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Monday, 23 December, 2024
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भारतीय अर्थव्यवस्था का हाल इतना बेहाल कि लोग कच्छा बनियान भी नहीं खरीद पा रहे

मैन्युफैक्चरर्स और इंडस्ट्री विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे रिटेल की दुकानें नोटबंदी और जीएसटी से बहुत प्रभावित हुई हैं, वे स्टॉक नहीं खरीद रहे हैं और भुगतान में देरी कर रहे हैं.

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नई दिल्ली : त्यौहारों के मौसम में फैशनेबल कपड़ों की बिक्री तो बढ़ी पर ये बढ़त कच्छे बनियान की बिक्री में नही दिखी. चाहे किसी भी सेगमेंट ती बात करें- बच्चों, महिलाओ या पुरुषों की- मार्केट में जो टॉप ब्रांड हैं मसलन लक्स कोज़ी, डॉलर और रूपा सभी का कहना है कि त्यौहारों के सीज़न में जिस तरह की बिक्री होनी चाहिए वैसी नहीं रही.

उत्पादक और इस उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों ने दि प्रिंट को बताआ कि अंडरगार्मेंट बेचने वाले छोटे, स्थानीय दुकानों की ये समस्या है. ये दुकानें अभी तक नोटबंदी और जीएसटी के झटके से उबर नहीं पाईं है.

स्थानीय दुकानों को, जिन्हें, मल्टी ब्रांड आउटलेट (एमबीओ) भी कहा जाता है, उतना स्टॉक नहीं खरीद रहे जितना वो पहले खरीदते थे. जो खरीद रहे हैं उसका भुगतान भी देरी से कर रहे हैं जिससे उत्पादकों की वर्किंग कैपिटल पर भी असर पड़ रहा है.

रिसर्च संस्था एडलवाइस का अनुमान है कि देश की एक लाख से ज्यादा एमबीओ जो कि देश का 60 प्रतिशत अंडरवियर बेचते हैं, बाकी बिक्री मॉल और ऑनलाइन से होती है.

2014 की कंसल्टेंसी कंपनी टेक्नोपैक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अंडरवियर बाज़ार का कुल मूल्य 19,950 करोड़ है और इसके 2024 तक 13 प्रतिशत सालाना बढ़ कर 68, 270 करोड़ होने की संभावना है.

रिपोर्ट का कहना है कि ‘कपड़ो की कैटेगरी में इनरवियर हर सेगमेंट में सबसे ज़्यादा बढ़त की योग्यता रखने ने वाला है. लोगों की बढ़ती आमदनी, मन मर्जी खर्च बढ़ने, कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि और बढ़ती हुई फैशन परस्ती के चलते, इनरवियर सेगमेंट के बढ़ने के आसार है.’

उसका ये भी कहना है कि परंपरागत रूप से इनरवियर सेगमेंट आम तौर पर असंगठित होता है, वहीं पिछले कुछ सालों में संगठित इनरवियर क्षेत्र में अच्छी प्रगति देखी गई है.

उत्पादकों का दुखड़ा

रूपा ब्रांड के प्रबंध निदेशक और होज़री उत्पादकों के फेडरेशन के अध्यक्ष, केबी अग्रवाला का कहना है कि पूरे उद्योग में पिछले 6 महीने से मंदी देखी जा रही है.

अग्रवाला ने दि प्रिंट को बताया, ‘उद्योग गिरती हुई बिक्री का सामना कर रहा है. रियल एस्टेट हो या पार्ले -जी बिस्कुट, सभी उद्योगों में उपभोक्ताओं में कम खरीद की रुचि दिखी. हमारी बिक्री 10-15 प्रतिशत गिरी है और त्यौहारों का मौसम हमारे लिए फीका ही रहा है.’

‘औसत पूरा इनरवियर उद्योग लगभग 20-25 प्रतिशत कम बिक्री झेल रहा है. हमारे स्टॉक पड़े हुए हैं क्योंकि रिटेल में ऑर्डर बहुत सुस्त है. हमें आशा थी कि त्यौहारों के मौसम में बिक्री सुधरेगी पर ये बहुत कम रही. दिवाली के आसपास हमारी बिक्री आमतौर पर 20 प्रतिशत बढ़ जाती है पर इस साल ये बढ़ोत्तरी 10 प्रतिशत की ही रही.’

लक्स इंंडस्ट्रीज़ के अध्यक्ष अशोक कुमार टोडी अग्रवाला से सहमत दिखे. उनका कहना था, ‘हम मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं. त्यौहार के मौसम के पहले हमारी बिक्री 40 प्रतिशत कम थी ( पिछले 6 महीनों की तुलना में ) अब ये 25 प्रतिशत कम है.

मैं आशा करता हूं कि सरकार कुछ छोटे दुकानदारों के लिए कदम उठाये ताकि इस सेक्टर में फिर मांग बढ़े.’

