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Thursday, 21 November, 2024
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‘पत्रकारिता को आतंकवाद न समझें’- न्यूज़क्लिक छापों पर मीडिया ग्रुप्स ने CJI चंद्रचूड़ को लिखा पत्र

न्यूज़क्लिक में कार्यरत या उससे जुड़े पत्रकारों और पेशेवरों के घरों पर छापे के बाद, 16 मीडिया संगठनों ने सीजेआई को लिखे पत्र में पत्रकारों से पूछताछ करने पर दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है.

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नई दिल्ली: सोलह मीडिया संगठनों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को बुधवार को लिखे एक पत्र में कहा, “पत्रकारिता पर ‘आतंकवाद’ के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता” और उनसे “बहुत देर होने से पहले इस मामले में संज्ञान लेने और हस्तक्षेप करने” का आग्रह किया.

दिप्रिंट द्वारा देखा गया यह पत्र समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक में कार्यरत या उससे जुड़े कई पत्रकारों और अन्य पेशेवरों के घरों पर छापे के मद्देनजर आया है, जिसके कारण उनके मोबाइल फोन और लैपटॉप जब्त किए गए हैं. पत्र न्यायपालिका से आग्रह करता है कि वह “पत्रकारों के फोन और लैपटॉप की अचानक जब्ती को हतोत्साहित करने के लिए कदम उठाए और दिशानिर्देश बनाए.” इसमें पत्रकारों से पूछताछ और उनसे बरामदगी के लिए दिशानिर्देशों की भी मांग की गई है, और कहा गया कि “किसी वास्तविक अपराध से कोई लेना-देना न होने के बाद भी इस तरह की कार्रवाई करना सही नहीं है.”

अंत में, पत्र में यह भी मांग की गई है कि अदालत को “राज्य एजेंसियों और व्यक्तिगत अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के तरीके खोजने पर विचार करना चाहिए जो कानून का उल्लंघन करते हुए पाए जाते हैं या पत्रकारों के खिलाफ उनके पत्रकारीय कार्यों के लिए अस्पष्ट और खुली जांच के साथ जानबूझकर अदालतों को गुमराह करते हैं.”

पत्र पर डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन, भारतीय महिला प्रेस कोर, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया नई दिल्ली, फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स, नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया (इंडिया), चंडीगढ़ प्रेस क्लब, नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, बृहन्मुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, फ्री स्पीच कलेक्टिव मुंबई, मुंबई प्रेस क्लब, अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, प्रेस एसोसिएशन, गुवाहाटी प्रेस क्लब और इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने हस्ताक्षर किए हैं.

पत्र में कहा गया है, “हमारा सामूहिक विचार है कि उच्च न्यायपालिका को अब मीडिया के खिलाफ जांच एजेंसियों के बढ़ते दमनकारी उपयोग को समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए.”

इसमें लिखा गया है कि 3 अक्टूबर को, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 46 पत्रकारों, संपादकों, लेखकों और पेशेवरों के घरों पर छापा मारा, जो “किसी न किसी तरह से ऑनलाइन समाचार पोर्टल, न्यूज़क्लिक से जुड़े हुए थे”.

न्यूज़क्लिक के एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ और मानव संसाधन प्रमुख अमित चक्रवर्ती को दिल्ली पुलिस ने समाचार पोर्टल के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की कड़ी धाराओं के तहत मंगलवार को दर्ज एक नए मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया था.

पत्र में यूएपीए के आह्वान को “विशेष रूप से भयावह” बताया गया है, जिसमें कहा गया कि “पत्रकारिता पर ‘आतंकवाद’ के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण मौजूद हैं जो हमें बताते हैं कि ऐसी कार्रवाई का अंजाम आखिर में क्या होता है.”

