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Monday, 23 December, 2024
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स्कूल में डिबेट के चैंपियन, AAP के प्रवक्ता और अब राज्यसभा सांसदः राघव चड्ढा के करियर पर एक नज़र

पंजाब कोटे से राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने जाने के बाद, चड्ढा ने दिल्ली विधानसभा से अपना इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने एक दशक लंबे करियर में कई उपलब्धियां अपने नाम दर्ज की हैं. हालांकि, आलोचक उनकी पार्टी में भी हैं. AAP ने पांच सांसदों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है.

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नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा को स्कूल के दिनों में उनके आत्मविश्वास और अपनी बात को बेहतर तरीके से रखने की वजह से जाना जाता था. नौ साल की उम्र में उन्हें स्कूल में खेले गए एक नाटक में स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की भूमिका निभाने के लिए सर्टिफिकेट ऑफ एक्सीलेंस मिला था. उनके स्कूल के दोस्त उनके भाषण देने के कौशल को याद करते हुए कहते हैं कि अपने दर्शकों को बांध कर रखने की कला की वजह से, शिक्षक उन्हें एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे. चड्ढा स्कूल की पढ़ाई के दौरान लगातार स्कूल स्तर पर होने वाले वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहे.

जब नवंबर 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन हुआ, तब 24 साल के चड्ढा ने उसी आत्मविश्वास से टेलीविजन डिबेट में AAP के पक्ष में अपनी बात रखी.

एक दशक से कम समय में चड्ढा और AAP दोनों ने अहम मुकाम हासिल किया है. फिलहाल, AAP के पास दिल्ली और पंजाब की सत्ता है. वहीं, इस हफ्ते चड्ढा को पंजाब के कोटे से पार्टी ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है.

गुरुवार को चड्ढा, और चार अन्य AAP उम्मीदवार, राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए. इनमें पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हरभजन सिंह, AAP के चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के संस्थापक अशोक मित्तल और लुधियाना के व्यवसायी संजीव अरोड़ा शामिल हैं. 33 साल के चड्ढा, मौजूदा राज्यसभा सदस्यों में सबसे कम उम्र के सांसद हैं.

चड्ढा ने गुरुवार को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वे फरवरी 2020 से यहां के विधायक थे. विधानसभा में विदाई भाषण में चड्ढा ने पार्टी में 10 साल के अनुभवों को कुछ इस तरह से बखूबी बयान किया, ‘कभी लगता है, स्कूल में एक कक्षा से दूसरी कक्षा में प्रमोट किया जा रहा है और कभी लगता है, मैं एक विषय को छोड़कर दूसरा विषय चुन रहा हूं.’

चड्ढा को पार्टी में कई जिम्मेदारियां दी गईं और वे हर भूमिका में लगातार निखरते गए.

करियर को मिली नई ऊंचाई

पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट चड्ढा का जन्म दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाके में 11 नवंबर, 1988 को हुआ. उनके परिवार में उनके माता-पिता और उनकी छोटी बहन के अलावा, ल्हासा अप्सो नस्ल का 12 साल का कुत्ता ‘क्रंची’ भी शामिल है. राघव राजनीति में जाने वाले परिवार के पहले सदस्य हैं. उनके पिता व्यवसायी और मां गृहिणी हैं. उनकी बहन भी चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं.

साल 2011 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन चल रहा था. उसी समय चड्ढा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से फाइनांस में पोस्ट ग्रेजुएट करके भारत लौटे थे. आंदोलन के दौरान उनकी जान-पहचान आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ ही दूसरे पार्टी नेताओं से हुई.

इस आंदोलन से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ और इसके तुरंत बाद ही चड्ढा पूरी तरह से राजनीति में आ गए. वह पार्टी के गठन की शुरुआत से ही जुड़े हुए हैं.

