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Saturday, 23 November, 2024
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वित्तीय बाध्यताओं की वजह से बजट में बड़े आयकर राहत की ज्यादा उम्मीद न करें

अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि सरकार मुख्य रूप से किसी कर राहत के बजाये बुनियादी ढांचे के खर्च के माध्यम से मांग को बढ़ावा देगी.

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नई दिल्ली: विभिन्न वर्गों की तरफ से आयकर में छूट की मांग लगातार बढ़ रही है, यहां तक कि भाजपा के भीतर भी मध्यम वर्ग को कर राहत की आवाज उठ रही है.

हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वित्तीय बाध्यताएं आम आदमी के लिए किसी बड़ी कर राहत को रोक सकती हैं. साथ ही जोड़ा कि पूंजीगत व्यय बढ़ाने जैसी अन्य उपाय मांग बढ़ाने के लिए बेहतर हो सकते हैं.

अर्नस्ट एंड यंग के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डी.के. श्रीवास्तव ने कहा, ‘सभी को यह बात समझनी होगी कि वित्तीय क्षेत्र बहुत सीमित है. व्यक्तिगत आयकर राहत देना मांग को फिर बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है. वृद्धि का एक हिस्सा खपत में जाएगा और कुछ बचत में जाएगा. यही बात लोगों को नकद हस्तांतरण के मामले में भी लागू होती है.’

उन्होंने कहा, ‘सरकारी पूंजीगत व्यय में प्रत्यक्ष वृद्धि मांग को पुनर्जीवित करने का सबसे अच्छा तरीका है. चूंकि संसाधन बेहद सीमित हैं, इसलिए पूंजीगत व्यय को प्रत्यक्ष तौर पर बढ़ाया जाना सबसे अच्छा विकल्प है जो हाई आउटपुट और रोजगार बढ़ने का संकेतक होता है.’

अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि सरकार मुख्य रूप से किसी कर राहत के बजाये बुनियादी ढांचे के खर्च के माध्यम से मांग को बढ़ावा देगी.

इस हफ्ते के शुरू में दिप्रिंट को दिए इंटरव्यू में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा था कि फ्रंट लोडिंग का खर्च बढ़ाना अर्थव्यवस्था को कोविडपूर्व के स्तर पर लाने के लिए पर्याप्त हो सकता है और अतिरिक्त प्रोत्साहन की कोई खास जरूरत नहीं पड़ेगी.

उन्होंने राज्यों को माल और सेवा कर बकाये के भुगतान, करदाताओं को रिफंड मुहैया कराने, सरकारी विभागों द्वारा कंपनियों को समय पर भुगतान और पीएम-किसान के तहत दी जाने वाली राशि तीन किस्त के बजाये एकमुश्त देने जैसे सुझाव भी दिए थे.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अगले सप्ताह अपना सबसे चुनौतीपूर्ण बजट पेश करेंगी क्योंकि सरकार वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही से अर्थव्यवस्था में नजर आए उछाल को बरकरार रखते हुए मांग को बढ़ावा देना चाहती है.

भारतीय अर्थव्यवस्था के 2021-22 में दोहरे अंकों की वृद्धि हासिल करने से पहले चालू वित्त वर्ष में सात प्रतिशत से ऊपर पहुंचने की उम्मीद की जा रही है.

हालांकि, विकास दर में वृद्धि से सरकार को कर संग्रह सुधारने में मदद मिलेगी.लेकिन उसने मुख्य रूप से चालू वित्त वर्ष में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और रक्षा खर्चों की फंडिंग की जरूरत को देखते हुए खर्च में भारी वृद्धि पर नजरें टिका रखी हैं.

2021-22 का बजट ऐसे समय में पेश होने वाला है जब सरकार को वैक्सीन रोलआउट के साथ-साथ पाकिस्तान और चीन के दोहरे खतरे का मुकाबला करने के मद्देनजर बढ़ती रक्षा जरूरतों के कारण खर्च करने में व्यापक वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है.

बड़ी कर राहत के आसार नहीं

सरकारी सूत्रों ने कहा कि किसी बड़ी कर राहत की संभावना नहीं है लेकिन किफायती आवास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ मामूली छूट मिल सकती है क्योंकि सरकार की कोशिश है कि मांग को पुनर्जीवित किया जाए और लोगों को खर्च के लिए प्रोत्साहित किया जाए.

निवेशकों के लिए अधिक अनुकूल दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर व्यवस्था की भी उम्मीद है.हालांकि, अर्थशास्त्री भी कोविड सेस के पक्षधर नहीं हैं, क्योंकि उनकी राय है कि इस तरह के कदम से मांग को बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी.

पनगढ़िया ने कहा था, ‘यह कोई अच्छा विचार नहीं है.’

बेंगलुरु स्थित डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के कुलपति एन.आर. भानुमूर्ति का कहना है कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए—मांग या आपूर्ति पक्ष का—कोई भी नीतिगत उपाय मौजूदा समय की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘इस देश में कर की स्थिति बेहद खराब है. मुझे नहीं लगता कि आयकर दरों को घटाना कोई विकल्प है. चूंकि आधार कम है इसलिए इससे मांग को बढ़ाने पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. यहां तक कि 6-7 करोड़ लोग जो अपना टैक्स रिटर्न दाखिल करते हैं, उनमें से भी कई टैक्स नहीं देते हैं.’

उन्होंने कहा कि कॉर्पोरेट करों की दर को पहले ही नीचे लाया जा चुका है.

आकलन वर्ष 2019-20 के लिए दाखिल करीब 6.5 करोड़ कर रिटर्न में से चार करोड़ से अधिक कर रिटर्न में 5 लाख रुपये तक की आय बताई है. सरकार की ओर से 2019-20 में 5 लाख तक आय वालों के लिए प्रभावी कर छूट प्रदान किए जाने के साथ एक मोटी गणना से पता चलता है कि केवल ढाई से तीन करोड़ लोग ही आयकर का भुगतान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘जीएसटी दर में कटौती अर्थव्यवस्था की मांग पुनर्जीवित करने का सबसे अच्छा तरीका है. इस तथ्य को देखते हुए कि जीएसटी में परिवर्तन जीएसटी परिषद द्वारा किए जाने की आवश्यकता है, बजट में कर नीति का उपयोग करना मौजूदा ढांचे में संभव नहीं है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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