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Friday, 22 November, 2024
होमदेशक्या हम बुनियादी मानवाधिकारों के लिए कोर्ट के चक्कर काटते रहें? नवलखा की पार्टनर ने कहा- उन्हें कॉल करने भी नहीं दिया जा रहा

क्या हम बुनियादी मानवाधिकारों के लिए कोर्ट के चक्कर काटते रहें? नवलखा की पार्टनर ने कहा- उन्हें कॉल करने भी नहीं दिया जा रहा

सहाबा हुसैन का कहना है कि जबसे उन्हें हाई सिक्योरिटी वाली अंडा सेल में ट्रांसफर किया गया है, तबसे मानवाधिकार कार्यकर्ता को लाइब्रेरी, कैंटीन और जेल के हरे-भरे क्षेत्रों में प्रवेश से वंचित कर दिया गया है.

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नई दिल्ली: पिछले साल अप्रैल का समय था जब मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने भीमा कोरेगांव मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के समक्ष आत्मसमर्पण किया था.

तबसे नवलखा जेल में ही हैं- पहले दिल्ली की तिहाड़ जेल में और फिर मुंबई की तलोजा जेल में. इस महीने की शुरुआत में 70 वर्षीय एक्टिविस्ट को पांच अन्य आरोपियों के साथ मुंबई जेल के हाई सिक्योरिटी ‘अंडा सेल’ में ट्रांसफर कर दिया गया था.

नवलखा की पार्टनर सहाबा हुसैन का कहना है कि समय के साथ एक्टिविस्ट की तबीयत बिगड़ ही रही है. हुसैन ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि नवलखा को अंडा सेल से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, जहां उन्हें 12 अक्टूबर को ट्रांसफर किया गया था और फोन कॉल से भी वंचित कर दिया गया है. हुसैन और नवलखा की वकील पयोशी रॉय का यह भी कहना है कि उन्हें हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है और सीने में गांठ है.

एनआईए ने अपने आरोपपत्र में कहा था कि नवलखा को भाकपा (माओवादियों) की छापामार गतिविधियों के लिए नए कैडर की भर्ती करने का जिम्मा सौंपा गया था. उन्होंने एक कश्मीरी सैयद गुलाम नबी फई, जिसे एफबीआई ने कथित तौर पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से फंड लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था, के लिए ‘माफी’ की मांग की थी.


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‘ताजी हवा नहीं मिलती, फोन कॉल की सुविधा नहीं’

नवलखा की वकील रॉय और पार्टनर का आरोप है कि जेल अधिकारियों को बार-बार ई-मेल करने के बावजूद उन्हें एक भी फोन करने की अनुमति नहीं दी गई.

हुसैन ने कहा, ‘अंडा सेल में हर कैदी को एक एकांत कोठरी दी जाती है. समय तो वही रहता है लेकिन समस्या यह है कि खुले स्थान वाले बैरकों के विपरीत यहां ताजी हवा तक नहीं पहुंचती है. अंडा सेल में कंक्रीट की ऊंची-ऊंची दीवारें होती हैं. सूरज की रोशनी यहां बिल्कुल नहीं पहुंचती. उन्हें लाइब्रेरी और कैंटीन सहित कहीं भी जाने के लिए अंडा सेल से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है. ऐसी परिस्थितियों में कम से कम एक फोन कॉल की अनुमति तो दी जानी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे पता है कि उन्हें एक सेल से दूसरे सेल में ट्रांसफर किया जा सकता है, लेकिन फोन कॉल की कोई सुविधा न देना परेशानी की वजह है. उन्होंने फिजिकली मुलाकात शुरू करा दी है लेकिन यह किसी को फोन कॉल की अनुमति नहीं देने का कारण तो नहीं हो सकता. उन परिवारों का क्या जो मुंबई से बाहर रहते हैं? बाहर से आने वाले के लिए स्थिति बहुत विचित्र हो जाती है- उन्हें चिलचिलाती धूप में घंटों खड़े रहना पड़ता है, वॉशरूम तक की सुविधा नहीं है. पीने के पानी के लिए सिर्फ एक नल है. हमें अपनी बारी के लिए 7-8 घंटे इंतजार करना पड़ता है.’ साथ ही सवाल उठाया, ‘क्या बुनियादी मानवाधिकारों के लिए हमें अदालतों का चक्कर लगाना होगा?’

हर बंदी के लिए एक कांच की खिड़की के पार से मुलाकात का समय 10 मिनट निर्धारित है. हुसैन ने कहा कि नवलखा से आखिरी बार उनकी बात 14 अक्टूबर को हुई थी.

हुसैन ने बताया, ‘वह मुझे हर चौथे पांचवें दिन 10 मिनट के लिए फोन करते थे. 14 अक्टूबर के बाद से कोई बातचीत नहीं हुई है. पत्र पहुंचने में हफ्तों लग जाते हैं. अगर उन्हें कुछ हो गया तो मुझे या किसी अन्य को कैसे पता चलेगा.’

हुसैन ने रविवार को भी एक बयान जारी किया था जिसमें दावा किया गया था कि नवलखा को जेल के बिना कंक्रीट वाले हरे-भरे क्षेत्र और ताजी हवा लेने तक से वंचित कर दिया गया है.

बयान में कहा गया है, ‘गौतम के बिगड़ते स्वास्थ्य और परिवार और वकीलों से फोन पर बात करने की सुविधा न मिलने की वजह से उन्हें लेकर चिंताएं और बढ़ जाएंगी. अंडा सर्किल में होने के कारण वह जेल में बिना कंक्रीट वाले हरे-भरे क्षेत्र में हर दिन टहलने और ताजी हवा में सांस लेने की सुविधा से पहले ही वंचित हैं. इससे उनका स्वास्थ्य और भी खराब हो गया है, ऐसे में अगर उन्हें इस झूठे मुकदमे और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए जीना है तो भी उन्हें विशेष चिकित्सकीय देखभाल की बेहद जरूरत होगी. दिल्ली में मुझे और उनके वकीलों को हर हफ्ते कॉल की सुविधा मिले बिना उनका जीवन और इस मामले में उनका बचाव दोनों ही गंभीर तौर पर खतरे में पड़ जाएंगे.

