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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशEC ने SC को बताया- चुनावी हेट स्पीच पर रोक के लिए कानून नहीं, IPC, RP एक्ट के तहत की जा रही कार्रवाई 

EC ने SC को बताया- चुनावी हेट स्पीच पर रोक के लिए कानून नहीं, IPC, RP एक्ट के तहत की जा रही कार्रवाई 

चुनाव आयोग भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर उस याचिका का जवाब दे रहा था जिसमें उन्होंने मोदी सरकार को हेट स्पीच और अफवाह फैलाने पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की थी.

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नई दिल्ली: भारत के चुनाव आयोग (इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया-ईसीआई) ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) को बताया कि वह किसी विशिष्ट कानून के आभाव में चुनावों के दौरान हेट स्पीच (नफरत फैलाने वाले भाषण) का इस्तेमाल करने वाले और अफवाह फैलाने वाले राजनीतिक दलों से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, (आरपी एक्ट) 1951 के प्रावधानों का सहारा ले रहा है.

चुनाव आयोग पिछले साल अगस्त में भाजपा के पूर्व प्रवक्ता, अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका का जवाब दे रहा था.

चुनाव आयोग ने अपने एक हलफनामे में निवेदित किया, ‘चुनावों के दौरान ‘हेट स्पीच’ और ‘अफवाह फैलाने’ के प्रयासों को नियंत्रित करने वाले किसी विशिष्ट कानून के अभाव में, इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया आईपीसी और आरपी एक्ट, 1951 के विभिन्न प्रावधानों को इस आशय से लागू करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राजनीतिक दलों के सदस्य या अन्य कोई व्यक्ति, समाज के विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य पैदा करने वाले बयान न दें.’

उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार को ‘कानून के शासन, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन की स्वतंत्रता और सम्मान के अधिकार, तथा नागरिकों के अन्य मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए हेट स्पीच और अफवाह फैलाने वालों को नियंत्रित करने हेतु प्रभावी कड़े कदम उठाने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग की है.’ इसने नफरत फैलाने वाले भाषण पर भारतीय विधि आयोग (लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया) की साल 2017 की रिपोर्ट में उल्लिखित सिफारिशों को लागू करने के लिए भी सरकार को निर्देश दिए जाने की मांग की है.

चुनाव आयोग ने अपनी प्रतिक्रिया में दावा किया कि ‘चुनाव प्रचार के दौरान नफरत भरे भाषण देने के कृत्य अक्सर धर्म, जाति, समुदाय आदि की अपील के साथ जुड़े होते हैं.’ इसने ध्यान दिलाया कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में, लॉ कमीशन से आग्रह किया था कि वह ‘चुनाव आयोग के हाथों को मजबूत करने और ‘घृणास्पद भाषणों’ (चाहे के किसी की भी द्वारा दिए जाएं) के खतरे पर लगाम लगाने के लिए संसद को कोई सिफारिश करने के लिए विचार करे.’

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हालांकि, चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत से कहा है कि लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया ने इस बारे में कोई सिफारिश नहीं की है कि अगर कोई पार्टी या उसके सदस्य हेट स्पीच में लिप्त होते हैं तो क्या चुनाव आयोग को ऐसे राजनीतिक दल की मान्यता रद्द करने अथवा उसे या उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए?


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चुनाव आयोग के हलफनामे में कहा गया है कि लॉ कमीशन ने आपराधिक कानून में विभिन्न संशोधनों का सुझाव दिया था ताकि नफरत को बढ़ावा देने और कुछ क्षेत्रों में भय अथवा आशंका, या हिंसा को उकसाने के अपराध को दंडित किया जा सके. यही वह बिंदु है जिसके बार में उपाध्याय अब चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को इसे लागू करने का निर्देश दे.

इसके बाद इसने (चुनाव आयोग ने) उन उपायों को सूचीबद्ध किया जो किसी उम्मीदवार या उनके अभिकर्ता (एजेंट) द्वारा अभद्र भाषा में लिप्त होने पर किए जाते हैं. चुनाव आयोग ने कहा कि वह इसका ‘सख्त संज्ञान’ लेता है और उन्हें ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी करता है.

हलफनामे में आगे कहा गया है. ‘चुनाव आयोग ऐसी गलती करने वाले उम्मीदवार/व्यक्ति के खिलाफ, उनके जवाब के आधार पर, विभिन्न निवारक उपाय करता है, जैसे कि उन्हें चेतावनी देना या उन्हें एक निर्दिष्ट अवधि के लिए प्रचार करने से रोकना या यहां तक कि बार-बार ऐसा अपराध करने वालों मामले में आपराधिक शिकायत शुरू करना.‘

किसी भी कानून के तहत परिभाषित नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में ईसीआई को एक जनहित याचिका में एक पक्षकार के रूप में जोड़ने की अनुमति दी थी. उपाध्याय का कहना है कि चुनाव के दौरान अक्सर हेट स्पीच का प्रयोग होता है, तब भी जब आदर्श आचार संहिता लागू हो.

इसके जवाब में, ईसीआई ने अब बताया है कि ‘भारत में किसी भी मौजूदा कानून के तहत हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है.’

ईसीआई ने कहा कि, वर्तमान में, नफरत फैलाने वाले भाषणों से निपटने वाले प्रावधानों में आईपीसी की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका इरादा किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उन्हें आक्रोशित करना हो) और आईपीसी की धारा 505 (सार्वजनिक रूप से शरारत के लिए प्रेरित करने वाले बयान) के साथ-साथ आरपी एक्ट और कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रॉसीजर (सीआरपीसी) के अन्य प्रावधान शामिल हैं.

आरपी एक्ट 1951 की धारा 125 चुनाव के संबंध में धर्म, जाति, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान करती है.

इसने चुनावों के दौरान ‘हेट स्पीच’ के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का भी जिक्र किया.

ईसीआई ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि इसी मुद्दे पर साल 2017 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बारे में सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य के राजनीतिक दलों को एक पत्र के माध्यम से ध्यान दिलाया गया था, जिसमें उन्हें अपने-अपने उम्मीदवारों को ‘ऐसी किसी भी गतिविधि से दूर रहने के लिए सूचित करने के लिए कहा गया था, जो किसी भी तरीके से धर्म, जाति आदि के नाम पर वोट मांगने के बराबर हो.’

चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत को आगे यह भी बताया कि इस तथ्य के बावजूद कि आदर्श आचार संहिता की कोई ‘कानूनी मान्यता’ नहीं है, इसने उम्मीदवारों को ‘ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल होने से प्रतिबंधित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हुए हैं, जो विभिन्न जातियों और समुदायों, धार्मिक या भाषाई दोनों आधार पर, के बीच मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकते हैं या आपसी नफरत पैदा कर सकते हैं या तनाव पैदा कर सकते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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