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Friday, 19 April, 2024
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पहले लॉकडाउन, फिर तूफान- गुजरात और महाराष्ट्र में ख़राब हो गया आम के व्यापार का सीज़न

तूफान से पैदा हुई तेज़ हवाओं और बारिश ने पूरे महाराष्ट्र और गुजरात में आम के बाग़ों को तबाह कर दिया. इससे होने वाला अनुमानित नुक़सान क़रीब 500 करोड़ रुपए बताया जा रहा है.

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नई दिल्ली: पिछले महीने आए चक्रवाती तूफान ताउते ने पश्चिम तट के राज्यों गुजरात और महाराष्ट्र में ख़ूब तबाही मचाई. तूफान से हुई क्षति ने इन राज्यों में, प्रीमियम आम के सीज़न को समय से पहले ख़त्म कर दिया है.

तूफान के बीच तेज़ हवाओं और बारिश ने, दोनों सूबों में आम के बाग़ तबाह कर दिए, जिससे फल समय से पहले गिर गए. इन सूबों में उत्पादन को हुआ नुक़सान- जो निर्यात होने वाली क़िस्मों के उत्पादन में सबसे आगे हैं- देश से होने वाले आम के निर्यात में, काफी गिरावट ला सकता है.

जहां तेज़ तूफानी हवाओं ने महाराष्ट्र के रत्नागिरी, और सिंधुदुर्ग जैसे तटीय कोंकण इलाक़ों में, लोकप्रिय एलफॉन्सो वरायटी को तबाह कर दिया, वहीं उसने गुजरात के सौराष्ट्र इलाक़े की एक और विदेशी क़िस्म, केसर को भी भारी नुक़सान पहुंचाया.

उत्पादन का ज़्यादातर नुक़सान गुजरात के जूनागढ़, अमरेली, और गीर सोमनाथ ज़िलों में हुआ है, जहां ताउते आकर टकराया था. लेकिन महाराष्ट्र के रत्नागिरि, सिंधुदुर्ग, रायगढ़, मुम्बई, ठाणे, और पालघर में भी काफी नुक़सान देखा गया है.

व्यापारियों के अनुसार, आम की बिक्री पर तूफान के नुक़सान का अनुमान, 500 करोड़ रुपए से अधिक का है. ये उस नुक़सान से अतिरिक्त है, जो कोविड-19 के दौरान मांग में कमी आने से हुआ है.

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मात्रा घटी, क्वालिटी भी गिरी

जूनागढ़ की फल मंडी में आम के थोक व्यापारी और निर्यातक, आद्रेमन पांजा ने कहा, ‘ये तूफान केसर आम के पीक सीज़न के ठीक बीच में आया, जो 1 अप्रैल से 20 जून के बीच होता है. लेकिन इस साल ये 5-7 दिन में ख़त्म हो जाएगा, क्योंकि अधिक पैदावार वाले इलाक़ों में, तेज़ तूफानी हवाओं से ज़्यादातर आम पेड़ों से टूटकर गिर गए’.

उन्होंने कहा, ‘जूनागढ़ मंडी में आम की आवक आमतौर पर रोज़ाना 30,000-40,000 पेटियों से घटकर, 8,000-10,000 पेटी प्रतिदिन रह गई है’.

एक पेटी में 10 किलो आम होते हैं. पांजा ने बताया कि प्रति पेटी मूल्य, सामान्य 700-900 से गिरकर, अब 300-500 पर आ गया है. उन्होंने आगे कहा कि ‘आम के ये दाम कुछ बारिशों के बाद, जून मध्य में रहा करते थे’.

जो आम बाज़ार में आ भी रहे हैं, वो अच्छी क्वालिटी के नहीं हैं, और ज़्यादा नुक़सान से बचने के लिए, किसान उन्हें जल्दी से जल्दी बेंचना चाह रहे हैं.

व्यापारियों के अनुसार, गुजरात में आम के बाग़ों में सबसे ज़्यादा नुक़सान, सोराष्ट्र के तटीय इलाक़ों रजूला, जाफराबाद, ऊना, गीर-गदाहा, तलाला, और कोडिनार आदि में हुआ है.

कोंकण के अल्फॉन्सो फार्म्स को भी काफी नुक़सान हुआ है. इन इलाक़ों के किसान पहले से ही, जलवायु परिस्थितियों के कारण उत्पादन में गिरावट, बाज़ार की मंदी, और महामारी के दौरान निर्यात में कमी की मार झेल चुके थे.

रत्नागिरी में आम के बाग़ के एक मालिक जीतू सेठ ने कहा, ‘तूफान ने हमें ऐसे समय पर चोट पहुंचाई, जब अल्फॉन्सो की तुड़ाई की आख़िरी खेप चल रही थी. सैकड़ों पेड़ उखड़ गए हैं, जिसकी वजह से कितने टन फल, जो बाज़ार भेजने के लिए तोड़े जाने वाले थे, तबाह हो गए’.

