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Friday, 26 April, 2024
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कैसे भारतीय वायुसेना को गेम चेंजर लड़ाकू विमान राफेल बनाएगा सबसे ताकतवर

चार राफेल विमानों का पहला दस्ता मई 2020 के आखिर तक भारत आ जाएगा और अगला साल खत्म होते-होते उन्हें तमाम हथियारों और अन्य साजो-सामान से सुसज्जित किया जा चुका होगा.

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नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना को जिस बड़ी डिलीवरी का दो दशकों से इंतजार था वो आखिरकार आज समाप्त होने होने को है. मंगलवार को यानी आज दशहरे के दिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस के मेरीन्यक में RB 001 टेल नंबर वाले प्रथम राफेल लड़ाकू विमान को औपचारिक रूप से ग्रहण करेंगे.

दिलचस्प बात ये है कि इस प्रशिक्षण विमान को मिला संकेताक्षर RB भारतीय वायुसेना के मौजूदा प्रमुख एयर चीफ मार्शल राकेश भदौरिया के नाम के आरंभिक अक्षरों से बने हैं. ऐसा भदौरिया के सम्मान में किया गया है क्योंकि वायुसेना के उपप्रमुख के रूप में उन्होंने राफेल सौदे को कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

मई 2020 के अंत तक नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए 36 राफेल विमानों की खरीद के सौदे में से चार विमान भारतीय आसमान में उड़ान भर रहे होंगे और अगले साल के अंत तक राफेल को वायुसेना के तमाम पसंदीदा हथियारों से सुसज्जित किया जा चुका होगा.

राफेल विमानों की पहली खेप को हरियाणा के अंबाला स्थित 17वीं स्क्वाड्रन ‘गोल्डन एरोज़’ में शामिल किया जाएगा. दूसरी स्क्वाड्रन बंगाल के हाशिमारा में तैनात की जाएगी जो देश की पूर्वी सीमा पर निगाह रखेगी.

इसी के साथ, भारतीय वायुसेना को सर्वाधिक मारक क्षमता वाले 4.5 जनरेशन के फाइटर विमानों की ताकत मिल जाएगी.

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गेम चेंजर है राफेल

भारतीय और पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों के बीच 26 फरवरी को हुई डॉगफाइट के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावों से पहले मार्च में कहा था, ‘यदि भारत के पास आज राफेल जेट होते तो हाल की घटना का परिणाम कुछ और ही होता.’

शक्तिबल में भारत से कमतर होने के बावजूद पाकिस्तानी वायुसेना ने एक दिन पहले 25 फरवरी को हुए बालाकोट हमले के नाटकीय जवाब में भारतीय वायुसेना को चुनौती देने के लिए अपने 25 लड़ाकू विमान भेजे थे. विमानों के पाकिस्तानी दस्ते में अमेरिकी एफ-16 विमान भी शामिल थे.

उस समय भारतीय वायुसेना के दो सुखोई 30 एमकेआई विमान, जो कि उसके मुख्य लड़ाकू विमान हैं और दो मिराज 2000 विमान गश्ती उड़ान पर थे, पर पाकिस्तानी विमान संख्या में उन पर भारी थे, साथ ही उनके एफ-16 विमानों पर तैनात मिसाइलों की रेंज भी अपेक्षाकृत अधिक थी. एफ-16 विमान हवा से हवा में मार करने वाली मध्यम दूरी की उन्नत मिसाइल (अमराम) एआईएम-120 को पाकिस्तानी सीमा के 45 किलोमीटर भीतर से ही भारतीय निशानों पर दाग सकते हैं. शीघ्र ही अतिरिक्त सुखोई विमानों को पाकिस्तानी विमानों का सामना करने के लिए भेजा गया, क्योंकि मिराज विमान जिस जगह पर थे वहां से वो ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते थे.

अंतत: भारतीय वायुसेना के बुढ़ाए मिग 21 बाइसन विमानों ने पाकिस्तानी आक्रमण को थामने का काम किया. उस डॉगफाइट में पाकिस्तान ने एक भारतीय मिग विमान को गिरा दिया, जबकि उसे भी एक एफ-16 से हाथ धोना पड़ा.