आम आदमी पार्टी के रिकॉर्ड के मुताबिक, चड्ढा ने रणनीतिकार के तौर पर पार्टी के लिए काम किया है. वह कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट और चुनाव घोषणा-पत्र तैयार करने वाली कमेटी से जुड़े रहे हैं. वह दिल्ली जनलोकपाल बिल बनाने वाली टीम के सदस्य भी रहे. बिल में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच के लिए स्वतंत्र संस्था बनाने का प्रावधान है.

चड्ढा दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सलाहकार भी रहे.

चड्ढा ने उस समय कानूनी मामलों को भी संभाला जब केजरीवाल कोर्ट में मानहानि से जुड़ा मुकदमा लड़ रहे थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने साल 2017 में उस समय के केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली पर दिल्ली और जिला क्रिकेट एसोसिएशन के प्रमुख रहने के दौरान भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. हालांकि, 2018 में केजरीवाल ने इस मामले में जेटली से माफी मांग ली और यह केस खत्म हो गया.

साल 2019 में चड्ढा ने दक्षिण दिल्ली सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए. हालांकि, इसके अगले साल हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह राजेंद्र नगर सीट से जीतने में कामयाब रहे.

चडढा कभी भी दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं रहे. हालांकि, पार्टी ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दीं. उन्होंने दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष का पद संभाला. इसके अलावा, वह दिल्ली दंगे के बाद 2020 में गठित विधायी समिति के अध्यक्ष रहे. उन्हें इस साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले, दिसंबर 2020 में पंजाब का सह-प्रभारी भी बनाया गया.

चड्ढा को पंजाब के लिए आम आदमी पार्टी का सह-प्रभारी उस समय बनाया गया जब 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी में मतभेद उभर कर सामने आने लगे थे.

इस साल हुए चुनाव में AAP को पंजाब में जबरदस्त जीत मिली है. पार्टी राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतने में कामयाब रही.

पार्टी में चड्ढा के आगे बढ़ने के बारे में मनीष सिसोदिया के एक अन्य सलाहकार अभिनंदिता माथुर कहती हैं, ‘वह पूरा फोकस रखते हैं और उन्हें पता है कि खुद के लिए कैसे अवसर तैयार करना है.’ माथुर AAP की गोवा यूनिट के लिए काम कर चुकी हैं और 2017 से चड्ढा को व्यक्तिगत रूप से जानती हैं. इसी साल उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली यूनिट के लिए काम करने को कहा था.

उन्होंने कहा, ‘वह हमेशा अरविंद केजरीवाल के बड़े विजन से इत्तेफाक रखते हैं. वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें दोबारा बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती है.’

AAP की आवाज

चड्ढा 2013 से आम आदमी पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता हैं.

कभी केजरीवाल के सलाहकार रहे और पार्टी में चड्ढा के साथ काम कर चुके अक्षय मराठे उन्हें इस जिम्मेदारी के लिए ‘नैसर्गिक पसंद’ मानते हैं. हावर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी के छात्र मराठे ने कहा, ‘जब अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जैसे पार्टी के सीनियर नेता 2013 के चुनावों में व्यस्त थे, तब राघव चड्ढा को सवाल सुनने, उनके जवाब देने और पार्टी की तरफ से डिबेट में शामिल होने के लिए कहा गया था. राघव चड्ढा अपनी बातों को कहने में माहिर हैं और ऐसे में उन्होंने इस कमी को पूरी करने की कोशिश की.’

चड्ढा के बचपन के दोस्त और उनके स्कूल के साथी राहुल चौधरी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में कॉरपोरेट फाइनांस सेक्टर में काम करते हैं. वह स्कूल के दिनों में उनके भाषण देने की क्षमता को याद करते हैं.

चौधरी कहते हैं कि एक बार उनके स्कूल में न्यूज डिबेट के लिए स्टूडियो तैयार किया गया था, जिसे एक लोकप्रिय टीवी एंकर की ओर से होस्ट किया जा रहा था. उस समय चड्ढ़ा 17 साल के थे. यह सच है कि चड्ढा स्कूल डिबेट में जाने-पहचाने चेहरा थे लेकिन, उस रोज जिस तरह से चड्ढा ने कैमरे के सामने अपनी बात कही उसने सभी को चौंका दिया था.