इस तथ्य को उजागर करने के लिए इसमें केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन के मामले का भी उल्लेख किया गया है, जिन्हें दो साल से अधिक समय तक जेल में रखने के बाद ही जमानत दी गई थी, साथ ही यूएपीए मामले में हिरासत में रहने के दौरान फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु हो गई थी. इस तथ्य को भी उजागर किया गया कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए पत्रकारों को जमानत मिलने से पहले काफी समय जेल में बिताना पड़ सकता है.


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‘इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हस्तक्षेप करें’

पत्र में यह भी बताया गया है कि गिरफ्तारियों के अलावा, छापे के कारण “मोबाइल फोन और कंप्यूटरों को उनके डेटा की अखंडता सुनिश्चित किए बिना जब्त कर लिया गया, जो कि एक बुनियादी प्रोटोकॉल जो उचित प्रक्रिया के लिए आवश्यक है”.

पत्रकारों के फोन और लैपटॉप को अचानक जब्त करने के लिए मानदंडों की मांग करते हुए, कहा गया कि “लैपटॉप और फोन अब केवल आधिकारिक व्यवसाय करने के लिए उपयोग किए जाने वाले आधिकारिक उपकरण नहीं हैं… ये उपकरण हमारे पूरे जीवन में एकीकृत हैं और इनमें महत्वपूर्ण व्यक्तिगत जानकारी शामिल है. इसमें हमारे संचार से लेकर तस्वीरों तक, परिवार और दोस्तों के साथ बातचीत तक सब कुछ होता है.

इसमें कहा गया है, “इसका कोई कारण या औचित्य नहीं है कि जांच एजेंसियों को ऐसी सामग्री तक पहुंच मिलनी चाहिए.”

पत्र में पूछताछ की पूर्व शर्त के रूप में गिरफ्तारी के आधार बताने के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है. और कहा गया कि “जैसा कि हमने न्यूज़क्लिक मामले में देखा है, कुछ अनिर्दिष्ट अपराध की जांच के बारे में अस्पष्ट दावे पत्रकारों पर सवाल उठाने का आधार बन गए हैं, अन्य बातों के साथ-साथ, किसान आंदोलन, सरकार द्वारा कोविड महामारी से निपटने और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बारे में उनकी कवरेज के बारे में” पूछा गया.”

यह दावा करता है कि मीडिया को धमकी, “समाज के लोकतांत्रिक ढांचे को प्रभावित करती है”.

पत्र में सीजेआई को याद दिलाया गया कि उन्होंने अक्सर प्रेस के कर्तव्य के बारे में बात की है कि वह सत्ता के सामने सच बोलें और नागरिकों को सही तथ्य पेश करें, जिससे वे ऐसे विकल्प चुन सकें जो लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाएं. इसमें  सीजेआई को यह कहते हुए उद्धृत किया कि भारत की स्वतंत्रता तब तक सुरक्षित रहेगी जब तक पत्रकार “प्रतिशोध की धमकी से डरे बिना” यह भूमिका निभा सकते हैं.

हालांकि, पत्र में कहा गया है कि “पत्रकारों को एक केंद्रित आपराधिक प्रक्रिया के अधीन करना क्योंकि सरकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के उनके कवरेज को अस्वीकार करती है, और धमकी से प्रेस को शांत करने का एक प्रयास है – वही घटक जिसे आपने स्वतंत्रता के लिए खतरे के रूप में पहचाना है”.

इसमें कहा गया है कि पिछले 24 घंटों के घटनाक्रम ने उसके पास “अपील करने और हस्तक्षेप करने के आग्रह करने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए और पुलिस निरंकुश हो जाए.”

पत्र इस आश्वासन के साथ समाप्त होता है कि पत्रकार और समाचार पेशेवर के रूप में, “हम किसी भी प्रामाणिक जांच में सहयोग करने के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक हैं.”

इसमें कहा गया है, “हालांकि, तदर्थ, व्यापक जब्ती और पूछताछ को निश्चित रूप से किसी भी लोकतांत्रिक देश में स्वीकार्य नहीं माना जा सकता है, और उस देश में तो बिल्कुल नहीं जिसने खुद को ‘लोकतंत्र की मां’ के रूप में पेश किया है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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