहीं हैं और सरकार, एक स्वतंत्र संस्था की तरह बर्ताव करने के बजाय, राजनीतिक दवाब के चलते बोर्ड की नियुक्तियों में दखल देती है.’
रघुराम राजन आगे लिखते हैं, ‘वैसे तो एक ताकतवर बोर्ड का कार्य बैंकों से संबंधित सभी निर्णयों, जिसमें सीईओ की नियुक्ति भी शामिल है, लेकिन वह केवल प्रदर्शन की ज़िम्मेदारी लेता है. रणनीतिकार निवेशक कार्यप्रणाली को सुधार सकते हैं.’
बैंको को पूंजीकृत करने पर राजन लिखते हैं, यह खाता-बही की एक अच्छी प्रक्रिया है जो कि सरकार द्वारा आकस्मिक देनदारियों को बढ़ावा देने से रोकता है.’
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