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Friday, 22 November, 2024
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रक्षा फंड से लेकर राज्यों को अनुदान तक, मोदी सरकार वित्त आयोग के सभी सुझाव नहीं मान पायेगी

मौजूदा बाधाओं के चलते, जिनमें 9.5% वित्तीय घाटा शामिल है, मोदी सरकार के लिए राज्यों को, 15वें वित्त आयोग द्वारा सिफारिश की गई, 41% हिस्सेदारी से अधिक धनराशि देना संभव नहीं होगा.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार के 15वें वित्त आयोग की, सभी सिफारिशों को मानने की संभावना नहीं है- चाहे वो रक्षा ख़र्च हो या फिर राज्यों को, उनकी स्वास्थ्य और शिक्षा की तमाम ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अधिक धनराशि भेजना हो. ये ख़ुलासा वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने दिप्रिंट से किया है.

15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में, बहुत सी सिफारिशें की थीं, जो 2021-22 से 2025-2026 तक की अवधि के लिए हैं. नवंबर के अंत में सौंपी गई रिपोर्ट को, सोमवार को सार्वजनिक किया गया.

वित्त मंत्रालय का विचार है कि वित्तीय बाधाओं को देखते हुए, पैनल की कुछ सिफारिशों को अमली जामा पहनाना मुमकिन नहीं हो पाएगा.

जहां तक रक्षा के लिए एक असमापक आधुनिकीकरण राशि, और पांच साल की अवधि के लिए, 2.38 लाख करोड़ रुपए की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी पैनल की सिफारिशों का मामला है, तो सरकार ने सैद्धांतिक रूप से फंड स्थापित करने को मंज़ूरी दे दी है, लेकिन उसके इस काम के लिए धन जुटाने के सुझावों पर, अमल करने की संभावना नज़र नहीं आती.

वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘वित्त आयोग ने अलग से एक असमापक आधुनिकीकरण फंड बनाने की सिफारिश की है. लेकिन उसने इसके कोई धनराशि आवंटित नहीं की है. उसकी बजाय फंड के लिए धन जुटाने की ख़ातिर, आयोग ने सरकार को कुछ उपाय सुझाए हैं’.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए सरकार ने फंड क़ायम करने की सिफारिश तो स्वीकार कर ली है, लेकिन इसके तौर-तरीक़े उससे अलग होंगे, जो पैनल ने सुझाए हैं’.

पैनल ने सुझाव दिया है कि इस फंड के वित्त पोषण के चार स्रोत हो सकते हैं- भारत की संचित निधि से हस्तांतरण, रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से मिली राशि, और रक्षा क्षेत्र की भूमि की बिक्री से हासिल हुई रक़म, जिसके भविष्य में राज्य सरकारों और सार्वजनिक परियोजनाओं को हस्तांतरित किया जा सकता है.

फंड को मिलने वाली रक़म की परिकल्पना, रक्षा सेवाओं और राज्य पुलिस बलों के, आधुनिकीकरण के लिए की गई है.

वित्तीय बाधाएं

वित्त मंत्रालय के 15वें वित्त आयोग की उन सिफारिशों को मानने की संभावना भी नहीं है, जिनके तहत प्रांतों को स्वास्थ्य, स्कूली व उच्च शिक्षा, कृषि, न्यायपालिका, तथा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के रख रखाव आदि के लिए, अगले पांच वर्षों में 1.3 करोड़ रुपए के अनुदान मुहैया कराने की बात कही गई है.

ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी ने कहा, ‘ये वित्तीय बाधाएं हैं. कमीशन ने प्रांतों को कुल कर राजस्व में से 41 प्रतिशत हिस्सा दिया है, उतना ही जितना पिछले कमीशन ने दिया था. लेकिन उसके अलावा, उसने बहुत से क्षेत्रवार अनुदानों की भी अनुशंसा की है. लेकिन इसकी वित्तीय गुंजाइश कहां है?’

उन्होंने कहा, ‘केंद्र बाज़ार से ऋण ले रहा है, और उसका वित्तीय घाटा 9.5 प्रतिशत (सकल घरेलू उत्पाद का) चल रहा है’.

उन्होंने कहा कि 14वें वित्त आयोग ने भी इस बात को माना था, कि केंद्र सरकार के पास उपलब्ध धनराशि सीमित थी.

15वें वित्त आयोग ने सिफारिश की है, कि शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों को मज़बूत करने के लिए, राज्यों को स्वास्थ्य अनुदान दिए जाएं, और वो भी बिना किन्हीं शर्तों के, चूंकि उन्हें महामारी से जूझना पड़ रहा है.

इसके अलावा, उसने ये भी सिफारिश की है, कि राज्यों को शैक्षणिक परिणामों तथा उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन देने, तथा न्यायपालिका में सुधार आदि के करने के लिए, धनराशि मुहैया कराई जाए.

अधिकारी ने कहा, ‘सरकार ने तय किया है, कि केंद्र द्वारा वित्त-पोषित स्कीमों का पुनर्गठन करते समय, राज्यों को क्षेत्रवार अनुदान देने की बजाय, उन क्षेत्रवार प्राथमिकताओं का ध्यान रखा जाएगा, जिन्हें वित्त आयोग की ओर से चिन्हित किया गया है’.

सरकार केंद्र द्वारा वित्त-पोषित की जा रही स्कीमों की संख्या में, एक तिहाई की कटौती करने जा रही है. फिलहाल ऐसी लगभग 131 स्कीमें चल रही हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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