डॉलर इंडस्ट्रीज के निदेशक विनोद कुमार गुप्ता

डॉलर इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक विनोद कुमार गुप्ता, जो ग्रामीण और अर्ध-शहरी उपभोक्ताओं के लिए मैन्युफैक्चरिंग करते हैं, ने कहा कि उन्होंने अंडरगारमेंट्स में इतनी बड़ी मंदी कभी नहीं देखी थी. गुप्ता ने कहा, ‘यह अकल्पनीय है कि लोग अंडरगारमेंट्स नहीं खरीद रहे हैं और यहां तक ​​कि त्यौहारी सीज़न ने भी हमारी बहुत मदद नहीं की है.’

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार शीर्ष चार सूचीबद्ध इनरवियर फर्म्स की हालत दशक में सबसे ज्यादा खराब है. इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पेज इंडस्ट्रीज की बिक्री, जो कि इनरवियर के जॉकी ब्रांड को बेचती है, 2 प्रतिशत बढ़ी, 2008 के बाद से इसका सबसे धीमा विस्तार है.’

दोहरी समस्या

एडलवाइस के विश्लेषक निहाल महेश झाम ने कहा कि समस्या दोहरी है. निहाल महेश झाम ने दिप्रिंट को बताया, ‘खराब उपभोक्ता मांग का कारण व्यापार प्रारूप के साथ-साथ आर्थिक वजहे हैं. एमबीओज (MBOs) के ख़राब प्रदर्शन से जूझ रही है.

‘ये एमबीओ नोटबंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए और उनकी नकदी को चोट पहुंची. जैसे ही वह फिर से उठ रहे थे तभी जीएसटी की घोषणा कर दी गई जिसने उनकी क्रय शक्ति को जो अंततः और भी अधिक चोट किया. अब, ये एमबीओ कम खरीद रहे हैं व स्टॉकिंग कम कर रहे हैं, और निर्माण करने वाले मुसीबत महसूस कर रहे हैं.’

अग्रवाला ने दि फेडरेशन ऑफ होजरी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफओएचएमओ) ओर से बोले, जिसमें झाम के शब्द गूंज रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘रिटेलर अधिक क्रेडिट की मांग कर रहे हैं. नोटबंदी और जीएसटी की कृपा से उनके पास निवेश के लिए बहुत कम पैसे बचे हैं. वे छोटे दुकान मालिक हैं जो अभी तक जीएसटी को अच्छी तरह से लागू नहीं कर पाए हैं.’

मंदी का इनरवियर सेक्टर पर असर

भारत के शीर्ष फैशन खुदरा विक्रेताओं, जैसे कि पैंटालून, शॉपर्स स्टॉप और सेंट्रल ने भी थोड़ी मंदी झेली है. जून की खत्म तिमाही में स्टोर की बिक्री वृद्धि (एसएसजी) लगभग 2-7 प्रतिशत पर बनी रही, जो पिछले वित्त वर्ष के चौथी तिमाही में 3-9 प्रतिशत से कम थी.

हालांकि, वे सभी फिर से बढ़ने लगे हैं. एक अन्य इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, फैशन और परिधान ब्रांडों की बिक्री में त्यौहारी सीजन में औसतन 10-14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले साल इसी अवधि में नवरात्रि पर फ्यूचर ग्रुप, स्पेंसर रिटेल, अरविंद लाइफस्टाइल, रिलायंस डिजिटल, विजय सेल्स और ग्रेट ईस्टर्न सहित कई खुदरा विक्रेताओं ने कहा कि उनकी बिक्री फैशन और परिधान, स्मार्टफोन और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी श्रेणियों में दोहरे अंकों से ज्यादा हुई है.

टेक्नोपैक के चेयरमैन अरविंद सिंघल ने कहा, ‘मंदी का असर इनरवियर सेक्टर में बढ़ा है. महंगे कपड़ों की बिक्री थोड़ा प्रभावित हुई, लेकिन वेस्टसाइड और आदित्य बिड़ला रिटेल जैसे कई ब्रांड बढ़ते रहे हैं और कभी भी उन पर असर नहीं हुआ.’

एडलवाइस सिक्योरिटीज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अबनीश रॉय ने कहा, ‘आदित्य बिड़ला फैशन एंड रिटेल में, वे 50 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि देख रहे हैं, क्योंकि वे सिर्फ इनरवियर श्रेणी का व्यापार करते हैं.

एक ऑनलाइन लैन्जरी पोर्टल, जीवेम (Zivame) के सूत्रों ने कहा कि उनकी बिक्री पर ‘कोई प्रभाव नहीं’ है. ‘फिलहाल, हम एक स्वस्थ वृद्धि दर्ज कर रहे हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

 

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