चौधरी ने कहा, ‘वह सरकार और पब्लिक पॉलिसी में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला बनना चाहते थे. ऐसे में देखें तो उनका चार्टर अकाउंटेंट से राजनेता बनना सामान्य बात है. उनकी, फाइनेंस, टैक्स, ऑडिट, कानून, और अकाउंट पर अच्छी पकड़ है. वे इन स्किल का इस्तेमाल राजनीति में भी कर सकते हैं.’

चड्ढा के संपर्क में रहे लोग मानते हैं कि वह किसी काम को बेहतरीन तरीके से करने में विश्वास रखते हैं.

दिल्ली विधानसभा के एक पूर्व रिसर्च फेलो को चड्ढा का दिया गया एक निर्देश अब भी याद है. उन्हें 2020 में एक कार्यक्रम की देखरेख की जिम्मेदारी मिली थी. दिल्ली दंगों के बाद, शांति और सद्भावना कायम करने के मकसद से 2020 में एक विधायी कमेटी का गठन किया गया था. चड्ढा इस कमेटी के अध्यक्ष थे. वह रिसर्च फेलो याद करते हैं कि उस रोज कार्यवाही को लाइव प्रसारित करना था. चड्ढा ने उन्हें जो निर्देश दिया उनमें एक यह भी था कि वह यह पक्का करें कि इस कार्यक्रम के प्रसारण की क्वालिटी वैसी ही होनी चाहिए जैसा कि यूनाइटेड स्टेट की कांग्रेस (Congressional hearings) की सुनवाई की होती है.

उन्होंने 2019 के उस लोकप्रिय वीडियो को देखने को कहा जिसमें हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव मेंबर अलेक्सजांड्रिया ओकासिओ-कोर्टेज (जिन्हें एओसी भी कहा जाता है) कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल मामले में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग से सवाल कर रहे हैं.

अगले एक साल तक चली कई स्तरों पर सुनवाई के दौरान दिल्ली असेंबली कमेटी, जो दिल्ली दंगों के लिए कथित तौर पर फेसबुक की भूमिक की जांच कर रही थी, उसने टेक-पॉलिसी के विशेषज्ञों और व्हिसल ब्लोअर का बयान रिकार्ड किया गया था. इस दौरान चड्ढा को फेसबुक इंडिया के कई सीनियर एग्जीक्यूटिव से वैसे ही सवाल करने का मौका मिला जैसे एओसी ने जुकरबर्ग से सवाल किया था.

हालांकि, चड्ढा के कुछ सहकर्मी छिपे तौर पर यह भी कहते हैं कि उनके साथ काम करना कई बार मुश्किल हो जाता है.

उनके एक सहकर्मी ने कहा, ‘वे तुरंत उग्र हो जाते हैं और वे अप्रत्याशित फैसले भी ले सकते हैं. वे परफेक्शनिस्ट बनने के लिए कुछ ज़्यादा ही कोशिश करते हैं.’

उनके प्रशंसक मानते हैं कि ‘गहराई से बनाई गई योजना’ ही उनकी नेता की छवि गढ़ती है.

मराठे ने कहा, ‘वे अत्यंत ही कुशल हैं और उन्हें तनाव से निपटने का तरीका भी पता है. उनके पास यह गजब का कौशल है.’

पार्टी में उनके आलोचक

पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में टिकट के बंटवारे को लेकर चड्ढा विवादों में घिरे. यह एकमात्र बड़ा विवाद है जिसमें उनका नाम शामिल है. पंजाब के कुछ आप कार्यकर्ताओं ने उनपर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया था. इसके अलावा, जालंधर में उनके एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस मामले को लेकर आप कार्यकर्ताओं के दो समूहों के बीच झड़प हो गई थी.

ऐसा नहीं है कि चड्ढा के विरोधी नहीं है. पार्टी में भी उनके आलोचक हैं.

कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी के लिए उतना ही समय देने वाले दूसरे योग्य नेताओं के मुकाबले, चड्ढा को ‘केजरीवाल के साथ निकटता’ की वजह से तेजी से आगे बढ़ने का मौका मिला है. साथ ही, इनमें से कुछ का दावा है कि बेहतर काम करने वाले सभी नेताओं को एक जैसे संसाधन और सहूलियतें नहीं मिली हैं. वहीं, चड्ढा को मीडिया, जनसंपर्क टीम और फंड तक गैरवाजिब पहुंच मिली हुई है, जो उन्हें पार्टी में आगे बढ़ाने में मददगार हैं.

नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर आप के एक कार्यकर्ता ने कहा, ‘पार्टी (आम आदमी पार्टी) के कितने नेताओं को आप जानते हैं जिनके पास जनसंपर्क के लिए अपनी टीम है?’

उस कार्यकर्ता ने कहा, ‘कई विधायक हैं जो अपना काम बखूबी कर रहे हैं, लेकिन राघव (चड्ढा) उनमें से एक है जिनके लिए पार्टी की आधिकारिक मीडिया टीम प्रेस नोट जारी करती है, यहां तक कि अगर वे अपने क्षेत्र में कोई रूटीन काम भी करवाते हों. सफलताओं को हाईलाइट किया जाता है और असफलताओं को दबा दिया जाता है.’

चड्ढा के सहकर्मी, पार्टी प्रवक्ता और दिल्ली से विधायक सौरभ भारद्वाज इस तरह के आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं. उन्होंने कहा, ‘पार्टी के भीतर प्रतिस्पर्धा हो सकती है, लेकिन इसका कोई खास महत्व नहीं है. हमारे नेता अरविंद केजरीवाल एक बुद्धिमान जज हैं. वे क्षमताओं को आंकने में माहिर हैं और उन्हें अच्छे से पता होता है कि कौन सा काम किसे देना चाहिए और क्यों देना चाहिए. यह पूरी तरह से मेरिट और प्रदर्शन पर निर्भर करता है.’

भारद्वाज ने कहा, ‘वे पार्टी को आगे बढ़ाने वाले अहम कामों को पूरा करने में हमेशा सफल रहे हैं. उनके साथ काम कर चुके और उन्हें कुछ समय से जानने वालों के लिए उनका आगे बढ़ना चौकाने वाला नहीं है.’ भारद्वाज, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समय से ही चड्ढा को जानते हैं.

थोड़ी जीत, थोड़ी हार

राजनीति में चड्ढा को शानदार सफलता तो मिली है, लेकिन उनकी व्यस्तता भी बहुत बढ़ गई है.

चड्ढा के पुराने दोस्त उन्हें पार्टी में जान डालने वाले के तौर पर भी याद करते हैं.

उनके बचपन के दोस्त चौधरी ने कहा, ‘उन्हें वीडियो गेम खेलना पसंद था, खासकर प्लेस्टेशन पर ब्रायन लारा का क्रिकेट, वह घंटों तक खेलते रहते थे. वह पार्टियों में डांस करने या फिल्म देखने के लिए बाहर जाने से नहीं हिचकते थे. लेकिन, अब इस तरह की फ़न एक्टिविटी के लिए उनके पास समय नहीं है.’

गुरुवार को दिप्रिंट के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि ब्रिटिश ड्रामा पिकी ब्लाइंडर के पांचवे सीजन के बाद से उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा है. दो साल पहले उन्होंने यह ड्रामा देखा था. पिकी ब्लाइंडर, पहले विश्वयुद्ध के बाद के एक क्रिमिनल गैंग की कहनी है.

पार्टी में राघव चड्ढा के सहकर्मी अक्सर उन्हें ‘मोस्ट एलिजिबल बैचलर’ कहते हैं. वह कई बार कह चुके हैं कि उनका रूटीन ही ऐसा है कि उनके पास डेटिंग के लिए समय ही नहीं है.

साल 2015 में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मेरे पास मूवी देखने का समय नहीं होता, आपको लगता है कि मेरे पास किसी लड़की के लिए समय होगा?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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