भारतीय वायुसेना के सूत्रों के अनुसार यदि भारत के पास राफेल विमान होते तो पाकिस्तान इस कदर आक्रामकता दिखाने की सोचता तक नहीं. एक सूत्र ने कहा, ‘इस समय हमें पाकिस्तान के एक एफ-16 के मुकाबले दो सुखोई उतारने पड़ते हैं. जबकि एक राफेल के मुकाबले के लिए पाकिस्तान को दो एफ-16 लगाने पड़ेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि राफेल के पास ना सिर्फ बेहतर हथियार हैं बल्कि ये विजुअल रेंज से परे जाकर भी निशाने साध सकता है.’

भारत के लिए निर्मित राफेल विमान अब तक बने सबसे मारक विमानों में से एक होंगे, क्योंकि इनमें भारत की ज़रूरतों के मुताबिक 13 खास संवर्धन किए गए हैं. इन नए साजो-सामान में हेलमेट में लगे इज़राइली डिस्प्ले, रडार वार्निंग रिसीवर, लो-बैंड जैमर, फ्लाइट डेटा की 10 घंटे की रिकार्डिंग, इंफ्रारेड सर्च एंड ट्रैकिंग सिस्टम सम्मिलित हैं.

राफेल की मारक क्षमता इतनी अधिक क्यों

अनेक तरह की हथियार प्रणालियों से लैस राफेल को हवाई प्रभुत्व, टोही कार्यों, ग्राउंड सपोर्ट, दूर तक हमले करने, पोतों पर हमले और परमाणु हमला निरोधक मिशनों के लिए सक्षम बनाया गया है. राफेल की निर्माता कंपनी दशॉ एविएशन इसे ‘ओमनिरोल’ लड़ाकू विमान बताती है, यानि ये विमान कई लड़ाकू मिशनों को एक साथ अंजाम दे सकते हैं.

बगैर हथियारों के राफेल विमान 10-टन वजनी होते हैं, इसमें हथियार और अन्य बाह्य पेलोड लगाने के 14 हार्डप्वाइंट हैं, जिनमें से पांच अतिरिक्त इंधन टैंकों या भारी हथियारों को गिराने में सक्षम हैं.

दशॉ एविएशन के अनुसार राफेल पर नौ टन वजन के बराबर बाह्य हथियार और अन्य साजो-सामान लगाए जा सकते हैं, यानि राफेल लगभग अपने वजन के बराबर पेलोड उठा सकता है.

कई प्रकार के हथियार

राफेल की सबसे बड़ी खासियत है इसका परमाणु हथियारों को दागने में सक्षम होना. हालांकि, भारत ने विमान के साथ परमाणु हथियार दागने वाली मिसाइलें नहीं खरीदी हैं, पर सूत्रों का कहना है कि जब भी भारत फैसला करता है इस पर परमाणु हथियार दागने की भारतीय प्रणाली लगाने में कोई समस्या नहीं आएगी. इस समय वायुसेना के मिराज विमानों पर परमाणु हथियार तैनात किए जा सकते हैं.

राफेल पर लगी मेटिओर मिसाइल को गेम चेंजर बताया जाता है. यूरोपीय कंपनी एमबीडीए निर्मित मेटिओर बहुत दूर तक मार करने वाली रैम-जेट संचालित हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है. भारत के लिए निर्मित राफेल में में इसे लगाए जाने के कारण भारत की हवा से हवा में मार करने की क्षमता बहुत बढ़ जाएगी क्योंकि मेटिओर 120 किलोमीटर दूर तक मार कर सकती है. इसका मतलब ये हुआ कि भारतीय सीमा में रहते हुए भी राफेल दुश्मन के विमान को उसके क्षेत्र में 100 किलोमीटर भीतर तक मार गिरा सकता है.

एमबीडीए के अधिकारी ने इस बारे में बताया, ‘यदि पायलट ने रडार संकेतों के अनुसार निशाना साध कर इसे दाग दिया तो फिर लक्ष्य बने विमान के बचने की कोई गुंजाइश नहीं बचती है.’ इस अधिकारी ने कहा कि इस समय दुनिया में मेटिओर के बराबर क्षमता वाली कोई दूसरी मिसाइल उपलब्ध नहीं है.’

