बेंगलुरू: शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने आधुनिक और प्राचीन गधों का जिनेटिक विश्लेषण किया है, जिससे पता चला है कि दूसरे जानवरों के विपरीत, जो मानव समाज का एक हिस्सा थे, गधों को इतिहास में केवल एक बार पालतू बनाया गया था. पालतू गधों पर ये निष्कर्ष इकूस एसिनस पिछले सप्ताह साइंस पत्रिका में प्रकाशित किए गए.
स्टडी में पता चला कि पालतू बनाने का काम 5,000 ईसा पूर्व के आसपास पूर्वी अफ्रीका में हुआ था, जिसके बाद गधे तेजी के साथ यूरेशिया में फैल गए और एक अलग उप-जनसंख्या बन गए जो जिनेटिक रूप से अलग थलग रहे, संभवत: इस कारण से कि सहारा फिर वन से रेगिस्तान में बदल गया.
शोधकर्त्ताओं को पता चला कि तेजी से हुए इस फैलाव और जिनेटिक अलगाव ने, गधों की हमारे समाज में बोझ ढोने वाले पशु की अहम भूमिका में ढलने में मदद की, जिससे इंसानों को तरह तरह की जमीनों और वातावरण में वस्तुओं की ढुलाई में सहायता मिली.
अभी तक, गधों के विकास के बारे में बहुत आधिक जानकारी नहीं थी, चूंकि ये प्रजाति धीरे धीरे औद्योगिक मानव समाज से बाहर हो गई है. निष्कर्षों में घोड़े, कुत्तों, चमगादड़, और बेक्टीरिया के बारे में भी जानने की कोशिश की गई है- हमारी बढ़ती हुई जिनोमिक सीक्वेंसिंग क्षमताओं की वजह से, जिनके विकास के इतिहास की इंसानी आंखों के पास नई गुप्त जानकारी है.
स्टडी के लेखकों ने मध्य एशिया, अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, और यूरोप से 207 आधुनिक गधों की जिनोम सीक्वेंसिंग की; मध्य एशिया और यूरोप में फैले फॉसिल्स से 31 प्राचीन गधे लिए, और 15 जंगली पशु घोड़े के परिवार से लिए. सीक्वेंसिंग डेटा से पता चला कि आधुनिक गधे उन प्राचीन गधों के वंशज हैं, जिनका लोगों ने चयन किया था और बड़े आकार तथा ताकत के लिए, अकसर उनका आंतरिक और अंतर- प्रजनन किया.
शोधकर्त्ताओं ने करीब 200 ईसवी पूर्व में लेवेंट क्षेत्र में पहले अज्ञात जिनेटिक वंशावली के बारे में भी लिखा है, जिसने गधों के अफ्रीका से एशिया की ओर जिनेटिक प्रवाह में योगदान दिया. फिर ये जिनेटिक सीक्वेंसेज यूरोप, एशिया, और लेवेंट से वापस प्रवाहित होकर, पश्चिमी अफ्रीका की गधों की आबादी में शामिल हो गईं.
गधों, जंगली गधों, और खच्चरों ने दुनिया के बहुत से हिस्सों में सभ्यता के विकास में अहम योगदान दिया है. उन्हें आज भी मेहनत के काम के लिए इस्तेमाल किया जाता है, खासकर कम और मध्यम आय वर्ग वाले देशों और उन देशों में जहां कठिन इलाके हैं.
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जलवायु संकट से निपटने में गधों का इस्तेमाल
गधों की निभाई अहम भूमिका- जो कुछ वर्षों पहले तक हमारी बहुत सी पॉप संस्कृतियों का हिस्सा थे- पुरातत्व और फॉसिल खोजों में स्पष्ट रूप से दर्ज की गई है.
मसलन, स्टडी में इस्तेमाल किए गए 9 प्राचीन गधों के जिनोम्स, फ्रांस के एक पुरातत्व स्थल से लिए गए जहां 200-500 सीई में एक रोमन विला हुआ करता था. ऐसा लगता है कि विला में गधों का एक प्रजनन केंद्र था. जिनेटिक डेटा से संकेत मिलता है कि रोमन लोगों ने अफ्रीकी और यूरोपियन गधों का अंतर-प्रजनन करके ‘विशाल’ गधे तैयार कर लिए, जो प्रजाति के आम गधों के मुकाबले, जिनकी औसत ऊंचाई 130 सेंटीमीटर थी, 25 सेंटीमीटर ऊंचे थे.
गधों को अकसर जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाली संकट की परिस्थितियों में, सहायता का साधन समझा जाता है, चूंकि कम तथा मध्यम आय वाले देशों में, इनका इस्तेमाल आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सहायता पहुंचाने के लिए किया जाता है.
बहुत से लोगों का मानना था कि सूखे में काम करने वाले जानवरों के तौर पर जो भारी बोझ ढोते हैं, गधे मौसम की चरम परिस्थितियों के सामने लचीले होते हैं और कृषि उत्पादन तथा ग्रामीण समुदायों के आर्थिक प्रबंधन में भागीदारी करके, खासकर जहां औद्योगिक उपकरणों तक पहुंच नहीं है, स्थिरता में अपना योगदान दे सकते हैं.
रिपोर्ट में शोधकर्त्ताओं ने कहा, ‘दुनिया भर में आधुनिक गधों की विविधता को चिन्हित करने के प्रयास जारी रहने चाहिए. इन प्रयासों से न सिर्फ पिछली आबादियों की ऐतिहासिक विरासत को आधुनिक दुनिया में सुधारा जा सकता है, बल्कि रेगिस्तान अनुकूलन के जिनेटिक आधार का भी खुलासा किया जा सकता है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग की स्थिति में, भविष्य में गधों के प्रजनन में अमूल्य साबित हो सकता है’.
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