यह पहली बार नहीं है जब भीमा कोरेगांव मामले के आरोपियों के परिवारों ने आरोप लगाया है कि एक्टिविस्ट को फोन करने से वंचित किया जा रहा है.

पिछले साल सुधा भारद्वाज के वकील ने बताया था कि उन्हें ‘एक फोन कॉल की बुनियादी मानवीय सुविधा’ तक से वंचित कर दिया गया है.

दिप्रिंट ने तलोजा जेल के जेल अधीक्षक यू.टी. पवार से फोन और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क साधा लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिला. एडीजी जेल अतुल कुलकर्णी ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हालांकि, महाराष्ट्र की जेलों के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि नवलखा या किसी अन्य कैदी को फोन कॉल की सुविधा से वंचित नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘यह जरूर है कि वीडियो कॉलिंग की सुविधा अब उपलब्ध नहीं है क्योंकि इस महीने से फिजिकली मुलाकात शुरू हो गई है, लेकिन जेल परिसर में क्वाइन फोन के माध्यम से वॉयस कॉल की जा सकती है. यह सभी कैदियों के लिए उपलब्ध है, जिसमें अंडा सेल में बंद लोग भी शामिल हैं.

कैदियों को उच्च सुरक्षा वाले बैरक में स्थानांतरित किए जाने के प्रोटोकॉल के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा, ‘यह फैसला प्रशासन पर निर्भर करता है.’


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कैंसर की आशंका सता रही

नवलखा के वकीलों ने इस साल अगस्त में बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर करके कहा था कि एक्टिविस्ट का स्वास्थ्य बिगड़ने को देखते हुए उन्हें नजरबंद रखा जाए. इस अंतरिम आवेदन में उन्होंने व्यापक स्वास्थ्य जांच का आग्रह भी किया था.

एडवोकेट रॉय ने दिप्रिंट को बताया, ‘सुनवाई दो बार स्थगित की गई क्योंकि राज्य की तरफ से जवाब ही दाखिल नहीं किया था. पिछले हफ्ते, सरकार ने कहा कि उन्हें नजरबंद नहीं रखा जा सकता क्योंकि उन्होंने एक गंभीर अपराध किया है.’

अगली सुनवाई 6 दिसंबर को है.

रॉय ने कहा कि नवलखा के सीने में गांठ चिंताजनक है क्योंकि उनके परिवार में कैंसर का इतिहास रहा है.

रॉय ने कहा, ‘हम नहीं जानते कि ये कोई घातक ट्यूमर है या नहीं. जेल अधिकारियों ने उसकी कोई जांच नहीं कराई है. कई बार पत्र लिखे जाने के बाद वे उन्हें एक बार वाशी अस्पताल ले गए. हालांकि, ओपीडी बंद थी इसलिए उनकी जांच नहीं हो सकी. वे जब उन्हें तलोजा जेल के क्वारेंटाइन वार्ड में लाए, तो वहां के हालात अमानवीय थे और किसी भी तरह रहने लायक स्थिति नहीं थी. वॉशरूम में दरवाजे तक नहीं थे. वहां एलर्जी से उनकी स्थिति बिगड़ गई और रक्तचाप बढ़ गया.’

उन्होंने कहा कि नवलखा ‘क्वारेंटाइन वार्ड की त्रासद स्थितियों’ को देखते हुए नहीं चाहते कि उन्हीं किसी सरकारी अस्पताल में ले जाया जाए.’

रॉय ने कहा, ‘किसी कैदी को अंडा सेल में स्थानांतरित करना जेल अधीक्षक के विवेक पर है.’


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‘अमानवीय स्थितियां’

जून 2020 में नवलखा को महाराष्ट्र में जिस क्वारेंटाइन फैसिलिटी में रखा गया था, उन्होंने वहां की ‘अमानवीय परिस्थितियों’ को उजागर किया था. उनके फोन पर बातचीत के आधार पर हुसैन ने फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन को क्वारेंटाइन वार्ड की स्थितियों पर एक पत्र लिखा था.

मई 2020 में स्टेन स्वामी, हनी बाबू और महेश राउत के परिवार के सदस्यों ने तलोजा जेल के अंदर की स्थितियों को ‘गंभीर और खतरनाक’ करार दिया था.

हुसैन ने रविवार को जारी अपने बयान में यह भी कहा कि उन्हें डर है कि कहीं नवलखा का हाल भी आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी के जैसा न हो जाए. गौरतलब है कि 84 वर्षीय स्वामी का 5 जुलाई को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था.

हुसैन ने अपने बयान में कहा, ‘अभी कुछ समय पहले ही त्रासद परिस्थितियों में स्टेन स्वामी का निधन हो गया. पर्किंसंस रोग से गंभीर रूप से पीड़ित स्टेन स्वामी को तरल पदार्थ लेने के लिए स्ट्रॉ, शौचालय जाने के दौरान मदद और चिकित्सकीय सहायता जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ा. अपने गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए उनकी बस यही इच्छा थी कि उन्हें अपने रांची स्थिति घर में अंतिम सांस लेने का मौका मिले.

पर्किंसन रोग से पीड़ित स्वामी को तलोजा जेल अधिकारियों से एक स्ट्रॉ और सिपर लेने के लिए महीने भर तक इंतजार करना पड़ा था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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