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Tuesday, 5 November, 2024
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ई-सिगरेट प्रतिबंधित, पर देश की सबसे बड़ी सिगरेट निर्माता आईटीसी में उसकी 28 प्रतिशत हिस्सेदारी

जून महीने के अंत तक के आंकड़ों के अनुसार आईटीसी के 28.64 प्रतिशत शेयर केंद्र सरकार और सरकारी कंपनियों के हाथों में थे.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय युवाओं पर खतरा बताते हुए बुधवार को ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की.

पर, ये बात शायद बहुतों को पता नहीं हो कि देश में सामान्य सिगरेट बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी में भारत सरकार की बड़ी हिस्सेदारी है. जबकि ये एक साबित तथ्य है कि सिगरेट से कैंसर और अन्य कई बीमारियों होती हैं. भारत सरकार का सिगरेट कंपनी में हिस्सेदार होना शायद दुनिया में इस तरह का इकलौता उदाहरण है, और इससे ई-सिगरेट पर पाबंदी के फैसले को लेकर हितों के संभावित टकराव का सवाल उठता है.

जून महीने के अंत तक के आंकड़ों के अनुसार सरकार और सरकारी कंपनियों के पास आईटीसी के कुल 28.64 प्रतिशत शेयर मौजूद थे. इनमें से खुद केंद्र सरकार के पास 7.96 प्रतिशत शेयर है जो उसने स्पेसिफाइड अंडरटेकिंग ऑफ यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (एसयूयूटीआई) के ज़रिए ले रखी है. एसयूयूटीआई सरकार के लिए पूर्ववर्ती यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) के निवेश को संभालती है. साथ ही कई सरकारी बीमा कंपनियां भी आईटीसी में शेयरहोल्डर हैं, जिनमें से जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के पास जून के अंत तक सर्वाधिक 16.3 प्रतिशत शेयर थे.

जबकि जेनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन के पास 1.73 प्रतिशत, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के पास 1.52 और ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के पास 1.11 प्रतिशत शेयर हैं.

‘पक्षपातपूर्ण, एकतरफा’

आईटीसी के मुनाफे में 80 प्रतिशत तक का योगदान इसके सिगरेट व्यवसाय का है. कंपनी के लोकप्रिय सिगरेट ब्रांडों में क्लासिक, गोल्डफ्लेक, कैप्स्टन और नेवी कट शामिल हैं.

ई-सिगरेट पर प्रतिबंध की सरकार की घोषणा के बाद बाज़ार में बुधवार के आखिरी सत्र में सिगरेट निर्माताओं के शेयरों में भारी तेज़ी देखी गई.

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में आईटीसी के शेयर जहां 1.03 प्रतिशत ऊपर 239.60 रुपये पर बंद हुए, वहीं अन्य प्रमुख तंबाकू कंपनियों गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया लिमिटेड और गोल्डेन टोबैको के शेयर क्रमश: 990.95 रुपये (5.55 प्रतिशत ऊपर) और 31 रुपये (3.85 प्रतिशत ऊपर) पर बंद हुए.

अन्य देशों में लग चुके हैं प्रतिबंध

ई-सिगरेट के दीर्घावधि में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होने के कारण दुनिया की कई स्वास्थ्य एजेंसियों ने इनको लेकर चिंता का इजहार किया है. और, भारत से पहले कई देश ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. पर, आईटीसी में सरकार की शेयर हिस्सेदारी होने के तथ्य को देखते हुए बहुत से लोग प्रतिबंध के कदम पर सवाल उठा रहे हैं.


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सलाहकारी सेवा देने वाली कंपनी स्टेकहोल्डर्स एम्पावरमेंट सर्विसेज़ के सह-संस्थापक जे.एन. गुप्ता ने कहा, ‘सरकार ने ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने के पीछे स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का ज़िक्र किया. यदि ऐसा है तो सरकार को इसी दलील के आधार पर पारंपरिक सिगरेटों पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार का आईटीसी में शेयर हिस्सेदारी रखना दरअसल संविधान के खिलाफ जाता है, क्योंकि संविधान में साफ कहा गया है कि सरकार को नशे की चीज़ों की खपत को हतोत्साहित करना चाहिए. जब सिगरेट बनाने वाली कंपनी में आपकी हिस्सेदारी हो, तो आप सिगरेट का उपभोग कम करने में योगदान नहीं दे रहे.’

