नई दिल्ली: शनिवार को कांग्रेस पार्टी ने कहा कि यह समय है आर्थिक नीतियों को फिर से तय करने पर विचार किया जाए. 1991 में पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अपनी ऐतिहासिक उदारीकरण नीति को लागू करने के 30 साल बाद कांग्रेस यह बयान आया है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पार्टी के ‘नव संकल्प चिंतन शिविर’ में मीडिया से बात करते हुए कहा कि शुक्रवार को तीन दिवसीय चिंतन शिविर के पहले दिन चार घंटे के सेशन में 37 मेंबर ने आर्थिक पैनल आयोजित किया जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पूर्व वित्त मंत्री भी मौजूद रहे.
इस दौरान चिदंबरम ने कहा कि देश की आर्थिक नीतियों में बदलाव उदारीकरण से एक कदम पीछे नहीं बल्कि इससे एक कदम आगे होगा.
उन्होंने आगे कहा,’1991 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उदारीकरण के एक नए युग की शुरुआत की थी. देश ने धन सृजन, नए व्यवसायों और नए उद्यमियों, एक बड़े मीडिल क्लास, लाखों नौकरियों, निर्यात और 27 करोड़ लोगों को 10 सालों में गरीबी से बाहर निकालने के मामले में काफी फायदा मिला था.’
चिदंबरम ने आगे कहा कि 30 सालों के बाद आर्थिक नीतियों को फिर से तय करने पर विचार करने की जरूरत हो सकती है.
उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों की व्यापक समीक्षा करने की भी जरूरत है.
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि तीन दिनों में हमारे विचार-विमर्श और सीडब्ल्यूसी द्वारा आगामी दिनों में जो फैसले लिए जाएंगे वो देश भर में आर्थिक नीतियों पर बहस में अहम योगदान देंगे.’
आर्थिक नीतियों पर कांग्रेस का बयान काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने 1991 में आर्थिक सुधारों और उदारीकरण की शुरुआत की थी.
चिदंबरम ने नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के तहत केंद्र सरकार पर देश के सामाजिक सेवाओं के खर्च में कटौती करने का आरोप लगाया.
‘भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति गंभीर चिंता का विषय है. पिछले आठ वर्षों में धीमी आर्थिक विकास दर केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार की पहचान रही है.’
उन्होंने दावा किया, ‘महामारी के बाद अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार बहुत साधारण और अवरोध से भरा रहा है. पिछले पांच महीनों के दौरान समय समय पर 2022-23 के लिए विकास दर का अनुमान कम किया जाता रहा है.’
चिदंबरम ने कहा कि महंगाई अस्वीकार्य स्तर पर पहुंच गई है और आगे भी इसके बढ़ते रहने की आशंका है. उनके मुताबिक, रोजगार की स्थिति कभी भी इतनी खराब नहीं रही, जितनी आज है.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पेट्रोल-डीजल पर कर बढ़ाकर और जीएसटी की उच्च दर रखने जैसी अपनी ‘गलत नीतियों’ से महंगाई की आग में घी डालने का काम कर रही है.
चिदंबरम ने सरकार से आग्रह किया कि राज्यों की खराब हालात को देखते हुए उन्हें जीएसटी की क्षतिपूर्ति करने की मीयाद अगले तीन वर्षों के लिए बढ़ा दी जाए जो आगामी 30 जून को खत्म हो रही है.
एक सवाल के जवाब में पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास पूरी तरह खत्म हो चुका है.
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, ‘भारत सरकार महंगाई का ठीकरा कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी पर नहीं फोड़ सकती. महंगाई में बढ़ोतरी यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले से हो रही है.
उनके मुताबिक, यह ‘असंतोषजनक बहाना’ है कि यूक्रेन संकट के कारण महंगाई बढ़ रही है.
उन्होंने यह भी कहा, ‘बाहरी हालात से अर्थव्यवस्था पर दबाव में बढ़ोतरी जरूर हुई है, लेकिन सरकार इसको लेकर बेखबर है कि इन हालात से कैसे निपटा जाए. पिछले सात महीनों में 22 अरब डॉलर देश से बाहर चले गए. विदेशी मुद्रा भंडार में 36 अरब डॉलर की कमी आ गई है. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरकर 77.48 रुपए तक पहुंच गई.’
चिदंबरम के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था और कार्यबल को 21सदी में काम करने के तरीकों के अनुकूल बनाने की जरूरत है और जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर आर्थिक नीतियों में जरूरी बदलाव भी किया जाना चाहिए.
गेहूं के निर्यात पर रोक के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि केंद्र सरकार पर्याप्त गेहूं खरीदने में विफल रही है.यह एक किसान विरोधी कदम है. मुझे हैरानी नहीं है क्योंकि यह सरकार कभी भी किसान हितैषी नहीं रही है.’
इशाद्रिता लाहिरी के इनपुट से
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