मुख्य मानदंडों पर इंडोनेशिया चीन से ज्यादा फिट है। यह एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है जिसमें प्रति व्यक्ति आय ($ 4,000) हमसे दो गुनी है, जिसे हम 2030 तक ही हासिल कर पाएंगे।
यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत और चीन के बीच तुलना का कुछ ख़ास मतलब नहीं बनता। हालाँकि दोनों भौगोलिक दृष्टि बड़े और आबादी वाले देश हैं। दोनों तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में दृढ़ता से स्थित हैं जो चार दशकों से अलग अलग आर्थिक विकास पथ पर रही हैं, इतनी अलग कि अब चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना है। चीन ताकत के खेल में एक अलग ही लीग में है जबकि भारत अपने खुद के ही पड़ोस में पहचान खो रहा है। जब प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और समावेश, शिक्षा की गुणवत्ता और गरीबी उन्मूलन की बात आती है तब चीन आगे की ओर बढ़ते हुए अधिक संपन्न है और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये अपनी चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर संगठित है।
ये अंतर इस बात से परिलक्षित होते हैं कि कैसे दोनों के कार्य अब बहुत अलग हैं। चीन के पास एक प्रभावशाली हथियार विनिर्माण कार्यक्रम है जबकि भारत अभी भी रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक है। एक तरफ जहाँ बीजिंग आत्मविश्वास के साथ चौथी औद्योगिक क्रांति के शीर्ष पर काबिज होने के लिए आगे बढ़ रहा है वहीँ भारत अभी भी अपनी छवि कम लागत का निर्यात करने वाले देश के रूप बनाए रखने की जद्दोजहत कर रहा है जो की चीन का अतीत है। जहाँ चीन दुनियाँ का अग्रणी निर्यातक है और इसकी कुछ कम्पनियाँ विश्वविजेता बन गयी हैं, वहीँ भारत का उस व्यापार का बहुत छोटा हिस्सा भी कम होता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत के पास दिखाने के लिए अपनी सफलताओं का पिटारा नहीं है लेकिन दोनों देश अब आर्थिक और शक्ति की अलग-अलग कक्षाओं में हैं। तो शायद समय आ गया है कि दोनों देशों की तुलना करने वाले इन कुटीर उद्योगों को बंद कर दिया जाए, यह न भूलें ये वो कुटीर उद्योग हैं जो चीन से ज्यादा भारत में फलता-फूलता है, जहाँ उनकी नज़रें अमेरिका को चुनौती देने के लिए जमी हुई हैं।
यदि तुलना करनी ही है तो भारत की इंडोनेशिया के साथ क्यों ना की जाए? ऐसा करना, उभरती हुई महान ताकत के रूप में हमारी आत्म छवि के नजरिये से अपराध हो सकता है और भारत की बहुत सारी और भिन्न-भिन्न उपलब्धियों, जिनके सामने इंडोनेशिया के पास कोई जवाब नहीं है, के लिए अनुचित है। लेकिन मुख्य मानदंडों पर इंडोनेशिया चीन से ज्यादा फिट है। यह एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है जिसमें प्रति व्यक्ति आय ($ 4,000) जिसे हम 2030 तक हासिल कर पाएंगे। भारत के लिए चीन का $8600 अर्थपूर्ण अनुमान के क्षितिज से परे है। इंडोनेशिया में भी 5 से 6 प्रतिशत की एक सम्मानजनक आर्थिक विकास दर (हालिया एक वर्ष में भारत से तेज) है। इसकी आबादी भी विशाल है, हालांकि यह भारत की आबादी का केवल पांचवां हिस्सा है, और दोनों देशों की जनसंख्या वृद्धि दर (1.2 प्रतिशत) समान है।
दोनों अर्थव्यवस्थाएं सामान रेखाओं पर चलती हैं। दोनों के पास एक बड़ा सार्वजानिक क्षेत्र है और दोनों, बाजारों को काम करने देने के बजाय मूल्य नियंत्रण लागू करने पर उतारू रहते हैं। दोनों देश एक सुधारवादी मार्ग पर रहे हैं तथा विदेशी निवेश के लिए दरवाजे और भी खोल दिए हैं। दोनों देशों की कंट्री क्रेडिट रेटिंग समान है, हालाँकि भारत का मैक्रो-इकोनोमिक इंडिकेटर स्कोर ज्यादा है। इंडोनेशिया अन्य मोर्चों पर आगे है: व्यापार में आसानी के मामले (Ease of doing business) में इसकी रैंकिंग ऊंची है और भ्रष्टाचार के मामले में इसका स्कोर बेहतर है।
एक देश की सामाजिक प्रवृत्तियां दूसरे देश की सामाजिक प्रवृत्तियों पर अपनी छाप छोड़ती हैं। यद्यपि भारत हिन्दू प्रभावपूर्ण है और इंडोनेशिया मुस्लिम, इंडोनेशिया भी जातीय और धार्मिक विविधता के लिए बड़े पैमाने पर एक सहिष्णु समाज माना जाता रहा है। दोनों देशों में अलगाववादी आंदोलन एक लंबी समस्या रही है। हाल ही के दिनों में, दोनों देशों में धार्मिक विभाजन ने तनाव और हिंसा में वृद्धि हुई है। भारत की तरह इंडोनेशियाई समाज ने भी धार्मिकता के विकास(हिजाब पहने हुए कई महिलाएं) को देखा है। जहाँ भारत ने अपने राजनीतिक केंद्र को हिन्दू बहुसंख्यकवाद की तरफ स्थानांतरित किया है, और स्वयंसेवक समूहों के प्रसार के साथ साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पर्दे के पीछे से संस्थागत नियंत्रण को देखा है, वहीं इंडोनेशिया ने धार्मिक पुलिस के निर्माण, रुढ़िवादी मौलवियों जिन्होंने खुद को नैतिक मध्यस्थों के रूप में स्थापित किया है, और इस्लामी राज्य के प्रसार को देखा है।
बेशक, असमानताएं हैं। इंडोनेशिया ने बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल और आर्थिक बाधाओं को देखा है और इसका लोकतान्त्रिक रिकॉर्ड अपेक्षाकृत हाल ही का है। आर्थिक मोर्चे पर, भारत तुलनात्मक रूप से कमजोर है, लेकिन इसके औद्योगिक और वित्तीय क्षेत्र अधिक विविध और विकसित हैं। विकास को लेकर दोनों के पास एकसमान चुनौतियाँ हैं: औद्योगिकीकरण, आधारभूत संरचना का विकास, बड़ी असमानताओं और गरीबी से निपटना। हमारी चाहत चीन की अपेक्षा में एक छोटे लोकतान्त्रिक देश बनने की है पर शायद हम एक इंडोनेशिया के बड़े रूप तक ही सीमित रह जायेंगे।
बिज़नस स्टैण्डर्ड के साथ विशेष आयोजन द्वारा।
Read this article in English: When comparing economies, pair India with Indonesia, not China