देश में ई-सिगरेट के उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था एसोसिएशन ऑफ वेपर्स इंडिया (एवीआई) ने प्रतिबंध को भारत के 11 करोड़ धूम्रपान प्रेमियों के लिए एक ‘काला दिन’ करार दिया है क्योंकि ‘उन्हें धूम्रपान के अपेक्षाकृत सुरक्षित विकल्पों से वंचित’ कर दिया गया.

एवीआई का आरोप है कि सरकार की दिलचस्पी जनस्वास्थ्य की बेहतरी में कम, सिगरेट उद्योग के संरक्षण में ज़्यादा है.

एवीआई के निदेशक सम्राट चौधरी ने एक बयान में कहा, ‘शुरू से ही, सरकार को जनस्वास्थ्य या जनकल्याण की फिक्र नहीं रही है. सरकार उन पक्षपातपूर्ण वैज्ञानिक सबूतों को आधार बना रही है जिनका कि दुनिया भर में वैज्ञानिक पहले ही खंडन कर चुके हैं, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम्स (ईएनडीएस, ई-सिगरेट) को निशाना बनाने के लिए रिसर्च के खास हिस्सों को और गलत तरीके से पेश किया गया था.’

चौधरी ने आगे कहा, ‘सरकार के लिए देश में सिगरेट व्यवसाय पर एकाधिकार रखने वाली आईटीसी में अपने 28 प्रतिशत शेयर की हिफाज़त करना ज़्यादा महत्वपूर्ण है. सरकार प्रतिबंध लगाने को लेकर इतनी बेकरार थी कि उसने ईएनडीएस पर किसी तरह के अनुसंधान पर भी रोक लगा दी है ताकि परंपरागत धूम्रपान के मुकाबले उनके अधिक सुरक्षित होने के तथ्य को दबाया जा सके.’

ईएनडीएस के व्यवसाय से जुड़े लोगों की संस्था ट्रेंड्स के संयोजक प्रवीण रिखी ने सरकार के फैसले को ‘विडंबनापूर्ण और असंगत’ करार दिया है. उन्होंने कहा, ‘धूम्रपान के एक अधिक सुरक्षित विकल्प पर तो प्रतिबंध लगाया जा रहा है, जबकि ज़्यादा खतरनाक उत्पाद बिकते रहेंगे.’

उन्होंने सरकार पर अपने फैसले को सही ठहराने के लिए ‘चुनिंदा वैज्ञानिक और चिकित्सकीय राय’ का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. शक्तिशाली तंबाकू लॉबी के प्रभाव की ओर इशारा करते हुए रिखी ने कहा कि सरकार ने संबद्ध पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बिना एकतरफा फैसला किया है.


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ई-सिगरेट पर रोक लगाने और पारंपरिक सिगरेट को छोड़ देने के सरकार के फैसले पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक सदस्य ने भी सवाल उठाया है. शमिका रवि ने कहा कि सरकार के कदम का कोई स्वास्थ्य संबंधी या आर्थिक औचित्य नहीं दिखता है. उनका कहना है कि सरकार को प्रतिबंध लगाने के बजाय टैक्स बढ़ा देना चाहिए था.

शमिका ने ट्वीट किया, ‘प्रतिबंध क्यों लगाना जब आप (भारी) टैक्स लगा सकते हैं? ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने लेकिन तंबाकू उत्पादों को छोड़ देने का कदम विचित्र है. इस फैसले का ना तो स्वास्थ्य संबंधी और ना ही कोई आर्थिक आधार है, तो फिर क्या कारण है?’

आईटीसी और सरकार

लंदन स्थित कंपनी ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको (बैट) दो दशकों से भी अधिक समय से आईटीसी के अधिग्रहण की चेष्टा करती रही है.

बैट और आईटीसी के बीच खींचतान 1990 के दशक में तब शुरू हुई थी जब बैट ने आईटीसी पर नियंत्रण का प्रयास किया था.

तब चेयरमैन कृष्णलाल चुघ के नेतृत्व में आईटीसी ने यूटीआई, आईडीबीआई और आईसीसीआई जैसे वित्तीय संस्थानों की मदद से बैट के अधिग्रहण प्रयासों को नाकाम कर दिया था.

माना जाता है कि चुघ ने उन्हें शीर्ष पद से हटाने के बैट के प्रयासों को निरस्त करने के लिए सरकार नियंत्रित वित्तीय संस्थानों को कंपनी बोर्ड में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाने को प्रेरित किया था.

उनके उत्तराधिकारी वायसी देवेश्वर ने भी बैट के इरादे को सफल नहीं होने दिया था. साथ ही वे आईटीसी को विविध उत्पादों से जोड़ते हुए उसे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी निर्माता कंपनी में परिवर्तित करने में भी सफल रहे थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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