नई दिल्ली: शक्तिशाली व्यापारियों की लॉबी के दवाब में सरकार ने ई-कॉमर्स नीति में नाटकीय बदलाव किया है, जिससे देश का ई-कॉमर्स क्षेत्र भारी संकट में फंस गया है. वालमार्ट और अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों ने सरकार से गुहार लगाई है कि नए नियमन की समय सीमा को 31 जनवरी के आगे बढ़ाकर उन्हें थोड़ी राहत प्रदान की जाए.
हालांकि, उद्योग मंत्रालय ने अभी तक इसका संज्ञान नहीं लिया है, इससे समूचे ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र में भय का माहौल है.
वालमार्ट और अमेजन की अगुवाई में ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र के हितधारकों ने समय सीमा को छह महीने के लिए बढ़ाने की मांग की है, क्योंकि मार्केट प्लेस के छोटे और मध्यम आकार के लाखों सेलर्स को आईटी-सक्षम और सांविधिक लेखा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए समय की जरूरत है. इसके अलावा अनुबंधों पर भी फिर से बातचीत करनी पड़ेगी, ताकि अनुपालन को पूरा किया जा सके, जिसके लिए समय की जरूरत है.
माना जा रहा है कि डीआईपीपी या उद्योग सचिव रमेश अभिषेक जो पहले प्रमुख कंपनियों को भारत में निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते थे, अब वे उनकी दलीलों और याचिकाओं का जवाब नहीं दे रहे हैं.
इसके साथ ही प्रेस नोट 2 के स्पष्टीकरण ने स्थिति को और उलझा दिया है. इसमें कहा गया है कि मार्केट प्लेस की सेलर्स में कोई हिस्सेदारी नहीं हो सकती.
इससे, अमेजन जिसकी शॉपर्स स्टॉप में 5 फीसदी हिस्सेदारी है, उसे नए नियमों का पालन करना पड़ेगा. सरकार के नए नियम के कारण न तो प्राइवेट लेबल और न ही बड़े ब्रांड मार्केट प्लेस के साथ वाणिज्यिक साझेदारी कर पाएंगे. मूलत: यही नियम कंपनियों के चिंता का भारी सबब है.
बैन कैपिटल का मानना है कि बड़ी-बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों ने देश में तीन लाख रोजगार पैदा किए हैं. इसके अलावा इससे जुड़े लाखों वेंडर्स अलग से हैं.
इसके अलावा, इसके पारिस्थितिकी तंत्र में विज्ञापन, कोरियर कंपनियां, लॉजिस्टिक कंपनियां हैं, जो असंख्य विनिर्माण कार्यों का समर्थन करते हैं और बड़े पैमाने पर सप्लाई चेन को आपूर्ति करते हैं. फ्लिपकार्ट के 80,000 कर्मचारी, 80 फुलफिलमेंट सेंटर्स (वेयरहाउसेज), करीब एक लाख से अधिक सेलर्स और कारीगर हैं, जो देशभर में फैले हैं. इसी प्रकार से अमेजन के कर्मचारियों, वेयरहाउसेज, सेलर्स व अन्य की संख्या लगभग इतनी ही है.
वालमार्ट ने फ्लिपकार्ट में हिस्सेदारी खरीदने के लिए 14 अरब डॉलर का भुगतान किया था और अवसंरचना में अतिरिक्त 2 अरब डॉलर निवेश का वादा किया था. वालमार्ट के लिए भारत प्राथमिकता वाला बाजार है और वह उत्सुक है कि 31 जनवरी के अनुपालन की समय सीमा को आगे बढ़ाया जाए.
फ्लिपकार्ट को हाल में ही बंगाल में वेयरहाउसिंग के लिए 100 एकड़ जमीन मिली है. वहीं, कंपनी को तेलंगाना में भी वेयरहाउसिंग के लिए 100 एकड़ जमीन मिलने जा रही है. उल्लेखनीय है कि भारतीय खुदरा बाजार 650 अरब डॉलर का है, जिसमें से 90 फीसदी किराना दुकानों के पास है, जबकि 8 फीसदी भारतीय रिटेल कंपनियों के पास और महज 2 फीसदी ई-कॉमर्स कंपनियों के पास है, लेकिन, चूंकि ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियां वैश्विक दिग्गज है, इसलिए उनके रास्ते में रोड़े अटकाएं जा रहे हैं.
अब सरकार का यह फरमान जल्दीबाजी में जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लागू करने की याद दिला रहा है, जब जल्दीबाजी में छोटे सेलर्स को ऑडिटिंग आवश्यकता को पूरा करना पड़ा था.
अब ज्यादातर सेलर्स ने खुद का आईटी सिस्टम तैयार कर लिया है और मार्केटप्लेस इसके लिए जवाबदेह नहीं है. साथ ही प्राइवेट लेबल व्यवसाय का संचालन करने के तरीके पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दी गई है.