राफेल पर लगाई गई एक और अहम मिसाइल स्कैल्प है. यह हवा से सतह पर मार करने वाली लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल है. हर राफेल पर 1,300 किलोग्राम वजनी और 5.1 मीटर लंबाई की एक या दो स्कैल्प मिसाइलें तैनात की जा सकती हैं.

स्कैल्प 600 किलोमीटर दूर तक मार सकती है और यह अपने सटीक लक्ष्यभेदन के लिए जानी जाती है. यानि दुश्मन के क्षेत्र में 600 किलोमीटर भीतर मार करने के लिए राफेल को भारतीय सीमा को लांघने तक की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.

एमबीडीए के अधिकारी ने बताया, ‘यह एक सामरिक हथियार है जिसे पेनेट्रेशन, इंपैक्ट या एयरबर्स्ट मोड में दागा जा सकता है. यह मिसाइल एंटी-एक्सेस और एरिया डिनायल जैसी परिस्थतियों में भी बहुत अंदर तक मार कर सकती है.’

राफेल में हवा से हवा में मार करने वाली मीका मिसाइलें भी लगाई गई हैं. भारतीय वायुसेना की इस पर ब्रह्मोस-एनजी मिसाइलें भी लगाने की योजना है जिसे भारत-रूस संयुक्त उद्यम के तहत निर्मित किया जाएगा.

भारत के लिए बने राफेल विमानों में फ्रांस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले टैलेस निर्मित टैलिओस लेज़र डेजिगनेटर पॉड की जगह इज़राइल निर्मित लाइटनिंग सेंसर पॉड लगाए जा रहे हैं जिनका उपयोग भारतीय वायुसेना पहले से कर रही है. इसी तरह भारतीय राफेल में हवा से सतह पर मार करने वाले एएएसएम हैमर हथियारों की जगह स्पाइस हथियार प्रणाली लगाई जा रही है.

रडार और सेंसर

राफेल में आरबीई2 एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकलि स्कैन्ड रडार लगे हैं जो परंपरागत एंटेना वाले रडारों के मुकाबले कहीं अधिक प्रभावी होते हैं तथा बहुत शीघ्रता से और कई लक्ष्यों को एक साथ ट्रैक कर सकते हैं.

राफेल में ‘फ्रंट सेक्टर ओप्ट्रॉनिक्स’ प्रणाली भी लगी है जिस पर रडार जैमिंग का कोई असर नहीं पड़ता है. इस पर इंफ्रारेड, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और लेज़र खतरों का लंबी दूर से पता लगाने में सक्षम स्पेक्ट्रा इंटीग्रेटेड इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली भी लगी हुई है. एमबीडीए ने टैलेस के साथ मिल कर ये प्रणाली विकसित की है. एमबीडीए सूत्रों के अनुसार स्पेक्ट्रा प्रणाली रडार, लेज़र और मिसाइल वार्निंग रिसीवर से मिली सूचनाओं के आधार पर खतरों की सटीक निशानदेही करती है.

मुकाबले के लिए तैयार

फ्रांसीसी वायुसेना और फ्रांसीसी नौसेना के राफेल विमानों ने 2011 में लीबिया में पश्चिमी गठबंधन बलों की तरफ से हवाई अभियानों में भाग लिया था. तब बेन्गाज़ी और त्रिपोली के आसमान में उड़ान भरने वाले इन पहले पश्चिमी विमानों ने कई तरह के मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था.

फ्रांसीसी वायुसेना के राफेल विमानों ने माली में शत्रु के ठिकानों को ध्वस्त करने और मित्र सेना की मदद करने में अहम भूमिका निभाई थी.

फ्रांसीसी वायुसेना के सर्वाधिक लंबे समय तक चलने वाले इस हमले में चार राफेल विमानों ने पूर्वी फ्रांस के सांडिज़िए से उड़ान भरने के बाद 21 लक्ष्यों को ध्वस्त करते हुए 9 घंटे 35 मिनट बाद जाकर चाड के एन्जमेना में लैंडिंग की थी. इससे राफेल की क्षमता का भलीभांति अंदाजा लग जाता है.