तूफान का प्रभाव कोविड की मार के अलावा था

तूफान से हुआ नुक़सान भारत के पश्चिमी क्षेत्र के किसानों के लिए दोहरी मार लेकर आया है, जो कोविड के चलते मांग में कमी, और निर्यात पर लगी पाबंदियों के चलते, पहले ही नुक़सान झेल रहे थे.

मंसुख पटोलिया, जो गीर-सोमनाथ ज़िले के अलावानी में, 40 एकड़ में फैले आम के एक बाग़ के मालिक हैं, ने कहा कि तूफान ने इस बार, आम के निर्यात के सीज़न को समय से पहले ख़त्म कर दिया है. क्वालिटी अच्छी न होने के कारण, वो घरेलू बाज़ार में भी अपनी फसल को, अच्छे दामों पर नहीं बेंच पा रहे हैं.

उन्होंने बताया, ‘मेरे बाग़ में आम के 600 पेड़ ऐसे थे, जो तोड़े जाने के लिए तैयार थे, लेकिन तूफान के बाद मुश्किल से 200 पेड़ों पर फल बचे हैं. उन्हें भी तेज़ हवा और बारिश से नुक़सान पहुंचा है, और निर्यात के दाम तो छोड़िए, घरेलू बाज़ार में भी हमें अच्छे रेट नहीं मिलेंगे’.

पटोलिया ने बताया, ‘इस सीज़न में हमें केवल तूफान से 25 लाख रुपए का नुक़सान हो रहा है, और इसमें कोविड के कारण बिक्री में हुआ नुक़सान शामिल नहीं है’. उनका कहना है कि प्रति पेटी 300-500 रुपए के दाम से, आम को पैक करने में इस्तेमाल होने वाले, कार्डबोर्ड के बक्सों की लागत भी पूरी नहीं होती.

कोंकण अल्फॉन्सो आम उत्पादक एवं विक्रेता संघ के विद्याधर जोशी के अनुसार, तूफान से लगभग 500-700 करोड़ रुपए के नुक़सान का अनुमान है. ये 19,000-20,000 हज़ार करोड़ के उस अनुमानित नुक़सान के अलावा है, जो इस साल लॉकडाउन के दौरान मांग में कमी, और निर्यात पर पाबंदी के चलते हुआ है.

उन्होंने ये भी कहा, कि पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के नतीजे में, क़रीब 15,000 करोड़ रुपए का अनुमानित नुक़सान हुआ था.

सेठ ने कहा, ‘इस सीज़न के बाद बहुत से किसान सड़क पर आ जाएंगे. पिछले साल लॉकडाउन में हुए भारी नुक़सान के चलते, हम पहले ही भारी क़र्ज़ों के बोझ से दबे थे. तूफानों और लॉकडाउन्स ने पर्यटन, और मछली पकड़ने के व्यवसाय का भी सफाया कर दिया है’.

निर्यात का नुक़सान

केसर आम भारत से निर्यात होने वाले कुल आम का, लगभग 25 प्रतिशत होते हैं. इसलिए तूफान ताउते से होने वाली क्षति के कारण, देश से आम के निर्यात में काफी कमी आने की संभावना है.


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जहां महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में पैदा होने वाला क़ीमती अल्फॉन्सो, मुख्यत: मध्य पूर्व को निर्यात किया जाता है, वहीं केसर आम को अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसे, दूर के स्थानों पर भेजा जाता है, चूंकि इसे अपेक्षाकृत ज़्यादा समय तक रखा जा सकता है.

गुजरात में बागवानी विभाग के एक अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हालांकि पूरे प्रांत में आम उत्पादकों के नुक़सान का आंकलन किया जाना अभी बाक़ी है, लेकिन इस साल ये सामान्य के, आधे से अधिक हो सकता है, चूंकि सीज़न जल्दी समाप्त हो गया है’.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘पिछले साल आम का मौल आने के दौरान हुई बेमौसमी बारिश से, किसान पहले ही नुक़सान की मार झेल रहे थे. उसके ऊपर इस तूफान से या तो फल पूरी तरह ख़त्म हो गए, या जो आम बच गए वो एक्सपोर्ट मार्केट के लायक़ नहीं रहे’.

अधिकारी ने ये भी कहा, कि शुरूआती जानकारी से पता चलता है, कि गुजरात से होने वाले केसर के निर्यात में, कम से कम 5,700 मीट्रिक टन की कमी आ सकती है, जिसके नतीजे में 390-500 करोड़ रुपए के नुक़सान की संभावना है.

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