राफेल गाथा

भारतीय वायुसेना ने सबसे पहले 2001 में मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने का प्रस्ताव किया था – और इस श्रेणी के युद्धक विमान के लिए अंतत: राफेल को चुना गया.

शुरू में भारतीय वायुसेना मिराज 2000 खरीदने की इच्छुक थी और इसकी फ्रांसीसी निर्माता कंपनी दशॉ एविएशन इस विमान की फैक्ट्री भारत स्थानांतरित करने के लिए भी तैयार थी. दरअसल उस समय तक दशॉ ने मिराज का उत्पादन बंद कर राफेल पर ध्यान केंद्रित करने का इरादा कर लिया था. पर 2004 आते-आते भारत ने मिराज 2000 के उत्पादन करने की योजना पर कदम बढ़ाने के बजाय मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की खरीद के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर निकालने का फैसला कर लिया. इस सिलसिले में अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव मंगाने का कदम 2007 में उठाया गया, और यह प्रक्रिया 2012 की सर्दियों में राफेल का चयन किए जाने के साथ संपन्न हुई.

पर कीमत को लेकर पूरा सौदा अटका रहा क्योंकि विमान के भारत में सरकारी कंपनी एचएएल में उत्पादन का प्रस्ताव था, जिसने कि 2.57 गुना अधिक श्रम घंटे लगने का उल्लेख किया. इसका मतलब ये होता कि विमान की कीमत फ्रांस द्वारा उल्लिखित स्तर से कहीं अधिक बैठती. साथ ही फ्रांस ने एचएएल द्वारा निर्मित विमानों की गारंटी लेने से भी इनकार कर दिया था.

भारत ने फ्रांस से संपर्क किया

नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने तक मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के सौदे पर बातचीत अटकी हुई थी. शीर्षस्थ सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत ने सबसे पहले जनवरी 2015 में फ्रांस से संपर्क कर जानना चाहा कि क्या सरकार के स्तर पर कम संख्या में पूर्ण निर्मित राफेल की खरीद पर समझौता हो सकता है.

उसके शीघ्र बाद दोनों सरकारों और दशॉ एविएशन के बीच सघन वार्ताओं का दौर शुरू हो गया.

प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रैल 2015 में अपनी पेरिस यात्रा के दौरान पूर्ण निर्मित 36 राफेल विमानों की खरीद की बड़ी योजना का ऐलान किया. इसके बाद समझौते को अंतिम रूप देने में 18 महीने और लगे. सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार की मुख्य चिंता भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रनों की घटती ताकत को लेकर थी.

दरअसल भारतीय वायुसेना के पास विमानों की निर्धारित 42 स्क्वाड्रन की जगह मात्र 30 स्क्वाड्रन रह गई हैं. इसमें बुढ़ाए मिग, मिग 29, जगुआर और मिराज विमानों की स्क्वाड्रन भी शामिल हैं, जिन्हें सक्षम बनाए रखने के लिए समुन्नत किया जा रहा है.

मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट संबंधी वार्ताओं में अवरोध को देखते हुए अंतत: आपातकालीन उपाय के रूप में 36 राफेल की खरीद का सौदा किया गया.

राफेल की कीमत

7.878 अरब यूरो के राफेल सौदे में कीमत को लेकर बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है. इस मुद्दे पर 2019 के आम चुनाव से पहले राजनीतिक बयानबाज़ियों का भी दौर चला था.

बगैर हथियारों और साजो-सामान वाले वन-सीटर राफेल की कीमत करीब 9.1 करोड़ यूरो प्रति इकाई, जबकि टू-सीटर विमान की कीमत 9.4 करोड़ यूरो आई है – यानि कुल 3.42 अरब यूरो विमान पर तैनात किए जाने वाले हथियारों की लागत 71 करोड़ यूरो आएगी, जबकि भारत के लिए खास तौर पर किए जाने वाले बदलावों का खर्च 170 करोड़ यूरो आ रहा है.

संबद्ध उपकरणों, जिनमें 36 विमानों के लिए सिमुलेटर भी शामिल हैं, की कीमत 180 करोड़ यूरो है, जबकि प्रदर्शन आधारित लॉजिस्टिक्स पर 35.3 करोड़ यूरो की लागत आएगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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